ancient indian history

Guru Amar Dass

गुरु अमर दास जी

गुरु अमर दास सिखों के तीसरे गुरु थे । उन्हों ने अपने शिष्यों को गुरु सेवा का अर्थ सिखाया । गुरु अमर दास ने सब को नैतिक जीवन जीने की सलाह दी । उन्होंने अपने अनुयायियों को भोर से पहले उठने, स्नान करने और फिर मौन एकांत में ध्यान करने के लिए प्रोत्साहित किया, और उनहें धर्मात्मा पुरुषों की संगति की तलाश करने को कहा ।
गुरु जी सबको भगवान की पूजा, ईमानदारी से जीवन यापन न्याय के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
गुरु अमर दास जी श्री रामचन्द्र के भाई भरत के वंशज तेजमान भल्ले खत्री के घर, शुक्रवार, 27 वैसाख, सुदि 11, सं० 1536 वि० में पैदा हुए। उनका जन्म स्थान बासरके जिला अमृतसर था। उनका विवाह, देवीचन्द बहल की बेटी रामकौर अथवा मनसा देवी के साथ हुआ। उनके दो पुत्र व दो पुत्रियां थी। 4 जेठ. 1590 वि० में बीबी मानी का जन्म हुआ, सं० 1595 को मोहन का. 1598 दि० को मोहरी का तथा चेत 1601 वि० को निधानी बीबी का जन्म हुआ। गुरु अमर दास जी सेवा भाव रखने वाले धार्मिक स्वभाव के थे। गुरु अंगद जी की पुत्री अमरो उनके भतीजे के साथ व्याही हुई थी। उन्हीं से प्रभावित होकर अमर देव जी गुरु अंगद देव जी के शिष्य बन गए। उन्होंने बड़ी लगन से गुरु की सेवा की। पिछले पहर वे व्यास नदी से पानी लाकर गुरू जी को स्नान करवाते। उनकी सुख-सुविधा का पूरा ध्यान रखते। सं० 1603 कि० को गोंयदमल नामक मरवाहे खत्री ने गुरु अंगद जी से विनती की। हमारे पूर्वजों का एक थेह है (उजड़ा हुआ गांव) वह बसाना चाहता हूं। यदि आप सहायता करें तो आधा गांव आपको दे दिया जाएगा। वह गांव बस गया। गुरु अमरदास जी के पुत्र मोहन, मोहरी और अन्य भाई-भतीजे वासरके गांव से आकर गोयदवाल बस गए।
1 माघ, सं० 1609 को गुरुजी ने अमरदेव जी को गुरु गद्दी सौंपी। उनके आगे नारियल और पांच पैसे रखकर मत्था टेका और अपने शिष्यों को भी माथा टेकने को कहा। संगत ने उन्हें अपना गुरु मान लिया। परन्तु गुरु अंगद देव जी के पुत्र दातू ने उन्हें गुरु नहीं माना और गालियां निकालता वहां से बाहर चला गया। दासू व दातू दोनो भाई गुरु अमर दास जी के साथ झगड़ा करते। यह देख कर गुरुजी ने अमर दास जी को गोंयदवाल भेज दिया।
गुरु अंगद देव जी जब तक जीते रहे। गुरु अमर दास जी उनके दर्शन करने आते। सं० 1614 दि० को दातू गुरु गद्दी खोसने के लिए गोयदवाल जा पहुंचा। गद्दी पर बैठे गुरु जी को लात मारी। वे गिरे, परन्तु संभल गए और दातू से कहा दुख है, हम आपको आगे लेने नहीं गए, सारा चढ़ावा खच्चर पर लाद कर दातू को सौंप दिया। दातू को रास्ते में चोरों ने लूट लिया। उपरोक्त घटना से गुरु जी को बहुत दुख व ग्लानि हुई। वे रात्रि के अंधेरे में जंगल में चले गए। वहां एक खाली मठ था। वहीं बैठ गए। बाहर लिख दिया जो कोई दरवाजा खोलेगा, उसका लोक-परलोक नही संवरेगा। शिष्य गुरुजी की खोज में निकले। उनका घोड़ा मठ के पास खड़ा हो गया। शिष्यों ने मठ की दूसरी ओर से भीतर जाने का रास्ता बनाया और उन्हें गोयंदवाल ले आए।
गुरु जी ने गोंयदवाल में 84 सीढ़ियो वाली बावड़ी बनाई और सिखों (शिष्यो) को कहा “जो कोई स्नान करके 84 बार जयु जी साहिब का पाठ करेगा, उसकी 84 लाख योनि कट जाएगी। इस बावड़ी का आरम्भ 1616 वि० में हुआ था, सात वर्ष तक बनती रही, पर तैयार नहीं हुई। उधर अकबर ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। कई वर्ष बीत गए पर • चित्तौड़ का किला न टूट सका। अकबर द्वारा भेजा गया ताहिर बेग गुरू जी के पास आया और विनती की, “चित्तौड़ का किला टूटता नहीं” गुरू जी ने कहा “हमारी बावड़ी का ‘कड़’ टूटेगा तो चित्तौड़ का किला भी टूटेगा। “चौथे दिन बावड़ी का कड़ टूटा और चित्तौड़ के किले पर अकबर ने फतह पायी। अकबर बहुत खुश हुआ। उसने गुरू जी को बहुत कुछ भेंट किया। यह कथा आजकल के लेखकों की मनघडंत कथा है ऐसा लिखकर वह गुरूओं की छवि धूमिल कर रहें हैं। बीरबल के साथ गुरु जी का विवाद हुआ। परमेश्वर की इच्छा उसे सिंध की जंग लड़नी पड़ी और वह पठानों के हाथों मारा गया।

गुरू राम दास जी की परीक्षा :

गुरु अमर दास जी ने अपने पुत्रों, दामादों व सिक्खों को बावड़ी के आस-पास थड़े बनाने को कहा, ये थड़े बनाते, गुरू जी तुड़वा देते। गुरू रामदास के अतिरिक्त अन्य सभी दुखी हो गए और कहने लगे बुढ़ापे के कारण गुरु जी की बुद्धि ठिकाने नहीं। गुरू दास को भी सिक्खों ने बार-बार चबूतरा बनाने के लिए मना किया। गुरु जी के परम शिष्य. रामदास जी ने कहा “मैने तो गुरु जी का हुक्म मानना है, चाहे पूरी उम्र यह करवाते रहें। गुरु जी ने उनके धैर्य की सराहना की। 7 बैसाख 1627 वि० को उन्हें गुरु गद्दी पर सुशोभित किया। पांच पैसे व नारियल रखवा कर मत्था ठेका। सिक्खों ने भी उन्हें गुरू मानकर प्रणाम किया। परन्तु गुरु जी के पुत्र मोहन व दामाद रामे ने गुरू राम दास जी के आगे सिर नहीं झुकाया, वे गुरुजी का विरोध करने लगे। गुरु रामदास जी का विरोध बढ़ता देखकर गुरु अमरदास जी ने रामदास गांव (अमृतसर) बसा कर उन्हें वहां भेज दिया और अपनी सम्पूर्ण शक्तियां, ब्रह्म विद्या और गुरु सिक्खी उन्हें प्रदान कर दी। गोंयदवाल में उनसे सम्बन्धित तीन स्थान प्रसिद्ध है – प्रथम किल्ली साहिब जिसे पकड़ कर वे खड़े होकर तप करते थे। दूसरा चौबारा साहिब, जहां वे विराजमान होते थे। तीसरा बावड़ी साहिब 84 सीढ़ियां वाली। गुरू अमर दास जी ने 22 स्थानों पर मंजिया अथवा गुरू गद्दियां स्थापित की।
गुरु अमरदास जी ने 72 वर्ष, 10 महीने, 20 दिन की आयु में “गुरुगद्दी को सुशोभित किया और 95 वर्ष, 4 मास की आयु में, भादों शुक्ला पूर्णिमा, सं० 1631 वि० को गोंयदवाल के स्थान पर ज्योति-ज्योत समाए।

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