मैंने खुद को खुद से बात करते देखा
मैने खुद को खुद ही तपते झलते देखा
खुद को मन की तराजू पर तुलते देखा
अपनो को अपनी ही नज़र से गिरते देखा
भुझते उभरते प्रेम के दीपक को जलते देखा
गिरते ढलते खुद ही संभलते देखा
मककारों को सीना ताने चलते देखा
जानता हूँ सीमाओं से घिरा मेरा देश
मेरे धर्म और भाषा के अरमान को मचलते देखा
खुद ही पहचान बनाता सत्य में दमकता चमकता
आगे आगे क़दम बडाता सपनो का हिन्दू देश देखा- मोहन आलोक