ancient indian history

Bhai Choupa Chhibber

भाई चउपत राय या चौपा सिंह छिब्बर 

भाई पेरा के सुपुत्र भाई चउपत राय ने छठे गुरु हरि गोविंद जी से लेकर दशम गुरु गोविंद सिंह जी तक गुरु परिवार की सेवा की। वे निरन्तर शिक्षक व अंगरक्षक के रूप में गुरु परिवार के साथ जुड़े रहे।
आठवें गुरु हरिकृष्ण जी के साथ दिल्ली जाने वालो में भी वे एक थे। गुरु जी के स्वर्गारोहण के पश्चात वे माता बस्सी (भाई गुरूदित्ता की धर्मपत्नी), माता सुलक्खनी (गुरू हरिराय की धर्मपत्नी) को साथ लेकर बकाला पहुंचे। नवम गुरू तेगबहादुर जी को गुरू गद्दी पर सुशोभित करने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किए। सं० 1722 में जब औरंगज़ेब ने गुरू जी को उनके शिष्यों भाई मतिदास, भाई सतिदास, गुआल दास छिब्बर आदि के साथ पकड़ा तो भाई चउपत राय व दीवान दुर्गामल तत्काल रायसीना नगर दिल्ली पहुंचे। रानी पुष्पावती ने उन्हें धीरज बंधाया। राजा जय सिंह के पुत्र कुंदर राम सिंह के प्रयत्नों से गुरू जी व उनके शिष्य मुक्त कर दिए गए। गुरु तेगबहादुर जी आसाम यात्रा पर गए। भाई चउपत राय परिवार के पास पटना रहे। बालक गोबिंद को वे शस्त्र चलाना तथा मातृ भाषा सिखाते थे । “बुद्धि विवेक” में वे लिखते है, “साहिब ने छोटी तलवार और ढाल ली, तीर कमान चुक्की फिरन नफर नाल।” नवम गुरू. तेगवहादुर जी के बलिदान के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी गद्दी पर बैठे। उन्होंने ऐलान किया, “छिब्बर मुझे सबसे प्यारे हैं।” दीवान दुर्गामल के पुत्रों धर्मचन्द व साहिबचन्द तथा अन्य छिब्बरों को गुरू जी ने भाई चउपत राय के हाथों सरोपे भेंट कर सम्मानित किया। “खालसा निर्माण” के समय गाई चउपत राय चौपा सिंह बने। गुरु जी द्वारा चलाए गए धर्म युद्धो में उन्होंने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। सं० 1757 में भाई चौपा सिंह द्वारा रचित ‘रहतनामा’ को दशम गुरु साहिब ने हजूरी ‘रहतनामा’ की प्रतिष्ठा दी। “यदि गुरु सिक्ख चाहे तो विवाह के समय जनेऊ धारण कर सकता है।” इस ‘रहतनामे’ के अनुसार “गुरू सिक्ख मकबरों की पूजा न करें। मुल्ला, काजी पर विश्वास न करें, सूफियों जैसा आचरण न करें। तुर्क, हिन्दु धर्म और गाय के शत्रु हैं। उनसे किसी प्रकार का मेल-जोल न करें।” यह ‘रहतनामा’ W.H. Macloed द्वारा सम्पादित किया गया है। तथा ओटागो यूनिवर्सिटी न्यूज़ीलैण्ड द्वारा प्रकाशित किया गया है। देखिए Historical Analysis of Sikh Rehatnamas by Gurpreet Kaur. (Ph.D Thesis) पंजाबी भवन, भारत नगर चौक, लुधियाना।
इस महान कृति को विदेश में सम्पादित और प्रकाशित किया गया है। परन्तु अपने देशवासी इस से अनभिज्ञ है। गुरु शब्द रत्नाकर में इतना लिखा है। ‘‘उनका एक रहतनामा था। जिसे कुछ अज्ञानी सिक्खों ने अशुद्ध कर दिया है।” 

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