ancient indian history

Jain Inscriptions

Inscription number 100.
Mathura Jain Image Inscription of the Time of Huvishka
Year 60 (138 A-D)
Provenence: Kankali Tibba, Mathura
Script: Brahmi.
Language: Prakrit.
References: Buhler Ep.Ind, I p-386, No. VIII: Luders, IA, XXXIII, p105, No. XVIII: or other references see H Luders, “List of Brahmi Inscriptions”, No 56.
Text of the inscription
A. सिद्धम महाराजस्य देव पुत्रस्य हुविषकस्य 60 संवत्सरे, 4 हेमन्त मासे , 10 दि, ऐतस्या पूर्वाया कोट्टिये गणे स्थानिकाये
कुले आययर्व रियाण शाखाया वाचक स्याय़यर् वृद्धहस्तीस्य
B. शिष्यस्य गणितस्य
आय्र्य ख र्ण स्य पूय्यम न स्य तकस्य कप्प सकस्व कुटुम्बनिये
दताय दा नथम्मो महाभोगताय प्रायताम्ब गवा नृषभश्री

संस्कृत छाया

सिद्धम महाराजस्य राजातिराजस्य देव पुत्रस्य हुविषकस्य 60 संवत्सरे, 4 हेमन्त मासे , 10 दि, ऐतस्यां पूर्वायां कोट्टिये गणे स्थानिकीये कुले आर्य- वर्जीयायां शाखायां वाचकस्यार्य वृद्धहस्तिन: शिष्यस्य गणिन: आर्य कर्णस्य पूज्य वतकस्य कप्पसकस्य कुटुबिन्या
दत्ताय: दा न धर्म महाभोगितायै भगवान ऋषभश्री:

हिन्दी अनुवाद
सिद्ध हुआ । महाराज राजातिराज देवपुत्र हुविष्क के सं वत्सर ६० के ४थे हेमन्त-मास के १०म दिन | इस पूर्वोक्त तिथि में कोट्टीय गण के स्थानिकीय कुल के आर्यवर्जीय शाखा के वाचक आर्य वृद्धहस्ती के शिष्य, गणि आर्य खर्ण ‘( कर्ण ) के पूज्य —–+ की प्रेरणा से -वतक के कप्पसक की भार्या दत्ता का महान् उपभोगार्थ यह धर्मदान है । भगवान् श्री ऋषभ प्रसन्न होवें । 

English Translation of the inscription

Success in the year 6o of Maharaja Rajatiraja Devaputra Huviska, in the fourth month of winter, on the 10th
day on that (date. specified as) above this meritorious gift as made for the sake of great enjoyment by Datta,
the wife of Kappa saka an inhabitant of a vata, (on the advice of) ganin the Venerable Karna, pupil of
the preacher, the Venerable Vriddhahasti of the Kottiya
gana, the Sthanikiya kula and the Aryya-Vajriya Sakha
(the followers of Arya-Vaira) May the divine (and) glorious Rishabha be pleased.

Footnote

1. From the facsimile in EP.Ind,-I, P388, Pl No 8, A and B
2. Buhler 40 60 )
3. The syllables and have been engraved so close together that they appear as one syllable
Inscription number 101

Inscription number 101

Mat inscription of the Time of Huvishka
Provenance: Mat. near mathura
Script Brahmi of Kushana period
Language: Sanskrit Influenced by Prakrit.

TEXT of the inscription
1. सर्व सत्त्त्व कत्या ण करस्य सत्य धमे तु धितस्या मु नयत्सर्वश्चण्ड र्व-चण्ड वीरा तिर्सष्ट राज्य स्य देव
2. महाराजतिराज देवपुत्रस्य हुविषकस्य य पितामह स्य
3. तर्डा गश्च कृत : ततश्च देवकुलम् भग्नपतित विशि शी णे द्रिश्य द्रिष्टवा महा
4. महाराजतिराज देवपुत्रस्य हुविषकस्य र ब ल वृद्धच र्थ चकु
मारा मात्य
5. महाद ष्ड़नायक मश पु तेण त्रेण ब कन पत्तिन शोक्रे स्य कस
6. ष्यते नैत्यिका तिथीभ्यश्च ब्राहमणेभ्य : कारि

हिन्दी अनुवाद
महाराज राजा तिराज देवपुत्र हुविष्क के पितामह
का जो [ सब प्राणियों का कल्याण करने वाले थे और जिन्होंने सब को अनुयायी बनाने वाले = नेतृत्व गुणों वाले प्रचण्ड वीरों को राज्य-भार सौंपा हुआ था, की समाधि और तालाब बनाया गया । तत्पश्चात् समाधि को टूट कर गिरा हुआ और नष्ट देख कर कुमारामात्य, महादण्डनायक मश के पुत्र वकन प्रदेश के
स्वामी ने महाराज राजातिराज देवपुत्र की आयु और बल की
वृद्धि हेतु और नित्यशः अभ्यागत ब्राहमणों के लिए
– पुन: निर्माण कराया

References: D R Sahni,J.R.A.S July 1924, pp.400-403.
Reproduced from J.R.A.S 1924. p-402.
No plate accompanies the text.
English Translation of the inscription

The shrine of the Great King, King of Kings, Devaputra, Huvishkas Grandfather, who caused welfare of all creatures and was firm in the true religion and who had entrusted
the administration of his kingdom to formidable brave men
capable of disciplining all, was constructed, and also a tank.
Afterwards, on seeing the shrine broken, collapsed and
disintegrated, the lord of wakhan and son of (Kumaramatya)
Mahadandenáyaka Masa — – — – – – – reconstructed it for
the increase of life and strength of the Great King, King of
Kings, Devaputra Havishka- -and for the sake of Brahmanas perpetually coming as guests.

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