ancient indian history

Raja Parsenjit

प्रसेनजित तृतीय

कई विद्वान प्रसेनजित को अयोध्या (कौशल प्रदेश) के इक्ष्वाकुं वंश का अन्तिम राजा मानते हैं। कईयों के अनुसार क्षेमक अयोध्या का अन्तिम राजा था। वह मगध के राजा
महापद्म नन्द का समकालीन था । प्रसेनजित दानवीर राजा था। उसने दो गांव ब्राह्मणों को दान दिए थे। उस समय कौशल प्रदेश में मुख्य नगर थे- अयोध्या, साकेत और श्रावस्ती । प्रसेनजित ने श्रावस्ती को अपनी राजधानी बनाया था। अन्तिम समय में प्रसेनजित महात्मा बुद्ध का प्रशंसक बन गया था। सम्भवतः उसने बौद्ध मत अपना लिया हो।
बौद्ध मत उस समय  (ईसा से लगभग 600 ई० पूर्व) गौतम बुद्ध द्वारा बौद्धमत की स्थापना हुई थी । वे भी   इक्ष्वाकु वंश के थे। महात्मा गौतम के पिता का नाम शुद्धोधन था | वह श्रावस्ती से साठ मील दूर, उत्तर में रोहिणी नदी के पश्चिमी तट पर स्थित शाक्यों के संघ राज्य का प्रमुख था । शाक्यों की राजधानी पाटलिपुत्र थी। यहीं गौतम का जन्म हुआ था। प्राचीन शाक्य जन पद कौशल देश का एक भाग था। वैष्णव धर्म के अनुयायी भारतीयों ने महात्मा बुद्ध को विष्णु का अवतार माना ।  प्रसेनजित ने लिच्छवि गणराज्य के शासक शिवराज गोमास्ता की पुत्री चेल्लना के साथ विवाह किया। दूसरा प्रमुख वैवाहिक सम्बन्ध कौशल राजा प्रसेनजीत की बहन महाकौशला के साथ किया।
प्रसेनजित तृतीय की मृत्यु राजगृह के द्वार के बाहर हो गई थी।  गौतम बुद्ध के जीवन काल में बौद्धमत में कट्टरता नहीं आई थी। पुराणों के अनुसार महात्मा बुद्ध कई बार ब्राह्मणों से परामर्श लेते थे। हिन्दु परिवारों के सदस्य अपनी इच्छानुसार विभिन्न मतों को मानते थे। यदि पुरूष वैदिक धर्म को मानते थे तो स्त्रियाँ बौद्ध मत को। शायद इसका कारण बौद्धमत में अहिंसा को परम धर्म माना जाना था।

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