दिलीप की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र भगीरथ अयोध्या का राजा बना। इसने अपने पूर्वजों द्वारा आरम्भ गंगा को धरती पर लाने का दुसाध्य कार्य सम्पन्न किया।भगीरथ ने राज्य का भार मंत्रियों पर डाला और स्वयं गोकर्ण तीर्थ या बिंदुसर पर कठोर तप अथवा परिश्रम करने लगा। अल्पाहार कर, जितेन्द्रय रह कर उसने कई वर्ष घोर तप किया। उसके द्वारा किए गए कठोर परिश्रम के कारण लोगों ने अत्यधिक प्रयत्न के लिए ‘भगीरथ’ शब्द का लाक्षणिक रूप में प्रयोग आरम्भ कर दिया। भगीरथ के तप से गंगा प्रसन्न हुई उसने पृथ्वी पर उतरना स्वीकार कर लिया। परन्तु समस्या यह था कि गंगा के तीव्र प्रवाह को धरती पर कैसे लाया जाए। भगीरथ ने शंकर की अराधना की। शंकर अपनी जटाओं पर गंगा के तीव्र प्रवाह को रोकने के लिए तैयार हो गए। शंकर ने अपनी एक जटा से गंगा को पृथ्वी पर उतारा। गंगा का जो क्षीण प्रवाह धरती पर आया, उसे अलकनन्दा कहते हैं। बाद में जिस मार्ग से भगीरथ गया । गंगा ने उसका अनुसरण किया। देव, गंधर्व, यक्ष सभी हर्षित हुए और गंगा जी को उतरते देखने लगे। गंगा जी का जल कहीं वेग से, कहीं टेढ़ा, कहीं फैल कर बहने लगा। भगीरथ के रथ के पीछे-2 ऋषि, मुनि, देवता, राक्षस, यक्ष, किन्नर, नाग सभी प्रसन्न एक स्थान पर जहु ऋषि यज्ञ कर रहे थे। यज्ञशाला को बहा ले गई। ऋषि ने वहीं गंगा को रोक दिया। अनुनय विनय के बाद मुनि प्रसन्न हुए। अतः गंगा को बहने का मार्ग मिला। जहु ऋषि के नाम से गंगा ‘जाह्नवी कहलाई। अन्त में भगीरथ कपिल ऋषि के आश्रम में पहुंचे, जहां उसके पितर दग्ध पड़े थे। गंगा जल के स्पर्श से सभी पितरों का उद्वार हुआ और गंगा का नाम भागीरथी पड़ा। गंगा की धारा, आधुनिक विद्वानों के अनुसार पहले तिब्बत में पूर्व से उत्तर की ओर बहती थी । उत्तरी भारत प्रायः अकाल ग्रस्त रहता था । भगीरथ के पूर्वजों ने गंगा को इधर लाने का प्रयत्न किया कि गंगा के बहाव को दक्षिण की ओर मोड़ा जाए, किन्तु वे सफल न हुए। भगीरथ अपने प्रयत्नों में सफल रहा। उसने गंगा की धार को मोड़ कर उत्तर भारत को हरा-भरा कर दिया।भगीरथ दानी और धार्मिक राजा था। उसने गंगा तट पर अनेक घाट बनाए। उसने कई यज्ञ किए। इसके यज्ञों में देवता भी भाग लेते थे। वैदिक बाड़मय में कहीं 2 भगेरथ राजा का नाम आता है। समझा जाता है कि भगीरथ और भगेरथ एक ही थे। एक बार यज्ञ में उपस्थित ऋषि-मुनियों से भगेरथ ( भगीरथ ) ने प्रश्न किया, “वह ज्ञान कौन-सा है, जो जान लेने पर संसार की सारी जानकारी प्राप्त हो जाती है।” इस प्रश्न का उत्तर कुरू – पांचालों में से ‘बक दाल्भ्य’ नामक ऋषि ने दिया, “गायत्री मंत्र ऐसा मंत्र है, जिसमें सृष्टि की सारी जानकारी छिपी है।” राजा भगीरथ दयालु और प्रजा पालक राजा था । उसने कई ब्राह्मण कन्याओं को अलंकृत करके उनका विवाह कराया । कोहल ऋषि को उसने एक लाख गाय प्रदान की। भगीरथ के श्रुत और नाभाग नामक दो पुत्र थे। उसकी मृत्यु के पश्चात् श्रुत अयोध्या का राजा बना भगीरथ की पुत्री हंसी कौत्स ऋषि को ब्याही गई ।