देहि सिवा वर मोहे इहै . सुभ कर्मन ते कबहुं न डरों, न डरौ अरि सों, जब जाय लरौ , निसचै कर अपनी जीत करौ। बीसवीं शताब्दी के अनेक बलिदानियों को, जिन्होंने विदेशी सत्ता से भारत माता को मुक्त कराने और भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए असहनीय यातनाएँ सही, लाठियाँ झेली. फांसी के फन्दे पर झूले और छातियों गोलियाँ खाई। “वर्तमान को समझने के लिए, भविष्य को बनाने के लिए, प्राचीन इतिहास को जानना आवश्यक है। यदि हमें राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक व्यवस्था का ज्ञान होगा तो हम दोबारा वे भूलें नहीं करेंगे, जो पहले हो गई हैं।” “सच्चा इतिहास” लिखना बहुत कठिन है। ऐतिहासिक सच्चाई के लिए कई बार पीड़ा जनक और दुखद घटनाओं को दुहराना पड़ता है। विश्व का समस्त इतिहास मानव की निर्दयता, स्वार्थ, लालच आदि से परिपूर्ण है। भारत का इतिहास भी कुछ ऐसा है। परस्पर शान्ति, सद्भाव बनाए रखने के लिए यदि वास्तविक इतिहास की ओर से मुँह मोड़ लिया जाए तो उससे अधिक लाभ नहीं होगा। यदि थोड़ी देर के लिए लाभ होता भी है तो भी भविष्य के लिए यह वृत्ति हानिकारक सिद्ध हो सकती है।” भारतीय संस्कृति का श्री गणेश वैदिक काल से पूर्व हो चुका था। भारत में सूर्यवंश, सोम वंश के राज्यों की स्थापना हो गई थी। ये राज्य अयोध्या, मेथिला, वैशाली, काशी, मगध, पाचाल, कान्यकुब्ज महिष्मति, तुर्वसु, हस्ति, रत-माता. उशीनर या गांधार, कलिंग, तितुक्षु (पूर्वी भारत) आदि थे। स्थान-स्थान पर ऋषियों-मुनियों के आश्रम भी स्थापित हो गए थे। उनमें वेद वेदांग. उपनिषद्, तियोंपरआयुर्वेद आदि का अध्ययन तथा अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा दी जाती थी। ब्रहचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रमों तथा सामाजिक व्यवस्था के लिए चार वर्णा को गठित कर दिया गया था। आश्रमों में राजा और रंक के बच्चे इकट्टे पढ़ते थे। वर्ण-व्यवस्था में कट्टरता नहीं थी। ऐसे कई उदाहरण है, जहां राजा अपना साम्राज्य त्याग कर शास्त्रों का अध्ययन करने तथा ब्राह्मण बनने के लिए आश्रमों में चले गए थे। इक्ष्वाकु राजा मांधाता वसिष्ठ हिरण्य नाम कौशल्य, कान्यकुज के विश्वामित्र ऐसे ही राजा थे। भारत वर्ष लगभग बारह सौ वर्ष दासता की बेडियो में जकड़ा रहा। विदेशी आक्रमण कारियों ने हमारे धर्म संस्कृति को नष्ट करने का बीड़ा उठाया। परन्तु वे पूर्णतया सफल नहीं हुए। इस का कारण था. भारतवासियों द्वारा आक्रमण कारियों का डट कर सामना करना। लाखों करोड़ों की संख्या में हिंदु-स्त्री, पुरुष, बच्चे तलवारों से काटे गए। जीवित जलाए गये। परन्तु खेद है, उन बलिदानियों का इतिहास लिखने में भी सकोच किया गया। आओ, सच्चा इतिहास लिखने का संकल्प करें।