1947 के बंटवारे से पहले, जो यातनाएं, शहीदों ने सही, हमारी पीड़ी कल्पना भी नही कर सकती । नानी गोपाल सोलह वर्ष का था। 14 साल के बच्चे को अंग्रेजी हुकुमत ने कालेपानी की सजा दी। क्यू की उसका कसूर था कि उसने पुलिस अफसर की गाड़ी पर बम फेंका था। बंगाली बालक ननी गोपाल का अपराध था कि उसने एक दुष्ट अंग्रेज़ अधिकारी को मारने की कोशिश की। उस अधिकारी ने निर्दोष जनता और राष्ट्रभक्तों पर अपने अत्याचारों से आतंक मचा रखा था। ननी गोपाल ने कसम खाई थी कि वह इस अंग्रेज़ को यमलोक पहुँचाएगा सब इस परमसाहसी और चतुर देशभक्त के प्रशंसक बन चुके थे। अन्ततः एक और प्रयास करते हुए उसे बन्दी बना ही लिया गया। पूछने पर बन्दी जज से कह रहा था “हाँ, मैं उस अंग्रेज़ अधिकारी को मार डालना चाहता हूँ क्यूँ कि उसके आतंक से हम सबको मुक्ति मिले। आप जो चाहे दण्ड दीजिए। इतने छोटे बच्चे को ऐसा कठोर कारावास नियम विरुद्ध था पर अंग्रेजी सरकार ने नियमो को अन देखा कर दिया। सेल्यूलर जेल, अंग्रेज़ों द्वारा धरती पर रचा नरक ही था जिसके बन्दी राक्षसों की भाँति ऐसी-ऐसी यमदूतों द्वारा दी जाने वाली यातनाओं के तुल्य अत्याचारों के मानो विशेषज्ञ ही हो, नरपिशाच जेलर बारी के कारण अत्यन्त बदनाम था। डण्डा-बेड़ी, कोल्हू में जोतना, नारियल की जटाएँ कूट कर रस्सी बनाना और पशुओं के भी गले न उतरे ऐसा भोजन। नाली के कीड़े भी न स्वीकारें, ऐसी गन्दी आवास व्यवस्था और उल्लुओं को भी बेचैन कर दे, ऐसा एकांत। ये सब वज्र जैसे मजबूत तन-मन के लोगों को भी दहला देने वाले बारी के हथकण्डे थे । उसे तेल निकालने के लिए कोल्हू पर बैल की जगह जोत जाता था। छोटी आयु में किशोर के लिए यह काम जेल के नियम के विरूद्ध था। कुख्यात सेल्यूलर जेल, क्रान्तिकारियों के लिए अंग्रेज़ों द्वारा धरती पर रचा साक्षात् नरक ही था जिसके बन्दी राक्षसों की भाँति ऐसी-ऐसी यमदूतों द्वारा दी जाने वाली यातनाओं के तुल्य अत्याचारों के मानो विशेषज्ञ ही हो, नरपिशाच जेलर बारी के कारण अत्यन्त बदनाम था। नानी गोपाल के साथ जेल के अधिकारी जितनी क्रूरता से पेश आते, वह उतना ही ढीठ हो जाता। उसे खड़े होने के लिये कहते, वह खड़ा न होता। उसे अंधेरी कोठड़ी में बंद करते, व भीतर ही रहता, बाहर न निकलता। जेलर उसे गालियां देता, उसे परवाह नहीं थी। वह स्नान न करता, शरीर पर मैल जम जाती, सफाई करने वाला, अपने झाडू से उसका शरीर साफ करता, झाडू की सींको के निशान पड़ जाते ! दिन प्रतिदिन कोड़ो की मार पड़ती। सजा देने के लिए उसे रात्रि को कम्बल न दिया जाता वह नंगे फर्श पर ही पड़ा रहता। चीफ कमिश्नर उससे कहता, “इस तरह के व्यवहार से तुम समझते हो, हम तुम पर दया करेंगे, कदापि नहीं, चाहे तुम मर जाओ।” नानी गोपाल की सजा एक वर्ष और बढ़ गई, अर्थात 1 वर्ष, उसको 1925 में मुक्त होना था । ननी ने एक बार कोल्हू में जुतने से इंकार किया तो चिढ़े हुए बारी ने डण्डा-बेड़ी की सजा दे दी। ननी ने उत्तर दिया “मैं चोर नहीं, लुटेरा नहीं अपनी मातृभूमि का लाडला बेटा हूँ, मैं यह काम नहीं करुँगा।” बारी ने ननी गोपाल के सारे कपड़े उतरवाकर उसे लज्जित करने का आदेश दिया। ननी गोपाल बोला “मैं अब कपड़े पहनूँगा ही नहीं।” । ऐसा कैदी उसे कभी न मिला था। उसने उसे अकेले रहने की सजा दी कैदी भी ज़िदी था। उसने कहा, “अब मुझे इस कोठरी से बाहर ही नहीं आना। ननी गोपाल एक साहसी बालक था । बारी उसे असह्य पीड़ा देने लगा। उस पर मृत्यु जैसा भयानक कष्ट देता पर नानी गोपाल तो मानो देह का आभास ही त्याग चुका था ।
अन्तिम समय में उसे भुतवा जेल में रहने की। ज़हाँ न कोई मनुष्य दिखता न प्रकाश की किरण। जंगली मच्छर प्रतिपल खून चूसते, शरीर सूज जाता। जहरीले सांप और कीड़े चारों ओर रेंगते रहते। ऐसे में ननी ने आमरण अनशन का व्रत ले लिया। केवल हड्डियाँ बाकी रहीं। देह अत्यन्त दुर्बल, पर मन में कोई पश्चाताप नहीं, कोई दीनता नहीं। उसका मन तो अपनी भारतमाता को समर्पित हो चुका था दो माह ऐसी अवस्था में बीते। फिर 1916 की अक्तूबर की किसी तारीख को वह यह देह छोड़ अपनी भारतमाता की सेवा के लिए फिर से जन्म लेने इस संसार से विदा हो गया।