राजा अनरण्य यह राजा संभूत का पुत्र था । इसके शासन काल में रावण ने अयोध्या पर आक्रमण कर दिया था। इसने रावण के अमात्य मरीच, शुक सारण तथा प्रहस्त को पराजित कर दिया। वाल्मीकि रामायण के अनुसार अनरण्य युद्ध त्याग कर तप करने लग गया। उस समय रावण ने उसे मार दिया। उसने उन्हें भी द्वन्द युद्ध करने अथवा पराजय स्वीकार करने के लिये ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ किन्तु ब्रह्माजी के वरदान के कारण रावण उनसे पराजित न हो सका। जब अनरण्य का शरीर बुरी तरह से क्षत-विक्षत हो गया तो रावण इक्ष्वाकु वंश का अपमान और उपहास करने लगा। इससे कुपित होकर अनरण्य ने उसे शाप दिया कि तूने अपने व्यंगपूर्ण शब्दों से इक्ष्वाकु वंश का अपमान किया है, इसलिये मैं तुझे शाप देता हूँ कि महाराज इक्ष्वाकु के इसी वंश में जब विष्णु स्वयं अवतार लेंगे तो वही तुम्हारा वध करेंगे। “यदि मेरा तप, दान, यश आदि सच्चा है तो मेरा वंशज श्री राम तेरा कुलनाश करेगा।” यह कह कर राजा स्वर्ग सिधार गये। उपरोक्त कथन काल्पनिक प्रतीत होता है। क्योंकि दशरथ सुत श्रीराम चन्द्र राजा अनरण्य से लगभग 35 पीढ़ियाँ बाद हुए हैं । अनरण्य के पश्चात् अयोध्या के निम्न राजा हुए हर्यश्व, वसुमत, त्रिधन्वम्, त्रैय्यारूण आदि ।