अयोध्या के प्रमुख राजा शुंगवंश शुंग वैष्णव थे। अपने शासन काल में पुष्यमित्र ने कई मन्दिर बनवाए जिनमें अयोध्या का श्री राम मन्दिर, मथुरा का श्री कृष्ण मन्दिर और काशी का विश्वनाथ मन्दिर प्रमुख थे। पुष्यमित्र के समय श्रीकृष्ण को दुष्ट-संहारक और सुदर्शनचक्र धारी के रूप में मान्यता दी गई थी। विदिशा के निकटवर्ती शिलालेख बताते हैं कि उस समय वैष्णव धर्म लोकप्रिय हो गया था। महाभारत के वन पर्व में सेनापति पुष्यमित्र को कल्कि अवतार कहा है और उसकी भूरि-2 प्रशंसा की है। बौद्ध साहित्य में सेनापति पुष्यमित्र को क्रूर शासक कहा है। राय चौधरी के अनुसार, “बौद्ध लेखकों का लांछन है कि पुष्य मित्र शाक्य मुनि के धर्म का विरोधी था परन्तु भारहुत में प्राप्त बौद्ध – स्मारक जो शुंगों के शासनकाल में बने थे, उन से ज्ञात होता है कि शुंग असहिष्णु नहीं थे। उनके शासन काल में राम, कृष्ण, शिव आदि के मन्दिरों के अतिरिक्त विभिन्न स्थानों में बौद्ध विहारों का भी निर्माण हुआ था।” इतिहासकार प्रो० जगन्नाथ अग्रवाल के अनुसार “कुछ बौद्ध भिक्षु सम्भवतः पुष्यमित्र से असन्तुष्ट हों, परन्तु समस्त बौद्ध सम्प्रदाय के साथ अत्याचार की कथा कुछ हताश लोगों द्वारा रची गई है। बौद्ध मौर्यराज्य को अपने धर्म की दृढ़ प्राचीर समझते थे। ऐसा लगता है कि उत्तरी भारत में खुले आम बौद्ध लोगों ने स्वयं को यूनानी आक्रमणकारियों का सहयोगी बना लिया था। पुष्यमित्र ने उनके साथ ऐसा बर्ताव किया होगा जो देश द्रोहियों के साथ किया जाता है।” शुंग वंश ने 185 ई० पूर्व से 73 ई0 पूर्व तक लगभग 112 वर्ष शासन किया। इस वंश के इतिहास के मुख्य स्त्रोत- विभिन्न पुराण, बाण का ‘हर्ष चरित’, पातंजलि का महाभाष्य और कालिदास का मालविकाग्नि मित्र हैं। सेनापति पुष्यमित्र ने अपने शासनकाल में दो अश्वमेघ यज्ञ किए। पहला सन् 174 ई० पूर्व, जब उसने यूनानी राजा दिमित्रस् को हराया, और दूसरा 36 वर्ष के शासन के बाद, जिसमें उसने अपने पोते वसु मित्र को घोड़े की रक्षा के लिए नियुक्त किया । वसु मित्र ने यूनानियों को जीतने का श्रेय प्राप्त किया। वसु मित्र 133 ई० पूर्व सिहांसन पर बैठा । पुराणों के अनुसार ग्रीक (यूनानी) अधार्मिक और अत्याचारी थे। वे बच्चों और स्त्रियों का वध करते और ईर्ष्या व द्वेष में ग्रस्त होकर परस्पर एक-दूसरे की हत्या करने में भी झिझकते नहीं थे। इतिहासकारों के अनुसार पुष्यमित्र के वंशजों का शासन भारत के इतिहास में विशेष रूप से एक महत्वशाली युग का प्रवर्त्तक था । यवनों के आक्रमणों से समस्त भारत को जो भय हो रहा था, वह रूक गया । हिन्दु धर्म, साहित्य और कला के क्षेत्र में भी इतना कार्य हुआ कि शुंग युग को गुप्तों के स्वर्ण युग का पूर्वगामी कहा गया है । ( देखिए डॉ० म० वo मोहन : नार्थ वैस्ट इण्डिया ऑफ सैकण्ड सै० बी० सी०) शुंग वंश के पश्चात् काण्व वंश ने 73 ई० पूर्व से 28 ई0 पूर्व तक भारत पर शासन किया और उसके पश्चात् सात वाहनों ने। नासिक गुफा अभिलेख में राजा गौतमी पुत्र शतकर्णी को एक अद्वितीय ब्राह्मण कहा है, जिसकी शक्ति परशुराम के समान थी। इसे यवनों व पहलवियों का नाशकर्त्ता कहा है। वे वैष्णव थे। इस काल में शक, यवन, पहलवी, अभीर आदि भारत में बस गए। उन्होंने सनातन धर्म या बौद्ध मत अपना लिया ।