ऋषि याज्ञवल्क्य ऋषि याज्ञवल्क्य युग प्रर्वतक आचार्य थे। वे अपने युग के सर्वश्रेष्ठ उपनिषद्कार माने जाते हैं। इनका उल्लेख शतपथ ब्राह्मण और वृहदरण्यक उपनिषद् में अनेक बार हुआ हैं। यज्ञवल्क्य के वंशज होने के कारण वे याज्ञवल्क्य कहलाए। याज्ञवल्क्य बृहदारण्यक उपनिषद में वर्णित एक प्राचीन ऋषि हैं। याज्ञवल्क्य ने हमारे अस्तित्व, चेतना और नश्वरता की प्रकृति पर व्यापक शोध किया, और सार्वभौमिक स्व और आत्मा की खोज के लिए नेति नेति के ज्ञानशास्त्रीय सिद्धांत की व्याख्या की। याज्ञवल्क्य का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य शतपथ ब्राह्मण की रचना है – बृहदारण्यक उपनिषद जो बहुत महत्वपूर्ण उपनिषद है, इसी का भाग है। ऋषि याज्ञवल्क्य विदेह देश के निवासी थे। राजा जनक का इन्हें संरक्षण प्राप्त था। उद्दालक आरूणि इनके गुरू थे। महाभारत में इन्हें वैशंपायन ऋषि का भतीजा और शिष्य कहा गया है। याज्ञवल्क्य विश्वामित्र कुल में उत्पन्न गोत्रकार ऋषि थे। वे शुक्ल यजुर्वेद और शतपथ ब्राह्मण के रचयिता थे। बृहदारण्यक उपनिषद के अनुसार वे दार्शनिक समस्याओं के सर्वश्रेष्ठ आचार्य थे। उन्होंने गूढ़ दार्शनिक विचारों को सरलतम भाषा में व्यक्त किया है। थे ऋषि वैशंपायन के छयासी शिष्य थे, जिनमें ये प्रमुख उन्होंने कृष्ण यजुर्वेद के शुद्धिकरण का कार्य किया परन्तु इन्हें कृष्ण यजुर्वेद संहिता प्राप्त नहीं हुई। इसलिए इन्होंने शुक्ल कृष्ण यजुर्वेद नामक स्वतंत्र संहिता का निर्माण किया। यजुर्वेदके शुद्धिकरण के कारण इन्हें अपने गुरुओं और अन्य आचार्यों का विरोध सहना पड़ा। कुछ समय पश्चात् यह आन्दोलन धर्म-ग्रन्थ सम्बंधी न रह कर देश व्यापी हो गया और हस्तिनापुर के राजा जनमेजय तृतीय के पास पहुंच गया। जनमेजय ने याज्ञवल्क्य की विचारधारा का समर्थन किया। राजा के समर्थन पर प्रजा में असन्तोष फैल गया। ऋषि वैशंपायन के पक्ष में अधिक लोग थे। राजा जनमेजय सिहांसन त्याग कर वनों में चला गया। परन्तु राजा ने अपना विचार नहीं बदला। कुछ समय पश्चात् प्रजा शान्त हो गई। राजा ने पुनः सिहांसन ग्रहण कर लिया। उसने अश्वमेघ यज्ञ में याज्ञवल्क्य को पुरोहित बनाया वैशंपायन और उसके समर्थकों को स्वदेश छोड़ना पड़ा। कुछ पश्चिम में सागर तट पर रहने लग गए और कुछ हिमालय में बस गए। महाभारत में जनक ( देवराति या धर्मध्वज) की सभा में ऋषियों द्वारा वाद-विवाद का उल्लेख है। ऋषि याज्ञवल्क्य की दो पत्नियाँ कात्यायनी और मैत्रेयी थीं। मैत्रेयी अपनी सभी सम्पत्ति सौत को सौंप कर पति के साथ वन में चली गई। मैत्रेयी अध्यात्मक ज्ञान की जिज्ञासु थीं। मैत्रेयी ने कहा, “सुवर्णमय पृथ्वी प्राप्त कर लेने पर भी मुझे अमरत्व प्राप्त नहीं होगा। मुझे आत्मज्ञान चाहिए।” ऋषि उसके कथन से प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, “आत्मा का अध्ययन और मनन करने से ही संसार की प्रत्येक वस्तु का ज्ञान हो जाता है।” इस संवाद में आत्मा शब्द का अर्थ विश्व का अन्तिम सत्य लिया गया है। मैत्रेयी ऋषि याज्ञवल्क्य से पूछती है, “अचेत मनुष्य परमात्मा के साथ होता है या अलग ! ऋषि कहते हैं, “इस अवस्था में आत्मा परमात्मा के साथ रहता है। चेतन और अवचेतन दोनों अवस्थाओं में आत्मा ईश्वर के साथ रहती है, क्योंकि अवचेतन मन सुपर चेतन यानी सार्वभौमिक मन से जुड़ा होता है, जहाँ सभी मनुष्यों के सभी विचार रिकॉर्ड किए जाते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कोई इच्छा है, तो उसे उस सुख की प्राप्ती होती है ।” इसके बारे में बार-बार सोचते हैं, तो यह अवचेतन मन में जाता है, हमारा शरीर और मन हमारी इच्छा के अनुसार कार्य करना शुरू कर देता है। ” ऋषि याज्ञवल्क्य उच्च कोटि के विद्वान परन्तु अत्यधिक क्रोधी थे। वाद-विवाद में उन्होंने गार्गी को भी डांट कर चुप करा दिया था। महाभारत के अनुसार याज्ञवल्क्य के सौ शिष्य थे। याज्ञवल्क्य शिक्षा और याज्ञवल्क्य स्मृति इनके प्रमुख ग्रन्थ हैं। कात्यायनी से याज्ञवल्क्य को दो पुत्र कात्यायन तथा पिप्पलाद हुए। यह पिप्पलाद दधीचिसुत पिप्पलाद से भिन्न है। English Translation. Rishi Yajnavalkya Rishi Yajnavalkya was the pioneer teacher of the era. He is considered to be the greatest Upanishad writer. He is mentioned several times in the Shatapatha Brahmana and the Vrihadaranyaka Upanishad. Being a descendant of Yajnavalkya, he was called Yajnavalkya. Yajnavalkya is an ancient sage described in the Brihadaranyaka Upanishad. Yajnavalkya conducted extensive research on the nature of our existence, consciousness and mortality, and expounded the epistemological theory of Neti Neti for the discovery of the universal self and soul. The second important work of Yajnavalkya is the creation of the Shatapatha Brahmana – the Brihadaranyaka Upanishad, which is a very important Upanishad, is part of it. Rishi Yajnavalkya was a resident of Videha. He was protected by King Janaka. Uddalaka Arun was his guru. In Mahabharata, he is said to be the nephew and disciple of the sage Vaishampayana. Yajnavalkya was a gotra sage born in the Vishvamitra family. He was the author of the Shukl Yajurveda and the Shatapatha Brahmana. According to the Brihadaranyaka Upanishad, he was the best teacher of philosophy. He has expressed esoteric philosophical ideas in the simplest language. There were eighty-six disciples of Rishi Vaishampayana, of whom he was the chief. He worked on the purification of the Krishna Yajurveda, but did not receive the Krishna Yajurveda Samhita. So he created an independent code called the Shukl Krishna Yajurveda. He had to endure opposition from his teachers and other teachers, because of the purification of the Yajurveda. After some time, the movement ceased to be scriptural and became nationwide and reached King Janamejaya 3, of Hastinapur. Janamejaya supported the ideology of Yajnavalkya. Dissatisfaction spread among the people over the king’s support. There were more people in favor of Rishi Vaishampayana. King Janamejaya left the throne and went to the forests. But the king did not change his mind. After a while the people calmed down. The king took the throne, once again. He made Yajnavalkya the priest in the Ashvamegha sacrifice. Vaishampayana and his supporters had to leave their country. Some settled on the ocean coast in the west and others settled in the Himalayas. The Mahabharata mentions the debate by the sages in the assembly of Janaka (Devrati or Dharmadhvaja). Rishi Yajnavalkya had two wives, Katyayani and Maitreya. Maitreya left all her property to her stepmother and went to the forest with her husband. Maitreya was curious about study knowledge. Maitreya said, “Even if I attain the golden earth, I will not attain immortality. I want enlightenment. The sage was pleased with his statement. He said, “By studying and meditating on the soul, one becomes aware of everything in the world. In this dialogue, the word soul is taken to mean the ultimate truth of the world. Maitreya asks Rishi Yajnavalkya, “Does an unconscious man has support of God. The sage replied “In both conscious and subconscious state the soul remains with God, because the subconscious mind is connected with super conscious i.e universal mind, where all thoughts of all human being are recorded. If any individual has any wish, he must go on repeat thinking about it, then it goes to the subconscious mind, our body & mind starts acting according to our wish. Rishi Yajnavalkya was a highly learned scholar but very angry. During the debate, he had also reprimanded Gargi and silenced him. According to the Mahabharata, Yajnavalkya had one hundred disciples. Yajnavalkya Shiksha and Yajnavalkya Smriti are his major works. From Katyayani, Yajnavalkya had two sons, Katyayana and Pippalad. This Pippala is different from Pippala, the son of Dhadhichi.