ऋतुपर्ण राजा अयुतायु का पुत्र था । राजा नल बाहुक नाम धारण करके सारथि के रूप में इसके पास रहा था। यह अक्षविद्या में अत्यंत निपुण था। इसने नल को अक्ष विद्या दी और नल ने इसे अश्व विद्या प्रदान की। जुए में राज्य हार जाने के उपंरात अपने अज्ञातवासकाल में नल ‘बाहुक’ नाम से इन्ही के पास सारथि के रूप में रहा था। नलवियुक्ती दमयंती को जब अपने चर पर्णाद द्वारा पता चला कि नल ऋतुपर्ण के सारथि के रूप में रह रहा है तो उसने ऋतुपर्ण का संदेशा भेजा, नल का कुछ भी पता न लगने के कारण मैं अपना दूसरा स्वयंवर कल सूर्योदय के समय कर रही हूँ, अत: आप समय रहते कुंडनिपुर पधारें। नल ने अपनी अश्वविद्या के बल से ऋतुपर्ण को ठीक समय पर कुंडनिपुर पहुँचा दिया तथा वहाँ नल और दमयंती का मिलन हुआ। नल की जीवन कथा में प्रेम और पीड़ा का ऐसा प्रभावशाली पुट है। वीरसेन के पुत्र, नल निषाद देश के राजा थे। वे बड़े वीर थे और सुन्दर भी। शस्त्र-विद्या तथा अश्व-संचालन में वे निपुण थे। दमयन्ती विदर्भ नरेश की एकमात्र पुत्री थी। वह भी बहुत सुन्दर और गुणवान थी। नल उसके सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर उससे प्रेम करने लगा। उनके प्रेम का सन्देश दमयन्ती के पास बड़ी कुशलता से पहुंचाया एक हंस ने। और दमयन्ती भी अपने उस अनजान प्रेमी की विरह में जलने लगी। इसकी मृत्यु के पश्चात् इसका पुत्र सर्वकाम गद्दी पर बैठा। कहीं पर इसके पुत्र का नाम नल है। सम्भवतः नल (बाहुक) से प्रभावित हो कर इसने अपने पुत्र का नाम नल रखा हो । सर्वकाम का पुत्र सुदास और उसका पुत्र मित्रसह कल्माषपाद है । बौधायन श्रौत्रसूत्र के अनुसार ऋतुपर्ण भंगाश्विन का पुत्र तथा शफाल के राजा थे। वायु, ब्रह्म तथा हरिवंश इत्यादि पुराणों में ऋतुपर्ण को अयुतायुपुत्र बताया गया है।