ऋषिवात्स्यायन भृगुवंशीय वातस्य ऋषि का वंशज होने के कारण इसऋषि का नाम वात्स्यायन पड़ा। सुबंधु के अनुसार इस ऋषि का मूल नाम मल्ल नाग था। वात्स्यायन इसका गोत्र नाम है। इस ऋषि ने “कामसूत्र” ग्रन्थ की रचना की। इसका समय 300 ई० था। ऋषि वात्स्यायन स्वयं योगी और ब्रह्मचारी था। कई विद्वान इसे जयपुर में नागर का और कई पटना का निवासी कहते हैं। “प्राचीन भारतीय तत्वज्ञान के अनुसार धर्म और अर्थ के समान, काम भी एक पुरुषार्थ माना गया है जिसकी परिणति वैवाहिक सुख प्राप्ति से होती है।” एक अन्य ऋषि वात्स्यायन न्याय दर्शनकार हुआ है जिसने अक्षपाद गौतम नामक आचार्य के द्वारा लिखित न्याय सूत्र का भाष्य लिखा है। यह दक्षिण भारत के प्रसिद्ध विद्या केन्द्र कांची का निवासी था। इस ऋषि का काल 470 ई0 माना जाता है। क्यूँकी वात्स्यायन के जीवन, स्थिति काल और नामकरण पर अतीत काल से काफी मतभेद चला आ रहा है। सम्भवतः इसी ऋषि ने ‘कामसूत्र’ की रचना की हो। हेमचन्द्र, वैजयन्ती, त्रिकाण्ड शेष और नाममालिका कोशों में कौटल्य और वात्स्यायन, ये नाम एक ही व्यक्ति के माने गए हैं। इनके अतिरिक्त चाणक्य, विष्णुगुप्त, मल्लनाग, पक्षिलस्वामी, द्वामिल या द्रोमिण, वररुचि, मेयजित्, पुनर्वसु और अंगुल नाम भी इन्हीं के साथ जोड़े गए हैं। ऋषि वात्स्यायन न्याय शास्त्र और कामसूत्र के रचयिता थे ! एक संन्यासी होते हुए उन्होंने कामसूत्र जैसे ग्रंथ की रचना की, जिसका आज भी बहुत से लोग नाम लेने से भी कतराते हैं । इस शास्त्र में उन्होंने कामुकता के विषय को बड़ी सजहता से लिखा है । कामसूत्र में कामुक क्रियाओं का बहुत अच्छे से उल्लेख किया गया है। ऋषि वात्स्यायन एक ब्रह्मचारी और संन्यासी थे। उन्हें कामुक विषय की गहन समझ थी। ऋषि वात्स्यायन का मानना था कि कामुकता के विषय पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए और इस विषय की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। सुखी गृहस्थ जीवन के लिये इस विषय का ज्ञान आवश्यक है इसी उद्देश्य से ही उन्होंने इस किताब की रचना की। महर्षि वात्स्यायन ने कामसूत्र में न केवल दाम्पत्य जीवन का शृंगार किया है वरना कला, शिल्पकला एवं साहित्य को भी संपदित किया है। उन्होंने अपने किताब के माध्यम से इस बात को सुनिश्चित करने की कोशिश की कि लोग इस संबंध में बेहतर जानकारी हासिल कर सकें। ऐसा कहा जाता है कि वात्स्यायन ने कामसूत्र, वेश्यालयों में जाकर देखी गई मुद्राओं को नगरवधुओं और वेश्याओं के अनुभवों को लिखा। कामुकता विषय को उन्होंने कई नए और खूबसूरत आयाम दिए हैं। बताया जाता है बनारस में लंबा वक्त बिताने वाले वात्स्यायन ऋषि बहुत ज्ञानी, दार्शनिक और चारों वेदों के ज्ञाता थे। अगर कामसूत्र को सकारात्मक रूप से देखा जाए तो यह बेहद ही ज्ञानवर्धक ग्रंथ है ! English Translation. Rishi Vatsyayana Being a descendant of Bhriguvanshiya Vatsya Rishi, this sage was named Vatsyayan. According to Subandhu, the original name of this sage was Malla Nag. Vatsyayan is his gotra name. This sage composed the book “Kamasutra”. during 300 BC. Sage Vatsyayan himself was a yogi and celibate. Many scholars describe him as a resident of Nagar in Jaipur and while many other considers him a resident of Patna. “According to the ancient Indian philosophy, like Dharma and Artha, Kama is also considered to be a subject of Purusharth, which culminates into the attainment of marital happiness.” Another sage Vatsyayana, who was a philosopher of justice, and has written a commentary on the Nyaya Sutra written by Acharya named Akshapad Gautam. He was a resident of Kanchi, the famous learning center of South India. The period of this sage is considered to be 470 BC. Because there has been a lot of difference of opinion on Vatsyayan’s life, status period and nomenclature since the past. Probably this sage had composed ‘Kamasutra’. Kautalya and Vatsyayan in Hemchandra, Vaijayanti, Trikand Shesh and Nammalika koshas, these names are considered to be of the same person. Apart from these, the names of Chanakya, Vishnugupta, Mallanag, Pakshilaswamy, Dwamil or Dromin, Vararuchi, Mayjit, Punarvasu and Angul are also associated with them. Sage Vatsyayan was the author of Justice Shastra and Kamasutra. Being an ascetic, he composed a book like Kamasutra, which even today many people feel shy, even about mentioning its name. In this scripture, he has written about the subject of sexuality with great care. Kamasutra book has elaborate description of sexual activities. Sage Vatsyayan was a celibate and a monk. He had a deep understanding of the erotic subjects. Sage Vatsyayan believed that the topic of sexuality should be discussed openly and should not be ignored. Knowledge of this subject is necessary for a happy married life. It was for this purpose that he wrote this book. Maharishi Vatsyayan has not only described married life in Kamasutra but has also contributed in art, craft and literature. Through his book, he tried to ensure that people can get better information on this subject. It is said that Vatsyayana wrote the Kamasutra, after seeing the postures of various women/prostitutes in brothels. He has given a new and beautiful dimensions on the subject of sexuality. It is said that Vatsyayan Rishi, who spent a long time in Banaras, was very knowledgeable, philosopher and a knower of all the four Vedas. If Kamasutra is seen positively then it is a very informative book.