ancient indian history

Gupt Vunsh

अयोध्या के प्रमुख राजा

गुप्तवंश

चौथी शताब्दी के आरम्भ में भारत विदेशियों चंगुल से पूर्णतया मुक्त हो गया था । गुप्तवंश के उदय के समय उत्तरी भारत में अनेक राजतंत्रीय और गणतंत्रीय राज्य थे, जिनमें अयोध्या राज्य प्रमुख था । गुप्तवंश के प्रमुख राजा चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्र गुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय, कुमार गुप्त और स्कन्द गुप्त हैं। चन्द्रगुप्त प्रथम ने 320 ई० में अश्वमेघ यज्ञ करके चक्रवर्ती महाराजाधिराज की उपाधि प्राप्त की थी। अश्वमेघ यज्ञ राजनैतिक पुनरूत्थान और हिन्दु धर्म-परायण संस्कृति के द्योतक थे। उसने अपने पुत्र समुद्रगुप्त को उत्तराधिकारी चुना और युवराज को कहा, “धर्म (हिन्दु) और धरती माता की रक्षा करना ।” 335 ई० में समुद्र गुप्त राज्य सिहांसन पर विराजमान हुआ। वह समय समस्त भारत को एक सूत्र में बांधने का था। समुद्र गुप्त शक्तिशाली पराक्रमी योद्धा व दूरदर्शी था। प्रयाग के स्तम्भ पर उसके लेख खुदे हैं। वह अशोक के सिद्धान्तों का विरोधी था । अफगानिस्तान से तमिलनाडू तक पंजाब, आसाम, नेपाल आदि सब उसके अधीन थे। 380 ई० में उसकी मृत्यु के बाद, उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय सिहांसन पर बैठा। उसकी राजधानी अयोध्या थी । चन्द्रगुप्त द्वारा चलाए गए सिक्के अयोध्या और उसके आसपास पाए जाते हैं। वहां टकसाल थी। सन् 412 ई० तक इस सम्राट ने शासन किया । फाह्यान भारत आया । से दक्षिण की ओर का चन्द्रगुप्त के समय वह 6 वर्ष यहां रहा। वह कहता है, “मथुरा प्रदेश मध्य देश कहलाता है। यह देश वैष्णव धर्म का दृढ़ केन्द्र है। ब्राह्मणों और बौद्धों का सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण हैं।” गुप्त सम्राट विष्णु के उपासक थे। इन के द्वारा स्थान – 2 पर विष्णु के अवतारों के मन्दिर बनाए गए, गुप्त कालीन कलाकारों ने राम, कृष्ण की कथाओं के दृश्यों को देवगढ़ मन्दिर में चित्रित किया है। इस युग में भारत के समस्त नगरों के अतिरिक्त गांव गांव में श्री राम, श्री कृष्ण व अन्य देवी-देवताओं के मन्दिरों का निर्माण हुआ। गुप्तों का शासन लगभग 550 ई0 तक रहा। स्कन्द गुप्त और नर सिंह गुप्त ने हूणों के आक्रमणों को रोका था ।

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