भाई पेरा बाबा परागदास के सगे भाई थे। यह गुरु अर्जुन देव के ‘पंच प्यारों’ में एक थे। भाई पेरा छिब्बर हमेशा हिन्दू धर्म में चेतना का प्रचार करते थे । एक समय हिन्दू धर्म पूरे विश्व में प्रचलित था और भारत की सीमाएँ दूर-दूर तक फैली हुई थीं। स्वयं कुछ हिन्दुओं की विभिन्न आक्रामकता और देशद्रोही गतिविधियों के कारण आक्रांता भारत को नियंत्रित करने में सक्षम थे । भाई पेरा सिख गुरुओं की दूर दृष्टी से बहुत प्रभावित थे । वह जानते थे कि हिंदू अतिथि को भगवान के रूप में मानते हैं, इसलिए मुगल हमलावर हिंदुस्तान में दुष्ट इरादे से आए हैं
जब कि कम ज्ञान वाले कुछ हिन्दुओं के कारण मुगलों को कश्मीर और बंगाल में पांव पसारने में मदद मिली । इसी के लिए भारत ने अपना बहुत बड़ा क्षेत्र ही नही खोया बल्की कई हिन्दुओं को गुलामी की आदत पड़ गई । गुरु जी के विरूद्ध उनका भाई पृथ्वी चन्द सदैव कोई न कोई पडयन्त्र रचता रहता था। भाई गुरुदास के समझाने पर भी यह न समझता तो गुरू जी भाई पैरा को ही उसके पास भेजते थे ताकि वह गुरू जी के विरुद्ध दुष्प्रचार को रोके। छठे गुरु हरि गोविंद जी के साथ मेहरवान के सम्बन्ध अच्छे नहीं थे। यह किसी न किसी रूप में गुरू जी को हानि पहुंचाता) भाई पैरा व भाई पिराना ही उसे दुष्कृत्यों से रोकते। वे गुरू जी के विरोधियों को समझा बुझाकर पारिवारिक कलह को मिटाने का प्रयत्न करते। गुरू परिवार से भाई जी को अत्यधिक स्नेह व आदर मिलता था।
सरदार सुरजीत सिंह गांधी के अनुसार सारस्वत ब्राह्मणो का सिख धर्म में बहुत योगदान हैं। गुरु अर्जुन देव के समय से उन्होंने गुरूओं का यशोगान आरम्भ किया था। सारस्वत ब्राह्मणो ने गुरुओं द्वारा चलाए गए धर्म युद्धों में भाग लिया।