अयोध्या के प्रमुख राजा राजा वृहद्वल यह कौशल देश के सम्राट विश्रुतवत का पुत्र था । युधिष्ठर के द्वारा किए राजसूय यज्ञ के समय भीम द्वारा किए पूर्व दिग्विजय में उसने इसे हरा दिया था। राजसूय यज्ञ में इसने 14 हजार उत्तम अश्व भेंट किए थे। महाभारत युद्ध में यह कौरव पक्ष में था । दुर्योधन ने इसकी उपमा समुच्चाल ( ज्वार) से की थी। बृहद्वाल को भीष्म पितामह के साथ सारथी के रूप में चुना गया था। अभिमन्यु के साथ हुए घोर युद्ध में यह उसी के द्वारा मारा गया । चक्रव्यूह में घिरे अभिमन्यु को कौरवों ने धोखे से मार डाला ! उस समय कौरव सेना प्रमुख जयद्रथ, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, दुर्योधन, कर्ण, दुशासन, अश्वत्थामा जैसे सात महान रथियों के अलावा दुर्योधन, दुशासन और शल्य के पुत्र, कर्ण के भाई सहित कई अन्य योद्धा थे! जिनमें से अधिकांश अभिमन्यु द्वारा मारे गए थे। उन कौरव-पक्ष के योद्धाओं में से एक था बृहद्वल या बृहद्बल हालाँकि वह इक्ष्वाकु वंश के राजा विश्रुतवंत के पुत्र थे, और भगवान राम के वंशज और अयोध्या के राजा थे, लेकिन वे अधर्मी पक्ष में थे? जबकि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के साथ थे। एक बार राजसूय यज्ञ में भीम ने उन्हें हरा दिया था! इस हार का गुस्सा महाभारत में पांडवों के खिलाफ जाने का एक कारण हो सकता है। वे एक आदर्श शासक और विष्णुवतार श्री राम के वंशज, धर्म के रक्षक, न्यायप्रिय, प्रजा के रक्षक थे, इसके बावजूद उन्होंने न केवल कौरवों का समर्थन किया, बल्कि सबसे निंदनीय अभिमन्यु हत्याकांड में भागीदार भी बनना पड़ा । वृहदबल के बाद कौशल राज्य के निम्न राजा हुए-वत्सवृद्ध, प्रतिव्योमन, भानु, दिवाकर, दिवाकर के समय मत्स्य पुराण की रचना हुई, सहदेव, भानुमत, प्रतीकाश्व, सुप्रतीक, अथवा सुप्रतीत, मरूदेव, सुनक्षत्र, पुष्कर, अन्तरिक्ष, सुतपस, सुपर्ण, सुवर्ण आदि नामों में भिन्नता है, अमित्रजित या सुमित्र, बृहृदराज बहिं कृतंजय, रणंजय, संजय ।