ऋषि शाकल्य : शाकल्य व्यास के वैदिक शिष्यों में प्रमुख थे। पौराणिक साहित्य में इसे वेद मित्र या देव मित्र शाकल्य कहा है। महाभारत में शाकल्य को ब्रह्म ऋषि कहा गया है। यह ऋषि शिव की उपासना करते थे। शिव ने इन्हें वरदान दिया, तुम बड़े ग्रन्थकार बनोगे।” शाकल्य ऋषि ऋग्वेद के शाखा प्रवर्तक आचार्य थे ऋग्संहिता साहित्य के अतिरिक्त इनके दो ग्रन्थ ‘शाकल्य संहिता व शाकल्य मत उपलब्ध हैं। शाकल्य या ऋषि विदग्ध एक प्राचीन ऋषि थे। वे पहले ऋषि थे जिन्होंने ऋग्वेद के पाठ को शुद्ध किया था और वाक्यों की संधियों को तोड़कर छंदों को अलग-अलग याद करने की विधि शुरू की थी। विदेह के राजा जनक ने शाकल्य को राज पंडित नियुक्त किया था। उनके प्रतिद्वंद्वी ऋषि याज्ञवल्क्य थे, जो राजऋषि भी थे। पुराणकारों के अनुसार, देव माने जो दैवीय गुणों से शक्तिशाली हो गया हो। देव शक्तियाँ हमारे मस्तिष्क में निवास करती हैं। उन्हीं की प्रेरणा से मनुष्य कल्याण, दान और धार्मिक कार्यों में लग जाता है। यह जानना आसान नहीं है कि एक व्यक्ति में कितने व्यवहार गुण होते हैं। एक बार राजा जनक ने एक महान यज्ञ किया। यज्ञ के अंत में, उन्होंने घोषणा की कि उनके पास एक हजार कीमती गायें हैं और वह इन गायों को सबसे बड़े धार्मिक दार्शनिक को दान करना चाहते हैं। महाराज की यह घोषणा सुनकर ऋषि याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्यों को गायों को अपने आश्रम में ले जाने का आदेश दिया। हालाँकि अन्य ऋषियों ने याज्ञवल्क्य से पूछा कि वे स्वयं को सबसे बड़ा दार्शनिक क्यों मानते हैं? हालाँकि याज्ञवल्क्य ने कहा, “मैं सिर्फ एक गौ सेवक हूँ” ऐसा कहने पर भी अन्य ऋषियों को यह पसंद नहीं आया कि ऋषि याज्ञवल्क्य सभी गायों को अपने आश्रम में ले जाएं। लेकिन किसी में यह साबित करने की हिम्मत नहीं थी कि वह याज्ञवल्क्य से बड़े दार्शनिक थे। हालांकि वे प्रसिद्ध विद्वान शाकल्य को ऋषि याज्ञवल्क्य से वाद-विवाद करने के लिये , मनाने में सफल रहे शाकल्य ने खड़े होकर ऋषि से कहा- हे याज्ञवल्क्य! आप गायों को इस तरह नहीं ले सकते। मैं आपसे सवाल करूंगा। याज्ञवल्क्य ने शान्त भाव से कहा- हे विद्वान् शाकल्य! जैसे अधजली लकड़ी आग से निकालने पर बुझ जाती है, वैसे ही ये मुनि तुम्हें भड़का रहे हैं। लेकिन विद्वान शाकल्य नहीं रुके। वह ऋषि याज्ञवल्क्य से जटिल प्रश्न पूछने लगे। वह जानना चाहते थे , “देवताओं के रूप में उनके कितने गुण हैं” तब याज्ञवल्क्य ने पहले 33 सौ देवता, दूसरी बार 33, तीसरी बार तीन, चौथी बार दो, पांचवीं बार डेढ़ और अंत में केवल एक प्राण को देवता कहा। तब शाकल्य ने पूछा- हे याज्ञवल्क्य! बताओ कौन हैं 33 सौ देवता। तब याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, – हे विद्वान् शाकल्य! ईश्वरीय ज्ञान रूपी दैवीय शक्तियाँ अत्यंत सूक्ष्म हैं और सभी को ज्ञात नहीं हैं। वास्तव में, केवल 33 ज्ञात दैवीय लक्षण हैं। इन सभी दिव्य लक्षणों का स्रोत केवल एक महान ईश्वर है, जिसे “प्राण” कहा जाता है। जिस प्रकार भौतिक प्राण समस्त प्राणियों के शरीरों का पालन-पोषण करने वाला तथा चलाने वाला है, उसी प्रकार ज्ञानशक्ति रूपी समस्त देवताओं के कारण होने वाले प्रभु को वेदों में प्राण कहा गया है। याज्ञवल्क्य के दर्शन से समस्त ऋषि-मण्डल चकित रह गया। विद्वान शाकल्य का अभिमान टूट गया। याज्ञवल्क्य शांत स्वर में बोले- शाकल्य! कौतूहलवश तुमने बड़े गहरे प्रश्न पूछे हैं, जाओ, आने वाली तिथि में तुम प्राण त्याग दोगे। कोई तुम्हारी अस्थियां भी तुम्हारे घर नहीं ला पाएगा और सारे ऋषि-मुनियों ने देखा कि विद्वान शाकल्य पराजय की असह्य पीड़ा सहन नहीं कर सका और अगले दिन उसकी मृत्यु हो गई। शाकल्य के शिष्य उनकी अस्थियाँ ले जा रहे थे, अतः चोरों ने उन्हें धन समझकर चुरा लिया। ऋषि को आकाश से एक आवाज सुनाई दी। “जो अचानक मन में आ जाये उसे कभी भी जिज्ञासा से नहीं पूछना चाहिए”
English Translation. Rishi Shakalya Shakalya was the chief among the Vedic disciples of Vyasa. In mythological literature he was called Veda Mitra or Dev Mitra Shaklya. In the Mahabharata, Shaklya is called Brahma Rishi. This sage worshiped Shiva. Shiva gave him the boon, that he will become a great granthakar.” Rishi Shaklya was the initiator of the branch of the Rig Veda. Apart from the Rig Samhita literature, two of his works, Shakya Samhita and Shakya Mat, are available. Shakalya or Rishi Vidagdha was an ancient sage. He was the first sage who had corrected the text of Rigveda and started the method of memorizing the verses separately by breaking the treaties of the sentences. King Janaka of Videha had appointed Shakalya as Raj Pandit. His rival was Rishi Yajnavalkya, who was also Rajarishi. According to mythology, Dev means one who has become powerful with divine traits. The dev powers reside in our brains. It is by his inspiration that man gets into welfare, charity and religious activities. It is not easy to know how many behavioral traits, one possess. Once the king Janak performed a great yagya. At the end of the Yagya, he announced that he has one thousand precious cows and he wants to donate these cows to the greatest religious philosopher. Hearing this announcement of Maharaj, Rishi Yajnavalkya ordered his disciples to drive the cows to his ashram. However other sages asked Yajnavalkya that why he considered himself to be the biggest philosopher? However Yajnavalkya said, “I am just a cow servant” Even after saying this, the sages did not like that the sage Yajnavalkya should take all the cows to his hermitage. But no one had the guts to prove that he was a greater philosopher than Yajnavalkya. However they were able to convince the famous scholar Shakalya to debate with Rishi Yajnavalkya. Shakalya stood up and said – O Yajnavalkya! You cannot take cows like this. I will question you. Yajnavalkya said in a calm manner – O learned Shakalya! Just like half-burnt wood gets extinguished when taken out of the fire, in the same way these sages are provoking you. But the learned Shakalya did not stop. He started asking complicated questions from the sage Yajnavalkya. He wanted to know, “how many traits are their in the form of gods” Then Yajnavalkya first told 33 hundred gods, the second time 33, the third time three, the fourth time two, the fifth time one and a half and finally only one Prana was called a god. Then Shakalya asked – O Yajnavalkya ! Tell me who are the 33 hundred gods. Then Yajnavalkya replied, – O learned Shakalya! Divine powers in the form of divine knowledge are very subtle and not known to all. In fact, there are only 33 known divine traits. The source of all these divine traits is only one great God, which is called “Prana” Just as the physical Prana is the supporter and driver of the bodies of all living beings, so is the Lord who is the cause of all the gods in the form of power of knowledge, He is called Prana in the Vedas. The entire Rishi-Mandal was amazed at Yajnavalkya’s philosophy. Vijigishabhaav of the learned Shakalya was broken. Yajnavalkya spoke in a calm voice – Shakalya! Out of curiosity, you have asked very deep questions, go, you will leave your life in the coming date. No one will be able to even bring your bones to your house and the entire sages saw that the scholar Shakalya could not bear the unbearable pain of defeat and the next day he died. Shakalya’s disciples were carrying his bones, so thieves mistaking them for wealth stole them too. The sage also heard a voice from sky.
“What comes out of one’s mouth suddenly, should never be asked with curiosity”