Lord Ram

Written by Alok Mohan on April 2, 2023. Posted in Uncategorized

श्रीराम

श्रीराम सनातन धर्म के अनुयायियों के सबसे महत्वपूर्ण भगवान का अवतार हैं। वह विष्णु के सातवें और सबसे लोकप्रिय अवतारों में से एक हैं। वह हालांकि एक शाही परिवार में पैदा हुए थे , लेकिन उनको बहुत कठिन परिस्थितियों में जीवन निर्वाह करना पड़ा

श्रीराम के चरित्र के दो पक्ष हैं: अलौकिक और लौकिक ।
अलौकिक पक्ष में वे विष्णु के अवतार हैं, जिन्हें भक्तों के परित्राण तथा दुष्टों के दलन के लिए सगुण रूप धारण करना पड़ा। लौकिक पक्ष में वे दशरथ – सुत राजकुमार हैं। तुलसी दास के राम में ब्रह्म की सभी विशेषताएं समाहित हैं। राम निर्गुण, व्यापक, निराकार परमानंद स्वरूप, अज्ञेय और माया से निर्लिप्त ब्रह्म हैं। वे ही निराकार भगवान् दुःखियों की पुकार पर दुष्ट दलन हेतु सगुण रूप में दशरथ के घर अवतरित हुए। उनके जन्म पर माता कौशल्या हाथ जोड़कर स्तुति करती है। दशरथ को परमानंद प्राप्त होता है। पिता श्री राम, सिंह के समान पराक्रमी, महावीर, अतिबलशाली हैं। उनकी वीरता का प्रथम परिचय हम विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षार्थ जाते समय मिलता है। मार्ग में ही वे ताड़का राक्षसी का संहार करते हैं। यज्ञ ध्वंस करने के लिए आए हुए सुबाहु का वंध कर देते हैं। उनके वाणों से राम के वीर रूप का आहत मारीच कई सौ योजन दूर जा गिरता है। चरमोत्कर्ष कुंभकर्ण तथा रावण के वध के समय अवलोकनीय हैं। रामकी युद्ध वीरता धर्मवीरता पर आधारित है, वे धर्म रक्षा के लिए ही युद्ध करते हैं। उनके युद्धों का उद्देश्य साम्राज्य विस्तार नहीं हैं। उनका जन्म ही धर्म रक्षा, देवकार्य, संत- परित्राण और दुष्ट संहार हेतु हुआ है। गुरु वसिष्ठ, राजा जनक तथा अन्य प्रमुख व्यक्ति श्री राम जी को धर्म सेतु, सत्यव्रत और धर्म-धुरंधर कहते हैं। श्री राम जी का दयावीर रूप का उदाहरण हमारे सामने आता है जब वे मुनियों के अस्थि समूह को देखते हैं। उनकी आंखों में जल भर आता है। वे इस धरती को निसाचर हीन करने का प्रण करते हैं :
निसचर हीन करउं महिं भुज उठाए प्रन कीन्ह ।
सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाई जाई सुख दीन्ह ।। इस प्रण को वे आजीवन निभाते हैं। उनकी दयाभावना विलक्षण है। वे सज्जनों के दुख से तो विचलित होते हैं, दैत्यों और शत्रुओं पर भी उनकी उतनी ही अनुकम्पा है। वे धर्म हेतु उनका अन्त तो करते हैं परन्तु उन्हें अपने परमधाम में स्थान देते हैं।
श्री राम जी का दानवीर रूप निम्न पंक्तियों से स्पष्ट है:
विप्रन्ह दान विविध विधि दीन्हे ।
जाचक सकल अजाचक कीन्हें ।।
राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। वे स्थित प्रज्ञ हैं और सदैव एक रस रहते हैं। उनकी मुखाम्बुज न अभिषेक के समाचार से प्रसन्न हुई न वनवास के दुख से दुखी वे आवेश में आकर मानसिक सन्तुलन नहीं खो देते। प्रसन्नतां या न गताभिषेकस्तथा ।
न मम्ले वनवास दुःखतः ।
मुखाम्बुज श्री रघुनन्दनस्य ।
में सदास्तु सा मंजुल मंगल प्रदा ।।
वे “मुख प्रसन्न चित चौगुन चाव” से माता कौशल्या को कहते हैं”, प्रसन्न मन से मुझे आज्ञा दो ताकि मेरी वनयात्रा मंगलमयी हो ।”
गुरू पिता माता बंधु सभी उनके शील व सदाचार से मुग्ध हैं। गुरू वसिष्ठ के मत में राजा दशरथ धन्य हैं जिन्हें ऐसे सुकृती पुत्र प्राप्त हुआ है।
राम एक आदर्श राजा हैं। वे राजधर्म के रहस्य भली भांति जानते हैं। “जासु राज प्रिय प्रजा दुरवारी । सो नृप अवस नरक अधिकारी ।
लंका विजय के पश्चात् राम सीता व लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटते हैं। सभी अयोध्यावासी उनका हार्दिक स्वागत करते हैं। राम के सिहांसनासीन होते ही प्रजा सुखी हो जाती है। सभी लोग वेद विहित धर्म और मर्यादा का पालन करते हैं। उनका चरित्र प्रजा के लिए आदर्श है। प्रजा शिक्षित गुणी, कृतज्ञ और राम भक्ति में रत है। वैर विरोध भय, शोक रोग सामाजिक विषमता, दीनता, दरिद्रता अबुद्धि सभी प्रकार के संताप दूर हो जाते हैं। जगत में धर्म चारों चरणों में प्रतिष्ठित हो जाता है और पाप मिट जाते हैं। उनकों अपने सभी सेवकों पर अगाध स्नेह है, परन्तु हनुमान पर विशेष । वे उनके ऋणी हैं । ( राम – भक्ति के साथ पवन सुत हनुमान जी की भक्ति भी लोकप्रिय हो गई है।)
राम का राज्याभिषेक हो गया। वे सीता के साथ सुखपूर्वक रहने लगे। सीता गर्भवती थी । अतः उसकी प्रत्येक इच्छा पूरी करनी आवश्यक थी। उन्होंने सीता को पूछा कि उसकी कोई इच्छा हो तो वे पूरी करेगें। सीता ने उन्हें कहा कि तपोवन देखने की इच्छा हो रही है। गंगा तटवासी ऋषियों के दर्शन करना चाहती हूँ। वहीं पर मैं रात्रि को निवास करूँगी। राम ने उसे तैयारी करने को कहा।
राम राज सभा में बैठे थे। विदूषक आदि उनका मनोरंजन कर रहे थे। बातों-बातों में राम ने पूछा कि उनके विषय में प्रजा का क्या विचार है। सीता, माता कैकयी भरत, शत्रुध्न आदि के विषय में लोग क्या सोचते हैं? यह सुनकर भद्र ने हाथ जोड़ कहा, “रावण का वध आपकी विजय आदि के विषय में सभी लोग अपने घरों में चर्चा करते रहे है। राम ने भद्र को कहा कि वह निर्भय होकर शुभाशुभ सभी बताओं जो पुरवासी मेरी निन्दा करते हैं। भद्र ने हाथ जोड़ कर कहा, “महाराज, प्रत्येक राजमार्ग, वन, उपवन, बाजार सभी स्थानों पर लोग कहते हैं “राम ने असंभव कार्यों को किया है। सागर पुल बांधना, प्रतापी रावण को सपरिवार मारना तथा वानरों, भालुओं, राक्षसों को अपने अधीन कर लेना । सीता का उद्धार करना, पर रावण द्वारा सीता को स्पर्श से जो दोष उत्पन्न हुए, रामचन्द्र ने उसका विचार नहीं किया। रावण सीता को बल पूर्वक गोद में उठाकर ले गया था । सीता अशोक वाटिका में राक्षसों के बीच में रही। ऐसी सीता के साथ राम को घृणा क्यों नहीं होती। यथा राजा तथा प्रजा। अब हमें भी अपनी स्त्रियों के दोषों को क्षमा करना होगा। दुःखी राम अपने भवन में लौटे, उन्होंने अपने भाईयों को देखा। राम का मुख राहु द्वारा ग्रस्त चन्द्रमा की तरह पीला हो गया है। उनके नेत्रों में आंसू भरे है। अस्त रवि के समान उनकी प्रभा क्षीण हो गई है।
राम सीता जी को अयोध्या ले आए।
राम ने उन्हें अभूपूर्ण नेत्रों से सारी कथा सुनाई कि किस प्रकार नगरवासी सीता को लेकर उनकी निंदा कर रहे है। ईक्ष्वाकु वंशीय के लिए यह असहनीय है। लक्ष्मण जानता है कि सीता ने अग्नि परीक्षा दी थी। सभी ऋषि मुनियों ने सीता को पवित्र कहा। देवराज इन्द्र ने भी उसे परम पवित्र कहा था । हम भी उसे पवित्र मानकर अब सम्पूर्ण जनपद की प्रजा मेरी निंदा कर रही है। कीर्ति नष्ट हो जाती है। उसकी देव भी निंदा करते हैं। दुखी जीव कोई नहीं। तुम लोग भी इसपर विचार करो। लक्ष्मण को उन्होंने कहा, “तुम कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य का विचार न कर सीता को तमसा नदी तट पर वाल्मीकि आश्रम के पास छोड़ आओ तुम्हें मेरे प्राणों की शपथ है, यदि तुम कुछ कहोगें तो मेरे शत्रु होवोगे। सीता ने आश्रम देखने की इच्छा प्रकट की है।” शोकाकुल राम, भरत और लक्ष्मण शत्रुध् न अपने-अपने निवास को चले गए। दूसरे दिन लक्ष्मण सीता को रथ पर बैठकर चल पड़ा सीता ने ऋषि पत्नियों के लिए आभूषण वस्त्र ले लिए रथ पर चढ़ने के समय सीता ने लक्ष्मण से कहा, “इस समय मुझे अमंगल होने के लक्षण दिखाई दे रहे है। बहुत अपशकुन हो रहे हैं। सभी सासुएं ठीक है क्या? भाई कुशल तो हैं।” आधा दिन चलने के पश्चात् गंगा के किनारे रथ पहुंचा। लक्ष्मण रोने लगे।” सीता ने रोने का कारण राम से विदाई समझा । रथ को वहीं रूकवाकर नाव पर सीता को बैठाकर लक्ष्मण बैठ गया । नदी पार करके नाव से उतर, लक्ष्मण ने रोते हुए सीता को कहा, “हे विदेह राजपुत्री, जिस कार्य को करने में निन्दा होगी, बुद्धिमान होकर भी आर्य रामचन्द्र ने मुझे सौंपा है। लोकनिन्दित कार्य में नियुक्त होना अच्छा नहीं है” मृत्यु की भीख मांगने लगे लक्ष्मण, सीता कुछ नहीं समझी। उसने राम की शपथ देकर उसके दुःखी होने का कारण पूछा । लक्ष्मण ने वह सब बताया कि दारूण जनापवाद फैलने के कारण राम ने यह कदम उठाया है। आपकों वे निर्दोष समझते है । ऋषि वाल्मीकि हमारे पिता के मित्र हैं। आप उनके आश्रम में रहिए।” सीता ने कहा, “लक्ष्मण ऐसा लगता है ब्रह्मा ने मेरा शरीर कष्ट भोगने के लिए बनाया है। न जाने पूर्व जन्म में मैंने किसी स्त्री का पति से वियोग कराया था। पति के साथ वन में रहकर, दुःख में भी मैंने सुख माना है, पर अब ऋषियों के पूछने पर मैं उन्हें क्या कहूँगी कि किस अपराध के कारण राम ने मुझे त्यागा है। मैं गर्भवती न होती तो गंगा में डूब मरती । प्राण देकर भी स्त्री को पति का हित करना चाहिए। मुझे इससे कोई चिन्ता नहीं कि मेरे विषय में क्या कुछ लोग कहते हैं। दुःखी सीता कहती है, लक्ष्मण तुम देखते जाओ, मैं इस समय गर्भवती हूं। स्वामी को उसका अपवाद न लगे। लक्ष्मण यह सुनकर जोर-जोर से रोने लगे। देवी आप क्या कह रही हो? मैंने आपके चरणों को छोड़कर कभी आपका रूप नहीं देखा। राम की अनुपस्थिति में निर्जन वन में मैं आप को कैसे देख सकता हूँ” नौका पर बैठे वे रोती सीता को बार-बार देखने लगे । असहाय सीता निर्जन वन में जोर-2 से रोने लगी। वाल्मीकि ऋषि के शिष्य उन्हें आश्रम में ले आए। ऋषि ने सीता को पुत्री की तरह स्नेह दिया। समय पाकर कुश, लव का जन्म हुआ, जिस दिन इनका जन्म हुआ। शत्रुध्न वाल्मीकि आश्रम में ठहरा था। शत्रुध्न लवणासुर आक्रमण के लिए जा रहा था। उसे लवकुश के जन्म का समाचार मिला तो वह बड़ा हर्षित हुआ। ऋषि वाल्मीकि ने इनके जातकर्म संस्कार किए। वेदों के हठीकरण के लिए इन दोनों को रामायण सिखाई। धनुर्विद्या आदि से इन्हें क्षात्र विद्या में निष्णात किया। राम ने अश्वमेघ घोड़ा छोड़ा। अश्व रक्षा के लिए शत्रुध्न था । उसने लव को मूर्च्छित कर दियां तब कुश आकर शत्रुध्न को मूर्च्छित कर दिया। लव ने जाग्रत होकर सूर्य से नया धनुष लियां उसने शत्रुध्न को अचेतकर दिया। लक्ष्मण भरत तथा हनुमान का भी यही हाल हुआ। राम को भी आना पड़ा। उन्होंने बच्चों से पूछा, “तुमने धनुर्वेद किससे सीखा। तुम्हारे माता-पिता कौन हैं । जब तक तुम अपना कुल नहीं बताते तब तक मैं युद्ध नहीं करूँगा।” लवकुश ने कहा, “हम सीता के पुत्र हैं यह सुनते ही राम के हाथों से धनुष वाण गिर गया। लवकुश द्वारा सभी अचेत कर दिये गए। दोनों हनुमान को लेकर सीता के पास पहुंचे। सीता ने उन्हें वापिस भेजने को कहा। राम वाल्मीकि आश्रम में लौटे। उन्होंने राम से सीता और पुत्रों को अपनाने के लिए कहां। तत्पश्चात् बालक अश्व के सरंक्षक बने तथा यज्ञ सम्पूर्ण हुआ।
वाल्मीकि रामायण में इस प्रसंग का उल्लेख नहीं है। उसमें लिखा है कि अश्वमेघ यज्ञ के समय अनेक कलाकार एकत्र थे । वाल्मीकि को भी निमत्रंण मिला । ऋषि दोनों बालकों को अयोध्या ले गये। वहीं ऋषि द्वारा सिखाया गया, रामायण महाकाव्य तालसुरों द्वारा उन्होंने गाना आरम्भ किया। ऋषियों के पवित्र स्थान, गलियों राजमार्ग, राजाओं के निवास स्थान, ऋत्विजों के अनुष्ठान स्थानों पर सभी जगह लवकुश ने रामायण गान जारी रखा । प्रतिदिन 20 सर्गों का गान करते । ऋषि वाल्मीकि ने आदेश दिया था कि धन की अपेक्षा न की जाए यदि कोई धन दे तो कहना कि हम मुनि कुमारों को धन की क्या आवश्यकता है।” ऐसा ही इन्होंने किया जब उन्हें कोई पूछता किसके पुत्र हो तो कहते”, हम वाल्मीकि ऋषि के पुत्र हैं”।
ऋषि ने कहा, राजा सब का धर्म पिता होता है। उसकी आज्ञा का पालन करना । वीणा के साथ मधुर स्वर से गान करना ।” लवकुश ने वह रात्रि बड़ी उत्सुक्ता से बिताई। प्रातः स्नान अग्नि होत्र के पश्चात् दोनों ने रामायण गान, वीणा के मधुर स्वरों के साथ गाया | नवीन छंदों में यह उन्होंने ऋषियों ब्राह्मणों, वैयाकरणों गान सुनकर राम बहुत प्रसन्न हुए।
स्वरों के ज्ञाता, संगीतज्ञ, साहित्यिकों, गीत, नृत्य के विद्वानों, शास्त्र नीति कुशल, वेदान्त- विद्वानों की सभा में लवकुश को बुलाया। सभी बच्चों को देखकर विस्मित हुए और कहने लगे कि यदि इन कुमारों ने मुनि वेश न बनाया हो तो राम और इन में अन्तर न होता। राम ने भरत के द्वारा दोनों बच्चों को 18, 18 हजार स्वर्ण मुद्राएँ देने को कहा पर बच्चों ने लेने से इन्कार कर दिया। राम के पूछने पर बच्चों ने काव्य के रचयिता ऋषि वाल्मीकि के विषय में बताया । भृगुवंशी वाल्मीकि ने चौबीस हजार श्लोक में इस काव्य की रचना की है। इसमें 7 काण्ड हैं। इसमें महर्षि ने आप की कीर्ति और जन्म कर्म का वर्णन किया है। उत्तर – काण्ड की कथा सुनने तक स्पष्ट हो गया कि दोनों वालक राम के हैं।
वाल्मिकि ऋषि राम से कहने लगे, सीता शुद्ध है। मैंने कभी असत्य नहीं बोला। ये दोनों तुम्हारे पुत्र हैं। यद्यपि तुम इसे पवित्र समझते थे परन्तु लोकापवाद के कारण तुम्हारा था और तुमने इसे त्याग दिया था ।
ऋषि ने कहा, “यदि सीता की पवित्रता में तनिक भी दोष हो तो मेरी कई वर्षों की तपस्या का मुझे कुछ भी फल न मिलें, हे रामचन्द्र, पांचों इन्द्रियों और मन से मैंने सीता को पवित्र जाना । तभी वन से इसे अपने आश्रम में ले आया। यह पतिव्रता शुद्ध और
निष्पाप है” । श्रीरामचन्द्र ने कहा, “हे धर्मज्ञ! आपका कहना सत्य है, मुझे आपके पुनीत वाक्यों पर विश्वास है। लंका में सीता ने देवताओं के सामने शपथ ली थी । मैं इसीलिए इसे अयोध्या ले आया था। कुश – लव मेरे ही पुत्र हैं। यह मैं जानता हूँ।”
श्रीरामचन्द्र का अभिप्रायः समझकर इन्द्र, वसु, रूद्र, विश्वेदेव, वायु, साध्यगण, ब्रह्मा के साथ आदित्य, नाग, गरूड़, सिद्ध आदि सभी वहां आ गए। वहीं तपस्विनी वेश में नीचे मुख किए सीता आ गई। वह हाथ जोड़कर बोली”, रामचन्द्र को छोड़ मैंने यदि किसी अन्य पुरूष की चिन्ता मन से की हो । यदि मन वचन कर्म से मैं रामचन्द्र का ही पूजन करती रही हूँ, तो माता पृथ्वी फट जाए और मैं उसमें समा जाऊँ । मैं राम को छोड़ किसी दूसरे पुरुष को नहीं जानती, यदि मेरी यह बात सत्य है तो माधव की प्यारी पृथ्वी मुझे अपने में स्थान दे।” इतने में एक दिव्य सिहांसन पृथ्वी को फोड़कर निकाला। सिंहासन पर पृथ्वी देवी बैठी थी । उसने दोनों हाथों से सीता को पकड़कर सिहांसन पर बैठा लिया । धीरे – 2 वह सिंहांसन पृथ्वी में लुप्त हो गया। मुनि ऋषि देव सभी धन्य कहने लगे । सभी वानर रोने लगे। रामचन्द्र खम्भा पकड़कर खड़े थे। बहुत देर तक रोने के बाद वे क्रोध और शोक में बोले”, लक्ष्मी स्वरूप सीता मेरे सामने पृथ्वी में समा गई जिस अपहृता सीता को मैं समुद्रपार से ले आया था। उसे पाताल से ले आना कौन-सा कठिन काम है। हे भगवती, पृथ्वी मेरी सीता मुझे वापिस दे दे या मुझे भी अपने में स्थान दो। क्रोध शोक के वंशीभूत राम के ऐसा कहने पर देवताओं सहित ब्रह्मा ने आकर कहा.” हे रामचन्द्र ! आपको शोक नहीं करना चाहिए। आप पहले ही देवताओं से कह चुके हैं कि ‘हम इतने कार्य करने के लिए ही पृथ्वी पर जन्म लेंगे। हे महाबाहो, मैं स्मरण नहीं कराता, बल्कि प्रार्थना करता हूँ कि आप अपने विष्णु रूप का ध्यान करें। मनुष्य – चरित्र का समय समाप्त हो चुका है। सीता परम पवित्र है। वह वैकुण्ठ में आपके साथ मिलेगी।’

Alok Mohan

The admin, Alok Mohan, is a graduate mechanical engineer & possess following post graduate specializations:- M Tech Mechanical Engineering Production Engineering Marine engineering Aeronautical Engineering Computer Sciences Software Engineering Specialization He has authored several articles/papers, which are published in various websites & books. Studium Press India Ltd has published one of his latest contributions “Standardization of Education” as a senior author in a book along with many other famous writers of international repute. Alok Mohan has held important positions in both Govt & Private organisations as a Senior professional & as an Engineer & possess close to four decades accomplished experience. As an aeronautical engineer, he ensured accident incident free flying. As leader of indian team during early 1990s, he had successfully ensured smooth induction of Chukar III PTA with Indian navy as well as conduct of operational training. As an aeronautical engineer, he was instrumental in establishing major aircraft maintenance & repair facilities. He is a QMS, EMS & HSE consultant. He provides consultancy to business organisations for implimentation of the requirements of ISO 45001 OH & S, ISO 14001 EMS & ISO 9001 QMS, AS 9100, AS9120 Aero Space Standards. He is a qualified ISO 9001 QMS, ISO 14001 EMS, ISO 45001 OH & S Lead Auditor (CQI/IRCA recognised certification courses) & HSE Consultant. He is a qualified Zed Master Trainer & Zed Assessor. He has thorough knowledge of six sigma quality concepts & has also been awarded industry 4, certificate from the United Nations Industrial Development Organisation Knowledge Hub Training Platform  He is a Trainer, a Counselor, an Advisor and a Competent professional of cross functional exposures. He has successfully implimented requirements of various international management system standards in several organizations. He is a dedicated technocrat with expertise in Quality Assurance & Quality Control, Facility Management, General Administration, Marketing, Security, Training, Administration etc. He is a graduate mechanical engineer with specialization in aeronautical engineering. He is always eager to be involved in imparting training, implementing new ideas and improving existing processes by utilizing his vast experience.