जापानियों का अंडमान द्वीप समूह पर अधिकार –
विश्व युद्ध सितम्बर, 1939 ई० में आरम्भ हो गया था। दिसम्बर, 1941 ई० में जापान ने ब्रिटेन तथा अमेरिका के विरूद्ध युद्ध घोषित कर दिया। जनवरी, 1942 ई० में अंग्रेजों ने अंडमान से कुछ लोगों को भारत की मुख्य धरती पर भेजना शुरू कर दिया, क्योंकि उनके हाथ से सिंगापुर निकल चुका था और बर्मा पर भी जापान ने अधिकार कर लिया था ।
23 मार्च, 1942 ई० को पोर्ट ब्लेयर में एक जोरदार धमाका हुआ। इसके विषय में लोगों को पहले ही सूचित कर दिया गया था कि धमाके के समय कोई व्यक्ति घर से बाहर न निकले। इसके बारह घण्टे बाद जापानियों ने बिना कोई गोली चलाए द्वीप समूह पर अधिकार कर लिया। जापानियों के अफसर इराक्वा और डा० कंमडसू के सामने ब्रिटिश मुख्य आयुक्त तथा मिलिट्री पुलिस ने आत्म समर्पण कर दिया।
जापानी कह रहे थे, “इण्डिया जापान समाक्षाम” तथा इण्डिया जापान तुमोदक्षी अर्थात भारत व जापान में भेद नहीं और भारत व जापान मित्र है ।
ब्रिटिश अधिकारी अंडमान द्वीप समूह पर जापानियों का अधिकार होने से पूर्व अपने अफसर, परिवार व अन्य लोगों को भारत की मुख्य धरती पर ले गए थे। परन्तु इन द्वीप समूह के वासियों की सुरक्षा किए बिना उन्हें पीछे छोड़ गए। उनमें से कुछ स्वतन्त्रता सेनानियों के वंशज थे और कुछ बंदी जो यहां बस गए थे, उनकी संताने थी। उन्होंने अप्रैल, 1942 ई० में “भारतीय स्वतन्त्रता संगठन (आई० आई० एल०) बना लिया। रास बिहारी बोस द्वारा “भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष आंदोलन” वंगकाक, शिंघाई, सिंगापुर और अन्य सुदूर पूर्वी देशों में संगठित हुआ। उसी की शाखा आई० आई० एल० थी ।
आई० आई० एल के निम्न सदस्य थे :
1. दीवान सिंह
2. श्री दुर्गा प्रसाद 3. श्री लक्ष्मण दास
4. श्री राम कृष्ण
5. श्री रतनाम
6. श्री प्रेम शंकर पाण्डे
7. श्री ह० ह० रहालकर
8. डॉ० शेर सिंह लिघड
9. श्री साहिब सिंह
10. श्री खान साहिब नवाब अली
11. श्री प्रताप नाथ नाग
12. श्री मोती राम
13. श्री पोखर सिंह चावला
14. श्री फरजन्द अली
15. श्री भगवान सिंह
16. श्री राम रतन दास
17. श्री कौर सिंह चावला
18. श्री केसर दास
19. श्री राम चन्द मौरिया
केसर दास के नेतृत्व में आई० आई० एल० ने एक सांस्कृतिक समिति का गठन किया। इसमें स्त्री व पुरुष दोनो थे। नेता जी के आगमन पर केसर दास ने राष्ट्रीय गीत गाया। नेता जी ने उन्हें 20 रूपये पुरस्कार में दिए ।
इनके अतिरिक्त कुछ अन्य सदस्यों द्वारा सेवा समिति गठित की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य जरूरत मंदों की सहायता करना था। ये सभी गांव-गांव में जाकर लोगों को इकट्ठे करते और सांस्कृतिक कार्यक्रमों द्वारा उनमें देशभक्ति की भावना जाग्रत करते ।
20 जून, 1942 ई० में आजाद हिंद सेना भी संगठित की गई। श्री हीरा सिंह द्वारा जुलाई, 1942 ई० में एक सौ उत्साही व शक्तिशाली युवक इस सेना में भर्ती हो गए। पारस राम इस सेना का कमांडर था। कैप्टन आल्वी व लै० सूबा सिंह के नेतृत्व में इसका बहुत विस्तार हुआ।
पोर्ट ब्लेयर से समाचार पत्र “अंडमान शिम्बुन” जापानी सरकार ने शुरू किया। जिस में आई० आई० एल० व आजाद हिंद फौज की गतिविधियों, स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष आदि के विषय में समाचार छपने लगे। जापानी सरकार सन् 1942 ई० के स्थान पर 2602 संवत का उपयोग करती थी तिथियां व मास अंग्रेजी कैलेण्डर के ही थे।
मुख्य धरती के राजनैतिक नेता महात्मा गांधी, पं० जवाहर लाल नेहरू आदि को बंदी बनाए जाने पर भी इन संगठनों द्वारा आवाज उठाई जाती और “शिम्बुन” पत्र में ये खबरें प्रकाशित होती। ऐसी ही एक मीटिंग में गवर्नर एच० इगूची भी शामिल हुआ। लोगों की भीड़ देखकर वह बहुत प्रभावित हुआ। उसने कहा, “हमने पूर्वी एशिया के देशों से ऐग्लों सैक्सन प्रभाव खत्म करके उन्हें आजाद कर दिया है। भारत को स्वतन्त्रता दिलाने में उस की सहायता करने के लिए जापान तैयार है। ब्रिटिश साम्राज्य को जड़ से उखाड़ने के लिए हम तैयार है। भारतीय हम पर विश्वास रखें और गलत अफवाहें न सुनें ।”
6 नवम्बर, 1943 ई० को जापान के प्रधानमंत्री ने टोकियों असेम्बली में घोषणा की कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह हिन्द सेना की प्रोविजनल सरकार को सौपं दिए जायेगें। द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व ब्रिटिश सरकार ने अंडमान द्वीप समूह में कमांडेंट मकार्थी के नेतृत्व में “भारतीय मिलिट्री पुलिस नियक्त की थी। जब जापानियों के अधिकार में ये द्वीप आए, यह पुलिस उनके साथ काम करने लगी। डी० ए० एम० मॅकार्थी मार्च, 1943 ई० को अण्डमान से बच निकला। दोबारा वह गंजा सिर के नाम से द्वीप समूह में पहुंचा और जापानियों की गुप्त सूचनाएं ब्रिटिश अधिकारियों को देने लगा।
मकार्थी को आई० आई० एल० व आजाद हिंद फौज, इन दो ब्रिटिश विरोधी संगठनों का पता लगा तो वह हैरान हो गया । जापानियों के साथ-साथ इन दो संगठनों से भी उसे लड़ना था। उसने कुछ जन-जातियों के सदस्यों तथा कुछ मिलिट्री पुलिस के व्यक्तियों को एजेन्ट के रूप में काम पर लगा दिया। इन गुप्तचरों द्वारा दिए गए संकेतों पर अंग्रेजों ने जापानियों के ठिकानों पर बम वर्षा की। जॅट्टिया तोड़ दी गई जहाज़ो और बंदरगाहों की भारी हानि हुई। भारतीय मिलिट्री पुलिस के ब्रिटिश एजेन्टों ने लीग व आज़ाद हिंद फौज (पोर्ट ब्लेयर शाखा) के विरूद्ध अभियान शुरू कर दिया। वे जापानियों के कान भरने लगे। मुख्य धरती पर भी भारतीय पुलिस स्वतन्त्रता सेनानियों को बुरी तरह कुचल रही थी। द्वीप समूह में भी कुछ लोग अपने हित साधने के लिए आम लोगों को कष्ट पहुंचाने पर तुले थे। अतः इन दोनो संगठनों के सदस्यों को सैलूलर जेल में बंद कर दिया गया। उन्हें उसी प्रकार की यातनाएं दी जाने लगी जैसी ब्रिटिश सरकार देती थी।
नारायण राऊ, गुप्तचर मुकदमा :
यह मुकदमा 23 जनवरी, 1943 ई० को शुरू हुआ। इसके अन्तर्गत 26 जनवरी को मुथू स्वामी नैडू जापानियों द्वारा दी गई यातनाओं का शिकार हुआ तथा सात सौ व्यक्तियों को अबरद्दीन गांव में गोलियों से भून दिया गया। भारत – जापान मित्रता थोड़ी देर ही रही। वास्तव में जापानी बिना हींग-फटकरी के इन द्वीपों पर कब्जा कर चुके थे और अब भारत को सौंपने के लिए तैयार नहीं थे। हाथ आई शक्ति को कौन गंवाना चाहता है। वे नए-नए हथकण्डे रचने लगे। उन्होंने पोर्ट ब्लेयर के प्रत्येक चौराहे पर अपने जनरल की टोपी लटका दी। आदेश दिया गया कि प्रत्येक व्यक्ति टोपी को झुक कर सलाम करे। जो सलाम न करता उसे सख्त से सख्त सजा दी जाती लकड़ी के तख्ते पर सीधा लिटाकर हाथ पैर बांध दिए जाते उसके सिर मुंह पर पानी डाला जाता, जो फेफड़ों में चला जाता। उसे बिजली के झटके दिए जाते। उसे कराहते देखकर जापानी खुश होकर ठहाके लगाते ।