ancient indian history

Taimur Lung

तैमूर लंगड़ा द्वारा जिहाद

इतिहासकार मानते हैं कि तैमूर लंगड़ा  एक खुंकार आतंकवादी था  तैमूर के ज़ुल्म की कहानियों से इतिहास रंगा हुआ है उसका पूर्वज चंगेज़ खान पूरे यूरोप और एशिया को अपने वश में करना चाहता था लेकिन चंगेज़ खान जहां पूरी दुनिया को एक ही साम्राज्य से बांधना चाहता था, तैमूर का इरादा सिर्फ़ कत्लेआम  और  लूट पाट था. चंगेज़ खान के राज  में सिपाहियों को खुली लूट-पाट की मनाही थी. लेकिन तैमूर के सिपाहियों को लूट बलत्कार और क़त्लेआम की खुली छूट  थीं तैमूर मरने से पहले  अपनी जीवन कथा  छोड़ गया, जिससे हमें उसके काले कारनामो का  पता चलता है तैमूर लंग आत्मकथा ‘तूजके-तीमूरी में लिखता है, ‘मेरी मार्गदर्शक कुरान की वे पंक्तियाँ हैं जिनके अनुसार काफिरों को सख्त से सख्त सजा देना है। हिन्दूस्तान पर हमला करने का मेरा मुख्य उद्देश्य काफिरों के विरूद्ध धार्मिक युद्ध है।” हिंदुस्तान उन दिनों एक  अमीर देश था  तैमूर को  दिल्ली पर एक सफल हमले और  बहुत लूट का माल मिलने की भी उम्मीद थी। तब दिल्ली के शाह नसीरूद्दीन महमूद के पास हाथियों की एक बड़ी फ़ौज थी, कहा जाता है कि उसके सामने कोई टिक नहीं पाता था। साथ ही साथ दिल्ली की फ़ौज भी काफ़ी बड़ी थी। मार्च-अप्रैल, 1398 में वह समरकंद से चला और अफगानिस्तान पहुंचा। वहां के कुछ लोगों (मुस्लिम) ने उससे शिकायत लगाई कि कटोर के काफिर और “स्याहपोश” उन्हें तंग करते हैं उनसे हमारी रक्षा कीजिए .कटोर (काश्मीर और काबुल के बीच) के क्षेत्र में किले पर तैमूर की सेना ने |चढ़ाई की और लोगों को कैदी बना लिया। उनके सामने भी दो रास्ते थे। ‘मरो या इस्लाम स्वीकार करो” उन्होंने इस्लाम स्वीकार किया। परन्तु रात्रि को तैमूर की सेना पर हमला कर दिया। मुट्ठी भर सैनिक कैसे सफल होते. कुछ पकड़े गए। उन्हें बुरी तरह से यातनाएं देकर खत्म किया गया। उनके घर लूट लिए गए। उनके शिरो का स्तूप बनाया गया। सितम्बर, 1398 में दीपालपुर, समाना (जलन्धर, पटियाला के पास) में तैमूर की सेना पहुंची। वह स्वयं कुछ सेना को साथ लेकर भटनीर पहुंचा। वहां का हिन्दू शासक दूलचन्द व उसके सैनिकों ने वीरता से युद्ध किया। परन्तु हार गए। नरसंहार हुआ. औरतों और बच्चों को दास बना लिया गया। अफगानिस्तान से आरम्भ होकर दिल्ली तक, वर्बरता का यही सिलसिला चलता रहा। पानीपत पहुंचने से पूर्व तैमूर ने 2 हजार जाटों का संहार किया और फिर पानीपत होता हुआ लोनी पहुंचा लोनी के किले में अधिकतर हिन्दू थे। राजपूतों ने अपनी स्त्रियों और बच्चों को घरों के भीतर जला दिया। और कफन बांध कर युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए। किला जीतने के पश्चात् तैमूर ने आदेश निकाला। पकड़े हुए लोगों में से काफिरों को अलग करके उनको कत्ल कर दो। दिल्ली के सुल्तान महमूद ने तैमूर का सामना करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए, परन्तु जहानुमा महल के पास उसकी सेना ने 12 दिसम्बर, 1398 को तैमूर के सैनिकों के साथ युद्ध किया। सुल्तान हार गया और अपनी सेना के साथ भाग गया। विश्व के इतिहास में ऐसी दर्दनाक घटना नहीं घटी होगी। तैमूर ने एक लाख हिन्दुओं का सहार कराया। इस्लाम के शत्रुओं को खत्म करना है। यह आदेश सुनकर ऐसे मुल्ला, काजी जिन्होंने कभी चिडिया भी नहीं मारी थी उन्होंने भी हिन्दुओं के रक्त से अपने हाथ रंग कट पुण्य प्राप्त किया। हिन्दू लोगों के घर लूटे गए। लगभग पन्द्रह हजार तुर्की ने इस नरसंहार और लूट मार में भाग लिया। तैमूर की फ़ौज सिंधु नदी पार करके हिंदुस्तान में घुस आई. रास्ते में उन्होंने असपंदी नाम के गांव के पास पड़ाव डाला. यहां तैमूर ने लोगों पर दहशत फैलाने के लिए सभी को लूट लिया और सारे हिंदुओं को क़त्ल का आदेश दिया  तैमूर  अपनी जीवन कथा  में  कहता है कि ये लोग एक ग़लत धर्म को मानते थे इसलिए उनके सारे घर जला डाले गए और जो भी पकड़ में आया उसे मार डाला गया. फिर फ़ौजें पानीपत की तरफ़ निकल पड़ीं. पंजाब के समाना कस्बे, असपंदी गांव में और हरियाणा के कैथल में हुए ख़ून ख़राबे की ख़बर सुन पानीपत के लोग शहर छोड़ दिल्ली की तरफ़ भाग गए और पानीपत पहुंचकर तैमूर ने शहर को तहस-नहस करने का आदेश दे दिया. यहां भारी मात्रा में अनाज मिला, जिसे वे अपने साथ दिल्ली की तरफ़ ले गए. रास्ते में लोनी के क़िले से राजपूतों ने तैमूर को रोकने की नाकाम कोशिश की. अब तक तैमूर के पास कई हिंदू बंदी थे. दिल्ली पर चढ़ाई करने से पहले उसने इन सभी को क़त्ल करने का आदेश दिया. यह भी हुक्म हुआ कि यदि कोई सिपाही बेक़सूरों को क़त्ल करने से हिचके तो उसे भी क़त्ल कर दिया जाए. अगले दिन दिल्ली पर हमला कर नसीरूद्दीन महमूद को आसानी से हरा दिया गया. महमूद डर कर दिल्ली छोड़ जंगलों में जा छिपा. दिल्ली में जश्न मनाते हुए मंगोलों ने कुछ औरतों को छेड़ा तो लोगों ने विरोध किया. इस पर तैमूर ने दिल्ली के सभी हिंदुओं को ढूंढ-ढूंढ कर क़त्ल करने का आदेश दिया. चार दिन में सारा शहर ख़ून से रंग गया अब तैमूर दिल्ली छोड़कर उज़्बेकिस्तान की तरफ़ रवाना हुआ. रास्ते में मेरठ के किलेदार इलियास को हराकर तैमूर ने मेरठ में भी तकरीबन 30 हज़ार हिंदुओं को मारा. दिल्ली में तैमूर के सैनिकों ने काटे हुए सिरों की मीनार खड़ी कर दी। कटे हुए शरीर के टुकड़े को चील और कौवे को खाने के लिए छोड़ दिए। यह कत्लेआम लगातार तीन दिनों तक जारी रहा। दिल्ली में चारों तरफ कटे सिर और शरीर के टुकड़े ही टुकड़े नजर आ रहे थे। एक इतिहासकार ने इसे सबसे बड़ी क्रूरता करार दिया था।दिल्ली की लूट के पश्चात तैमूर ने कहा, ख़ुदा की इच्छा से सब कुछ ठीक हुआ। दिल्ली की लूट के पश्चात् 1 जनवरी 1399 की तैमूर उत्तर की और चल पड़ा। नगरकोट और जम्मू तक रास्ते में जो भी नगर आए यही मार काट का  सिलसिला चलता रहा । नवयुवक हिन्दूओं का संहार, और  स्त्रियों और बच्चों को दास  बनाया। तैमूर 3 मार्च 1399 को सिंध पार कर अपने देश लौट गया। इस प्रकार लगभग एक वर्ष तक तैमूर ने हिन्दुओं पर कहर बरसाया। तैमूर के इस कत्लेआम के बारे में बाद में सर डेविड प्राइस ने अपनी किताब ‘मेमॉएर्स ऑफ़ द प्रिंसिपल इवेंट्स ऑफ़ मोहमडन हिस्ट्री’ में लिखा, “मानवता के इतिहास में इस तरह की क्रूरता का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता।” मोहम्मद क़ासिम फ़ेरिश्ता अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ़ द राइज़ ऑफ़ मोहमडन पावर इन इंडिया में’ तैमूर के सैनिकों के आतंक के बारे में लिखते हैं, “हिंदुओं ने जब देखा कि उनकी महिलाओं की बेइज़्ज़ती की जा रही है और उनके धन को लूटा जा रहा है तो उन्होंने दरवाज़ा बंद कर अपने ही घरों में आग लगा दी। यही नहीं वो अपनी पत्नियों और बच्चों की हत्या कर तैमूर के सैनिकों पर टूट पड़े और  वीरगति को प्राप्त हुए।

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