स्वामी रामकृष्ण परमहंस स्वामी राम कृष्ण का जन्म हुगली के एक गांव (पश्चिम बंगाल) में, सन् 1836 ई0 में एक निर्धन ब्राह्मण के घर हुआ था। रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। रामकृष्ण के जीवन पर एक कथा प्रचलित है, जिसमें उनके माता पिता को कुछ अद्भुत घटनाओं का एहसास हुआ। गया में उनके पिता को एक सपना आया, जिसमें उन्होंने देखा कि रामकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार में उनके घर जन्म लेंगे। वहीं उनकी माता को एहसास हुआ कि शिव मंदिर से उनके गर्भ पर रोशनी पड़ी। जिससे भगवान विष्णु के अवतार “गदाधर” का जन्म हुआ। स्वामी राम कृष्ण का पहला नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। वे सात वर्ष की अवस्था में कलकत्ता आए। सन् 1856 ई0 में कलकता से 5 मील दूर दक्षिणेश्वर के स्थानपर काली मन्दिर में रहने लगे। काली माता के वे अनन्य भक्त थे। 24 वर्ष की आयु वे गांव लौटे तो परिवार ने उनका विवाह 5 वर्ष की कन्या शारदा से कर दिया। वे तत्काल दक्षिणेश्वर मंन्दिर लौट गए। 12 वर्ष तक उन्होंने विभिन्न मतों का ज्ञान प्राप्त किया स्वामी राम कृष्ण की पत्नी मां शारदा लगभग साठ किलोमीटर पैदल चलकर उनके पास पहुंची। स्वामी जी ने मां शारदा का स्वागत किया, परन्तु यह स्पष्ट कर दिया कि वे उसे पत्नीके रूप में नहीं अपनाएगे। उन्होंने उसे काली मां के रूप में देखा और धूपबत्ती से पूजा की। मां शारदा एक योग्य पत्नी थी। उन्होंने कहा, ‘मैं आपकों पति रूप में नहीं देखूंगी। आपका भोजन ऊगी। सब तरह से ध्यान रखूंगी। मुझे यह बता देना कि भगवान् को कैसे प्राप्त किया जाता है।” रामकृष्ण परमहंस का मानना था कि ईश्वर का दर्शन किया जा सकता है. ईश्वर का दर्शन करने के लिए वह आध्यात्मिक चेतना की तरक्की पर जोर देते थे. आध्यात्मिक चेतना ईश्वर तक पहुंचे, इसके लिए वह धर्म को साधन मात्र समझते थे, इसलिए संसार के सभी धर्मों में उनका विश्वास था और वे उन्हें परस्पर अलग-अलग नहीं मानते थे. उनके आचरण और उपदेशों ने एक बड़ी आबादी के मन को छुआ, जिनमें उनके परम शिष्य भारत के एक और विख्यास आध्यात्मिक गुरु, प्रणेता और विचारक स्वामी विवेकानंद भी शामिल थे. स्वामी विवेकानंद ने ही अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर 1 मई 1897 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में एक धार्मिक संस्था ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की थी, जिसका साहित्य लोगों की आध्यात्मिक तरक्की में उनकी मदद करता है। स्वामी राम कृष्ण का उपदेश है. “विषय वासना कंचन, कामिनी से दूर रहना चाहिए। 16 अगस्त, 1886 को स्वामी राम कृष्ण जी का स्वर्गवास हो गया। देहान्त से कुछ समय पूर्व उन्होंने अपनी समस्त आध्यात्मिक शक्तियाँ स्वामी विवेकानन्द जी को प्रदान कर दी।