पहेली बन कर हमेशा ऊलझने ऊलझती रही हम से
नवेली बन गयी मेरी यह. जिंदगी मेरे अपने ही गम से
मधुशाला पेगाम देता रहा
आ मेरे मधू के प्याले में खो जाओ
मीठा दरिया है पुकारता रहा
आ मेरे मीठे पानी में ड़ूब जाओ
जो मेरे दिल के पास थी पहेली सुलझती रही खुद ब खुद कसम से
पहेली बन कर हमेशा ऊलझने ऊलझती रही हम से
नवेली बन गयी मेरी यह. जिंदगी मेरे अपने ही गम से
ऊनके मृदु भावों की हरदम याद बहुत रूला देती है
झरनो की आवाज भी कभी लोरी बन सुला देती है
अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा ईश्क के ज़ाम कसम से
पहेली बन कर हमेशा ऊलझने ऊलझती रही हम से
नवेली बन गयी मेरी यह. जिंदगी मेरे अपने ही गम से
यादें दिल से हरदम कहती रही तुम ही तो मेरे पास हो
प्याला अब भर लो हर उस वजह से जो जो ख़ास हो
डूबकी लगाओ गोता लगाओ
शराब का जन्मों से नाता है शबनम और प्रियतम से
पहेली बन कर हमेशा ऊलझने ऊलझती रही हम से
नवेली बन गयी मेरी यह. जिंदगी मेरे अपने ही गम से
– मोहन आलोक