विश्वामित्र ऋषि विश्वा मित्र कान्य कुब्ज के राजा गाधि के पुत्र तथा कुशिक के पौत्र थे। विश्वामित्र वैदिक काल के बड़े ही प्रतापी और तेजस्वी महापुरुष थे। ऋषि धर्म ग्रहण करने के पूर्व वे बड़े पराक्रमी और प्रजावत्सल नरेश थे । वह एक बार ऋषि वसिष्ठ के आश्रम में गये। आश्रमवासियों ने उसका राजसी सत्कार किया विश्वामित्र कामधेनु गाय के बदले ऋषि वसिष्ठ को मुँह मांगा धन देने को तैयार हुये। परन्तु ऋषि अपना गौधन देने को तैयार नहीं हुए। विश्वामित्र लाचार सा राजधानी में लौटे। उनहे क्षात्र बल से ब्रह्मबल श्रेष्ठ लगा। वह राज्य व परिवार छोड़ कर वनों में तप हेतु चला गये विश्वामित्र अयोध्या के राजा सत्यव्रत त्रिशंकु के समकालीन थे। उसकी अनुपस्थिति में सत्यव्रत ने उसके भूखे परिवार की सहायता की थी। अतः तप के पश्चात् लौटकर उसने वनवासी त्रिशंकु को सिहांसन पर बैठाया। इससे सत्यव्रत के गुरु वसिष्ठ और विश्वामित्र का वैर बढ़ गया। इन दोनों की शत्रुता कई पीढ़ियों चलती रही। कई वर्षों की तपस्या के पश्चात् विश्वामित्र को राजऋषि व महर्षि की उपाधि प्राप्त हुई और सैकड़ों वर्षों के बाद वह ब्रह्मर्षि कहलाया। श्री राम चन्द्र व उनके पिता राजा दशरथ के गुरु सुयज्ञ वसिष्ठ द्वारा सम्भवतः यह उपाधि विश्वामित्र को प्रदान की गई। क्योंकि इस समय गुरु वसिष्ठ और विश्वामित्र का परस्पर विरोध दिखाई नहीं देता। ऋषि विश्वामित्र “गायत्री मंत्र” के रचयिता हैं। यह और इसका पुत्र गालब गोत्रकार ऋषि हुए हैं। ऋषि विश्वामित्र का अन्य पुत्र सुश्रुत धन्वन्तरि का शिष्य था। वह प्रसिद्ध आयुर्वेद आचार्य हुए हैं। कुशिक के वंशज होने के कारण उस ऋषि के वंशज “कौशिक” कहलाए। विश्वामित्र ऋषि के कुल में एक ऋषि विश्वामित्र हुए हैं. जिनकी तपस्या अप्सरा मेनका ने भंग की थी। वह विश्वामित्र शकुन्तला का पिता था और हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त का समकालीन था। विश्वामित्र ऋषि कई हुए है एक विश्वामित्र ऋषि पैंजवन सुदास के पुरोहित थे। ऋग्वेद के तृतीय मण्डल के रचने का श्रेय उन्हें और उनके वंशजों को दिया गया है। गाधि के पुत्र होने के कारण विश्वामित्र को गाधिन या गाथिन भी कहा है। रामायण काल के विश्वामित्र ने ऋषि-मुनियों द्वारा हवन यज्ञ निर्विघ्न सम्पन्न कराने के लिए प्रमुख भूमिका निभाई थी। वे अयोध्या के राजकुमारों श्री राम व लक्ष्मण को यज्ञ की रक्षार्थ अपने साथ ले गए। उन्होंने उपद्रवी राक्षस-राक्षसी का वध कर दिया। श्री राम आदि चारों भाइयों के विवाह भी ऋषि विश्वामित्र द्वारा सम्पन्न कराए गए। सीता स्वयंवर के अवसर पर यही ऋषि राम-लक्षमण को अपने साथ राजा जनक की सभा में ले गए थे। एक विश्वामित्र महाभारत काल में हुए हैं। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में वे उपस्थित थे तथा श्री कृष्ण द्वारा किए यज्ञ में विश्वामित्र पुरोहित थे। विश्वामित्र की पत्नियों और पुत्रों का विवरण ब्रह्माण्ड वायु पुराण और महाभारत में मिलता है। पत्नी रेणु से उन्हें, सांकृति, गालव, मधुच्छंदस जय देवल, कच्छप, हरित और अष्टक पुत्र प्राप्त हुए। शालावती से विश्वामित्र को हिरण्याक्ष, देवश्रवस, कवि पुत्र हुए। सांकृति पत्नी से मौदगल्य और गालव, माधवी से अष्टक तथा दृष्ट्वती से ध्रुव व पूर्ण पुत्र
प्राप्त हुए। विश्वामित्र के शाप के कारण उनके वंशज दो भागों में बंट गए। विश्वामित्र ने अपने भतीजे शुनशेप को पुत्र मान लिया और उसे देवरात नाम दिया। उसे ज्येष्ठ पुत्र मान लेने के पश्चात् विश्वामित्र ने अपने सौ पुत्रों (या वंशजों) को कहा कि वे भी उसे ज्येष्ठ मानें पचास मान गए उन्हें कुशिक शाखा नाम दिया गया जिनका प्रवर देवरात आता है। इसी शाखा के ब्राह्मण कौशिक कहलाते हैं। कुरुक्षेत्र के आस पास के क्षेत्र में अधिकतर इसी शाखा के ब्राह्मण हैं। जो लोग विश्वामित्र के आदेशानुसार देवरात को ज्येष्ठ नहीं मानते थे, वे हीन कुलीन बन गए उनकी गणना निम्न जातियों में होने लगी यथा अन्ध्र, शबर पुण्ड, पुलिंद आदि । ऋषि वसिष्ठ के विरूद्ध होने के कारण विश्वामित्र ने कई ऋचाएँ वसिष्ठ के विरुद्ध लिखी। जिन्हें वसिष्ठ गोत्र में उत्पन्न लोग आज भी नहीं पढ़ते।
विश्वामित्र के आश्रम
महाभारत के अनुसार विश्वामित्र का आश्रम उत्तर विहार की कौशिकी (कोशी) नदी के तट पर था। यह आश्रम आदि ऋषि विश्वामित्र का न होकर रामायण कालीन विश्वामित्र का माना जाता है। आदि विश्वामित्र का आश्रम सरस्वती तट पर स्थित स्थानेश्वर (कुरूक्षेत्र) में है। इसी नदी पर रूपंगु आश्रम में विश्वामित्र ने ग्रह्मणत्व प्राप्त किया था।
English Translation Rishi Vishwamitra:- Vishwamitra was a son of king Gadhi of Kanya Kubja and grandson of Kushik. He was a very majestic and brilliant person of the Vedic period. He was a very mighty and powerful king before adopting life of a sage. Once he visited the hermitage of Rishi Vasistha. He was extended warm hospitality by the ashram staff. Vishwamitra offered huge money to the sage Vasistha in exchange for his cow Kamdhenu. But the sage was not ready to part with his cow. Vishwamitra returned to the capital disappointed as he had discovered that the Brahm force was mightier to the Kshatriya force. He left his kingdom and family and went to the forests for tapasya to attain spirituality. Vishwamitra was a contemporary of King Satyavrat Trishanku of Ayodhya. During his absence, King Satyavrat helped his starving family. After he returned from tapasya, he asked Trishanku sit on his throne. With this development, the enmity between Satyavrat’s Guru Vasishtha and the Vishwamitra increased and the enmity between these two continued for many generations. After many years of tapasya, Vishwamitra got the title of Rajrishi and Maharishi. After a lapse of hundred years, he was recognised as a Brahmarshi. Probably this title was given to Vishwamitra by Suyagya Vasistha, the guru of Lord Ram Chandra and his father King Dasharatha. Because during this period, the enemity between Guru Vasishtha and Vishwamitra was not evident. Sage Vishwamitra is the author of “Gayatri Mantra”. He and his son Galab have become gotra sages. Sushruta, the other son of sage Vishwamitra, was a disciple of Dhanvantari. He had become a famous Ayurveda Acharya. Being a descendant of Kushik, the descendants of that sage were called “Kaushik”. There is another sage Vishwamitra in the family of sage Vishwamitra. Whose penance was broken by an Apsara Menka. He was the father of Shakuntala and a contemporary of King Dushyanta of Hastinapur. In fact, there had been many sages who were recognised as Vishwamitra. One Vishwamitra was the priest of Rishi Panjwan Sudas. He and his descendants had been credited with the composition of the third division of the Rigveda. Being the son of Gadhi, Vishwamitra is also called Gadhin or Gathin. Vishwamitra of the Ramayana period played a major role in getting the Havan yagya done smoothly by the sages. He has taken the princes of Ayodhya Shri Ram and Lakshman with him for the protection of his Yagya. He had also killed a demon, to save his disciples from the demon. Rishi Vishwamitra, performed marriage processes of Lord Ram and his brothers as a priest. On the occasion of Sita Swayamvara, the sage took Ram and Lakshmana with him and met King Janak. He had convinced Lord Ram to participate in Sita Swayamvar. There is another Vishwamitra of the Mahabharata period. He was present in Yudhishthira’s Rajasuya Yagya. He was the priest in the Yagya performed by Lord Krishna. The details of Vishwamitra’s wives and sons are found in the Brahmanda Vayu Purana and the Mahabharata. He had seven sons from his wife Renu namely Sankriti, Galav, Madhuchhandas Jai Deval, Kachhap, Harit and Ashtak. Vishwamitra had three sons from Shalavati namely Hiranyaksha, Devashravas, Kavi and two sons, Maudgalya and Galava from Sankriti wife, Ashtaka from Madhavi and Dhruva and Purna son from Drishvati.
Due to the curse of Vishwamitra, his descendants were divided into two parts. Vishwamitra accepted his nephew Shunashep as his son and named him Devarat. After accepting him as the eldest son, Vishwamitra asked his hundred sons (or descendants) to consider him as the eldest, fifty agreed, they were named as the Kushik branch, whose Pravar Devrat comes. Brahmins of this branch are called Kaushik. Most of the brahmins of this branch are in the area around Kurukshetra. Those who did not consider Devarat as senior according to Vishwamitra’s order, they became inferior elite, they were counted among the lower castes like Andhra, Shabar Pund, Pulind etc. Being against sage Vasishtha, Vishwamitra wrote many hymns against Vasishtha. Vishwamitra’s Ashram: According to the Mahabharata, Vishwamitra’s hermitage was on the banks of the Kaushiki (Koshi) river in Uttar Vihar. This ashram does not belong to the Adi Rishi Vishwamitra, but of Vishwamitra of the Ramayana period. Adi Vishwamitra’s ashram is situated on the banks of Saraswati in Sthaneshwar (Kurukshetra). Vishwamitra attained Grahmanatva in Roopangu Ashram on thisriver.