इस्लाम मत का संस्थापक हजरत मुहम्मद था। उसका जन्म मक्का के स्थान पर सन् 570 ई० में और मृत्यु 632 ई० में हुई। 630 ई० में इसके अनुयायियों ने मक्का को जीत कर लगभग 360 मूर्तियाँ तोड़ दी थी। मुस्लमानों ने कुछ ही वर्षों में अरव, पर्शिया (ईरान) और अफ्रीका जीत कर इस्लाम मत की स्थापना कर दी। हजरत मुहम्मद की मृत्यु के बाद इस्लाम का नेतृत्व तीन खलीफों ने किया। प्रथम मुहम्मद का चचेरा भाई अली, उसके साथ मुहम्मद ने अपनी बेटी फातिमा ब्याही थी। द्वितीय अबू बक्र और तृतीय उमर ओटामन। इसी समय इस्लाम दो भागों – शीया और सुन्नी में बंट गया। अली और फातिमा के दो बेटे हसन और हुसैन थे। हुसैन के बलिदान दिवस पर शीया’ प्रति वर्ष ताजिए निकाल कर शोक मनाते हैं। वे स्वयं को वास्तविक मुस्लमान समझते हैं क्योंकि वे हजरत मुहम्मद के वंशज हैं। अबू बक्र के अनुयायी सुन्नी कहलाते हैं। इस्लाम मत का धार्मिक ग्रन्थ कुरान शरीफ है। इस मत के अनुसार प्रत्येक मुस्लिम को पांच नियमों का पालन करना चाहिए। अल्लाह और उसके पैगम्बर में विश्वास, प्रतिदिन 5 बार मक्का की ओर मुंह कर के नमाज पढ़ना। व्रत, उपवास व दान और इस्लाम के प्रसार के लिए जहाद (धर्मयुद्ध) मुसलमान चन्द्र मास को मानते हैं उनके प्रसिद्ध त्योहार ईद तथा बकरीद है।. इस्लाम मत स्त्रियों को अधिक स्वतन्त्रता देने के पक्ष में नहीं हैं। उनका पर्दे में रहना अच्छा समझा जाता है। पुरूष चार विवाह कर सकता है और तीन बार ‘तलाक’ कह कर पत्नी से छुटकारा पा सकता है। यदि किसी स्त्री के चरित्र पर सन्देह हो जाए, तो उसे जनता के सामने खड़ा कर के पत्थर मार कर न्याय दिया जाता है यानि की औरत को खत्म कर दिया जाता है। मुसलमान रमजान या रामदान का पूरा मास व्रत या रोजे रखते है। जब मुसलमान नमाज पढ़ रहे होते हैं, अन्य मतावलम्बी बैठ नही सकते और न ही कुछ काम कर सकते हैं। उन्हें खड़े रहना चाहिए। मुस्लिम देशों में ऐसा ना करने पर पुलिस थाने में बन्द कर देती है व्यक्ति चाहे कितना भी प्रभावशाली हो, कानून के सामने सब समान हैं। मृत्यु की सजा खुले में दी जाती है। सभी लोग पत्थर मार-मार कर दोषी को मारते हैं।
बहाय मत : यह मत सन् 1863 ई0 में ईराक में आरम्भ हुआ था। इस मत के संस्थापक बहाए उल्लाह थे। इस मत के अनुसार ईश्वर ने जगत में कई पैगम्बर मेजें, है कि वे लोगों को नैतिकता तथा ऐसे सिद्धान्त सिखाएं, जो समय के अनुकूल हों। वे हैं-इब्राहम, मुसा, जीसिस क्राइस्ट, मुहम्मद आदि। इस मत के अनुसार सभी एक ईश्वर को मानें। प्राणियों की सेवा ही भगवान् की अराधना है। व्यक्तियों में जाति भेद-भाव नहीं होना चाहिए। सन् 1844 ई0 में ईरान में सयद उलमुहम्मद बॉबी ने, ‘बॉबी’ मत आरम्भ किया था। उसने भविष्य वाणी की थी कि संसार में एक बहुत बड़ा पैगम्बर जन्म लेने वाला है। बॉबी को 1850 ई० में सरकार द्वारा फांसी दी गई। बहायउत्लाह बॉबी मत का नेता बन गया उसके कई शिष्य बन गए। 1853 ई0 में देश निकाला देकर सरकार ने उसे बगदाद भेज दिया। 1863 ई० में बहाय उत्लाह ने घोषित किया कि जिस पैगम्बर के विषय में बॉबी ने भविष्यवाणी की थी वह, वही धार्मिक गुरु है। बगदाद से उसे टर्की भेज दिया गया। दिल्ली में इस मत का “लोटस’ नामक मन्दिर है दण्ड से बचने के लिए बहुत से “बहाय लोग भारत में बस गए हैं और हिन्दू युवक-युवतियों से विवाह-सम्बन्ध में बंध गए है। कई भोले गरीब माता-पिता के बच्चों को प्रलोभन देकर ये लोग अपने मत में से लेते हैं। कई वर्ष पहले हिमाचल के गावों से ये लोग कुछ बच्चों को ले आए थे, जिन्हें बहुत संघर्ष के बाद मुक्त करवाया गया था। अतः इनसे सावधान रहना आवश्यक हैं।