महमूद गजनवी का कहर
महमूद गजनवी का जन्म सन् 977 ई0 में ग़ज़नी में हुआ। सन् 997 ई0 में उसके पिता सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गई। उसने अपने पुत्र इस्मायल को उत्तराधिकारी बनाया था। परंतु महमूद ने उसे कैद करके सत्ता अपने हाथ में ले ली। इस्मायल का अन्त कैद खाने में ही हो गया। महमूद कट्टर मुसलमान था। सन् 998 ई0 में बादशाह बनते ही उसने तलवार की नोक पर लूटपाट शुरू कर दी। इतिहास में मन्दिर नष्ट करने वाले लुटेरे के रूप में उसका उल्लेख है। उसने भारत पर सत्रह हमले किए। उस समय अफगानिस्तान व पंजाब पर साही राजाओं का शासन था । उन्होंने महमूद के आक्रमणों को डट कर विरोध किया, फरिश्ता के अनुसार इस अवसर पर दिल्ली और अजमेर के शाही राजाओं ने साही राजाओं की सहायता की। आम धारणा है कि हिन्दू राजा संकट के समय अथवा धर्म संस्कृती की रक्षा के समय भी इकट्ठे नहीं होते। फरिश्ता के कथन से स्पष्ट है कि उस समय हिन्दू राजा इस्लाम की बढ़ती शक्ति को रोकने के लिए पूर्णतया सजग थे।
महमूद द्वारा भारत पर आक्रमण – सन् 1000 ई० में महमूद गजनवी ने पेशावर के आसपास के किले जीत लिए। सन् 1001 ई० में पेशावर का किला जीतकर उसने जयपाल साही को पुत्र और पौत्र सहित कैद कर लिया। उनसे पर्याप्त धन ले कर उन्हें छोड़ा। सन् 1002-03 में महमूद सिस्तान-युद्ध में व्यस्त रहा। सन् 1004 ई० में उसने मुलतान पर आक्रमण किया और नमक श्रृंखला व मेरा आदि का क्षेत्र लूटा। वहां का राजा बाजीराय एक वीर योद्धा था. उसने डट कर सामना किया। तीन-चार दिन तक घोर युद्ध हुआ। अन्त में वह कुछ सैनिकों के साथ पहाड़ की चोटी पर चढ़ गया। महमूद के सैनिकों ने उसे घेर लिया। शत्रुओं के हाथों मरने से उसने स्वयं मरना अच्छा समझा और कटार अपने पेट में घोप ली। उसके सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। सन् 1005 को महमूद गजनी लौट गया। सन् 1005 के अन्त में महमूद ने पुनः मुलतान पर आक्रमण किया। सन् 1008 में उसने पन आनन्द पाल साही पर आक्रमण किया उसके पुत्र ब्रह्म पाल ने सेना का नेतृत्व किया। फरिश्ता के अनुसार, आनन्द पाल ने अपने धर्म व संस्कृति की रक्षा हेतु राजाओं से प्रार्थना की। कई हिन्दू राजा उसकी सहायता के लिए आगे बढ़े। उनमें कोकड और गक्खंड लोगों का ‘साही राजाओं को विशेष योगदान था। भयंकर युद्ध हुआ परन्तु हिन्दुओं का दुर्भाग्य है के जीत होते-2 अन्त में वे हार जाते रहे। कभी हाथी भाग जाता और कभी-घोड़ा राजा के नियन्त्रण से बाहर हो जाता। तीन दिन किले पर घेरा पड़ा रहा। बीस हजार सेना मारी गई। मुस्लिम सैनिकों ने भीम नगर का किला अधिकार में ले लिया। महमूद ने कोष पर अधिकार कर लिया। उसने लूट का माल होरे. जवाहर व अन्य अमुल्य वस्तुओं को गजनी ले जाकर महल में प्रदर्शनी लगाई। 1009 ई० में महमूद ने नारायणपुर (राजपुताना) पर हमला किया। वहां से लूट का माल तथा हाथी घोड़ों सहित वह गजनी लोट गया। सन् 1010 ई० में उसने पुनः मुलतान पर हमला किया। 1011 ई० में थानेसर के मन्दिर तोड़े, बड़ी मूर्तियों को वह गजनी ले गया और आम स्थान पर अपमानित करने के लिए रख दीं । सन् 1012 ई० में आनन्द पाल की मृत्यु हो गई। उसके उत्तराधिकारी त्रिलोचन पाल पर 1013 ई0 में महमूद ने आक्रमण कर दिया। उसकी सेना भारत में घुसी ही थी कि बर्फ पड़ने लग गई। कई महीने उसे रूकना पड़ा। त्रिलोचन पाल के पुत्र भीमपाल ने पहाड़ के तंग रास्ते पर उसका सामना किया। अन्त में वह अपने सैनिकों को लेकर काश्मीर की ओर चला गया। इस आक्रमण के पश्चात धनराशि के साथ कई हिन्दुओं को बन्दी बना कर महमूद गजनी ले गया। कुछ हिन्दुओं को दास बनाकर बेच दिया तथा कुछ ने अवसर पाकर आत्महत्या कर ली। सन् 1018 ई0 में उसने हर दत्त राजा और मथुरा के यादव राजा कुल चन्द्र पर हमला किया। वीरता के साथ ये राजा लड़े। कुल चन्द ने कोई उपाय न देखकर पत्नी की हत्या के बाद आत्म हत्या कर ली। इस युद्ध में पांच हजार हिन्दू मारे गए । मथुरा मन्दिरों की नगरी थी । इसके चारों और पत्थरों की ऊँची दीवारें थीं। नगर के भीतर विशाल मन्दिर था. जिसके निर्माण में 200 वर्ष लगे थे। लगभग बीस दिन लूटपाट और मन्दिर तोड़ने में लगे कन्नौज में दस हजार मन्दिर व सात किले थे । वहा के प्रतिहार राजा ने नाश लीला से बचने के लिए अधिक विरोध नहीं किया। फिर भी महमूद के सैनिकों ने कई हिन्दुओं को मौत की नींद सुला दिया और डट कर लूट मार की कन्नौज की लूट के बाद महमूद ने मुज पर हमला किया यह स्थान एटा से 14 मील उत्तर-पश्चिम की तरफ है । वहां का राजा ब्राह्मण था। 25 दिन तक यह किला मुस्लिम सैनिकों द्वाटा द्वारा घिरा रहा । कोई उपाय न सूझा तो स्त्रियों बच्चों ने किले के भीतर आग लगा ली। पुरुष लड-लड कर मर गए। इस किले का एक प्राणी भी नहीं बचा। लुट पाट के बाद महमूद फतह से दस मील आगे ‘अस्सी’ के स्थान पर पहुंचा। इसका शासक चन्द्रपाल भूर बहुत पराक्रमी था। उसने कई राजाओं को हराया था परन्तु अत्याचारी महमूद का आगमन सुनकर यह राज्य भगवान की दया पर छोड़ कर भाग गया। यह आक्रमण 1019 ई० में हुआ था। 1020 27 0 मह० गजनवी ने चंदेल विद्याधर राजा पर आक्रमण किया। त्रिलोचन पाल साही ने भी इसका विरोध किया। साही राजाओं के विषय में अल्बरूनी कहता है कि उन्होंने 25 वर्षों से अधिक तक मुस्लमानों का विरोध किया। वे भद्र व सांस्कृतिक लोग थे। कल्हण ने 12वीं शताब्दी में लिखी राज तरंगिनी में भी ऐसे ही उद्गार प्रकट किए हैं। लखनऊ निवासी श्री राम तीर्थ मोहन ने अपने शोध ग्रन्थ में “साही” राजाओं को ब्राह्मण (भारद्वाज गोत्र) सिद्ध किया है। सन् 1021-22 ई० में गजनवी ने दोबारा चंदेल विद्याधर पर आक्रमण किया। परन्तु उसे विशेष लाभ नहीं हुआ। ग्यारहवीं शताब्दी के आरम्भ में अल्बरूनी भारत में आया था। महमूद गजनवी से प्रताड़ित उसने अपना देश छोड़ा। भारत पहुंचने से पूर्व उसने गणित, विज्ञान, नक्षत्र विद्या आदि के सभी अरबी ग्रन्थों का अध्ययन कर लिया था। भारत पहुंच कर उसने संस्कृत भाषा सीखी और अरबी भाषा में बीस ग्रन्थों का अनुवाद किया।अलबरूनी का कथन है : “हिन्दुओं का विश्वास है, संसार में उनके देश जैसा कोई देश नहीं, उनके धर्म जैसा अन्य धर्म नहीं, विद्या जैसी कोई विद्या नहीं।” अल्बरुनी एक अच्छा लेखक था। उसकी पुस्तक ‘पंच सिद्धान्त के अनुसार नक्षत्र विद्या और ज्योतिष की भारतीय प्रणाली को समझाया गया है। पृथ्वी ग्रह, उनके आकार, गति, योग, सूर्य-चन्द्र ग्रहण, अक्षंश और देशान्तर प्रेक्षण यंत्र तथा नक्षत्र विद्या की भारतीय धारणा को समझाने का प्रयास किया गया है। अल्वरुनी ने चिकित्साशास्त्र को नक्षत्र विद्या के समान ही ज्ञान की उच्च शिक्षा माना है। उस समय चरक के ग्रन्थ का अरबी भाषा में अनुवाद हो चुका था। अल्बरुनी का कहना है, “भारतीय रासायण विद्या भी जानते थे। इसके द्वारा रोगी को स्वस्थ और बूढ़े को जवान बनाया जा सकता था। शायद उसने च्यवनप्राश अवलेह के विषय में ऐसा कहा है। माप के पैमाने, तोल के बाट आदि का उल्लेख भी उसने किया है। वह कहता है हिन्दू अपने ग्रन्थों में सर्व प्रथम औउम् लिखते हैं। यह शुभ माना जाता है।