सूर्यवंशी पृथु राजा वेन के पुत्र थे। वेन राजा अंग के पुत्र थे ! राजा अंग वेन से बहुत परेशान थे ! वेन की क्रूरता तथा निर्दयता से दुःखी होकर बन को चले गए। वेन ने राजगद्दी संभाल ली। वह और भी निरंकुश हो गया अत्यंत दुष्ट प्रकृति का होने कारण ऋषियों ने उसे शाप देकर वेन को मार डाला तब उनके पुत्र पृथु का राज्य अभिषेक हुआ। वाल्मीकि रामायण में इन्हें अनरण्य का पुत्र तथा त्रिशंकु का पिता कहा गया है। ये भगवान विष्णु के अंशावतार थे। स्वयंभुव मनु के वंशज अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसी पुत्री सुनीथा से हुआ था। वेन उनका पुत्र हुआ। सिंहासन पर बैठते ही उसने यज्ञ-कर्मादि बंद कर दिये। पृथु नामक दो राजा हुए हैं, एक वेण का पुत्र पृथु और दूसरा इक्ष्वाकु वंशी पृथु या पृथु रोमन । यह पृथु राजा अनेनस का पुत्र था । इसने सौ यज्ञ किये । रामायण में इसे अनरण्य राजा का पुत्र कहा है और इसके पुत्र का नाम त्रिशंकु दिया गया है । राजा वेण के पुत्र पृथु, पृथ्वी के पहले राजा थे, ज़िन्हो ने विश्व पर राजशाही की पहली स्थापना की थी । उनका अर्ची के साथ विवाह हुआ था । अर्ची को लक्ष्मी का अवतार माना जाता था। महाराज पृथु एक दयालु व्यक्ति थे जो अपना अधिकांश समय जनकल्याण कार्यों में लगाते थे। उन्होंने कई अश्वमेध यज्ञ किए थे। सौवें यज्ञ के समय, इंद्र ने उनका घोड़ा चुरा लिया लेकिन पृथु के पुत्र त्रिशंकु, ने इंद्र का पीछा किया और अश्वमेध घोड़े को वापस ले आया। इंद्र के बार-बार के दुष्कर्मों से महाराज पृथु बहुत क्रोधित हुए । वह इंद्र को मारना चाहते थे, लेकिन यज्ञ के ऋषियों ने उनके यज्ञ-दीक्षा के कारण उन्हें रोक दिया और उन्हें मंत्रों की सहायता से अग्नि में इंद्र की बलि देने को कहा । लेकिन ब्रह्मा जी ने पृथु को , इंद्र को ना मारने के लिए कहा और राजा पृथु मान गए और उन्हो ने अपना यज्ञ रोक दिया। सभी देवताओं सहित स्वयं भगवान विष्णु भी पृथु से बहुत प्रभावित हुए। अंतिम दिनों में पृथु अर्चि सहित तपस्या के लिए वन में चले गये। वहां योग-ध्यान में शरीर-त्याग किया। पृथु तथा अर्चि के पांच पुत्र हुए थे – विजिताश्व, धूम्रकेश, हर्यक्ष, द्रविण और वृक।