World before Islam

Written by Alok Mohan on May 6, 2023. Posted in Uncategorized

इसाई व इस्लाम धर्म से पूर्व विश्व की स्थिति :

इसाई व इस्लाम धर्म से पूर्व विश्व के बहुत से देशों में हिन्दू धर्म-संस्कृति फैली हुई थी। बहुत से भारतवासी वहां बस गए थे। कई राजा अपना अन्तिम समय गंगा के किनारे पूजा पाठ करके बिताते थे। भारत के कुछ रीति रिवाज अभी भी उन देशों के निवासियों में मिलते हैं। पूर्वी द्वीप समूह में इस्लाम तेजी से फैलने लगा था। परन्तु बहुत से शासक व प्रजा हिन्दू धर्म को छोड़ना नहीं चाहते थे। जो लोग मुसलमान भी बने, अन्य देशों की तरह उनमें कट्टरता नहीं आई। उनका कहना था कि इस्लाम को अपनाने का यह मतलब नहीं कि हम भूत से बिल्कुल नाता तोड़ दें और अपने पूर्वजों को ही भूल जाएं। वहां अभी भी रामायण, महाभारत के नाटकों में लोग रूचि लेते हैं। ऑस्ट्रेलिया, इन्डोनेशिया ईरान, कम्बोदिया कुश, जावा, थाईलैण्ड, बाली आदि देशों का उल्लेख संक्षेप में प्रस्तुत है ।
1. ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया निवासियों के पूर्वज पांच हजार से तीन हजार वर्ष पूर्व, पूर्वी द्वीप समूह से ऑस्ट्रेलिया में आए थे, यूरोपियन के आने से पूर्व इन लोगो पर भारतीय-संस्कृति का प्रभाव था। ऑस्ट्रेलिया निवासी बहुत धार्मिक होते हैं। वे कई देव-देवियों को मानते हैं। सर्वोच्च देवी ग्रेट मदर या महामाई कहलाती है। उनके विवाह सम्बन्ध रिश्तेदारों में होते हैं। कई बार ‘बट्टे का रिश्ता” “होता है। यथा वर को अपनी बहिन का विवाह पत्नी के भाई के साथ करना पड़ता है। हमारे समाज में भी ऐसे कई वर्ग हैं जिनमें बट्टे का विवाह होता था। अब यह रस्म कम होती जा रही है। ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी मृत को दबाते हैं। परन्तु मृत की वस्तुओं को जला देते हैं। यहां के समाज का प्रत्येक वर्ग अपना-2 कलंडर रखता है, जिसमें वर्षा, ताप, बदलती पवन, बादलों की गति, पौधों का बढ़ना, पेड़ों पर फूल आना, घास का सूखना आदि की जानकारी होती है। ऑस्ट्रेलिया कबीलों में धार्मिक गुरू कथा वाचक भी होता है। वह कथा-कहानियाँ काव्य में गाकर सुनाता है। वह अपने वंशजों को भी इस कार्य में निपुण करता है। उत्सवों और विशेष अवसरों पर धार्मिक गीत गाए जाते हैं। ये गीत नृत्य के साथ या बिना नृत्य के भी गाए जाते हैं। प्रेम प्रसंग से सम्बधिंत कथाएँ और उपदेशात्मक कथाएं जनता को सुनाई जाती है जिनका आशय होता है-”कुकृत्य करोंगे तो परिणाम बुरा होगा। ऑस्ट्रेलिया के न्यू साऊथ वेल्ज के नीले पर्वत पर कंतुबा के पास पत्थरों की तीन शिलाएँ है जिनके नाम मीनी, विमला, गुने दी हैं। इनसे सम्बन्धित एक कथा है-एक डॉक्टर की तीन बेटियाँ थीं। उनका दूसरे कबीले के तीन युवकों के साथ प्रेम हो गया। कबीलों के सख्त कानून के कारण उनके विवाह में बाधा पड़ गई। दोनों कबीलों का युद्ध हुआ। बेटियों की रक्षा के लिए पिता ने उन्हें पत्थर बना दिया। तीनों पुत्रियों को पुनः जीवित करने से पहले ही पिता मर गया। अतः वे तीनों शिलाएं ही बनी रही। यह कथा और लड़कियों के नाम भारतीय कथाओं के साथ मिलते-जुलते हैं।
2. इन्डोनेशिया :
इन्डोनेशिया निवासियों के पूर्वज लगभग 2500 से 100 ई0 पूर्व तक मध्य एशिया से इधर आते रहे। 600 ई0 से 1200 ई0 तक यह बौद्ध साम्राज्य रहा। राजा श्री विजय यहां का महान् राजा था । 800 ई० में राजा शैलेन्द्र ने जावा में बौद्ध मन्दिर का निर्माण किया। 900 ई0 में प्रभा वन में यहां के राजा द्वारा मन्दिर का निर्माण हुआ। 1300 ई0 तक यह हिन्दू साम्राज्य रहा। परन्तु 1400 ई० में इस्लाम धर्म ने अपनी जड़ें जमा ली। उसके बाद यूरोपियन देशों ने इस देश पर अधिकार कर लिया। अभी भी इस देश के लोगों पर हिन्दू-धर्म संस्कृति का प्रभाव है। उनकी भाषा में संस्कृत व अन्य भारतीय भाषाओं की शब्दावली का प्रयोग है।

3. ईरान
ईरान का प्राचीन नाम पर्शिया है। यह दक्षिण-पश्चिम एशिया में स्थित है। इसका इतिहास 5000 वर्ष पुराना है। यहां के निवासी इस क्षेत्र को “आर्यों की धरती कहते है। आर्यन से ही इस देश का नाम ईरान पड़ा। विद्वानों के अनुसार 3000 से 1500 ई० पूर्व आर्यों के दो प्रमुख वर्ग ईरान में स्थापित हो गए थे। वे लोग, जहां अब दक्षिण रूस है, वहां से आए थे। उन्होंने 400 ई0 पूर्व तक अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था और यूनान पर आक्रमण कर दिया। परन्तु यूनानियों ने उन्हें योरूप तक जाने से रोक दिया । 331 ई0 पूर्व सिकन्दर ने इस क्षेत्र को जीत लिया। उसके पश्चात् पार्थियन ने अपना अधिकार कर लिया। 641 ई० में अरबों ने यह क्षेत्र जीत लिया और इसके धर्म और संस्कृति को बिल्कुल बदल दिया। ईरान में इस समय 98 प्रतिशत शिया है, शेष मुसलमान सुन्नी, इसाई और यहूदी हैं। लगभग साढ़े तीन लाख से अधिक अल्पसंख्यकों को ईरान में कानूनी मान्यता नहीं। वे अपने धर्म का प्रचार नहीं कर सकते। “बहाय” मत के लोगों पर धर्म की आड़ में अत्याचार किए जाते हैं, वे देश छोड़ कर भारत व अन्य देशों में बस गए हैं।

इरान वासियों का प्रमुख उत्सव नौ रोज है यह नव वर्ष आरम्भ होने से 15 दिन पूर्व मनाया जाता है। एक उथले बर्तन में गेहूं या जौ बोए जाते हैं। नई पौध बसन्त के आगमन की सूचना देती है। 13वें दिन मित्र-मिलन आदि के द्वारा धूम-धाम से नौ रोज का त्योहार मनाया जाता है। फिरदौसी, हाफिज और सादी ईरान के प्रमुख कवि हुए हैं। प्राचीन पर्शिया में भारतीय यूरोपियन भाषा बोली जाती थी, जो संस्कृत भाषा परिवार से सम्बंधित थी। इस समय सरकारी भाषा फारसी है।
3. कम्बोदिया :
कम्बोदिया की दन्तकथा के अनुसार इन्द्रप्रस्थ के वनवासी राजकुमार ने कम्बोदिया राज्य की नींव रखी थी। कोण्डन्य नामक हिन्दू ने इस क्षेत्र में साम्राज्य स्थापित किया था। कुण्डन ऋषि की सन्तान कोण्डन्य कहलाती है। उससे पहले ये लोग नंगे रहते थे। भारतीयों ने उन्हें विशेषकर स्त्रियों को, कपड़े पहनाने सिखाए और उन सबको सभ्य बनाया। कौण्डन्य के वंशजों ने वहां सौ वर्ष राज्य किया। कम्बोदिया का अन्य नाम कम्पूची” है। लगभग 100 ई0 पूर्व राजा फूनान ने अपना साम्राज्य स्थापित किया था। 400 ई0 में यह साम्राज्य सर्वोच्च स्थान पर था। अब जिस क्षेत्र में लाओस, थाईलैंड और वीयतनाम है, यह सारा क्षेत्र ख्मेर लोगों के अधीन था। 600 ई० में ‘चेनला’ ने अधिकार किया। 800 ई0 से 1400 ई0 तक हिन्दू और बौद्ध ख्मेर लोगों का इस देश पर आधिपत्य रहा। इन्होंने अंगकोर तथा अन्य सैंकड़ों मंदिरों का निर्माण किया। शासक वर्ग के परस्पर झगड़ों ने ख्मेर वंश के राजाओं को दुर्बल बना दिया। सन् 1431 ई० में थाई सेना ने अंगकोर नगर पर अधिकार कर लिया। ख्मेर राजा ने अपनी राजधानी फनपोम पिंह नगर बना ली। इस वंश के राजाओं ने 1830 ई0 तक राज्य किया। कुछ देर इस देश पर फ्रांस का अधिकार रहा। 1953 ई० में कम्बोदिया स्वतन्त्र हुआ। 1955 ई0 में राजा नरोत्तम सिंहांनूक ने सिहांसन छोड़कर राजनीति में भाग लिया। 1955 में वह प्रधानमंत्री चुना गया और 1960 ई0 में राष्ट्रपति बन गया।
4. अंगकोर मन्दिर :
कम्बोदिया के राजाओं ने सन् 800 और 1100 ई0 के बीच कई नगर बसाए। अंगकोर थोम इन नगरों में सर्वोत्तम था। यह उस समय 10 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था तथा लाखों लोगों का निवास स्थान था। शायद ही योरूप में उस समय कोई इतना विशाल नगर होगा। इस नगर के आस-पास दीवार बनाई गई और पांच द्वार रखे गए। दीवार के भीतर कई विशाल मन्दिरों का निर्माण किया गया जो कला की दृष्टि से अद्भुत थे। मन्दिरों की दीवारों पर हिन्दू और बौद्ध मूर्तियाँ चित्रित हैं। 1860 ई0 में एक फ्रांसीसी हेनरी मोहोत ने अंगकोर थोम की खोज की। 1860 ई0 से 1900 ई० तक फ्रांस और कम्बोदिया ने इन मन्दिरों में से कइयों का जीर्ण-उद्वार किया। यह मन्दिर लगभग 2 किलो मीटर के घेरे में है इसका निर्माण भगवान विष्णु को प्रतिष्ठित करने के लिए किया गया था।

5. कुश साम्राज्य
कुश साम्राज्य जिसे आजकल सुडान या सूदान कहते हैं। नील नदी के. “आसपास का क्षेत्र है, वहां कुश साम्राज्य था। यह साम्राज्य सन् 2000 ई० पूर्व या शायद उससे पहले का हो, सन् 350 ई0 तक रहा। मिस्र ने इस साम्राज्य को 1500 ई० पूर्व में जीता था। कुशों ने 750 ई0 पूर्व मिस्र से जीत लिया था। कुश लोग कृषि, व्यापार आदि में सिद्ध हस्त थे। उनकी अपनी भाषा और अपना धर्म था। इन्होंने कच्चे लोहे की खोज की। मिस्र के प्रभाव से इन्होंने अपने को मुक्त रखा। आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार श्री रामचन्द्र का समय ई० पूर्व 2000 वर्ष पड़ता है। उसके वंशजों ने अपने साम्राज्य का विस्तार बहुत अधिक कर लिया था। सम्भवतः उनके पुत्र कुश के नाम पर ही उस साम्राज्य का नाम ”कुश पड़ा हो। यह शोध का विषय है।

6. जावा :
जावा वासियों के अनुसार उनके पूर्वज हस्तिनापुर के मूल निवासी थे। अन्य दंतकथा के अनुसार कलिंग के लोगों ने जावा बसाया था। लगभग बीस हजार लोग कलिंग से जावा जाकर बसे थे। जावा में हिन्दुओं ने दूसरी ई०, अपना प्रभुत्व जमा लिया था। क्योंकि 132 ई० में जावा का राजा देववर्मन ने चीन में अपना राजदूत भेजा था। उत्तरी भारत में “जावा” क्षत्रियों की एक उपजाति है।
इन्डोनेशिया के निवासियों का 3/5 भाग जावा में बसता है। उनमें 96 प्रतिशत मुस्लिम हैं। सुराफर और योगीकरत दो नगर मुख्य सांस्कृतिक केन्द्र हैं। यहां 450 ई० के संस्कृत के शिलालेख हैं, जिनसे हिन्दू और बौध संस्कृति के प्रमाण मिलते हैं, बोरो बदूर स्थान पर बौद्ध मन्दिरों का की जड़ें भी जम गई थी। अतः वे लाखों लोगों को भारत के विभिन्न प्रान्तों यथा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध, विहार आदि से बंधुआ मजदूर बना कर ले गए थे। उन लोगों ने अपने धर्म और संस्कृति में आस्था बना रखी, जहां तक कि प्रान्तीय रीति-रिवाजों को भी कायम रखा। धार्मिक ग्रन्थों में उनकी श्रद्धा है। रामायण-महाभारत के नाटक खेलते और होली आदि त्यौहार मनाते हैं।
7. मलेशिया
मलेशिया के अधिकतर लोग भारतीय हिन्दू हैं। वहां के निवासियोँ के मुख्य त्योहार दीपावली
और थाईपूसम हैं। दीपावली एक अत्याचारी राजा नरगसर्न पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में है। थाई पूसम का सम्बंध संकल्प-पूर्णता से है।

8. श्री लंका
श्री लंका के प्राचीन निवासी यक्ष और नाग थे। उन्हीं के वंशज वेदास् हैं। लगभग 5 हजार वर्ष पहले के इतिहास से हमें लंका की पूरी जानकारी मिलती है। उसे दोहराने की आवश्यकता नहीं। उत्तरी भारत के पराक्रमी राजकुमार ने लंका में सिंहली संस्कृति की स्थापना की। उत्तरी श्री लंका में तमिल, हिन्दू हैं। सिंहली और तमिल दोनों यहां की सरकारी भाषाएँ हैं। भगवान राम ने रावण पर विजय पाकर लंका के राज्य-सिंहासन पर रावण के भाई विभीषण को बैठाया था।

9. बर्मा
बर्मा निवासियों के पूर्वज भी मध्य ऐशिया से आकर बर्मा में बसे थे। कहते हैं कि शाक्य करीले के एक राजकुमार ने इरावती नदी के उत्तरी भाग पर “सकिसा’ (तंगोंग) नगर बसाया था। उसने स्वयं को उस क्षेत्र का राजा घोषित कर दिया। उनकी 3 पीढ़ियों ने वहां राज्य किया। गौतम बुद्ध के समय क्षत्रिय गंगा घाटी से गहरी और उनकी 16 पीढ़ीयों ने शासन किया और श्री क्षेत्र को राजधानी बनाया अराकान की परम्परा के अनुसार प्रान्त का प्रथम राजा बनारस के राजा का पुत्र था। इनका धर्म-संस्कृति भी भारतीय थी। बौद्धधर्म के विस्तार से ये लोग बौद्ध हो गए। बौद्धमत को हम हिन्दू धर्म के अन्तर्गत ही मानते हैं। महात्मा गौतम बुद्ध को हिन्दुओं ने श्री राम व कृष्ण की तरह ही विष्णु का अवतार मान लिया था। यहां के 85 प्रतिशत निवासी बौद्ध हैं। शेष वैष्णव. इसाई और मुस्लिम हैं।
लड़कों के बालिम होने पर उनका सिर मूंड कर उन्हें कुछ समय बौद्ध मठ में व्यतीत करना पड़ता है। लड़कियों के युवा होने पर उनके कान छेद कर उनमें काटें पहनाएं जाते हैं। इस रस्म को नहत्विन’ कहते हैं। लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व मौन इस देश में पहुंचे वे सालविन और सिंतांग नदियों के किनारे पर बस गए। 600 ई0 प्यू, बर्मन, चिन, केरन और शान आदि लोगों ने अपनी-2 संस्कृति कायम रखी। “मौन” के विषय में कहा गया है कि कश्यप ऋषि की एक पत्नी का नाम मुनि था उसकी सन्तान मौन कहलाई। ये उन्हीं मौन के वंशज थे या अन्य, यह
मुहयाल ब्रहामणों की उप जाति “मोहन मौन ” शब्द
का विकसित रूप है। 1044 ई0 में बर्मन शासक अनावर्त ने साम्राज्य को संगठित किया। यह
साम्राज्य लगभग 250 वर्ष तक रहा। उसकी राजधानी ‘पागन’ थी। यह नगर इरावती नदी के किनारे पर था।
10. सीरिया
प्राचीन काल में आज के ईराक का उत्तरी भाग सीरिया कहलाता था। वहां के निवासी बहुत से देवों की पूजा करते थे। उनके विचार में वे देव आकाश, धरती, अग्नि, तुफान आदि पर नियन्त्रण रखते थे। देवता अच्छे तथा बुरे दोनों प्रकार के होते थे। जादू टोने पर भी उनका विश्वास था। उनका मुख्य देवता “अशुट “था। ज्ञान, विद्या का देव ‘नबु”, युद्ध का “”निबूर्त” तथा प्रेम की देवी “”ईश्तर “थी।
सीरिया के निवासी अपने देवी-देवताओं को अमूल्य वस्तुओं से सुसज्जित करते थे। और उन्हें भोजन भेंट करते थे। पुरोहित द्वारा यह कार्यसम्पन्न होता था। सीरिया निवासियों ने लगभग 8500 ई0 पूर्व कृषि, पेड़-पौधे लगाने और बकरी, भेड़ पालन का कार्य आरम्भ कर दिया था। 2000 से 1700 ई० पूर्व इन लोगों ने अनातालिया अथवा टर्की के उत्तरी भाग में व्यापारिक बस्तियाँ स्थापित कर ली थी।
1813 ई0 पूर्व में रेगिस्तान के शासक अमृतस् ने सीरिया पर नियन्त्रण कर लिया। उसने अपनी सीमा मेसोपोटियम, पश्चिमी सीरिया और बेबीलोनिया तक बढ़ा ली थी। सीरिया का अन्तिम महान् सम्राट असुर बनीपाल 668 से 627 ई0 पूर्व हुआ है। उसके समय यह देश विश्व शक्ति बन गया था। वह महान् योद्धा तथा कला प्रेमी था। उसने अपने महल में वेबीलोनिया, सुमेर और सीरिया के लेख रखे हुए थे। ब्रिटिश म्यूजियम में ये सभी वस्तुएं पड़ी हैं जो मैसोपोटेमिया के प्राचीन इतिहास जानने में सहायक हैं।
11. हिन्दू अमेरिका :
सन् 1492 ई० में कोलम्बस ने अमेरिका की खोज की थी। परन्तु हिन्दुओं का इससे पूर्व ही वहां अस्तित्व था। “वर्ल्ड बुक सी इन्साइक्लोपीडिया के अनुसार ऐशिया और नार्थ अमेरिका को एक स्थल-पुल जोड़ता था। यह | स्थान अब अलास्का कहलाता है। उस मार्ग से ऐशिया निवासी लगभग बीस हजार वर्ष पहले केनेड़ा में पहुंचे। उन्हीं के वंशज इण्डियन कहलाए।
इण्डियन-अमेरिका के कबीलों के नाम भी भारतीय नामों से मिलते-जुलते हैं यथा- कंस, मुडन्, मुंसी, तोस, मय माया, अरू या यरू हैं।
श्री चमन लाल द्वारा ”हिन्दू अमेरिका’ पुस्तक लिखी गई है। वे लिखते है कि दक्षिणी अमेरिका में राम-सीता त्योहार मनाए जाते हैं।” वे कुछ देर मूल निवासियों के पास रहे। उनके अनुसार दक्षिणी अमेरिका में पेरू के स्थान पर एक सूर्य मंदिर है, जिसकी मूर्ति का आकार उन्नाव (दत्तिया) के सूर्य मन्दिर की मूर्ति से मिलता हैं।

Alok Mohan

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