ancient indian history

Judaism

यहूदी धर्म:
यहूदी धर्म के अनुयायी एक ईश्वर में विश्वास रखते हैं। यहूदी अपने ईश्वर को यहवेह या यहोवा कहते हैं. यहूदी मानते हैं कि सबसे पहले ये नाम ईश्वर ने हजरत मूसा को सुनाया था। बाईबल और तलमद दोनों ग्रन्थों में इस धर्म के मूल सिद्धान्त हैं। बाईबल की प्रथम पांच पुस्तकें ”तोरा “हैं जिसमें जुड़ा’ या यहूदी धर्म के मूल सिद्धान्त है । इसमें 1200 ई० पूर्व अर्थात् मूसा की मृत्यु तक का इतिहास है। “तोरा” को “मूसा की पांच पुस्तकें” भी कहते हैं। ‘तोरा’ के अतिरिक्त हैब्रू बाईबल में नैतिक शिक्षाओं व इतिहास की पुस्तकों के अतिरिक्त 11 अन्य पुस्तकें हैं। पूजा घर को यहूदी Syngogue या मन्दिर कहते हैं।
ईसाई धर्म और यहूदी धर्म के बीच मुख्य अंतर यह है कि ईसाई धर्म के मामले में यीशु को भगवान के रूप में पूजा जाता है, और ईसाई धर्म के अनुयायियों को ईसाई के रूप में जाना जाता है। दूसरी ओर, यहूदी धर्म के मामले में इब्राहीम को भगवान के रूप में पूजा जाता है, और यहूदी धर्म के अनुयायियों को यहूदी के रूप में जाना जाता है।
यहूदी धर्म की शिक्षा, इतिहास और हिब्रू भाषा सीखने के लिए इसमें पाठशालाएँ होती हैं। | इनके धार्मिक गुरु को ‘रुब्बी’ कहते हैं। रूब्बी का पद प्राप्त करने के लिए कई वर्ष तक यहूदी धर्म का इतिहास, धार्मिक ग्रन्थ, सिद्धान्त, दर्शन और कानून पढ़ना होता है। आजकल ये लोगों की समस्याओं का समाधान करते और उन्हें परामर्श भी देते हैं। इस धर्म के अलग-2 वर्गों में प्रार्थना का अलग-2 ढंग है। पुरातनवादी प्रति दिन पूजा करते हैं और सुधारवादी छुट्टियों में व “सुब्बाह” में ही अराधना करते हैं। पहली किस्म की पूजा में स्त्री-पुरुष अलग-2 बैठते है। सुधारवादियों में स्त्री-पुरुष इक्कठे बैठते हैं। यहूदी धर्म में सप्ताह के अन्तिम दिन शनिवार को सुब्बाह कहते हैं। इस दिन अवकाश होता है। इसका समय शुक्रवार सूर्य डूबने से लेकर शनिवार रात्रि तक होता है। घर में या मन्दिर में पूजा की जाती है। इस समय लोग काम नहीं करते, यात्रा करना और पैसा साथ रखना भी मना है। वर्ष में यहूदियों के कई पवित्र दिन होते है। ये हेबू कलंडर के अनुसार होते हैं। कलेंडर का प्रथम मास लगभग सितम्बर-अक्तूबर में आता है। इस समय ‘तिस्री’ के दौरान प्रमुख पवित्र दिवस मनाया जाता है।  यहूदी परम्परा के अनुसार ‘रोश्या ह -शान ह” के अन्तर्गत 10 दिन तपस्या के दिन होते हैं। यहूदी अपने पुराने कर्मों के लिए भगवान् से क्षमा
मांगते हैं और आने वाले समय में अच्छे कर्म करने की आशा रखते हैं। प्राचीन काल में यहूदी तीन मुख्य त्यौहारों के समय योरोशलम की यात्रा करना चाहते थे। वे तीन मुख्य त्यौहार परसोवर, शवात और सुक्कोत थे। ये तीनों त्यौहार, यहूदियों के मिस्र से निकलने और इजरायल तक (प्राचीन कनान) पहुंचने से सम्बन्धित हैं। लगभग 165 ई0 पूर्व में यहूदियों ने अपनी धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने का पहला युद्ध जीता था। उन्होंने सीरिया को हरा दिया था जिन्होंने इन्हें यहूदी धर्म छोड़ देने के लिए कहा था। इस उत्सव को हनुक्कह या दीपों का त्यौहार कहते हैं। यह त्यौहार दिसम्बर में आता है तथा दीपक जला कर मनाया जाता है. दूसरा त्यौहार पूर्णिम है. यह फरवरी और मार्च में मनाया जाता है। उस समय यहूदिर के संहार का षडयन्त्र रचा गया था तथा उनका मन्दिर बेबीलोनिया द्वारा 586 ई० पूर्व नष्ट किया गया था। तथा 70 ई० में रोमनस ने उसे ध्वंस किया था। उन दुःखद घटनाओं की याद में यहूदी व्रत-उपवास रखते है। यहूदी खाने-पीने में विशेष नियमों का पालन करते हैं। वे दूध और मांस की पकाई वस्तुओं को अलग-2 रखते हैं। दोनों को इक्कठा नहीं खाते। मुसलमानों की तरह जानवर हलाल नहीं करते अर्थात् जानवरों को यातनाए देकर नहीं मारते बल्कि अनुभवी कातिल द्वारा जानवर मारे जाते हैं ताकि थोड़े समय में ही उनका अन्त हो जाए। मुसलमान बलि के बकरे, मुर्गे आदि को धीरे-2 यातनाएं देकर काटते हैं। सिक्ख तेज धार तलवार से काटते हैं। यहूदी मृत्यु पर सात दिन का शोक मनाते हैं। इस रस्म को वे ‘शिवा’ कहते हैं। शोकाकुल व्यक्ति जो प्रार्थना करते हैं, उसे कदीश कहते हैं। इसमें प्रभु की प्रशस्ति गाई जाती है, परन्तु मृत्यु का उल्लेख नहीं किया जाता. मृत व्यक्ति की प्रत्येक बनली पत सोनवती या दीप जलाए जाते हैं।

हेस्तिया:- यूनानियों के घर-परिवार व चुल्हे की देवी है। चल्हा मारिवारिक जीवन का केन्द्र है और अग्नि देव को भी यूनानी प्रमुख मानते हैं। यूनानी लोग परिवार, नगर और राज्य के रक्षक के रूप में इसकी अराधना करते हैं।

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