ancient indian history

Guru Angad Dev

गुरु अंगद देव

“गुरू अंगद देव सिखो के दूसरे गुरू थे। गुरू अंगद देव महाराज जी का सृजनात्मक व्यक्तित्व था। उनमें ऐसी अध्यात्मिक क्रियाशीलता थी जिससे पहले वे एक सच्चे सिख बनें और फिर एक महान गुरु”
 
गुरू अंगद देव जी का जन्म बैसाख सुदी 11, सोमवार, सं० 1561 वि० में हुआ था। उनके पिता फेरूमल त्रिहन फिरोजपुर के हाकिम पठान के खंजाची थे। उनकी माता का नाम माई समराई था। उनका गांव ‘भत्ते की सराय था। उनका विवाह 16 मग्धर सं० 1576 वि० में देवीचन्द की पुत्री बीबी ‘खीवी’ के साथ हुआ। बाबर के हमलों के कारण सब ओर अराजकता फैल गई। ‘भत्ते की सराय’ गांव उजड़ गया। फेरूमल कहीं दूसरे स्थान पर परचून की दुकान चलाकर गुजारा करने लगे।
गुरू अंगद की चार संताने दो पुत्र और दो पुत्रियां थी। लहना देवी भगत थे। बाद में बाबा नानक के शिष्य बन गए। 13 मग्धर, 1592 वि० को पांच पैसे व नारियल भेंट कर गुरू नानक जी ने उन्हें गुरुगद्दी सौंपी। बाबा जी ने मत्था टेकते हुए कहा “मैने अपनी शक्ति, अकाल पुरूष की बख्शीश इसे सौंपी है। मेरे सभी शिष्य अंगद को गुरू माने”। पुत्रों का विरोध देखकर बाबा जी बहुत दुखी हुए। उन्होंने अंगद जी को खडूर साहिब भेजते हुए कहा “आपने इधर नहीं आना, मैं ही वहां आऊंगा” तत्पश्चात बाबा जी कभी जंगल में, कभी किसी के घर और कभी करतारपुर संगतो को उपदेश देने लगे। बाबा नानक अपने प्यारे शिष्य के जाने के कारण उदास रहने लगे। आठ मास के बाद बाबा जी दो शिष्यों को साथ लेकर अंगद जी को मिलने गए। अंगद जी कठोर तपस्या के कारण सूख गए थे। उन्होंने बाबा जी के चरण छुए। बाबा जी ने उन्हें मूल मंत्र का जप करने का कहा। बाबा जी ने गुरु अंगद को कहा “मैने जितने तप किए हैं वे सभी है, तुम कठोर तप मत करों।
गुरु नानक देव जी 69 वर्ष, 10 मास और 10 दिन की आयु में असूज वदी दसवी सं० 1596 कि० में करतारपुर के स्थान पर ज्योति जोत समाए। उनके पड़पोते ने डेरा बाबा नानक नगर बसा कर वहां उनकी समाधि बनाई।
गुरू नानक जी का स्वर्गवास होने के पश्चात उनके बेटे गुरू गद्दी पर बैठकर संगत को साखी शब्द सुनाते। परन्तु बाबा नानक के कुछ शिष्यों को गुरु अंगद के दर्शन की चाह थी। वे उन्हें टूढ़ने के लिए निकल पड़े, आखिर उन्होंने गुरु अंगद जी की खोज कर ली। संगत इकट्ठी होने लगी तथा शब्द-कीर्तन शुरू हो गया। संगत को गुरु अंगद देव प्रत्यक्ष बाबा नानक का रूप ही दिखाई दिया।

खालिस्तानी आधुनिक इतिहासकार लिखते हैँ :-

फाल्गुन सं० 1597 वि० को हुमायूं शेरशाह से हार गया। उसका चचेरा भाई मिर्जा जाफर वेग शेरशाह का समर्थक बन गया। हुमायूं को पता लगा कि जाफर तो काफिर हो गया है। उसने अपने मामा मिर्जा कासिम से पूछा कि क्या इस देश में कोई पीर, फकीर या अमीर मुझे सहारा देने के लिए है। उसने कहा “नानक शाह फकीर ने काबुल मे बाबर शाह को कहा था कि तुम्हारी सात पीढ़ियां हिंद पर राज करेगी। हिंद को फतह करने का वरदान दिया था और अब उनके गद्दी नशीन गुरु से पूछना चाहिए कि वह वर झूठा क्यों हुआ? हुमायूं गुरु अंगद जी के पास गया। उन्होंने कहा “बारह-तेरह वर्षों बाद तुम दिल्ली के बादशाह बनोगे और तेरी सात पीढ़िया राज करेगी।
(तवा० गुरू खालसा, पृष्ठ 298) गुरूनानक देव जी ने बाबर को यह वरदान दिया था कि उसकी सात पीढ़िया हिंद पर शासन करेगी हमने इस वरदान की कथा पहले नहीं सुनी थी। हमने तो यह सुना था कि मुगलों के अत्याचारों से लोग इतने दुखी हो गये और गुरु नानक जी के संतप्त हृदय से यह वाणी कूट पड़ी 
खुरासान खसमाना की आ हिंदुस्तान डराइओ। ऐति मार पड़ी कुरलाने। तेंकु दरद न आइओ ।।
“सिक्खों में यह प्रचलित है कि बाबा नानक ने बाबर के साथ साक्षात्कार किया था। परन्तु बाबर के संस्मरण ग्रंथ “तजुके बाबरी” में इसका उल्लेख नहीं है। यद्यपि उस ग्रंथ में बाबर के जीवन की अनेक घटनाओं और अभियानों का सविस्तार वर्णन है।
(हरबंस सिंह: गुरु नानक तथा सिख धर्म का उद्भव)

 

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