दीवान दुर्गामल छिब्बर परिवार
भाई धर्म चन्द छिब्बर और भाई साहिब चन्द छिब्बर,
ये दोनों दीवान दुर्गामल के पुत्र थे। भाई मतिदास व भाई सतिदास के शहीद होने के पश्चात् दोनों को गुरू गोबिंद सिंह जी ने मंत्री पद प्रदान किया। धर्मचन्द को तोपखाना अध्यक्ष व साहिबचंद को दीवान बनाया गया। महान कोष भाग-1 के अनुसार साहब चन्द पराक्रमी योद्धा थे। वे आनन्दपुर युद्ध में शहीद हुए। गुरु जी की आज्ञा के अनुसार उनका अन्तिम संस्कार निर्मोहगढ़ में किया गया। जीत भई तहि खालसा की।
अरू साहब चंद की लोथ उठाई।।
भाई धर्मचन्द भी युद्ध में शहीद हुए। उनके बाद उनके पुत्र गुरु बख्श सिंह को दीवान बनाया गया। हिंदु धर्म की रक्षा के लिए गुरबख्श सिंह ने भी कई युद्ध लड़े और अन्त में शहीद हुए। भाई गुरबख्श सिंह छिब्बर का पुत्र केसर सिंह छिब्बर जो पिता के बलिदान के समय बच्चा था, माता सुंदरी के संरक्षण में पला। केसर सिंह छिब्बर का जन्म 1699 ई. में जम्मू में
हुआ था । यह जन्म प्रमाण उनके काव्य ग्रंथ की आंतरिक गवाही पर आधारित है। बंसावलीनामा दस पातशाहियां की रचना केसर सिंह छिब्बर ने की थी। केसर सिंह छिब्बर के परदादा का नाम पंडित दरगाह मल्ल छिब्बर था। यह परिवार गुरु नानक देव जी से जुड़ा था।
गुरुओं ने समय-समय पर इस परिवार को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ दीं। इसी परिवार ने गुरु तेग बहादुर जी और गुरु
गोबिन्द जी के कह ने पर एक विशाल मोहयाल ब्राहमनो और खत्रियों की फौज तैयार की
कीरतपुर साहिब से जब गुरु तेग बहादुर 10 जून 1656 को सिख प्रचार के लिए अन्य शहरों में गए, तो गुरु के परिवार के अलावा, जम्मू कश्मीर से केवल कुछ चुनिंदा लोग ही गये जैसे दरगाह मॉल छिब्बर, बाबा अलमस्त, चौपट राय छिब्बर। गुरु तेग बहादुर को गुरुपद सौंपने की रस्म 11 अगस्त 1664 को पूरी हुई, तब दीवान दरगाह मॉल छिब्बर सहित अन्य लोगों की विशेष भूमिका थी।
बादशाह औरंगजेब के आदेश से जब आलम खान रुहेला ने 8 नवंबर 1665 को गुरु तेग बहादुर को गिरफ्तार कर लिया, तो गुरु साहिब के साथ भाई मति दास को भी गिरफ्तार कर लिया गया। ये सभी छिब्बर, एक ही मोहयाल वंश के थे। जब इस गिरफ़्तारी की ख़बर चौक नानकी पहुँची। दीवान दरगाह मॉल छिब्बर और चौपट राय छिब्बर दिल्ली के राजा जय सिंह मिर्ज़ा के बंगले पर गए और पुष्पा देवी और कुँवर राम सिंह को पूरी बातचीत सुनाई। बादशाह औरंगजेब से परामर्श करने के बाद, उन्होंने गुरु साहिब और सिखों की रिहाई सुनिश्चित की। गुरु साहिब और सिखों को 19 दिसंबर, 1665 को रिहा कर दिया गया। दीवान दरगाह मॉल सहित सभी सिख गुरु साहिब के साथ मथुरा, आगरा, इलाहाबाद, बनारस, सासाराम और गया पहुँचकर गुरु नानक की विचारधारा का प्रचार करते हुए पटना पहुँचे। वृद्ध होने के कारण, दीवान दरगाह मॉल, दीवानी की जिम्मेदारी निभाने में असमर्थ थे, उन्होंने अनुरोध किया और अपने दो बेटों, साहिब चंद और धरम चंद को राजकोष और दीवानी का प्रभारी नियुक्त किया जाये ।
भाई केसर सिंह छिब्बर :
दशम गुरु गोबिंद सिंह जी के निधन के पश्चात माता सुन्दरी मथुरा तथा नई दिल्ली में रही। राजा जय सिंह ने उन्हें दो गांव की जागीर दी हुई थी। केसर सिंह का पालन-पोषण व शिक्षा माता सुन्दरी के संरक्षण में हुई। माता जी के देहान्त अथवा सन् 1747 तक केसर सिंह उन्हीं के पास रहा। माता जी ने भाई केसर सिंह से गुरुओं का इतिहास “वंशावली नामा दसां पातशाहीयां दा” लिखवाया। उनकी अन्य रचनाएं मैना वन्ती’, ‘गोपीचन्द’ ‘बारह माह’ और ‘कल्पर धानी हैं।
भाई सन्तदास छिब्बर :
सन्तदास को भी भाई धर्मचन्द का पोता कहा गया है। वे स्वयं को कश्मीरी कहते हैं। ऐसा अनुमान है कि माता सुन्दरी के देहान्त के पश्चात चे कश्मीर चले गए हो :- कार सुभ देस कहायो। कस्सप रिखीसर के मन भायो।। भाई संतदास की प्रसिद्ध रचना ‘जन्म साखी नानक शाह जी’ की है। इस साखी में उन्होंने गुरु नानक देव को अवतार रूप में चित्रित किया है। रामेश्वर यात्रा के समय वे बाबा नानक जी से कहलवाते हैं। सुन बाले इह ईसर थान। प्रीत सहित इत थापयो राम।। मक्का यात्रा के दौरान भी कवि गुरु जी के मुख से कहलवाते है कि “यह स्थान हिंदुओ का है।”
भाई संतदास छिब्बर हिंदु धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, और उसकी रक्षा के लिए वे सर्वस्व त्यागने को तैयार हैं।