Inscription Number 93.
Mathura Buddhist Pillar Inscription of the time of Huvishika–;-Year 47
Provenance Mathura
Script Brahmi
Language: Sanskrit influenced by Prakrit
References: Cunningham AS.I.R. III,
p 33. No XII, Dowson J.R.A.S V(NS) p182, No. I and
Pl.
R.L. mitra, J.A.S.B.. XXXIX, Pt1, p- 127,
No. I and pl.
Luders, Ind.Ant XXXIII,
p-101, No XI.
Text of the inscription
सं 40+7 गृ 4 दि 4 महाराजस्य राजातिराजस्य देव पुत्रस्य
हुविषकस्य विहारे दानं भिक्षुस्य ज़ीवकस्य ओडियनकस्य
कु भको 20+5 सर्व सत्व हित सुख भवतु स घे च सुदिशे
संस्कृत छाया
सं ( वत्सरे) 47 ग्री (ष्म-मासे ) ४. दि ( बसे ) ४ महाराजस्य राजा तिराजस्य देवपुत्रस्य हुविष्कस्य विहारे दानं भिक्षो: जीवकस्य उड्डीयानकस्य कुंभका: 20(+) ५. सर्व-सत्व-हित-सुखं भवतु संघ चातुर्दिशे
हिन्दी अनुवाद
संवत्सर ४७ के ग्रीष्म-मास 4 र्थ के 4 वें दिवस । महाराज राजा तिराज देवपुत्र हुविष्क के विहार में उड्डीयान प्रदेश के भिक्षु, जीवक, का 25 घड़े दान चातुर्दिश संघ में सब प्राणियों के लिए हित और सुखकर होवे ।
English Translation of the inscription
In the Year 47, on the 4th day of the 4th month of summer 25, pitchers are the gift to the vihara of the
Maharaja Rajatiraja Devaputra Huvishka, by the monk Jivaka,
a resident of Udyana.
May welfare and happiness of all
beings prevail in the sangha of all quarters.
1. From the facsimile in A.S.I.R Vol III.
2. Cunningham: चतुदिशे
3. Dawson: उदेयनकस्य
4. R.L. Mitra: उडियनकस्य
Reference
http://sasnagar.co.in/aman/ancientindia/wp-content/uploads/2022/01/FILE-VOLUME-I-1.pdf