ऋषि शाण्डिल्य : ऋषि शाण्डिल्य कश्यप वंशीय गोत्रकार हैं। शतपथ ब्राह्मण में यज्ञ की अग्नि को शाण्डिल कहा गया है। इस ग्रन्थ के 609 काण्ड अग्नि चयन से सम्बन्धित हैं। इन काण्डों के अध येता आचार्यों को पष्टिपथक कहा जाता था। इन काण्डों का प्रमुख आचार्य शाण्डिल्य माना जाता है। इनके प्रमुख शिष्य-कौण्डिन्य, अग्नि वेश्य वातस्य वामकक्षायन और भारद्वाज आदि हैं। छांदोग्य उपनिषद में शाण्डिल्य ऋषि को तत्वज्ञानी कहा गया है। उनके अनुसार सृष्टि के समस्त जीवों की उत्पति, स्थिति एवं लय का अधिष्ठाता केवल ईश्वर है। आत्मा के दो स्वरूप हैं-महत्तम और लघुत्तम । महत्तम आत्मा अनन्त है। वह सारे विश्व को व्याप्त करने वाला है। लघुतम आत्मा अणु स्वरूपी है। मनुष्य जीवन का अन्तिम ध्येय मृत्यु के पश्चात् आत्मा में लय होना है। शाण्डिल्य स्मृति, शाण्डिल्य धर्मसूत्र एवं शाण्डिल्य तत्व दीपिका इनके नाम से प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। शांडिल्य गोत्र को श्रेष्ठ ब्राह्मण कुलों में से एक माना जाता है। श्री परशुराम के भाई ऋषि शांडिल्य वेद और शस्त्र विद्या के ज्ञाता माने जाते हैं। गौड़, तिवारी, त्रिपाठी, राय, शर्मा, मिश्रा, गोस्वामी, वशिष्ठ, विश्वामित्र, व्यास शांडिल्य गोत्र हैं। शांडिल्य ऋषि के बारह पुत्र थे जो बारह गाँवों में बस गए, जिनके नाम हैं पिंडी, सोहगोरा, सनरायन, सृजन, धतूरा, बगराइच, बलुआ, हल्दी, झुडियान, उनवलिया, लोनापार, कटियारी, लोनापार में लोनाखर, कानापार, छपरा भी शामिल हैं। बाद में शादलिया भारत में हर जगह फैल गईं, और उन्हें सरयूपारी ब्राह्मण के रूप में जाना जाता था, और उनके घरानों जैसे राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ और विष्णु घराना, मणि घराना से पहचाने जाते थे। महाभारत में इस ऋषि का उल्लेख है क्योंकि वे युधिष्ठिर की सभा में उपस्थित ऋषियों में थे। शांडिल्य ऋषि त्रेतायुग में राजा दिलीप के राजपुरोहित थे, जबकि द्वापर में वे राजा नंद के पुरोहित थे। छांदोग्य और बृहदारण्यक उपनिषदों में भी शांडिल्य ऋषि का उल्लेख मिलता है। शांडिल्य आचार्य को पंचरात्र की परंपरा में प्रामाणिक पुरुष माना जाता है। शांडिल्योपनिषद नाम का एक प्राचीन शास्त्र है। आचार्य श्री शांडिल्य ऋषि ने भगवान श्री कृष्ण की जन्म कुंडली लिखी थी। शांडिल्य का नाम महाभारत काल के सबसे सम्मानित संतों में भी आता है। एक समय वह राजा त्रिशंकु के पुजारी थे और दूसरे समय में उन्हें महाभारत के नायक भीष्म पितामह के साथ बातचीत करते हुए दिखाया गया है। महर्षि कश्यप के पुत्र महर्षि असित, उनके पुत्र महर्षि देवल जिन्होंने अग्नि से पुत्र को जन्म दिया, अग्नि से उत्पन्न होने के कारण शांडिल्य कहलाए, उनके दो पुत्र श्रीमुख और गर्दभ मुख हुए। हेमाद्री के लक्षणप्रकाश में शांडिल्य को आयुर्वेदाचार्य कहा गया है। ऋषि के नाम पर एक गृह्यसूत्र और एक स्मृति ग्रंथ था। कुछ उपाधियाँ जैसे वशिष्ठ, विश्वामित्र, व्यास आदि, समय बीतने के दौरान शांडिल्य से जुड़ी थीं।
English Translation.
Rishi Shandyal: Rishi Shandyal is a gotrakar of Kashyap dynasty. In the Shatapatha Brahmana, the fire of sacrifice is called Shandila. The 609 Kandas of this book are related to fire. The teachers of these Kandas were called Pashtipathakas. The chief of these Kandas is considered to be Acharya Shandyal. His chief disciples are Kaundinya, Agni Veshya Vatasya Vamakakshayana and Bharadvaja. In the Chandogya Upanishad, the sage Shandyal is called a philosopher. According to him, God alone is the master of the origin, position and rhythm of all living beings in His creation. There are two forms of the souls, the mahattam and laghutm. The mahattam soul is infinite. The laghutm soul is tiny like atom. The ultimate goal of human life is to merge into the soul after death. Shandyal Smriti, Shandyal Dharma Sutra and Shandyal Tattva Deepika are the famous works by his name. Shandilya gotra is considered as one among superior brahmin clans. Rishi Shandilya, brother of Shri Parshuram, is recognised as a teacher of Vedas and weaponry. Gaud, Tiwari, Tripathi, Rai, Sharma, Mishra, Goswami, Vashishtha, Vishwamitra, Vyas are Shandilya gotras. Shandilya Rishi had twelve sons, who settled in twelve villages, namely Pindi, Sohgora, Sanrayan, Srijan, Dhatura, Bagraich, Balua, Haldi, Jhudian, Unvaliya, Lonapar, Katiyari, Lonapar also includes Lonakhar, Kanapar, Chhapra. Later on shadliyas spread everywhere in India, and were known as saryuparin Brahmins, and were recognised from their Gharanas such as Ram Gharana, Krishna Gharana, Nath and Vishnu Gharana, Mani Gharana. There is a mention of this Rishi in Mahabharata as he was among the sages present in Yudhishthira’s assembly. Shandilya Rishi was royal priest of King Dilip in Tretayuga, while in Dwapar he was the priest of King Nanda. There is also a mention of the Rishi Shandilya, in Chandogya and Brihadaranyaka Upanishads. Shandilya Acharya is considered an authentic man in the tradition of Pancharatra. There is an ancient scripture, namely Shandilyopanishad. Acharya Shri Shandilya Rishi, had written the birth chart of Lord Shri Krishna. Shandilya’s name is also mentioned among the most respectable sages of Mahabharata period. At one time he was the priest of King Trishanku and at another time he is shown conversing with Bhishma Pitamah, the hero of the Mahabharata Maharishi Kashyap’s son Maharishi Asit, his son Maharishi Deval, who gave birth to a son from Agni, was called Shandilya because of being born from Agni, he had two sons Shrimukh and Gardabh Mukh. Shandilya has been called Ayurvedacharya in the Lakshnaprakash of Hemadri. There was a Grihyasutra and a Smriti book on the Rishi’s name. Some titles such as Vashishtha, Vishvamitra, Vyas etc, were associated with Shandliyas.