ancient indian history

Ram Sahitya

राम चरित से सम्बधिंत अन्य साहित्य
1. भरत मिलाप : “भरत मिलाप ” प्रथम प्रबंध काव्य माना जाता है। यह 16 वी० शताब्दी के आरम्भ में लिखा गया था। इसकी विभिन्न प्रतियों में पाठ भेद है। कहीं तुलसी दास कहीं सूरज दास और ईश्वर दास लेखक माने गए हैं। इस की भाषा शैली को देखते हुए इसे गोस्वामी तुलसी दास की रचना मानने का कोई भी विद्वान तैयार नहीं हुआ।
व्याकुल भए भरथ विशेषा। नंहि सभारहिं सिर के केशा ।। घर घर रोवे पुरूष और नारी । बार जात रोवे पनिहारी ।।
2. सूर-सागर : सूर दास रचित सूर सागर के नवम स्कंद में लगभग 150 पद श्री राम सम्बन्धी हैं। सूर दास के राम काव्य का उद्देश्य असत्य पर सत्य की विजय है।
3. राम चन्द्रिका : इस के लेखक प्रसिद्ध कवि केशव दास हैं। इन का जन्म सं० 1612 और मृत्यु सं० 1678 के लगभग हुई। राम-चन्द्रिका का रचना काल सं० 1658 वि० है । लेखक गणेश सरस्वती और श्री राम की वंदना से ग्रन्थ को आरम्भ करता है। केशव दास दरबारी कवि थे। उन का मन राजसी ठाठ, नगरों की चहल पहल आदि के वर्णन में अधिक लगा। केशव भक्त नहीं थे। अंतः राम चन्द्रिका भक्ति काव्य नहीं है। कवि को संवाद योजना में सफलता मिली है। रावण हनुमान संवाद अच्छा उदाहरण है। रे कपि कौन तू ?
अक्ष को घातक, दूत बलि रघुनन्दन जी को ।
को रघुनन्दन रे ? त्रिशिरा-खर-दूषण दूषण भूषण भू को ।
सागर कैसे तरयो ?
जंस गो पद ।
काज कहां ?
सिय चोरहि देखन।

4. रामायण महानाटक: इस रचना के लेखक प्राणचन्द चौहान हैं । रचना काल सं० 1667 विं० है। ग्रंथ आरम्भ में कवि ने राम के दोनो रूपों निगुर्ण और सगुण का वर्णन किया है। यह पद्यबद्ध संवादों में प्रबंध काव्य है, नाटक नहीं। कवि गोस्वामी तुलसी दास से प्रभावित है।

5. हनुमान नाटक : इस के लेखक हृदय राम भल्ला हैं। रचनाकाल सं० 1680 है। हृदय राम ने इस रचना को राम गीत या राम चन्द्र गीत नाम दिया था। परन्तु संस्कृत के हनुमन्नाटक पर आधारित होने के कारण कालान्तर में इस का नाम हनुमान नाटक पड़ गया। हृदय राम भल्ला का सम्बन्ध सिक्ख परिवार से था। भाई गुरूदास भल्ला जिन्हें सिक्ख पंथ का वेद व्यास कहा जाता है, तृतीय गुरु अमर दास के भतीजे थे। ह्यदय राम भल्ला भी गुरूदास के समय ही हुए थे। गुरू गोविन्द सिंह इस ग्रंथ की प्रति सदैव अपने पास रखते थे। पंजाब में यह अत्यन्त लोकप्रिय रहा है। पंजाब के सभी बड़े पुस्तकालयों में इस की हस्तलिखित प्रतिया उनलब्ध हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ 14 अंकों में बंटा है। कथा योजना, घटनाओं का क्रम आदि संस्कृत के हनुमन्नाटक पर आधारित है तथापि यह अनुवाद नहीं है। कवि ने भक्तिभावना व जन रूचि के अनुसार कथा में परिवर्तन कर दिया। संस्कृत नाटक के द्वितीय अंक में वर्णित श्रीराम व सीता की श्रृंगारिक लीलाओं को कवि ने अपनी रचना में स्थान नहीं दिया। इस की भाषा ब्रज है परन्तु कहीं-कहीं पंजाबी पन है, यथा भाज गई रानी सब रावण के पास से।
ध्यानपुर गद्दी के संस्थापक बाबा लाल जी दारा शिकोह के उपदेशक थे। सात दिन तक बाबा लाल जी का दारा के साथ प्रश्नोत्तर होता रहा, उनकी वाणी का निम्न उदाहरण है।
राम का नाम बिन जीव के ठवर जु कतहुं नाहि । राम नाम अति कठिन है, सभ को दुर्लभ होई ।।
उन के शिष्य बलराम का कथन है
जय जय रघुनायक कर धृत सायक। तनु निर्णायक सुखकारी ।। रावण नाशक सुखद विभीषण द्वैत विभजन पद चारी
भुज आदि रामायण: यह ग्रथं गुरु अर्जुन देव के भतीजे सोढी मेहर वान द्वारा रचित है। मेहरबान हृदय राम के समयकालीन थे। इन की रचनाएं कच्ची वाणी के अन्तर्गत आती हैं। यह 18 कथाओं में विभाजित है। प्रत्येक कथा से पूर्व महेरबान कृत एक श्लोक है। श्लोक की व्याख्या हरि जी द्वारा गद्य में की गई है। इस ग्रंथ की हस्त लिखित प्रतिया भाषा विभाग पंजाब, पटियाला, सैन्ट्रल पब्लिक लायब्रेरी पटियाला तथा सिक्ख रैफरेंस लायब्ररी अमृतसर में सुरक्षित थी, परन्तु अब ये अमूल्य प्रतियां हैं कि नहीं, सन्देह है।

7. गोसाई गुरवाणी: गोसाई मत का धार्मिक ग्रन्थ है। देश विभाजन के समय “बद्दोकी गोसांई आश्रम” विधर्मियों द्वारा नष्ट कर दिया गया था। ग्रन्थ के पृष्ट आंधी तुफान में बिखर रहे थे। एक भक्त ने अपनी जान हथेली पर रखकर उन पन्नों को इक्ट्ठा किया और भारत लाने में सफल हो गया। सन् 1964 ई० में यह ग्रन्थ प्रकाशित हुआ।
8. रामावतार : ( गुसाई गुरूवाणी के अन्तर्गत) इसके अन्तर्गत दशावतार में श्री राम की पूरी कथा 242 पद्यों में दी गई है। गोसाई पंथ के गुरू स्वयं को आचार्य रामानंद की परम्परा में मानते हैं।
भाई गुरूदास का काव्य सिक्ख धर्म के प्रचारक तथा संस्कृत व हिन्दी के विद्वान भाई गुरूदास ने अपनी पंजाबी वारों तथा ब्रज भाषा रचित कवित सवैयों में श्री राम का यशोगान किया है। निर्गुण भक्ति को अपनाते हुए भी उन्होनें अवतारवाद में आस्था दिखाई है।
पंडोरी धाम (गुरदास पुर, पंजाब) के गुरू भी स्वयं को आचार्य रामानन्द की परम्परा में मानते हैं। उन्होने श्री राम के सगुण रूप को अपनाया तथा राम भक्ति का प्रचार प्रसार किया । तथा

भगवन् नारायण गुरूओं की वाणी का उदाहरण निम्न है। रिधि-सिद्धि मेरे नाहिं काम ।
भक्ति का दान दीजो मेरे राम ।।

अति राम अगाध गति ।
कहा कहो को ध्याई ।।
बिशन पदे : राम चरित मानस के आधार पर लिखे ये बिशन पदे पंजाबी कवि तुलसी दास कृत हैं। यह 125 पृष्ठों का हस्तलिखित ग्रंथ है। इस की भाषा ब्रज है। शैली सरल व सहज है।

9. घट रामायण : सन्त तुलसी दास हाथ रस द्वारा रचित है। वे स्वयं को गो० तुलसी दास का अवतार मानते थे।
16 वीं शताब्दी में पंजाब में स्थान -२ पर गुरू गद्दियां स्थापित हो गई थी। गुजरांवाला के तलवंडी ग्राम में सिक्ख पंथ के प्रवर्त्तक गुरू नानक देव का उदय हो चुका था। गुरदास पुरके पण्डोरी धाम व ध्यान पुर तथा बद्दोकी गोसाइंया (गुजंरावाला) हिन्दुओं के धार्मिक केन्द्र बन चुके थे। इन सभी गुरुओं का उद्देश्य भगवत भजन व जन साधारण को उपदेश देना था। उनके उपदेशों का विषय संसार की असारता, प्रभु-भक्ति, मानवता अंध विश्वास का खंडन आदि था। जन साधारण इन उपदेशों द्वारा अपने संतप्त हृदय शीतलकर लेते थे। शासकों के क्रूर कर्मों द्वारा हुई धन जन की हानि भी वे भूल जाते थे। ये केन्द्र एक ओर अपनी सभ्यता, संस्कृति व धर्म के प्रति जनता को जागरूक रखने का कार्य कर रहें थे। दूसरी ओर हिन्दुओं को संगठित करने में भी सहायक हो रहे थे। गुरूओं ने परमात्मा का निराकार रूप प्रस्तुत करके अपनी संस्कृति की व्यापक परम्परा से जनता को अवगत कराया।

इन गुरूओं के उपदेशों से जनता की आस्था हिन्दु धर्म दृढ़ हो रही थी, और लोग धर्म के मंच पर संगठित हो रहे थे। इस प्रकार की गतिविधियां मुस्लिम शासकों को खटकनी स्वभाविक थी। अतः शासन की और से गुरूओं पर अत्याचार आरम्भ हो गए।
जहांगीर के शासन काल में सिक्ख पंथ के पांचवे गुरू श्री गुरू अर्जुन देव जी को असहनीय यातनाएं दी गई जो उन के देहान्त का कारण बनी। पण्डोरी धाम के भगवन नारायण को जंहागीर के दरबार में विष के प्याले पिलाये गए। बद्दोकी गोसाइंया के गुरू कांशी राम को जेल में बंद किया गया । वृद्ध कवि तुलसी दास को भी जहांगीर ने कारावास में कई दिन रखा।
आज दूरदर्शन के द्वारा जनता को जहांगीर की न्यायप्रियता के विषय में कथांए सुनाई जाती हैं तो आश्चर्य होता है। इतिहास को कैसे तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है।
जहांगीर के शासन काल में मुरतजा खान, इत्याद उद्दौला कासिम खां, शहजहाँ के समय अली मरदान खां, ओरंगजैब के समय वजीर खां पंजाब के सूबेदार थे । हिन्दु जनता पर जो भी अत्याचार हो रहे थे, इसके जिम्मेदार पंजाब के शासक व केन्द्रीय सरकार दोनों थे।

10. गुरू गोविन्द सिंह जी

नवम गुरू तेग बहादुर, भाई मतिदास, भाई सतिदास, भाई दयाल आदि के बलिदान के बाद सिक्ख पंथ पूरी तरह जंगी सेना में बदलगया था। भारतीय जनता के धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक अधिकारों पर कई सदियों से मुस्लिम शक्तियों के आक्रमण हो रहे थे। सम्पूर्ण देश को गुलाम बनाया जा रहा था और जन साधारण को बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया जा रहा था। गुरु गोविन्द सिंह न केवल उच्च कोटि के कवि व साहित्य स्रष्टा थे अपितु अनेक साहित्यकारों के आश्रय दाता व संरक्षक थे। आनन्द पुर उनका साहित्यिक केन्द्र था। गुरु जी के दरबार बावन कवि थे। इन कवियों की काव्य साधना हिन्दी भाषी प्रान्तों के रीति-कालीन कवियों की काव्य साधना से नितान्त भिन्न थी। जहाँ अन्य दरबारी कवि आश्रय दाता की प्रशंसा करना व पाण्डित्य प्रदर्शन करना अपना उद्देश्य समझते थे। वहाँ गुरु जी के दरबारी उन के द्वारा संचालित सांस्कृतिक आंदोलन को बल प्रदानकरना अपना कर्त्तव्य समझते थे। गुरु जी ने इन कवियों से महाभारत आदि प्राचीन ग्रन्थों का भाषानुवाद करवाया। और उन्हे स्वतन्त्र काव्य रचने के लिए प्रोत्साहन दिया।
गुरु जी व उन के कवियो द्वारा रचित “विद्याधर” ग्रन्थ निरन्तर युद्धों के कारण नष्ट हो गया। जो कुछ बिखरी हुई रचनायें प्राप्त हुई उनका भाई मणि सिंह ने सम्पादन कर के “दशम ग्रन्थ साहिब” का नाम दिया। दशम ग्रन्थ की भाषा ब्रज है, तथा विचारधारा भारत वर्ष की शायवत धर्मिक चिन्तनधारा के अनुरूप है।
आधुनिक पंजाबी लेखक दशम ग्रन्थ साहिब में संग्रहीत सम्पूर्ण काव्य को गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा रचित नहीं मानते। इनके अनुसार निर्गुण धारा का प्रतिनिधित्व करने वाला काव्य यथा जपु जी, अकाल उसतुति, तेत्तीस सवैये, शब्द हजारे गुरु जी द्वारा रचित हैं। अन्य काव्य उन के दरबारी कवियों का है।

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