भारतीय संस्कृति के विकास और संरक्षण में महिलाओं का योगदान
भारतीय संस्कृति के विकास और संरक्षण में महिलाओं का योगदान भी कम नहीं है। वैदिक काल में कई स्त्रियाँ मंत्र दृष्टा होती थी। बृहदारण्यक उपनिषद् में गार्गी, मैत्रेयी आदि विदुषी नारियों का उल्लेख है। गार्गी वचक्नु ऋषि की पुत्री थी। वह अत्यन्त ब्रह्मनिष्ठ थी। देवरात जनक की सभा में उसने ऋषि याज्ञवल्क्य के साथ तर्क-वित्तक किया था। प्राचीन काल में भारतीय नारियाँ भी ऋषि-मुनियों से कम नहीं थी। ऋषि-मुनियों के आश्रमों में शास्त्रों के साथ अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा भी दी जाती थी। यह प्रशिक्षण महिलाएं भी आत्म रक्षा हेतु लेती थी। जो महिला दुष्टों से अपनी रक्षा करने में असमर्थ होती थी। उसे भी कठोर दण्ड मिलता था। जैसे- अरजा को चौदह वर्ष वन में रहकर तपस्या करनी पड़ी। तब समाज ने उसे अपनाया। अरजा दुष्ट राजा दण्ड से अपनी रक्षा नहीं कर पाई थी। अरजा दण्ड राजां के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री थी। वह आश्रम में अकेली विचर रही थी। जब दण्ड ने उसका शील भंग किया। संघ मित्रा, राजा दाहर की महारानी व पुत्रियाँ, महारानी पद्यावती, अहल्या बाई, जीजाबाई, मातासाहिब देवा व माता सुन्दरी, रानी लक्ष्मी बाई आदि सभी स्मरण करने योग्य हैं। सन् 1947 में देश विभाजन के समय लाखों महिलाओं ने अपने धर्म और प्रतिष्ठा के लिए प्राणों की आहुतियाँ दी। छातियों पर गोलिया खाई, कुओं में कूदी, सामूहिक रूप में चित्ता में जली, आंखों के सामने अपने बच्चों के अंग-अंग कटते देखे पर ‘सी’ नहीं की। उनके बलिदान भुलाए नहीं जा सकते। वे उस नींव के पत्थरों की तरह हैं जो विशाल भवनों के नीचे किसी को दिखाई नहीं देते। उनके सगे-सम्बंधी जो कभी-2 उनकी याद में चार आंसू बहा लेते हैं, वे भी जीवन के अन्तिम पड़ाव में हैं। उनके जाने के बाद कोई भी उन अभागिनों को याद नहीं करेगा। काश! उनका इतिहास लिखा जाता। 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों द्वारा भारत को दो टुकड़ों में काट कर स्वतंन्त्र कर दिया गया। हिन्दुओं को हिन्दुस्तान और मुसलमानों के लिये पाकिस्तान। पाकिस्तान द्वारा नरंसहार और हिन्दु सिक्खो पर अमानवीय अत्याचार से जन जीवन कराह उठा। सीमा पार मुसलमान हिन्दु सिक्खो के खून से होली खेल रहे थे। सीमा के इस ओर अर्थात भारत में यदि कोई प्रति क्रिया होने लगती तो गाधी जी मरणव्रत रख लेते। बन्नू से कुछ लुटे पिटे आये हिन्दु गांधी जी को मिले और उन्हें कहा आप हिमालय की कन्दराओं मे जा कर तप कीजिए और हिन्दुओ को उनके भाग्य पर छोड़ दीजिए” पाकिस्तान के हिस्से में आए क्षेत्र में हिन्दुओ को कोई नेता नहीं था। जो उनके हितो की रक्षा करता। हिन्दु नेता सभी इघर थे। हिन्दु सिक्खो की पर्वाह नहीं थी। दूसरी ओर पाकिस्तान के मुसलमानों को भारत मे रह रहे मुसलामानो के हितों की पूरी चिंता थी। भारत के एक मुस्लिम नेता ने जिन्नाह को पत्र लिखा। “ मेरी जरुरत हो तो मैं भी पाकिस्तान आ जांऊ’ उसे जवाव मिला वही रहों हिन्दुस्तान के मुसलमानो का भी ध्यान रखना है। काश, महात्मा गाधी एक बार पीड़ित हिन्दु – सिक्खो की दुर्दशा देख लेते तो शायद पाकिस्तान को करोड़ो रुपये देने का हठ ना करते।