ड़र सा अब लगने लगा हैं
हर उस ऊनकी बात पर हर जजबात पर
हर पल अब थमने सा लगा हैं
हर बीती रात पर हर नयी प्रभात पर
ड़र सा अब लगने लगा हैं
एक अरमान कहता है
कुछ पल अब तेरे संग गुजारूँ
तनहा ज़िन्दगी में तुझे पुकारूँ
लेकिन स्वाभीमान जगने लगा है
ड़र सा अब लगने लगा हैं
जब जब तेरी हसीन याद आती है
मेरी अपनी रूह खूब कनपाती है
वकत का हर गुजरा पल मरने लगा है
ड़र सा अब लगने लगा हैं
ओ बीते लमहो अब तो रूलाना छोड दो
मुझे यादों में बुलाना छोड दो
मेरा सबर् अब मरने लगा है
ड़र सा अब लगने लगा हैं
हर उस ऊनकी बात पर हर जजबात पर
हर पल अब थमने सा लगा हैं
हर बीती रात पर हर नयी प्रभात पर
ड़र सा अब लगने लगा हैं – मोहन आलोक