ancient indian history

Subhash Chandra Bose

सुभाष चन्द्र बोस
“आजाद हिन्द फौज” रास बिहारी बोस द्वारा यह सेना संगठित की गई थी। वह कुछ समय जापान में रहे थे । पूर्वी द्वीप समूह में रहने वाले भारतीयों ने उनकी बहुत सहायता की। लगभग 45 हजार सैनिक इस सेना में भर्ती हो गए। इसका विस्तार और इसे व्यवस्थित करने का श्रेय चन्द्रबोस को है।
सुभाष चन्द्र बोस भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिए, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया “जय हिन्द” का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। नोबल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने राष्ट्र और इसके लोगों के लिए उनकी सेवा के सम्मान में सुभाष चंद्र बोस को ‘देश नायक’ की उपाधि दी।
सन् 1939 ई० में सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी से नाराज होकर कांग्रेस छोड़कर स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु सहायता के लिये, जर्मनी चले गए  । कांग्रेसी नेता महात्मा गांधी और नेहरू  सुभाष बोस की नीतियों से सहमत नहीं थे। इतिहासकारों के अनुसार वि० दामोदर सावरकर ने जून 1940 को उन्हें परामर्श दिया था, कि वे ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध योरूप में भारतीय सेना का संगठन करें। नेता सुभाष बोस योरूप जाने की योजना बना रहे थे कि सरकार ने उन्हें पकड़ लिया। 26 जनवरी, 1941 को वे किसी तरह भाग निकले और पेशावर, रूस होते हुए 28 मार्च, 1942 को जर्मनी पहुंच गए। वहां के भारतीयों ने ”जय हिन्द’ नारे के साथ उनका स्वागत किया। सुभाष बोस ने बर्लिन रेडियों से कई बार भारतीयों को संबोधित किया कि वे ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध शस्त्र उठाएं।
आजाद हिन्द फोज के अन्तर्गत महिलाओं की रानी झांसी रेजीमेंट का भी गठन किया गया, जिसकी कमांड कैप्टन लक्ष्मी बाई स्वामीनाथन ने संभाली। सन् 1943 में सुभाष चन्द्र सिंगापुर गए। अगस्त, 1945 में विमान दुर्घटना में महान् संपूत नेता सुभाष चन्द्र बोस का देहान्त हो गया।  दो वर्ष के बाद भारत स्वतन्त्र हो गया, परन्तु उनके भाग्य में स्वतन्त्र भारत माँ के दर्शन नहीं लिखे थे।
सुभाष चंद्र  और महात्मा गांधी बीच के दृष्टिकोण में बहुत  भिन्नता थी । सुभाष यह मानने को तैयार नही थे कि गांधी
की अहिंसा नीती भारत को आजादी दिला सकती है
सुभाष बाबू महात्मा गांधी से यह भी जानने को उतावले थे कि उनके  पास देश की आजादी की क्या योजना है
महात्मा गांधी के पास इस प्रश्न का कोई   उत्तर नही  था
सुभाष बाबू जानते थे  ‘कि आजादी ली नहीं, बल्कि छीनी जाती है” उन्हे मालुम था कि
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ऐसा  कोई कदम नही उठाया  था  जिससे आजादी हासिल की  जा सके उन  के मन में देश की आजादी की तड़प बार-बार बेचैन करती थी।  जब-जब देश को राजनीतिक संघर्ष की जरूरत पड़ती, तो महात्मा गांधी  आध्यात्मिक- सुधारवादी और रचनात्मक कार्यक्रमों की ओर बढ़ने लगते ताकि देश का ध्यान आजादी के संघर्ष से हटाया जा सके
15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ। उस समय लगभग 560 स्वतन्त्र रियासते थी। जम्मू कश्मीर, जूनागढ़, हैदराबाद के अतिरिक्त सभी रियासते भारत में विलय के लिए तैयार हो गईं थी । जम्मू काश्मीर पर पाकिस्तानी सेना ने आक्रमण कर दिया। इसलिए वहां के राजा हरि सिंह  26 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ कश्मीर को विलय के लिये तैयार  हो  गये । उसी समय भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना का सामना करने के लिए काश्मीर पहुँच गई। परन्तु तव तक पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर का बहुत बड़ा  क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिया था, जो अव तक उसी के पास है। जूनागढ़ व हैदराबाद की रियासतें बल्लभ भाई पटेल की विद्वता के कारण भारत में मिला ली गई।

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