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Verses of My Soul

150.00

प्रातः की मुस्कान उज्जवल, चंद्रमा का हाल नीरव ! उड्रू- गणों के मधुर चितवन, काननो के दृश्य अनुपम !! ये प्रकृति के नव इशारे, रम्य बहुविन्ध दृश्य सारे ! हैं उठाते मेरे मन में, हर्ष की उत्तुडग. लहरें !! भावनाएं हैं मचलती, कल्पनायें भी थिरकती ! पर ना पाकर शब्द अम्बर लींन होती हृदय ही में !! आज यह उद्दार मेरे, व्यक्त हो पाते नहीं हैं ! फूट पड़ते हैं ह्रदय से, पर ना ओंठों तक पहुंचते! पर न अपनी भावना को, हर्ष इन अनुभवों को ! शब्द का परिधान दे कर, व्यक्त कर पाता कभी हूँ ! कोनसा वह दृश्य ऐसा. जो न हर्षाता मुझे है ! कोनसा संगीत ऐसा जो न करता मगन मन को ! शक्ति यदि वाणी में होती, तो जगत पीड़ा भगाता ! काव्य की धारा बना कर, मोद उर का मै बहाता ! मधुरतम एन अनुभवों को, चाहता हूँ व्यक्त करना ! विश्व का सोंद्रय सारा, इन पदों में पुनह भरना !! विहग- गण के मधुर कलरव, जो सुधा धरा बहाते ! ह्रदय मेरे में सभी तो, मधुरम- संचार करते !!
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