ancient indian history

भगवा ध्वज

भगवा ध्वज
राष्ट्र जीवन में इसका स्थान
स्फूर्ति केंद्र एकता तथा दृढ़ता के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान ध्वज का है ! विजय चिन्ह विजिगीषु मनोवृति का प्रतीक है ! यश सफलता और सम्मान की निशानी है !
राष्ट्र जीवन में इसका स्थान
स्फूर्ति केंद्र एकता तथा दृढ़ता के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान ध्वज का है ! विजय चिन्ह विजिगीषु मनोवृति का प्रतीक है ! यश सफलता और सम्मान की निशानी है !
ध्वज कैसे निर्माण होता है ?
ध्वज न्यास नहीं बनते ! उनके पीछे राष्ट्र का इतिहास परम्परा तथा जीवन की दृष्टि होती है ! अनेक आधुनिक राष्ट्रों का कारण राजनीती था ! परन्तु प्राचीन राष्ट्र भारत का ध्वज भगवा ध्वज था !
भगवा ध्वज ही राष्ट्र का पुरातन ध्वज है ! वेदों में अरुणा सन्तु केतन का वर्णन है यानि हल्दी जैसे रंग के ध्वज का वर्णन है आदि काल से जन्मेजय तक सभी चकर्वर्ती सम्राट महाराज अधिराज सेना नायकों ने ही नहीं प्रणय चन्दर्गुप्त मौर्या विक्रमादित्य स्कन्द गुप्त यशोवर्मन हर्षवर्धन पृथ्वीराज महा राणा प्रताप शिवा जी आदि सभी ने इसी ध्वज की रक्षा के लिए जीवन भर संघर्ष किये !
भगवे रंग का महत्व
भगवान रघु राम अर्जुन का कपि ध्वज था ! यह रंग त्याग ज्ञान पवित्रता और तेज का प्रतीक है और यज्ञ की ज्वाला से निकली अग्नि शिखाओं को लिए हुए है ! प्राचीन काल में जन कल्याण के लिए भावना से तप साधना में सर्वस्व अर्पण करने वाले सन्यासियों  का बाना और उनका आदर्श सम्मुख उपस्थित करने वाला !
भारत में तिरंगा कैसे आया ?
यूरोप फ्रांस तथा इटली के क्रांतिकारियों के ध्वज तिरंगे थे ! और उन्हों ने भारत का ध्वज तिरंगा बनने की इच्छा व्यक्त की ! कांग्रेस झंडा समिति कराची की १९२१ की रिपोर्ट में भगवा ध्वज ही स्वीकार किया गया था ! परन्तु कांग्रेस की तुष्टिकरण नीति के कारन बाद में बदलाव आया ! सविंधान के अनुसार अशोक चकरधारी तिरंगा हमारा राष्ट्र ध्वज है इस लिए भारतीय होने के नाते हम इसका सम्मान करते हैं !
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भगवा ध्वज को गुरु का स्थान दिया ! इसका कारण यह है की कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं ! अतः व्यक्ति के स्थान पर तत्व के प्रतीक भगवे ध्वज को गुरु का स्थान दिया गया है ! भगवा रंग त्याग ज्ञान पवित्रता और तेज का सन्देश देने वाला है ! हमारे धर्म संस्कृति और इतिहास का स्मरण दिल कर साहस स्फूर्ति त्याग और बलिदान की दिशा में बढ़ाने वाला भगवा ध्वज गुरु के स्थान पर है ~अलोक मोहन

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