ऋषि कुशिक : कुशिक वंश के गोत्रकार कौशिक ऋषि निम्न हैं- उंदुबर, कारूपक (कारिषी) गालव, चांद्रव, जाबाल, तारक, तारकायन, तालकायन, देवरात, दैवल, ध्यानज्ञाव्य, पणिन, पार्थिन, बभ्रु, बादर, वाष्कल, मधुच्छंदस, याज्ञवल्क्य, लोहित्य, लोहिण्य, शालकायन, श्यामायन, समर्षण, सांकृत्य, सैंधवायन, सौश्रुत, हिरण्याक्ष हैं कौशिक एक प्राचीन सनातन धर्म वंश है। ऋषि विश्वामित्र, इसी वंश के थे। राजा कौशिक, गाधि के पिता थे। कुशिक विश्वामित्र के दादा थे। ऋचिका च्यवन ऋषि के वंशज थे। जमदग्नि, गाधि के पुत्र थे और उनके पुत्र परशुराम थे। प्रजापति का पुत्र कुश, कुश का पुत्र कुषाणभ और कुषाणभ का पुत्र राजा गाधि था। कहा जाता है कि कुशिक कुल से उत्पन्न कौशिक थे। कौशिक ऋषि कुरुक्षेत्र के रहने वाले थे। च्यवन के वंशज ऋचिक ने कुशिक के पुत्र, गाधि की पुत्री से विवाह किया, जिससे जमदग्नि का जन्म हुआ। उनके पुत्र परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय धर्म में लग गए। च्यवन ऋषि नहीं चाहते थे कि कुशिक वंश को क्षत्रियों के रूप में मान्यता दी जाए और उन्होंने पूरी कोशिश की कि कौशिक के वंशजों को क्षत्रिय गुणों का संचार न हो, लेकिन वे कुशिक वंश को नुकसान पहुंचाने में असफल रहे। च्यवन ने महोदयपुर में राजा कुशिक और उनकी रानी को तरह-तरह से परेशान करना शुरू कर दिया, लेकिन उन्होंने उनका ऐसा आतिथ्य किया कि उन्हें क्रोध करने का अवसर ही नहीं मिला। प्रसन्न होकर च्यवन ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारा पोता ब्राह्मणत्व प्राप्त करेगा, जिसके परिणामस्वरूप विश्वामित्र ‘ब्रह्मर्षि’ बन गए। सूक्त में महर्षि विश्वामित्र का वर्णन मिलता है। कौशिक वंश भौतिकवादी दुनिया के कई रहस्यों को जानता था। विश्वामित्र स्वयं कश्यप वंश के थे, इसलिए कौशिक या कुशिक को भी कश्यप वंश की मान्यता प्राप्त थी। महाभारत एक कौशिक ऋषि का भी उल्लेख मिलता है। पुराणों में, कौशिक नाम का एक प्रसिद्ध ब्राह्मण था, जो सभी वेदों और उपनिषदों का अध्ययन करता था और सनातन धर्म का एक पवित्र भक्त था। ऋषि कौशिक के शिष्य गोपवन तथा शाण्डल्य थे। इनके नाम पर ‘कौशिक गृह्य सूत्र’ ‘कौशिक स्मृति’ और ‘कौशिक पुराण’ हैं।
English Translation Rishi Kushik: The gotrakars of the Kushika dynasty are the Kaushika sages: Undubar, Karupaka (Karishi), Galava, Chandrava, Jabal, Taraka, Tarakayana, Talakayana, Devarata, Daivala, Dhyanajnavya, Panin, Parthin, Babhru, Badar, Vashkala, Madhuchchandasa, Yajnavalkya, Lohitya, Lohinya , Shalakayana, Shyamayana, Samarshan, Sanskrit, Saindhavayana, Saushruta, Hiranyaksha. Kaushik is an ancient sanatna dharma dynasty. Rishi Vishwamitra, belonged to this dynasty. Raja Kaushik was father of Gadhi. Kushik was the grandfather of Vishwamitra. Richika, was a descendant of Rishi Chyavan. Jamadagni was Gadhi’s son and his son was Parshuram. Prajapati’s son was Kush, Kush’s son was Kushanabha and Kushanabha’s son was Raja Gadhi. It is said that Kushiks were Kaushiks born from the clan. Kaushik Rishi was a resident of Kurukshetra. Richik, a descendant of Chyavan, married the daughter of Kushik’s son Gadhi, from whom Jamadagni was born. His son Parshuram, despite being a Brahmin, got involved in Kshatriya religion. Chyawan Rishi, didn’t want that Kushik dynasty, be recognised as Kshatriyas and tried his best that kshatriya attributes are not communicated to Kaushik’s descendants, but he failed to harm the Kushik dynasty. Chyavan started troubling King Kushik and his queen in different ways in Mahodayapur, but they gave him such hospitality that he did not get the opportunity to get angry. Being pleased, Chyavan gave him a boon that your grandson would attain Brahminhood, as a result of which Vishwamitra became a ‘Brahmarshi’. The description of Maharishi Vishwamitra is found in the Sukta. Kaushik clan knew several secrets of the materialistic world. Vishwamitra himself was a Kashyap dynasty, therefore Kaushik or Kushik also were recognised as Kashyap dynasty. There is also a mention of a Rishi Kaushik Muni in the Mahabharata’s Sabhaparva. In the Puranas, there was a famous Brahmin named Kaushik, who studied all Vedas and Upanishads and was a pious devotee of sanatna dharma. The disciples of sage Kaushik were Gopavan and Shandalya. There are ‘Kaushik Grihya Sutra’ ‘Kaushik Smriti’ and ‘Kaushik Purana’ in his name.