ancient indian history

Raja Dushrath

अयोध्या के प्रमुख राजा

राजा दशरथ

ये अयोध्या के राजा अज तथा महारानी इन्दुपति के पुत्र थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार इनकी तीन रानियाँ – कौशल्या, सुमित्रा व कैकेई थी। पद्य पुराण के अनुसार इनकी चार रानियाँ थी। जिनके नाम कौशल्या, सुमित्रा सुरूपा तथा सुवेषा थे।
भारत और श्रीलंका में कुछ ऐसी जगहें हैं जो इस बात का प्रमाण देती हैं कि रामायण में लिखी हर बात सच है। पुरातत्व विभाग के अनुसार कई हजार  साल पहले श्रीलंका में ही सबसे पहले इंसानों के घर होने की बात कही गई है और राम सेतु भी उसी काल का है.
पूर्व जन्म में दशरथ स्वायंभुव मनु थे। राजा दशरथ वीर, पराक्रमी राजा थे। वे कई बार असुरों के साथ लड़े ।
रावण ने दशरथ को एक युद्ध में  हराया था। इस कौसल्या द्वीप युद्ध में, दशरथ की सेना का सफाया हो गया था । दशरथ कई दिनों तक समुद्र में तैरते हुए एक लकड़ी के तख्ते पर बच निकले ।
युवावस्था में उनसे एक बार बड़ी भारी भूल हो गई थी। तपस्वी श्रवण सरोवर में पानी पी रहा था। उन्होंने गज समझकर शब्द वेदी बाण चला दिया। श्रवण का आर्त स्वर सुनकर राजा उसके पास गए। उसने अपने अंधे माता-पिता के विषय में राजा को सूचित किया और प्राण त्याग दिए। दशरथ पानी लेकर प्यासे तपस्वी के पास गए। वृत्तान्त पता लगने पर अंधे दम्पत्ति ने दशरथ को शाप दिया कि वह पुत्र वियोग में प्राण त्यागेगा । श्रवण के माता-पिता का देहान्त हो गया। राजा दशरथ ने उन तीनों का दाह संस्कार किया।  राजा दशरथ की एक पुत्री शान्ता थी, जिसे अंगराज राजा रोमपाद या चित्रांगद ने गोद ले लिया था। रोमपाद दशरथ का परम स्नेही था । शान्ता का विवाह ॠषि श्रृंग से हुआ। ऋषि श्रृंग की तपस्थली काशी के उत्तर में मंदार वन थी। वह दीर्घ तपस का छोटा पुत्र था।  ऋषि श्रृंग के यज्ञ करने से राजा दशरथ की सन्तान हुई। ऐसा कथन है कि यह ऋषि राजा चित्रसेन के वाण से मारा गया था । इस शोक से सन्तप्त उसके सारे परिवार ने प्राण त्याग दिए । पुत्र कामेष्टि यज्ञ की प्रेरणा राजा दशरथ को कैसे मिली। इसकी कथा पद्य पुराण में इस प्रकार है। इसने अपनी विशाल सेना लेकर सुमानस नगरी पर आक्रमण किया। वहां के राजा असाध्य को इसने बंदी बना लिया । तब उसका छोटी आयु का पुत्र भूषण भी पिता के साथ था । भूषण का अपने पिता के प्रति प्रेम देखकर उसके मन में भी पुत्र प्राप्ति का मोह जगा। अनेक व्रतों के पश्चात् उसने पुत्र कामेष्टि यज्ञ किया। तत्पश्चात् राजा दशरथ के चार पुत्र हुए- राम, लक्ष्मण भरत, शत्रुध्न
गोस्वामी तुलसी दास रचित राम चरितमानस के अनुसार दशरथ जन्म-जन्मातर से रामभक्त हैं। पूर्व जन्मों में वे स्वायंभुव मनु और कश्यप थे । घोर तपकर के उसने भगवान् से वर प्राप्त किया था, जिसके फलस्वरूप वे अवध के राजा हुए और भगवान ने उनके घर जन्म लिया। राम जन्म पर वे कहते हैं।
जाकर नाम सुनत सुभ होई।
मोरे गृह आवा प्रभु सोई ।
दशरथ को सभी पुत्रों के लिए अगाध स्नेह है। परन्तु राम के लिए विशेष है, वे राम के लिए ही जीते हैं। राम के बिना प्राण त्याग देते हैं।  राजा दशरथ धर्मरक्षक नीतिज्ञ और सत्यव्रती हैं। ऋषियों, मुनियों और गुरुजनों की सेवा करना वे अपना कर्त्तव्य मानते है। प्रत्येक शुभ कार्य के लिए वे गुरु वसिष्ठ से परामर्श लेते हैं। अपने सचिव और सेवकों को भी गुरु की आज्ञा पालन का आदेश देते हैं। राजनैतिक निर्णय वे मंत्रिमण्डल के परामर्श से करते हैं। श्री राम को राजतिलक देने से पूर्व वे सभी मंत्रियों और सेवकों से पूछते हैं
जो पंचहि मत लागे नीका ।
करूहुँ हरषि हिय रामहि टीका ।।
रघुपति रीति सदा चलि आई।
प्राण जाए पर वचन न जाई ।।
का वह पूर्णतः पालन करते हैं।
युद्ध क्षेत्र में कैकयी ने राजा की सहायता की थी। राजा ने उसे दो वर मांगने को कहा था। उन्हीं का पालन करते हुए राजा दशरथ प्राण त्याग देते हैं ।

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