ancient indian history

Ram Katha Natak

राम कथा नाटक मंच से
हिन्दी साहित्य के आदि काल में हिन्दी कवियों ने राम कथा पर विशेष रचनात्मक कार्य नहीं किया। सम्भवतः संस्कृत विद्वान इस दैवी कथा को लोक भाषा में लिखना अनुचित समझते थे। संस्कृत में उस समय भी कई ग्रन्थ लिखे जा रहे थे। अदिकाल के विद्वानो ने राम कथा को नाटक के रूप में प्रस्तुत किया
भारत में राम के व्यापक रूप का प्रचार करने का श्रेय आचार्य रामानन्द को है। उन्होने राम के दोनो रूपों निर्गुण और सगुण की भक्ति का प्रतिपादन किया। युग की मांग के अनुसार उन्होने जाति-पाति के बन्धन ढीले किए। इनके बारह शिष्यों में कबीर, रेदास आदि ने निर्गुण राम को अपना अराध्य देव मान कर उपासना की। नरहरि दास व उनके शिष्य तुलसी दास ने राम के सगुण रूप को अपनाया। निराकार राम के उपासकों द्वारा एक भिन्न सन्त मत स्थापित कर दिया गया। सगुण राम उपासकों में से तुलसी दास की प्रतिभा और काव्यकला इतनी उत्कृष्ट सिद्ध हुई है कि उन के बाद का कोई भी राम काव्य उन के राम चरित मानस के समान विख्यात नहीं हुआ। तुलसी दास से पहले का राम साहित्य भी भाव भाषा और शैली की दृष्टि से उत्तम नहीं है।
हिन्दी साहित्य के इतिहास की राम-भक्ति धारा हिन्दी भाषी क्षेत्रों की राम सम्बन्धी रचनाओं तक ही सीमित नहीं रही, ब्रजभाषा के माध्यम से पंजाब के कवियों ने भी इस साहित्य को समृद्ध किया है। इस साहित्य की विशेषता यह है कि इस में राम के मर्यादा पुरुषोतम दुष्ट संहारक रूप को ही कायम रखा है। पंजाबी के हिन्दी राम काव्य के उपजीव्य ग्रन्थ वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण ही रहे। यह काव्य अधिकतर गुरूमुखी लिपि में होने के कारण हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों द्वारा उपेक्षित ही रहा, परन्तु गोसाई गुरुवाणी आदि देवनागरी में लिपि बद्ध रचनाएं भी आलोचकों की दृष्टि से छूट गई हैं।
समय समय पर राम कथा को नाटक मंच से प्रस्तुत किया गया
1. प्रतिमा नाटक : यह नाटक भास कवि द्वारा रचित है। सात अंक है। इस के नाम करण का आधार प्रतिमा-गृह है, जिसमें अयोध् या के मृत राजाओं की मूर्तिया स्थापित हैं। ननिहाल से लौटते समय प्रतिमा- गृह में दशरथ की मूर्ति को देखकर भरत उन की मृत्यु के विषय में जानना चाहता है। अभिषेक नाटक भी भास द्वारा रचित है।
प्रतिमा नाटक में श्री राम मानव रूप में प्रस्तुत किए गए हैं, परन्तु अभिषेक में विष्णुत्व का कई बार उल्लेख है। महावीर चरित : भवभूति द्वारा रचित यह नाटक 7 अकों में है। यह कृति 8 वीं शती की मानी जाती है। विश्वामित्र के साथ श्री राम के वन गमन से लेकर राम अभिषेक तक की कथा है।

2. उत्तर राम-चरित : यह नाटक भी भवभूति द्वारा रचित है। इस में सात अंक है। वाल्मीकि रामयण के उत्तरकाण्ड की सामग्री वर्णित है। इस ग्रन्थ में भावुकता अत्यधिक है। करूण रस की प्रमुखता है। राम प्रजा हितकारी आदर्श राजा है। प्रजा के लिए उन्हें सीता को त्यागने में भी पीड़ा नही : स्नेह दया च सौख्यं यदि वा जानकीमपि । आराधनाय लोकस्य मुंचतो नास्ति में व्यथा ।। उदात राघव : इसका रचनाकाल आठवीं शताब्दी है। इस का लेखक अनंग हर्ष मात्र राज है। छः अंक है। राम बनवास से लेकर राम आदि के अयोध्या लौटने की कथा है।
3. कुंद माला : इस के लेखक दिड नाग हैं। यह उत्तर राम चरित से प्रभावित है। सीता बनवास से लेकर राम सीता मिलन तक की कथा है। यह नाटक सुखान्त है। इस नाटक में भी करूण रस प्रमुख है।
अनर्ध राघव: इस के रचयिता मुरारी कवि हैं। यह नवीं शती की रचना है। विश्वामित्र आगमन से लेकर राम राज्य अभिषेक तक की कथा वर्णित है।
4. बाल रामायण : लेखक महाकवि शेखर हैं। रचना काल 10 वीं शताब्दी है। सीता स्वयंवर से लेकर राम अभिषेक तक की कथा दस अंको में प्रस्तुत की गई है।
5. आश्चर्य चूड़ामणि: इस नाटक के रचयिता कवि शक्ति भद्र हैं। रचना काल नवीं शताब्दी है। इस के सात अकों में शूर्पनखा आगमन से लेकर सीता की अग्नि परीक्षा तक की कथा है। इस कथा में राम व सीता के पास मुनियों के द्वारा दी गई अद्भुत मुद्रिका तथा चूड़ामणि है, जिसके स्पर्श से छद्मवेशी राक्षसों की माया नष्ट हो कर उनका वास्तविक रूप प्रकट हो जाता है महानाटक अथवा हनुमन्नाटक: इस रचना के दो पाठ भेद हैं। एक दामोदर मिश्र का दुसरा मधुसूदन का। इस में चौदह अंक है। प्राचीन कवियों भवभूति मुरारि जयदेव आदि के कुछ श्लोक भी इस में रखे गए हैं।
6. प्रसन्न राघव : इस के रचयिता जयदेव हैं। रचनाकाल 13 वीं शताब्दी के लगभग है। सीता स्वयंवर से अयोध्या लोटने तक की कथा है।
अद्भुत दर्पण: इस के लेखक महाकवि हैं। दस अंकों में अंगद-दौत्य से राम अभिषेक तक की कथा है। इस में एक अद्भुत दर्पण द्वारा तीन योजन अथवा 24 मील तक की सभी वस्तुएं व गतिविधियां दिखाई पड़ती है।
7. उल्लास राघव: इस नाटक के रचयिता सोमेश्वर है। रचनाकाल 13 वीं शताब्दी है। बाल काण्ड के अन्त से आरम्भ हो कर युद्ध काण्ड के अन्त तक की कथा है। आठ अंक है।
8. मैथिली कल्याण : इस नाटक की रचना 1292 ई० में कवि हस्ति मल्ल द्वारा की गई। पांच अंक है। राम सीता के पूर्व अनुराग धनुर्भग तथा सीता- विवाह का वर्णन है।
दूतांगद यह नाटक सुभट्ट कवि द्वारा रचित है। रचना काल 13 वीं शताब्दी है। इसमें अंगद का दूतत्व, रावण की पराजय, राम की विजय का वर्णन है।
उन्मत राघव : सीता हरण के पश्चात लक्ष्मण वानरों की सहायता से रावण का संहार कर सीता को लाते है। यह नाटक विरूपाक्ष देव द्वारा रचित 15 वीं शताब्दी की रचना है।
9. उन्मत राघव : भास्कर भट्ट द्वारा 14 वीं शताब्दी की रचना है। दुर्बासा द्वारा शापित सीता का मृगी के रूप में बदलना और मुनि अगस्त की सहायता से श्री राम द्वारा उसे पुनः प्राप्त करना, इस का कथानक है।
10.रामाभ्युदय : इस के रचयिता व्यास देव मिश्र हैं। लंका युद्ध से लेकर राम के राज्य अभिषेक तक की कथा दो अंको में है।

11. कुश लव उदय : यह नाटक छवि लाल सूरी द्वारा रचित और संशोधित है। इसमें श्री राम के अभिषेक के बाद का वर्णन 6 अंको में है।
उपरोक्त राम साहित्य के अतिरिक्त राम कथा को लेकर रचे गये अनेक विलोम काव्य शिलष्ट काव्य, खण्ड काव्य व चम्पू काव्य, संदेश काव्य, गीति काव्य आदि हैं।
12. कथा साहित्य – इस के अंतर्गत सोमदेव कृत कथा सरित सागर में राम कथा अत्यन्त संक्षिप्त दी गई है। वृहत मंजरी क्षेमेन्द्र की इस रचना में संक्षिप्त राम कथा है।
13. वासुदेव हिण्डि – यह जैन सहित्य के अन्तर्गत है। इस में संक्षिप्त राम कथा है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top