Guru Nanak

Written by Alok Mohan on April 15, 2023. Posted in Uncategorized

गुरु नानक देव जी

लाहौर (पाकिस्तान) से दक्षिण-पश्चिम की ओर लगभग ४० मील दूर तलवंडी नामक एक छोटा सा गांव रावी चनाब दोआब में स्थित है। राजनैतिक उथल-पुथल के कारण तलवंडी ग्राम कई बार ध्वस्त हुआ और इस का पुनः निर्माण होता रहा। राय भोय, जिसे हिन्दु से मुसलमान बना लिया गया था, उसने १५वी शताब्दी के आरम्भ में इस गांव को पुनः बसाया था। यह गांव बहलोल खां लोदी के समय उन्नत था। राय भोय की मृत्यु के पश्चात राय बुलार पैतृक सम्पति का स्वामी बन गया था। उसने गांव की प्रगति के लिए अन्य गांवो के शिल्पकार, व्यापारी, कृषक आदि इस गांव में बसाए। अमृतसर से एक हिन्दू क्षत्रिय बेदी परिवार भी वहां बस गया। इस परिवार के शिवराम और माता बनारसी के घर सं० 1497 में कल्याण चन्द का तथा सं० 1501 वि० में लाल चन्द का जन्म हुआ। ये दोनो भाई कालू महता और लालू महता के नाम से प्रसिद्ध हुए। कौशल गोत्रीय कल्याण चन्द के घर श्री गुरु नानक देव ने विसाख सुदि तृतीय, सं० 1526 वि० अर्थात अप्रैल, 1469 ई० में जन्म लिया। उनकी माता का नाम तृप्ता था। भाई गुरुदास कृत ज्ञान रत्नावलि तथा सन्तदास छिब्बर व अन्य कुछ ग्रन्थों में उनकी जन्म तिथि यह दी गई है। कई ग्रंथों में उनकी जन्म तिथि कार्तिक पूर्णिमा दी गई है। इस पूर्णिमा का विशेष महत्व है। यह किसी न किसी रूप में समस्त भारत में मनाई जाती है। नानकी का भाई होने के नाते बालक का नाम नानक रखा गया। पण्डित ने कुण्डली देखकर कहा यह बालक प्रतापी होगा। इसके सिर पर छत्र झूलेगा। यह पथ चलाएगा। भविष्यत पुराण में भी लिखा है
कलियुग में जब मलेच्छ का राज होगा। प्रजा की रक्षा और मलेच्छो का नाश करने के लिए पश्चिम देश के बेदी वंश में नानक नामक राज ऋषि ब्रह्मज्ञानी, सत्तिगुरू दस रूप धारण करेगा- सड़दी होई हिंदवायन उत्ते सत्त नाम का वंदन छिड़क के सीतल कर दिखाया बचपन से ही बाबा नानक वैराग्य की मूर्ति थे। जो कुछ हाथ में आता बाट देते | पुरोहित के पास पढ़ने गए तो उसी से प्रश्नोत्तर करने लगे। सन्तोषजनक उत्तर न मिलने के कारण शिक्षक की अवेहलना करने लगे। पिता ने नानक को फारसी भाषा सीखने के लिए मुल्ला के पास भेजा। मुल्ला को कहने लगे ‘अलफ अल्लाहनं याद कर, गफलत मनोविसार” स्वास पलटे नाम बिन, घ्रिण जीवन संसार | गुरु नानक देव जी का विवाह 7 जेठ, सं० 1545 अथवा 1487 ई० में मूलचन्द खत्री की बेटी सुलक्खनी से हुआ। 5 सावन 1551 वि० को उनके पुत्र श्रीचन्द का तथा 19 फाल्गुन, 1553 वि० को लखमीचन्द का जन्म हुआ। बाबा नानक के दो पुत्र हो गए, परन्तु गृहस्थ में उनका मोह नहीं पड़ा।
बचपन की कथाएं :
बाबा जी गाय चराने गए। गायों ने खेत नष्ट कर दिया। खेत के स्वामी ने अधिकारी के पास शिकायत की परन्तु खेत तो पहले से भी अधिक फला-फूला हुआ था। एक दिन राय बुलार ने जंगल में देखा “बाबा जी सोए हुए है और उनके मुंह पर नाग ने अपने फन से छाया की हुई है। महता कल्याण चन्द ने बाबा नानक को दुकान खोल कर देने का विचार किया। बाबा जी को बीस रू० देकर सामान लाने के लिए शहर भेजा। बाबा जी ने भूखे संतो को भोजन करा दिया। उनके पिता बहुत क्षुब्ध हुए।
अवतार धारण का कारण
गीता के अनुसार जब धर्म की हानि होती है। अधर्म बढ़ जाता है। दुष्टों का नाश करने के लिए और संतो को उभारने के लिए निर्गुण ब्रह्मा साकार रूप धारण कर लेता है। 712 ई० से भारत पर आक्रमण आरम्भ हो गए थे। मीर कासिम, महमूद गजनवी, मुहम्मद गौरी से लेकर बाबर तक हिन्दुओं पर अत्याचार होते रहे। गुरु नानक बहलोल लोदी के समय प्रकट हुए थे। उसके पुत्र सिकन्दर लोदी ने आदेश दे रखा था कि हिन्दु औरत विवाह के बाद पहले मुसलमान हाकिम को भेंट की जाए। मुसलमानों के अत्याचारों से हिन्दु जनता कराह रही थी। भाई गुरूदास कहते हैं “ऐसे समय, “सुनी पुकार दातार प्रभु, गुरु नानक जग मंहि पठाइयो।
उदासियां
गुरु नानक ने 23 वर्ष यात्राएं की। प्रथम यात्रा उन्होंने 32 वर्ष की आयु में आरम्भ की। उन्होंने संत बाबा की खफनी, सेली, घोला आदि धारण किया। माता-पिता द्वारा भेजा गया मरदाना (मरासी) सुल्तानपुर में बाबा जी का हाल पूछने गया और उन्ही के पस ही रहने लगा। बाबा जी घर से निकलने की तैयारी करने लगे। माता-पिता, सास-ससुर की एक न चली।
प्रथम उदासी ।
बाबा जी सुल्तानपुर से फाल्गुन सं० 1554 वि० को गोंइदवाल, रामतीर्थ, लाहौर आदि होकर एमनाबाद गए। वहां वे भगत लालो ((तरखान) के पास एक वर्ष रहे। उन्होंने यहां के धनी मलिक भागों की आवभगत स्वीकार नहीं की। लालो की सूखी रोटी-दाल खाई। वहां से मरदाने को साथ ले पिहोवा, कुरुक्षेत्र, करनाल, पानीपत, नजीबाबाद, अनूप शहर, दिल्ली (मजनू टिल्ला) आदि गये । सिकन्दर बादशाह ने उन्हे बाला, मरदाना सहित कैद कर लिया, परन्तु कुछ दिनों बाद छोड़ दिया। दिल्ली से मथुरा, वृन्दावन, आगरा, कानपुर, लखनऊ, अयोध्या, प्रयाग आदि पर जन साधारण को उपदेश दिया। वहां से वे काशी पहुंचे। वहां आचार्य रामानन्द के शिष्य नित्यानंद व अनेक संत यथा नामदेव, रविदास, त्रिलोचन, परसा आदि उनसे मिलें। ज्ञान चर्चा हुई। उनसे विचार विमर्श हुआ। 27 असूज, 1563 दि० को बाबा नानक और कबीर की भेंट हुई (कबीर 1575 दि० में स्वर्ग सिधार गये)। काशी से पटना, राजगीर, गया, भागलपुर, ढाका, आसाम, हुगली, वर्दवान, मेदिनीपुर कई दिन ठहरने के पश्चात वे जगन्नाथपुरी पहुंचे। वहां उनकी कृष्ण भक्त चैतन्य महाप्रभु (1485-1533 ई०) के साथ भेंट हुई। लिखित साक्ष्य के अनुसार दोनो संत मिलते रहे और ईश्वर की स्तुति का संयुक्त मान होता रहा। (ईश्वर दास कृत चैतन्य भागवत) सैय्यद अहमद सिकन्दर लोदी बादशाह का गुरु था। उसके कहने पर सिकन्दर ने कबीर को गंगा से और नामदेव को हाथी के आगे फिकवा दिया था। अनेक हिन्दु तुर्क बनाए गये। यह चर्चा के लिए मौलवियों को साथ लेकर आ गया। भला शरार दे जाए विच बने बटेरे आकाशचारी हसं नाल किस तरह उड़ सकते है। (तवारीख गुरु खालसा, पृष्ठ 64) विंध्याचल के वनों में मरदाना को कौड़ा राक्षस के लोगो ने पकड़ लिया। गर्म तेल के कढ़ाहे में मरदाने को वे डालने ही वाले थे कि बाबा जी वहां पहुंचे। तपता हुआ कड़ाहा शीतल हो गया। मरदाना बेचारा भूख का मारा एक दिन बाबा जी से बोला : तुसी पौन अहारी। वाला सन्तोषधारी। मैनू मुक्ख दी बिमारी। क्यो ला रक्खी। बाबा जी ने उसे आक के फूल खाने को कहा। मरदाना बोला “यदि मुझे जहर ही देना था तो साथ क्यों लाए? मैने तो अभी तक अपनी मिरासन को भी अच्छी तरह नहीं देखा। बाबा जी ने कहा “यह जहर नहीं है। खा के देख, परन्तु पल्ले न बांधना” मरदाना को उस समय आक के फूल मीठे लगे। उसने कुछ साथ भी ले लिए, परन्तु सांय काल को खाने लगा तो फूल कड़वे थे। 4 ,भादों1566 वि० को बाबा नानक आगरा पहुंचे वहां से गुड़गांवा, झज्जर, नारनौल होते हुए 11 पौष 1566 वि० को सुल्तानपुर गये, वहां नवाव दौलत खा दर्शन हेतु आया। चन्दन दास खत्री के घर ठहरे। मरदाना ने बाबा जी के परिवार को सूचित किया। सभी उनसे मिलने के लिए सुल्तानपुर पहुंचे।
दूसरी उदासी :
बैसाख, 1567 वि० को बाबा नानक, बाला, मरदाना को साथ लेकर भटिंडा, सिरसा आदि पहुंचे। भट्ट वहियों के अनुसार बाबा जी वहां 4 मास 11 दिन रहे। वहां से बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर, नाथ द्वार, उदयपुर जा ठहरे। वे 14 चेत. 1568 वि० को अजमेर पहुंचे। वहां उन्होंने महादेव की गुफा देखी। वे पुष्कर होते हुए सरोही तथा वहां से चम्बल नदी पार करके उज्जैन गए। उन्होंने शिप्रा गया में स्नान किया। नर्मदा नदी के किनारे नर्मदेश्वर, गौरी कुण्ड से होशंगाबाद तथा तमसानदी पार करके बुरहानपुर, कृष्णा, गोदावरी पार करके तैलगु देशम् गए। वहां से शिव कांची, विशन कांची, त्रिचनापल्ली, रामानंद स्वामी के जन्म स्थान तथा अराकूट, बलूर, पांडीचेरी आदि होकर रामेश्वरम् पधारे। नानक उदासी मठ, रामेश्वरम् में एक धर्म स्थान है, वहां गुरु जी का यात्रा स्मारक है (तारा सिंह नरोत्तम : गुरू तीर्थ संग्रह)। रामेश्वर पहुंच कर गुरूनानक कहते है : सुन बाले इह ईसर थान। प्रीत सहित इत थापयो राम ।।
(संत दास छिब्बर )
रामेश्वरम् से बाबा जी श्री लंका, जहां सीता जी को रखा था, वहां आसन लगाया। वहीं उन्हें विभीषण व हनुमान जी मिले। बाबा जी ने उन्हें परमेश्वर की भक्ति करने को कहा। यह स्थान ‘निरंकारी सिद्ध’ के नाम से प्रसिद्ध है। (यह घटना काल्पनिक है)
लंका से वापसी :
वैसाख, 1570 वि० में बाबा नानक लंका से सिंगल द्वीप, नागापट्टनम्, पाल घाट की घाटी होकर नीलगिरि तथा वहां से टूटी करण, ट्रावनकोट, कालीकट से कोचीन पहुंचे। बंगलोर, गोवा, मुम्बई, धारवाड़ व नासिक, गोदावरी स्नान के पश्चात पंचवटी पधारे। ताप्ती नदी को लांघते हुए ये (डकोर जी) के मन्दिर (गुजरात) गए। चेतमास में जूनागढ़ चतुर्थमास बताया। वहां नरसी भगत, दाता गंज बख्श पीर अपनी संत संगत के साथ दर्शन को आए। उन्होंने शब्द ज्ञान सुनकर अति
आनन्द पाया। गुजरात में बाबा जी सोमनाथ मन्दिर, पोरबंदर, सुदामापुरी, गोमती, द्वारकापुरी आदि में लोगो को मूर्ति पूजा न करके निराकार ब्रह्म की स्तुति के लिए प्रेरित किया। सभी लोगो को निहाल करते बाबा जी मुलतान (अब पाकिस्तान) पधारे। मुल्तान के पीरों ने एक भरा प्याला दूध का भेजा। बाबा जी ने प्याले में एक पताशा व फूल डाल कर लौटा दिया। मरदाने ने बाबा जी से पूछा “ दूध का प्याला आपने क्यों लौटा दिया? बाबा जी ने कहा मुल्तान के पीरों ने भरा दूध का प्याला भेज कर यह जताया था कि इधर पहले ही बहुत पीर है, तुम कहां रहोगे? हमने पतासा व फूल रखकर जताया है “हम मीठे बनकर तुम में फूल की तरह रहेंगे।”
मुल्तान से बाबा जी सुलतानपुर पहुंचे। वे अस्वस्थ राय बुलार के घर उसे देखने गए। राय की इच्छा अनुसार बाबा वहां 3 दिन रहे। अन्तिम दिन गुरू दर्शन कर राय बुलार ने सायुज्य मुक्ति पाई। बाबा जी को परिवार के ताने भी सुनने पड़े। सास ने कहा “अपने बच्चों को संभालो” नानके कब तक तुम्हारा परिवार संभालेगे। बाबा जी ने नया गांव बसा कर वहां परिवार रखा। दो वर्ष तक गुरू जी वहीं रहे।
तीसरी उदासी :
15 असूज, सं० 1574 वि० को बाबा जी बाला, भरदाना के साथ उत्तराखण्ड के लिए चल पड़े। कलानौर, गुरूदासपुर, पालमपुर, कांगड़ा, ज्वालामुखी देवी, कुल्लू, विजली महादेव के स्थानों पर उन्होंने अनेक लोगों को ज्ञान दिया। क्षीर गंगा, कहलूर, कीरतपुर, पंजौर आदि उन्होंने धूनी रमाए, मौनी बाबा उल्टे लटके, साधुओ को सेवक बनाया।
जेठ, 1574 वि० को बाबा नानक बदरीनाथ पहुंचे। जिस स्थान पर बाबा जी की चर्चा हुई थी, वहां निर्मला संत गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं। वसुधारा (बदरीनाथ से लगभग 10 मील) से वापिस हेमकुण्ट साहिब पधारे। कई लोग उनकी वाणी सुनकर धन्य हो गए। तत्पश्चात् गोरखनाथ, मछंदरनाथ, गोपीनाथ आदि के साथ चर्चा हुई। सिद्धो से विदा लेकर बाबा जी दत्तात्रेय के आश्रम में पहुंचे। कई ऋषियो, मुनियो को मिलने के पश्चात उन्होंने काकभुशुण्डि को देखा। वे ऋषि-मुनियों को परमेश्वर के गुणानुवाद शास्त्र कथा सुना रहे थे। प्रहलाद और ध्रुव को बाबा मिले। ज्ञान गोष्ठी हुई। एक दिव्य पुरुष के उन्हें दर्शन हुए। उन्होंने बाबा जी को कहा “नानक जो तेरी वाणी पढ़ेगा, सुनेगा, वह यमपुरी नहीं देखेगा, सचखण्ड वासी हो जाएगा। बाबा जी अकाल पुरूष के दर्शन कर पुनः हेमकुण्ट चले गए। सभी ऋषि-मुनि प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा “अकाल पुरूष ने आपको ‘सत्तगुरू’ पदवी बख्शी है, जो आज तक किसी अवतार, पैगम्बर, आचार्य को नहीं मिली थी। बाबा जी रानीखेत व अल्मोड़ा पधारे, वहां बाबा जी की सन्ताने उदासी संत है। वहीं उनका डेरा है। वहां रीठे भी मीठे हो गए। पौड़ी, कोटद्वार होकर बाबा जी अयोध्या पहुंच गए।
13 चेत, 1576 वि० को माता तृप्ता ने देह त्यागी। उनकी मृत्यु के तीन दिन पश्चात महता कालू का भी देहान्त हो गया। बाबा जी ने उनका अन्तिम संस्कार करके भस्म रावी नदी में डाल दी।
बैसाखी के मेले पर बाबा जी कटास राज पहुंचे। मरदाने को प्यास लगी। बाबा जी ने एक स्थान खुदवाया, वहां ठण्डे जल का चश्मा फूट पड़ा। अटक नदी पार करने के बाद वे काला बाग, डेरा गाजी खां, नौशहरा, पंजनट के स्थान पर रूके, पीरों फकीरों के साथ उन्होंने वर्षा की और संगत को मकबरों की पूजा करने से मना किया।
चौथी उदासी अरब यात्रा :
हैदराबाद, कोटली, हिंगलाज देखने के बाद बाबा जी कराची पहुंचे, वहां से अरब के ‘जद्दा शहर पहुंचे। वे जिस स्थान पर जाते, वहां का पहरावा पहनते और उन्ही की भाषा में उपदेश देते। पीरो, फकीरों के साथ उनके सवाल जवाब हुए। वहां से मक्का पहुंचे, उन्होंने काबे की ओर पैर किए, प्रातः दरोगे ने कहा ” बेसमझ काफिर खुदा के घर की ओर पैर पसारे पड़े हो। बाबा जी ने कहा ” जिधर खुदा का घर नहीं, वहां मेरे पैर कर दो” जब मुल्ला ने बाबा के पैर घुमाए, उधर ही काबा दिखाई दिया। पीर, फकीर, मुल्ला, काज़ी सभी बाबा के दास हो गए। (त०गु०खा०)
बगदाद होकर बाबा जी ताशंकद (रूस) पंहुचे। बाबा जी को वहां ‘बली हिंद’ या ‘नानक कलंदर’ कहते हैं। वे बल्ख, बुखारा से पेशावर, हसन अब्दाल, रायल पिंडी, मीरपुर, स्यालकोट से एमनाबाद भाई लालो के घर रुके। 7 मग्घर, 1578 वि० को चौथी यात्रा पूरी करके बाबा नानक करतारपुर पहुंचे। वहां उन्होंने बारह-तेरह वर्ष धर्म प्रचार किया। बाबा जी ने अपने पुत्रों को गुरु गद्दी के योग्य न मानकर अपने शिष्य ‘भाई’ लहना’ को गद्दी सौंपी। उनके पुत्र श्रीचन्द व लक्ष्मीचंद बहुत निराश हुए। उन्होंने भाई लहना को करतारपुर से निकालने का मनसूबा बनाया। ‘भाई लहना’ जिस का नाम अंगद रखा था, उन्हें बाबा जी ने ‘खंडूर साहिब’ में रहने का आदेश दिया। गुरू नानक देव जी के पुत्र श्री चंद ने उदासी पंथ चलाया। उनका धार्मिक ग्रंथ आदि ग्रंथ है। उदासी पंथ की सारे भारत शाखाएं है। उदासी पंथ का प्रचार करने वाले चार प्रसिद्ध शिष्य हुए हैं। अलमस्त मुनि, बालू हसना, फूल साह और गोविन्द जी। अलमस्त मुनि और बालू हसना (बाल कृष्ण) दोनो भाई थे और श्रीनगर निवासी पं० हरदत्त पुत्र थे। ये दोनो बाबा श्रीचन्द के अनन्य शिष्य थे और सदैव भक्ति में विभोर रहते थे। गोविन्द और फूल भी श्रीनगर निवासी जयदेव और सुभद्रा के पुत्र थे। छठे ‘गुरू हरिगोविन्द जी के पुत्र गुरूदित्त ने भी इस पंथ का प्रचार किया। गुरू नानक जी की वाणी का उदाहरण :
घट घर रम रहिआ बनवारी। घट भीतरि देख मुरारि।

Alok Mohan

The admin, Alok Mohan, is a graduate mechanical engineer & possess following post graduate specializations:- M Tech Mechanical Engineering Production Engineering Marine engineering Aeronautical Engineering Computer Sciences Software Engineering Specialization He has authored several articles/papers, which are published in various websites & books. Studium Press India Ltd has published one of his latest contributions “Standardization of Education” as a senior author in a book along with many other famous writers of international repute. Alok Mohan has held important positions in both Govt & Private organisations as a Senior professional & as an Engineer & possess close to four decades accomplished experience. As an aeronautical engineer, he ensured accident incident free flying. As leader of indian team during early 1990s, he had successfully ensured smooth induction of Chukar III PTA with Indian navy as well as conduct of operational training. As an aeronautical engineer, he was instrumental in establishing major aircraft maintenance & repair facilities. He is a QMS, EMS & HSE consultant. He provides consultancy to business organisations for implimentation of the requirements of ISO 45001 OH & S, ISO 14001 EMS & ISO 9001 QMS, AS 9100, AS9120 Aero Space Standards. He is a qualified ISO 9001 QMS, ISO 14001 EMS, ISO 45001 OH & S Lead Auditor (CQI/IRCA recognised certification courses) & HSE Consultant. He is a qualified Zed Master Trainer & Zed Assessor. He has thorough knowledge of six sigma quality concepts & has also been awarded industry 4, certificate from the United Nations Industrial Development Organisation Knowledge Hub Training Platform  He is a Trainer, a Counselor, an Advisor and a Competent professional of cross functional exposures. He has successfully implimented requirements of various international management system standards in several organizations. He is a dedicated technocrat with expertise in Quality Assurance & Quality Control, Facility Management, General Administration, Marketing, Security, Training, Administration etc. He is a graduate mechanical engineer with specialization in aeronautical engineering. He is always eager to be involved in imparting training, implementing new ideas and improving existing processes by utilizing his vast experience.