ancient indian history

Raja Porus

राजा पोरुस
सिकन्दर से लगभग दो सौ वर्ष पहले अर्थात् 530 ई0 पूर्व पार्शियनस और यूनानियों ने भारत के सुन्दर नगरों और खुशहाल गांवों को देखकर भारत पर आक्रमण किए थे। पर्शियन सम्राट सयरूस ने कांधार तक का क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिया था जो बाद में मुक्त करवाया गया। जेहलम और चुनाव के बीच के क्षेत्र पर राजा पोरूस का अधिकार था। तक्षशिला का राजा अम्बी था। मकदूनिया के जनरल फिलिप के पुत्र सिकन्दर ने मई, 326 ई0 पूर्व भारत की पश्चिमी सीमा पर आक्रमण कर दिया। अम्बी और कुछ अन्य हिन्दू राजा सिकन्दर के साथ मिल गए। पोरूस यह सुनकर बड़ा दुःखी हुआ। उसने अपनी परम्परा और संस्कृति की रक्षा हेतु सिकन्दर के साथ युद्ध की ठाना। उसके साथ पंजाब के कुछ कबीले भी मिल गए। वे भी सिकन्दर को अपना शत्रु समझते थे। सिकन्दर ने पोरुस को मिलने के लिए बुलाया। पोरूस ने निडर होकर कहा कि वह उसे युद्ध क्षेत्र में ही मिलेगा। भंयकर युद्ध हुआ। पोरुस के तीन पुत्रों सहित अनेक हिन्दू, शहीद हुए। पोरूस के शरीर पर कई घाव लगे तथापि उसने साहस नहीं छोड़ा। तभी एक व्यक्ति सिकन्दर का सन्देश लेकर उसके पास आया। पोरूस ने उसे पहचान लिया और जाति व राष्ट्रद्रोही अम्बी की ओर भाला फेंका।
जेहलम और चुनाव के बीच के क्षेत्र पर पोरूस का अधिकार रहा। जुलाई, 326 ई0 पूर्व सिकन्दर की सेना ने विद्रोह कर दिया। वह आगे बढ़ना नहीं चाहती थी। नवम्बर, 326 ई0 पूर्व सिकन्दर लौंट पड़ा। वापसी पर मलोई या मालवा के नेतृत्व में कई कबीलों ने उसका विरोध किया। उनमें ब्राह्मण और शिवि कबीलों के साथ सिकन्दर का युद्ध हुआ। वे कबीले हार को देखते सामूहिक चिताओं में बच्चों-स्त्रियों सहित जल गए। सिकन्दर घायल हो गया। उसके सैनिकों ने हिन्दुओं का संहार शुरू कर दिया। बच्चों और महिलाओं को भी उन्होंने नहीं छोड़ा। 325 ई० पूर्व सिकन्दर वापिस लौट रहा था कि स्थान-2 पर उसका विरोध हुआ। सितम्बर 325 ई० पूर्व वह अपने देश पहुंचा। 323 ई0 पूर्व • बेबीलोन में उसका देहान्त हो गया।
सिकन्दर द्वारा भारत पर आक्रमण को साहसिक कार्य तो कहा जा सकता है, परन्तु उस की न तो सैनिक सफलता कही जा सकती और न ही राजनैतिक सफलता। उसने जो भी क्षेत्र जीता, उस पर उसका अधिकार नहीं हुआ। यद्यपि कुछ राजाओं की अनैतिकता और बेईमानी से उसे कुछ प्राप्त हो भी जाता, परन्तु पोरूस और उसके साथ पंजाब के कुछ कबीलों ने सांझे शत्रु से पूरी शक्ति के साथ युद्ध किया और उसके दांत खट्टे कर दिए। उसकी सेना में विद्रोह कर दिया। आधी सेना स्थल मार्ग से लौटी और आधी जल मार्ग से वह घायलावस्था में स्वदेश लौटा। यूनानी इतिहासकारों ने सिकन्दर का प्रशस्तिगान करना ही था, परन्तु हमारे स्कूलों में आज भी बच्चों को पढ़ाया जाता है कि सिकन्दर महान विश्व विजेता था। स्वतन्त्रता के 53 वर्ष पश्चात् भी हम अपने बच्चों को वास्तविक इतिहास की जानकारी नहीं दे रहे।
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