ancient indian history

Ayodhya

अयोध्या का इतिहास
अयोध्या कौशल जनपद की राजधानी रही है। अयोध्या का अर्थ है, जिसे कोई जीत न सके। प्राचीन काल में यह नगर 200 कि.मी. लम्बा और 75 कि.मी. चौड़ा था। यहां विशाल भवन थें। चारों ओर 9 बड़े फाटक थें । इसे वैवस्वत मनु ने इक्ष्वाकु को सौंपा था। इस की भव्यता के कारण ही लोग कहते थे, “मनु ने बैकुण्ठ से लाकर इसे पृथ्वी पर स्थापित किया है।” इक्ष्वाकु अयोध्या का प्रथम राजा था। महाभारत काल तक इक्ष्वाकु वंश के लगभग 148 राजा हुए है। मनु ने राज्य सौंपते हुए इक्ष्वाकु को कहा, “भूतल पर राजवंशो की स्थापना करना, दुष्टों का दमन करना और प्रजा की रक्षा करना। बिना अपराध किसी को दण्ड न देना, परन्तु अपराधी लोगों को विधि पूर्वक दिया हुआ दण्ड राजा को स्वर्ग लोक पहुंचाता है।”
स्पष्ट है, आज से हजारों वर्ष पूर्व भी भारत के लोग सभ्य थे, जब विश्व के अन्य देश व उन के वासी असभ्य व जंगली थें। भारत से सभ्यता युनान गई और वहां से रोम और योरुप में। परन्तु आज स्थिति उल्टी है। अयोध्या कई बार बसी और कई बार उजड़ी। श्री राम चन्द्र ने अपने पुत्र कुश को स्वयं कुशस्थली (अब कुटठाल, गोंवा) का राज्य सौंपा था। इस अवधि में अयोध्या की भव्यता नष्ट हो गई ।
एक रात्रि को राजा कुश ने स्वप्न में एक उदास स्त्री देखी, और उस की उदासी का कारण पूछा। स्त्री ने कुश से कहा, “राजन, सभी अयोध्या वासी बैकुण्ड वास कर गए हैं। मुझे अयोध्या की अनाथ अधिष्ठात्री देवी समझो। तुम्हारे जैसे शक्तिशाली राजा होने पर भी मैं अनाथ हो गई हूँ। स्वामी श्री राम चन्द्र जी के बिना अयोध्या उजड़ गई है। जहां पहले रमणियां स्नान करती थी, वहां भैसें, पशु आदि नहाते हैं। जिन सीढ़ियों पर स्त्रियां महावर लगे पैर रखती थी, वहां हिरणों को मारने वाले शिकारी रक्त से सने पैर रखते है। देवी ने कहा, “तुम कुशावती को छोड़ कर कुल राजधानी अयोध्या पहुंचो।” राजा कुश के कहने पर, “ऐसा ही होगा” देवी प्रसन्न होकर ओझल हो गई प्रातः उठते ही कुश ने अपना स्वप्न विद्वानों को सुनाया। उन्होंने कुश को कुल राजधानी अयोध्या का स्वामी मानकर उसका अभिनंदन किया। कुश ने कुशावती सेनापतियों को सौंपी और सेना लेकर अयोध्या की ओर प्रस्थान किया । विंध्य पर्वत के बीच में से मार्ग बनाती हुई सेना कई दिनों बाद सरयु नदी के तट पर पहुंच गई। कुश ने रघुवंशियों द्वारा बनाए गए बड़े-2 यज्ञ स्तम्भ देखें, जहां राजा-महाराजा यज्ञ करते थें । कुश ने उजड़ी हुई अयोध्या को पुनः प्राचीन वैभव से सम्पन्न कर दिया।
महात्मा गौतम बुद्ध के समय भी कुछ समय यह नगर उपेक्षित रहा। गौतम बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन ने अपनी राजधानी श्रावस्ती बना ली थी वहीं पर सिद्धार्थ या गौतम का जन्म हुआ। प्रौढ़ होने पर उन्हो ने अपनी तपस्थली अयोध्या बनाई ।
शुंग वंशीय पुष्य मित्र व उसके वंशज राजाओं ने अयोध्या की प्राचीन भव्यता को पुनः स्थापित किया और कई धार्मिक स्थलों का • जीर्ण-उद्धार किया। विक्रमादित्य ने अयोध्या के लगभग 260 उजड़े हुए धार्मिक स्थलों पर मंदिर बनाऐं गुप्त राजाओं – समुद्र गुप्त आदि के समय अयोध्या व अन्य तीर्थ स्थानो पर सुन्दर मन्दिरों का निर्माण हुआ।
विक्रमादित्य ने अयोध्या को एक दुर्ग का रूप देकर उसका नाम राम कोट रखा। राज महल के मुख्य द्वार पर हनुमान जी का निवास स्थान बनाया। चारों दिशाओं में सुग्रीव, अंगद, नल-नील, विभीषण, सुषेण आदि के मन्दिर थें ।
मुस्लिम आक्रमणकारियों के समय अयोध्या में तीन प्रमुख मन्दिर थें । श्री राम जन्मभूमि, स्वर्ग द्वार और त्रेता नाथ मन्दिर |
दर्शनीय स्थल
अयोध्या धाम के दर्शनीय स्थलों का उल्लेख करने से पूर्व श्री राम जन्मभूमि के इतिहास का उल्लेख करना आवश्यक है : श्री राम जन्मभूमि पर सम्राट विक्रमादित्य व समुद्रगुप्त ने भव्य मन्दिर बनाए थे जिनका समय – 2 पर जीर्ण-उद्धार भारत के विभिन्न राजाओं द्वारा होता रहा। 8वीं शताब्दी में मुसलमान आक्रमण कारियों द्वारा हमारे धार्मिक स्थल नष्ट करने का सिलसिला शुरू हो गया । उन्होनें अयोध्या का नामोनिशान मिटाने की पूरी कोशिश की। इस के साथ ही फैजाबाद बसा दिया गया। कई नवाबों ने इसे अपनी राजधानी बना लिया । अयोध्या के कई स्थानों के नाम बदल कर मुस्लिम नाम रख दिए गए। परन्तु इस में वे पूरी तरह सफल नहीं हुए। नए नाम कागजों में ही रहें, लोगों में पुराने नाम ही प्रचलित रहे । राम जन्मभूमि पर सबसे भीष्ण आक्रमण बाबर का था। जिसने जन्मभूमि मन्दिर को नष्ट करके उसी मलबे से मस्जिद बना दी। तब से लेकर अब तक हिन्दुओं द्वारा जन्मभूमि को मुक्त करने के लिए 77 बार हमले किए गए । बाबर के जीवन काल में ही चार हमले किए गए। प्रथम हमला मिट्टी के राजा महताब सिंह के नेतृत्व में हुआ। यह युद्व 70 दिन तक चला। एक लाख 74 हजार हिंदु शहीद हुए। हिन्दुओं के बलिदान के पश्चात् मीर बाकी तोप से मन्दिर गिरा सका। दूसरा आक्रमण अयोध्या के आस-पास के क्षत्रियों ने किया, जिन का नेता देवी दीन पाण्डेय था । 6-7 दिन भयंकर युद्ध हुआ। पं. देवी दीन बुरी तरह घायल हो गया था, परन्तुं जब तक उस के शरीर में प्राण थे, उसकी तलवार शत्रुओं के शीश काटती रही ‘तुजके बावरी के अनुसार सबसे खतरनाक युद्ध देवी दीन पांडेय के नेतृत्व में हुआ था । तत्पश्चात् महाराजा रणविजय सिंह ने मीर वाकी से लोहा लिया। 15 दिन युद्ध हुआ। उनके बलिदान के बाद महारानी जय राज कुवंरि ने धर्म-युद्ध का बीड़ा उठाया । उसने 3 हजार महिलाओं की सेना लेकर गुरिल्ला युद्ध शुरु किया। यह युद्ध हमायुं तक चलता रहा। महारानी व उनका गुरू स्वामी महेश्वरानंद दोनों शहीद हो गए। उपरोक्त बलदानियों के बाद स्वामी बलराम आचार्य जी ने श्री राम जन्म स्थान प्राप्त करने का प्रण लिया । उन्होनें लोगों को इक्ट्ठा करके लगभग 20 हमले किए लगातार युद्धों के कारण आचार्य जी का स्वास्थ्य गिर गया और त्रिवेणी के तट पर उनका देहांत हो गया। अकबर के समय राजा टोडरमल और बीरबल के परामर्श से यह तय हुआ कि जन्म स्थान के पास चबूतरे पर हिन्दुओं के लिए मन्दिर बना दिया जाएं। परन्तु औरंगजेब ने फिर दमन चक्र चला दिया। बाबा वैष्णव दास के नेतृत्व में कई हमले हुए।
गुरु गोविंद सिंह जी का पहला युद्ध जन्मभूमि मन्दिर को मुक्त कराने के लिए था। वे स्वयं को श्री राम चन्द्र के वंशज मानते थें । चार वर्ष तक जन्मभूमि मन्दिर हिन्दुओं के पास रहा परन्तु शाही सेना ने पुनः चबूतरा, मन्दिर आदि अपने अधिकार में कर लिया।
नवाब सआदत अली के समय भी हिन्दुओं ने जन्म स्थान को प्राप्त ने करने के लिए 5 बार हमले किए। अमेठी के राजा गुरुदत सिंह और पिपरापुर के राज कुमार सिंह के नेतृत्व में ये हमले हुए। यह युद्ध लगभग 50 वर्ष तक चला। अन्त में नवाब ने हिन्दु मुस्लिम दोनों समुदायों को पूजा-पाठ व नमाज का आदेश दिया। नासिर दीन हैदर के समय हिन्दुओ ने तीन हमले किएं और कुछ समय यह स्थान हिन्दुओं के अधिकार में रहा। परन्तु शाही सेना ने पुनः हिन्दुओं का संहार कर के इस पर कब्जा कर लिया ।
नवाब वाजिद अली के समय गोंडा नरेश राजा देवी वंख्श सिंह तथा अवध के अन्य राजाओं के नेतृत्व में दो हमले हुए। हिन्दुओं की विजय हुई राजा मान सिंह व राजा टकैत सिंह के प्रयत्न से नवाब ने चबूतरे पर मन्दिर बनाने का आदेश दे दिया। कट्टर मुल्लाओं ने विरोध किया। ज़िहादी इकट्ठे होकर हमला करने वाले थे कि भिट्टी के राजकुमार जयदत सिंह ने मार्ग में ही उन्हें रौंक दिया ।
1856 ई0 तक हिन्दु-मुस्लिम एक स्थान पर ही अपनी – 2 धर्मपद्धति के अनुसार आराधना करते थे 1857 ई० में हिन्दु-मुस्लिम दोनों भारत को अंग्रेज सरकार से मुक्त कराने के लिए लड़ रहे थे। हिदुओं के नेता बाबा राम चरण दास जी थे और मुसलमानों के नेता अमीर अली। दोनों ने फैसला किया कि जन्मभूमि स्थल हिन्दुओं को दे दिया जाए। मुस्लिम भी सहमत थे परन्तु स्वतन्त्रता का प्रथम युद्ध असफल हो गया। दोनों नेताओं को अंग्रेजी सरकार ने खुले मैदान में पेड़ से फांसी पर लटका दिया। इसके बाद तथा कथित मस्जिद के चारों ओर दिवार बना दी गई और हिन्दुओं को चबूतरे पर पूजा की आज्ञा दी गई (दिल्ली गजट) जन्मभूमि का कुछ भाग वैष्णवों के निर्मोही अखाड़े के अधिकार में रह गया । (फैजाबाद गजट) द्वारा ही
1934 ई0 से श्री राम जन्म भूमि पर नमाज नहीं पड़ी गई । हिन्दुओं पूजा होती है। इसे हिन्दु धार्मिक स्थल ही समझा जाता है। सन् 1935 ई० में हिन्दु-मुस्लिम संघर्ष हुआ, और बाबरी मस्जिद में नमाज बंद हो गई। कार्तिक 1942 में हिन्दुओं द्वारा हनुमान गढ़ी के स्थान पर 108 ‘राम चरित मानस के पाठों का आयोजन हुआ। जनता में इतना उत्साह था कि 108 पाठों के स्थान पर कई हजार पाठ किए गए। रात्रि को मान्य करपात्री जी बाबा राघव दास जी व महन्त दिग्विजय नाथ जी के ओजस्वी भाषण होते थे। मुसलमान नेताओं ने पाठ बंद कराने की कोशिश की। कुछ मुसलमान मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए एकत्र हुए, परन्तु नमाज पढ़े बिना लौट गए। यह घटना 23 दिसम्बर 1942 की है।
सन् 1984 ई० में विश्व हिन्दु परिषद ने श्री राम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति गठित की। 8 अक्तूबर को श्री राम जानकी रथ जनकपुर से अयोध्या पहुंचा। लखनऊ में इस स्थल को मुक्त कराने का संकल्प लिया । लाखों हिन्दुओं ने इसका स्वागत किया। परन्तु प्रधान मंत्री श्री मती इन्दिरा गांधी की हत्या के कारण रथ यात्रा स्थगित कर दी गई ।
21 अक्तूबर, 1985 ई० को उतर प्रदेश में कई रथ यात्राएं निकाली गई। लाखों लोगों ने तन, मन, धन से सहयोग देने व जन्मभूमि को मुक्त कराने का संकल्प लिया। कुछ दिनों के लिए हिदुओं को पूजा की अनुमति दे दी गई परन्तु विवाद ग्रस्त करार देकर, जिलाधीश ने यह क्षेत्र अपने अधीन कर लिया। 30 अक्तूबर से 2 नवम्बर, 1990 ई0 में उतर प्रदेश सरकार की ओर से राम भक्तों पर जो कहर ढ़ाया गया। निहत्थे लोगो पर गोलियां चलाई गई। लाशो से अयोध्या की सड़के लहु-लुहान हो गई सभी जानते हैं। और 6 दिसम्बर, 1992 की घटनाओं से भी कोई अनजान नहीं अतः उनको दुहराने का कोई लाभ नहीं । उस समय जो शिलालेख प्राप्त हुए, उन में राजा गोविंद चन्द्र गढ़वाल का प्रशस्ति गान है। इस राजा (1114 ई0-54) ने ऐसे स्वर्ण मंडित विशाल मन्दिर का निर्माण किया था, जिसके समान कोई अन्य मन्दिर नहीं बना। इस मन्दिर को सलार मसूद ने नष्ट कर दिया था। विवाद ग्रस्त ढांचे के नीचे के स्तम्भ 5-6 शताब्दी के है । उल्लेखनीय है कि गुप्त सम्राटों ने अपने शासन काल में भारत के सभी हिन्दु धार्मिक स्थलों पर भव्य मन्दिरों का निर्माण कराया था !
30 अक्तूबर व 2 नवम्बर, 1990 ई० में शहीद हुए राम भक्तों की सरकारी सूची
श्री महेन्द्र नाथ बहोरी सुपुत्र श्री राम प्रताप बहोरी उद्यान नगर, कानपुर । श्री महावीर निवासी वजीर गंज, गोंडा । रमेश पाण्डेय पुत्र ताल्लुक दत, रानी बाजार, अयोध्या । “राम कुमार कोठरी, सुपुत्र श्री हीरा लाल। “राम अचल गुप्त राम लल्लू ।
सुपुत्र श्री देवी प्रसाद, गूंजा गंज, बारा बंकी।
श्री सेवा राम माली, सुपुत्र वंशी लाल परिहार, मारवाड़ी मदनियां, जोधपुर।
श्री शरद कोठरी, सुपुत्र श्री हीरा लाल निवासी बड़ा थाना, बाड़ी हावड़ा । श्री विनोद कुमार गुप्त सुपुत्र मथुरा प्रसाद, स्वर्ग द्वार, अयोध्या । श्री वासुदेव गुप्त सुपुत्र लक्ष्मी नारायण, नया घाट, अयोध्या श्री रमेश सुपुत्र श्री ताल्लुक दत पांडेय, नवाब गंज, गोण्डा। • सर्वेश कुमार जवान सी. आर. पी. एफ., धनबाद, बिहार । उपरोक्त शहीदों के अतिरिक्त 4 अज्ञात शव मिले। लगभग दो सौ शव जीपों में भर कर सरयू में प्रवाह कर दिए गए। उनका कहीं उल्लेख नहीं है । अप्रैल, 1919 में निहत्थें भारतीयों पर डायर ने गोली चला दी थी, उस समय भारत पराधीन था। यह आशा नहीं थी कि स्वतंत्र भारत में भी इस तरह जघन्य हत्याएं की जाएगी। हिन्दु अपने देश में ही दूसरे दर्जे के नागरिक हैं। भारत में धर्म निरपेक्षता का मतलब अल्प संख्यको को सन्तुष्ठ करना है । उससे बहुसंख्यक हिन्दुओं की चाहे कितनी ही हानि हो। उदाहरणतः पंजाब और हरियाणा में सड़को पर बने प्राचीन मन्दिरों को सड़के चौड़ी करने के लिए ध्वसित किया जाता है, परन्तु यदि रास्ते में छोटी सी कबर भी आ जाती है, तो उसे प्रशासन नहीं तोड़ सकता, उसे बचाने के लिए चाहे सड़क को 2 मील मोड़ना पड़ा। 12 वीं शताब्दी में मूरस् ने स्पेन पर अधिकार कर लिया था। उन्होने सभी चर्चा को तोड़ कर मस्जिदें बना दी थी। परन्तु जब स्पेन ने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली, उसने सभी मस्जिदें तोड़ कर चर्च बना दिए और सारी प्रजा को पुनः ईसाइ बना लिया। इस घटना की कोई निंदा नहीं करता। 1915 ई० में पोलैंड के लोगों ने सौ वर्षों की रूस की दासता के बाद आजादी प्राप्त की, उन्होंने स्कूयैर ऑफ वारसा के स्थान पर रूस द्वारा निर्मित चर्च तोड़ दिया क्योंकि वे उस दासता के चिन्ह को अपना नहीं मानते थे।
मखभूमि या मुखौड़ा
पिछले कुछ वर्षों से पंजाब में सड़को पर कबरें बनने का सिलसिला दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। अरब देश में एक भारतीय ठेकेदार सड़क बनवा रहा था। रास्ते में एक मस्जिद आ गई। ठेकेदार ने प्रशासन के अधिकारियों से कहा, इस मस्जिद का क्या किया जाए, दूसरी ओर से सड़क बनानी होगी। “उसे उतर मिला, “यह हमारे द्वारा बनाया धार्मिक स्थल है, इसे गिरा दो । मस्जिद दूसरी जगह बनाई जा सकती है।” वह भारतीय बताता है कि “यह उतर सुनकर मैं हैरान हो गया, यदि भारत में ऐसा होता तो तुफान आ जाता।

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