बंदा बहादुर का मूल नाम लक्ष्मण दास माधो दास था। वह जम्मू कश्मीर के राजौड़ी नगर का निवासी था। राजपूत उसे रामदेव राजपूत का पुत्र कहते हैं । मोहयाल ब्राह्मण उसे भृगु गोत्रीय छिब्बर मानते हैं। और कश्मिरी पंडित उनहे पंडित कहते हैँ !
लक्ष्मण दास माधो दास की वंशावली पर शोध आवश्यक है क्यू की इनके परिवार के प्रमाण हरिद्वार के पंडितों के बही खातों में उपलब्ध हैँ । लक्ष्मण दास को बचपन में बंदूक चलाने का बहुत शौक था । एक दिन उसके हाथ से एक गर्भवती हिरणी की मृत्यु हो गई। उसी दिन से वह विरक्त हो गया। कुछ दिन नासिक में रहकर यह नंदेड़ पहुंच गया तथा आध्यात्मिक शक्ति के कारण प्रसिद्ध हो गया। गुरु गोबिंद सिंह जी के सम्पर्क में आने पर उन्होंने उसे अपने पंथ में मिला लिया तथा उसे पंजाब के हालात से अवगत किया। लक्ष्मण दास का सुप्त क्षात्र बल जाग्रत हो उठा। गुरु जी ने उसे 5 तीर, तरकस और तलवार दी तथा सिक्ख जगत को हुक्म दिया कि वे बंदा बहादुर के झण्डे तले इकट्ठे हो जाएं और उसके आदेश का पालन करें। इतिहासकार गोकुलचंद नारंग के अनुसार गुरू जी ने उसके साथ 25 सिक्ख भेजे। सभी के मनों में धर्म के लिए मर मिटने की भावना भरी थी। गुरु जी के परिवार पर हुए अत्याचारों से सभी दुखी थे !
पंथ प्रकाश के अनुसार, तीन मास के भीतर बंदा बैरागी के पास चार हजार घुड़सवार और आठ हजार पैदल सैनिक इकट्ठा हो गए थे। सभी हिंदुओं की ओर से उसे धन की सहायता मिलने लगी। कुछ समय में ही करनाल से ले कर लुधियाना तक बन्दा का अधिकार हो गया। बंदा बहादुर ने गुरूनानक व गुरु गोबिंद सिंह के नाम के सिक्के चलाए। 1710 ई० में जालन्धर में भयंकर युद्ध होने के पश्चात् जालन्धर, अमृतसर, बटाला आदि पर सिक्खों का अधिकार हो गया। चम्बा के उदय सिंह ने अपनी बेटी का विवाह बंदा बहादुर से कर दिया। उसका एक बेटा था, जिसका नाम अजय सिंह रखा। जनवरी सन् 1716 ई० में बंदा बहादुर पकड़ा गया। उस पर अमानवीय अत्याचार किए गए। उसके सामने उसके बेटे के टुकड़े करके उसके मुह घूंसे गए। 6 जून. 1716 ई० क्रूर शासकों ने बंदा बहादुर के हाथ काट दिए, आंखे निकाल दी। उस वीर ने बड़ी सहनशीलता से मृत्यु का आलिंगन किया। कई सिक्ख इतिहासकार कहते हैं कि बंदा गुरु कहलाने लग गया था। यह सरासर गलत है। यदि वह स्वयं गुरु बनाना चाहता तो अपने नाम के सिक्के चलाता। जम्मू से 30 किमी० दूर डेरा ‘बाबा बंदा बहादुर’ है। बंदई सिक्खों का धार्मिक ग्रन्थ श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ ही है। परन्तु पंजाब के सिक्ख ‘बंदई सिक्खों’ को भी सिक्ख नहीं मानते। इस समय सन्त जतेन्द्र सिंह जी गद्दी पर विराजमान है। गुरुद्वारे में एक संग्रहालय है। वहां बन्दा बहादुर के वस्त्र-शस्त्र तथा दशम गुरू जी द्वारा दी गई तलवार, तीर और कवच हैं।
गुरु गोबिन्द सिंह की शहादत के बाद ब्राहमिण और खत्री समिति ने बन्दा बहादुर को गुरु गद्धी पर बिठाने का र्निणय लिया लेकिन सिखों के एक वर्ग ने उनहे गुरु मानने से इंकार कर दिया।
उन्हों ने ग्रंथ साहिब को गुरु मानना शुरू कर दिया बन्दा बहादुर के अनुय़ायीयों ने जम्मु कश्मीर में बन्दाई संगठन बनाया जिसका अस्तित्व धीरे धीरे समाप्त हो गया आदि गुरु ग्रंथ साहिब में कुछ परीवर्तंन किया गया और सिख धर्म पर पंडितों का प्रभाव कम करने के लिये एक काल्पनिक भोला ब्राहमिण की कहानी को ग्रंथ साहिब में डाला गया ! सिख धर्म को नेतृत्वहीन करने के लिए उनहोने ग्रन्थ साहिब को गुरु मानने के लिए सबको सहमत किया पहले सिख धर्म, इस्लाम की तरह एक सैन्य सिद्धांत के साथ-साथ धार्मिक विश्वास भी था लेकिन इस र्निणय परिणामस्वरूप यह सिर्फ एक धार्मिक विश्वास बन कर रह गया सैन्य रणनीति में किसी संघर्ष या युद्ध में विशिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संचालन की योजना बनाना और उसे क्रियान्वित करना शामिल है। इसमें रणनीति, लॉजिस्टिक्स, इंटेलिजेंस और संचार जैसे विभिन्न पहलू शामिल हैं। एक सफल सैन्य रणनीति के लिए युद्ध के मैदान पर बदलती परिस्थितियों के अनुकूल होने की क्षमता के साथ-साथ दुश्मन की क्षमताओं और अपनी ताकत दोनों की गहरी समझ की आवश्यकता होती है। लचीलापन, समन्वय और कमजोरियों का फायदा उठाने की क्षमता प्रभावी सैन्य रणनीति के प्रमुख घटक हैं। इसी रणनीति पर काम करते हुए, मुगलों ने कुछ सिखों को बन्दा बहादुर को सिखों का गयारवां गुरु मानने से इंकार करने पर सहमत कर लिया गुरु ग्रंथ साहिब ने सिखों को पूजा के लिए spritual motivation तो दी लेकिन military नेतृत्व नही दिया सिखों की ब्राहमिण और खत्री समिति ने बन्दा बहादुर को सिखों का गयारवां गुरु बनाया था लेकिन एक वर्ग ने उनहे गुरु मानने से इंकार कर दिया