अयोध्या के प्रमुख राजा राजा अज राजा रघु, के पुत्र अज, अयोध्या के सूर्यवंशी राजा थे। इनकी पत्नी का नाम इन्दुमती था । अज के पुत्र दशरथ थे । अज अतीव सुन्दर और सुशील राजकुमार था । विदर्भ देश के राजा भोज ने अपनी बहिन इन्दुमती के स्वयंवर पर अज को आमंत्रित किया । इन्दुमती ने अज का वरण किया । तत्पश्चात् दोनों का विधिवत् विवाह हो गया । अज अपनी पत्नी को लेकर अयोध्या पहुंचा। वहां उसका भव्य स्वागत हुआ। सूर्यवंशी राजाओं की परम्परा को अपनाते हुए रघु ने पुत्र अज के शीश पर राजमुकुट रखा और मुक्ति के उद्देश्य से वनगमन की तैयारी की । अज ने पिता के चरण पकड़ लिए और विनती की, “मुझे छोड़कर मत जाइए” । रघु ने वन जाने का निर्णय त्याग दिया और नगर के बाहर सन्यास आश्रम धारण कर रहने लगे। अज ने पिता की आज्ञा स्वीकार कर राज्य कार्य चलाना आरम्भ किया । भोग की तृष्णा से नहीं बल्कि कर्त्तव्य दृष्टि से पृथ्वी और इन्दुमती ने अज को पति रूप में चुना । प्रथम रत्नों को पैदा करने वाली और दूसरी ने वीर पुत्र को उत्पन्न किया, जिसका नाम दशरथ था। अज का इन्दुमती से अत्यन्त प्रेम था । परन्तु भगवान को उनका सुख स्वीकार नही था । दशरथ अभी बहुत छोटा था, जिस समय इन्दुमती का देहान्त हो गया । अज पर मानों पहाड़ टूट पड़ा। इन्दुमती का वियोग उसके लिए असहनीय था। वह विक्षिप्त सा रोता, विलाप करता रहता । कालिदास ने रघुवंश में बड़े मार्मिक ढंग से इसका चित्रण किया है । गृहिणी सचिवः सखी मिथः प्रिय शिष्या ललिते कलाविद्यौ । करूणा विमुखेन मृत्यु ना हरता त्वां वद् किं न में हत्म ।। तुम मेरी गृहिणी, मंत्री, एकान्त की सखी और मनोहर कलाओं के प्रयोग में प्रिय शिष्या थी । तुम को हरण करते हुए निर्दय मृत्यु ने मेरा कया नहीं हरण किया। अज रोते हुए कहता है- आज मेरा धैर्य टूट गया । गाना बन्द हो गयां भूषण पहनने का प्रयोजन समाप्त हो गया । मेरा प्रेम नष्ट हो गया । गुरु वसिष्ठ को अज के विषय में पता चला। उन्होंने शिष्य के हाथ उसे सन्देश भेजा, “रोते हुए तुम उसे कहां पाओगे। मर कर भी तुम उसे प्राप्त नहीं कर सकोगे। क्योंकि मृत व्यक्तियों की गति अपने – 2 कार्यों के अनुसार भिन्न होती है। शोक रहित होकर पत्नी को पिण्डदान आदि से तृप्त करो। निरन्तर रोते रहना प्रेतात्मा को दुःखी करता है। हे जितेन्द्रिय श्रेष्ठ अज, साधारण जन की तरह शोक मग्न होना तुम्हें शोभा नहीं देता। अपना राज्यकार्य सम्भालों । इसी में तुम्हारा और प्रजा का कल्याण है।” अज ने गुरू के शिष्य को यह कहकर भेज दिया ऐसा ही करूँगा।” परन्तु फिर भी वह पूर्णतः स्वस्थ नहीं हुआ। पत्नी वियोग में उसने जैसे तैसे आठ वर्ष बिताए । शिक्षित और कवचधारी बेटे दशरथ को प्रजा पालन का आदेश देकर उसने अन्न जल छोड़ दिया और कुछ समय बाद देह त्याग दी।