ancient indian history

Adhunik Sahitya

राम कथा पर आधुनिक साहित्य
प्रथम स्वतन्त्रता युद्ध (सन 1857) के विद्रोह के पश्चात रानी विक्टोरिया ने भारत का शासन ईस्ट इंडिया कम्पनी से ले लिया था। भारत वासियों को कुछ सुविधाएं भी दी गई। फिर भी समाज की दुर्दशा व संस्कृति-सभ्यता के लोप पर लोग दुखी थे। 
राम कृष्ण परम हंस (1834-86) और उन के शिष्य स्वामी विवेकानन्द (1863-1902) ने भारतीय धर्म-सिद्धान्तों को व्यापक रूप प्रदान किया। स्वामी विवेकानन्द के उपदेशों ने देश विदेशों में तहलका मचा दिया। उन्होनें हिन्दु धर्म संस्कृति से लोगों को अवगत कराया। तत्कालीन भारतीय साहित्य पर भी उनके उपदेशों का विशेष प्रभाव पड़ा। देश को स्वतन्त्र कराने की आकांक्षा को तीव्र करने तथा पराधीनता के प्रति देश वासियों के मनों में क्षोम उत्पन्न करने के लिए भी साहित्य रचा गया। भारतेन्दु हरीशचन्द्र, बालमुकन्द गुप्त, राधाकृष्ण दास आदि ने श्री राम व श्री कृष्ण आदि अवतारी महापुरूषों को स्मरण किया। भारतेन्दु एक साथ प्रभु भक्त, राजभक्त व देश भक्त थे। भक्ति काव्य के अन्तगर्त उन्होनें श्री राम व श्री कृष्ण की लीला का गान किया। उन की राम सम्बन्धी कविता “दशरथ विलाप” है। जिस भारत भू पर राम, कृष्ण जैसी विभूतियों ने जन्म लिया वहां मूढ़ता कलह, अविद्या का साम्राज्य देख कर भारतेन्दु का कवि हृदय दुखी हो उठता था। जहाँ राम युधिष्ठर वासुदेव संर्याती,
तहां रही मूढ़ता कलह अविद्या राती ।।
बालमुकन्द गुप्त के काव्य में भी कहीं कहीं भक्त कवियों के समान विनय और आत्म समर्पण की भावना है।
जयति जयति जय राम चन्द्र रघुवंश विभूषण भक्तन हित अवतार धरन नाशन भव दूषण | जयति भानुकुल-भानु कोटि ब्रह्मण्ड प्रकाशन । जयति जयति अज्ञान मोह निशि जगत कल्माणमय । जय कर धनु शर तुनीर कटि, सिय सहित श्री राम जय ।। राधा कृष्ण दास रचित ‘राम जानकी’ काव्य उपलब्ध है।
बीसवीं शती के आरम्भ में महावीर प्रसाद द्विवेदी के सतत प्रयत्नों से खड़ी बोली साहित्यिक भाषा के रूप में अपनाई जाने लगी। इस युग के राम काव्यों का परिचय संक्षेप में इस प्रकार है ।
‘राम चन्द्रिका’ व ‘राम चरित चिन्ता मणि’ दो रचनाएं राम चरित उपाध्याय द्वारा रचित है। राम चन्द्रिका का रचना काल 1906 ई० और राम चरित चिन्तामणि का रचना काल 1920 ई० है। इसमें सम्पूर्ण राम कथादी गई है।
” वैदेही बनवास के लेखक अयोध्या सिंह उपाध्याय हैं। इस का रचना काल 1939 ई० है। कवि के अनुसार श्री राम मर्यादा पुरुषोतम और आदर्श महाराजा हैं। जानकी सती शिरोमणि आदर्श आर्य बाला है।
‘पंचवटी” और ‘साकेत’ रामायण सम्बन्धी दो रचनाएं मैथिली शरण गुप्त की हैं। पंचवटी का रचना काल 1925 ई० है। इस का कथानक शूर्पनखा प्रसंग है। साकेत का रचना काल 1931 ई० है । इसमें 12 सर्ग हैं। इस रचना का उद्देश्य राम कथा के उपेक्षित पात्रों उर्मिला और कैकेथी का उद्धार करना है।

गुप्त जी राम के अनन्य उपासक हैं। उन की मान्यता है कि राम निर्गुण ब्रह्म के अवतार थे। और इस धरती को स्वर्ग बनाने आए थे। हो गया निर्गण सगुण साकार है। ले लिया अखिलेश ने अवतार है ।। संदेश यहां मैं नही स्वर्ग का लाया। इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया ।। ‘साकेत-संत’ और ‘राम-राज्य’ बलदेव प्रसाद मिश्र द्वारा रचित हैं। साकेत संत का रचना काल 1946 ई० है। इस में लेखक ने भरत, मांडवी व कैकयी को विशेष महत्व दिया है। राम राज्य के 12 सर्ग हैं।
‘उर्मिला’ बाल कृष्ण शर्मा नवीन द्वारा रचित काव्य है। इसमें 6 सर्ग हैं। इस में लक्षमण व उर्मिला का चरित्र स्वाभाविक तथा सुन्दर है। मार्मिक प्रसंगों का वर्णन उत्कृष्ट है।
‘राम की शक्ति पूजा’ सूर्य कान्त त्रिपाठी द्वारा रचित है। इस का प्रेरणा स्रोत देवी भागवत है। रावण पर विजय पाने के लिए श्री राम शक्ति का आवाहन करते हैं। यह रचना जीवन में पलायन का उपदेश नहीं देती। बल्कि जीवन संघर्ष की कठोरता पर प्रकाश डालती है।
रावण के रचयिता हरदयालु सिहं है। यह 17 सर्गों का काव्य है। इस में रावण का चरित्र शलीनता पूर्ण दिखाया गया है। वह सीता के साथ शिष्ट व्यवहार करता है।
‘कैकेयी का लेखक केदार नाथ मिश्र है। इस का रचनाकाल 1951 ई० है। के वन जाते समय पुत्र वियोग से संतप्त राजा दशरथ का दुख असहनीय है।
‘ताड़का वध’ के लेखक गिरिराज दत्त शुक्ल हैं। इस रचना में दशरथ की पुत्री शान्ता का भी उल्लेख है। अयोध्या में पडे अकाल के कारण शान्ता को ऋषि श्रृंगी के पास भेजने से कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी के अतिरिक्त सभी पुरवासी भी दुखी दिखाए गए हैं।
‘तुमुल’ और ‘जय हनुमान’ श्याम नारायण द्वारा रचित है। तुमुल में लक्ष्मण और हनुमान का युद्ध वर्णन है।
स्वामी सत्यानन्दजी महारज बीसवीं सदी के आरम्भ में स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ( श्री राम शरणम् के संस्थापक) ने रामायण सार सरल हिन्दी में दोहा चौपाई में लिखी। जिस का पाठ इस संस्था के अनुयायी प्रतिदिन करते हैं ।
स्वामी सत्यानन्द जी का जन्म रावल पिण्डी (पाक) के एक ग्राम मं मोहयाल ब्राह्मण के घर चैत्र पूर्णिमा, सन 1861 ई० में हुआ। 17 वर्ष की आयु में उन्होने जैन धर्म को अपना लिया और 30 वर्ष की अवस्था में आर्य समाज के साथ जुड़कर सन्यास ग्रहण कर लिया। इस अवधि में उन्होने “ओंकार-उपासना” और “श्री दयानन्द प्रकाश” ग्रन्थों की रचना की। सन् 1925 ई० में जब वे डलहौजी के पास एकान्त स्थान पर साधना रत थे, आकाशवाणी हुई, “राम भज, राम भज” तभी से वे राम भक्ति के प्रसार प्रचार में लग गए। उन्होंने वाल्मीकि -रामायण सार, भक्ति प्रकाश स्थित प्रज्ञ श्रीमद् भागवत गीता, एकादश उपनिषद आदि ग्रन्थों की रचना की। उन का कथन है :राम सत्य स्वरूप है, राम ज्ञान स्वरूप है।
राम आनन्द स्वरूप है, और राम प्रेम स्वरूप है ।। स्वामी सत्यानन्द जी नव० 1960 ई० में श्री राम के परम-धाम में सिध् र गए। देहान्त से 40 दिन पूर्व उन्होने पानीपत (हरियाणा) में प्रथम राम शरण आश्रम व सत्संग भवन का उद्घाटन किया। अब इस संस्था के कई नगरों में आश्रम व सतसंग चल रहे ।
‘परशुराम की प्रतीक्षा के लेखक राम धारी सिहं दिनकर हैं। यह वीर काव्य है। इस में राष्ट्रीय चेतना का स्वर दिखाई देता है। इस काव्य की रचना भारत पर चीन और पाकिस्तान आक्रमण की पृष्ठभूमि पर हुई है।
“राम काव्य” पुस्तिका का अन्त तुलसी दास के निम्न कथन से करती हूँ।
जग मंगल गुन ग्राम राम के। दानि मुकति धन धरम धाम ।। मन्त्र महा मनि विषय व्याल के मेटत कठिन कुअंक भाल के ।। हरन मोह तम दिनकर कर से सेवक सालि पाल जलघर से ।। अर्थ : श्री राम के गुण समूह जगत का कल्याण करने वाले । मुक्ति कान, धर्म और परम धाम के देने वाले हैं। ये विष रुपी सांप का जहर उतारने के लिए मन्त्र और महामणि है। ये ललाट पर लिखे हुए कठिनता से मिटने वाले बुरे लेखों को मिटा देने वाले है। अज्ञान रूपी अन्धकार के हरण करने के लिए सूर्य किरणों के समान और सेवक रूपी धन-धान्य के पालन करने में बादल के समान हैं।
सहायक ग्रन्थ प्राचीन साहित्य :
वेद, उपनिषद शतपथ ब्रह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, वाल्मीकि रामायण, महाभारत, पुराण साहित्य |
आधुनिक साहित्य
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी – हिन्दी साहित्य का इतिहास आर० सी० हाजरा
ईश्वरी प्रसाद कामिल बुल्के
गणपति चन्द्र गुप्त गुरचरण सिंह, एस. एस गांधी गुरदास वाणी
गुरचरण सिंह व एस. एस. गुरदास वाणी गुरु गोबिंद सिंह की वाणी गोसाई गुरवाणी गोपाल सिह डा० चन्द्र कान्त बाली
– इंडियन कल्चर, पौराणिक रिकार्डस -हिस्ट्री आफ इण्डिया -राम कथा उत्पति और विकास – हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास -हिस्ट्री आफ द पंजाब
– टीकाकार ज्ञानी विशन सिंह । गांधी -हिस्ट्री आफ द पंजाब | – टीकाकार ज्ञानी बिशन सिंह -भाषा विभाग पंजाब, पटियाला – डा० विजेन्द्र स्नातक, दिल्ली – पंजाबी साहित्य दा इतिहास – पंजाब प्रान्तीय हिन्दी साहित्य का इतिहास – भगवन-नारायण बचन सुधा -हिस्ट्री आफ दा पंजाब हिस्ट्री आफ दा सिक्खस भाग)- भाषा विभाग, पंजाब, पटियाला – टीकाकार ज्ञानी बिशन सिंह भारत का वृहत इतिहास – पंजाबी राम काव्य
– टीकाकार बलजीत तुलसी – हिन्दी साहित्य का इतिहास चरण दास शास्त्री
जी० एस० छाबडा० जे० डी० कनिधम तवारीख गुरू खालसा (दोनों श्री दशम ग्रन्थ साहिब पं० भगवत दत्त रविन्द्र सिंह ( डा० ) रामावतार
राम चन्द्र शुक्ल

18 वीं शताब्दी के गुरूमुखी लिपि में राम काव्य निम्न लिखित
रचना
1. राम चरित लेखक कृष्ण लाल
2. रामायण पुराण लेखक साहिब राय
3. अध्यात्म रामायण अनुवादक गुलाब सिंह
4. लव-कुश कथा लेखक साहिब दास

 

19वीं शताब्दी में गुरूमुखी लिपि में रचित राम-काव्य निम्न है ।

1. रघुवर पद रत्नावली लेखक अज्ञात
2. रघुबर लीला लेखक अज्ञात
3. राम रहस्य लेखक रत्नहरि
4. विनय बाहरी लेखक रत्नहरि
5. राम चन्द्रोदय लेखक निहाल
6 राम गीता अनुवादक गोविन्द दास
7. सार रामायण लेखक राम दास
8. रामाश्वबोध अनुवादक ज्ञानी सन्त सिंह
9. रामायण लेखक चन्द्र कवि
10. वाल्मीकि रामायण लेखक भाई सन्तोष सिहं छिब्बर
11. वाल्मीकि रामायण लेखक हरि राम कवि
12. राम कथा लेखक बग्गा सिंह
13. आत्म कथा लेखक हरि सिंह
14. विनय पत्रिका लेखक गोपाल सिंह
15. राम हृदय स्तोत्र लेखक गाविन्द दास
16. सुधा सिंधु रामायण लेखक वीर सिंह बल्ल
17. महा रामायण (योग वसिष्ठ आधृत) लेखक सोहन सिंह बेदी
18. अनूप रामायण लेखक कीरत सिंह
19. कीरत रामायण लेखक कीरत सिंह
( राम चरित मानस का संक्षिप्त)
20. सतसैया रामायण लेखक कीरत सिंह
बीसवीं शताब्दी में गुरूमुखी लिपि में हिन्दी राम काव्य की कुछ रचनाएं निम्न है।
1. रामायण पाप खंडिनी लेखक चन्द्र हरि
2. रामायण भाखा लेखक श्री निवास उदासी
3. लघु रामायण लेखक राम सिंह
4. पंजाबी रामायण लेखक राम लुभाया दिलशाद

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