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Alok Mohan

The admin, Alok Mohan, is a graduate mechanical engineer & possess following post graduate specializations:- M Tech Mechanical Engineering Production Engineering Marine engineering Aeronautical Engineering Computer Sciences Software Engineering Specialization He has authored several articles/papers, which are published in various websites & books. Studium Press India Ltd has published one of his latest contributions “Standardization of Education” as a senior author in a book along with many other famous writers of international repute. Alok Mohan has held important positions in both Govt & Private organisations as a Senior professional & as an Engineer & possess close to four decades accomplished experience. As an aeronautical engineer, he ensured accident incident free flying. As leader of indian team during early 1990s, he had successfully ensured smooth induction of Chukar III PTA with Indian navy as well as conduct of operational training. As an aeronautical engineer, he was instrumental in establishing major aircraft maintenance & repair facilities. He is a QMS, EMS & HSE consultant. He provides consultancy to business organisations for implimentation of the requirements of ISO 45001 OH & S, ISO 14001 EMS & ISO 9001 QMS, AS 9100, AS9120 Aero Space Standards. He is a qualified ISO 9001 QMS, ISO 14001 EMS, ISO 45001 OH & S Lead Auditor (CQI/IRCA recognised certification courses) & HSE Consultant. He is a qualified Zed Master Trainer & Zed Assessor. He has thorough knowledge of six sigma quality concepts & has also been awarded industry 4, certificate from the United Nations Industrial Development Organisation Knowledge Hub Training Platform  He is a Trainer, a Counselor, an Advisor and a Competent professional of cross functional exposures. He has successfully implimented requirements of various international management system standards in several organizations. He is a dedicated technocrat with expertise in Quality Assurance & Quality Control, Facility Management, General Administration, Marketing, Security, Training, Administration etc. He is a graduate mechanical engineer with specialization in aeronautical engineering. He is always eager to be involved in imparting training, implementing new ideas and improving existing processes by utilizing his vast experience.

Ramavtar

Written by Alok Mohan on March 26, 2023. Posted in Uncategorized

रामावतार
रामावतार दशमग्रन्थ साहिब में संग्रहीत 24 अवतारों के अन्तर्गत हैं। इस में 26 अध्याय है। रामावतार का लेखक वाल्मीकि रामायण से अधिक प्रभावित है राम के जन्म से लेकर स्वर्गारोहण तक इस में सम्पूर्ण राम कथा दी गई है। वाल्मीकि रामायण का एक श्लोक ज्यों का त्यों ही रखा गया है।
ततो दशरथः प्राप्य पायसं देवनिर्मितम् । बभूव परम प्रीतः प्राप्य वित्तमिवाधनः ।। खीर पात्र कढ़ाई लेकरि दीन नृप के आन । भूप पाई प्रसन्न भयो जिमु दारदी लै दान ।। रामावतार का महात्मय भी वाल्मीकि रामायण के आधार पर है। : यावत स्थास्यन्ति गिरयः सरतिश्च महीतले । तावद्रामायण – कथा लोकेश प्रचारिष्यति ।।
राम कथा जुग २ अटल, सभ कोई भारवत नेता । जो इह कथा सुने और गावै। दुख पाप तिह निकट न आवै । वाल्मीकि रामायण के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों का प्रभाव भी रामावातर पर लक्षित होता है। हवि वितरण तथा श्रवण कथा ‘उदार राधव’ और राधवीयम् के अनुरूप है। दशरथ के प्रति लक्ष्मण का आक्रोश राम द्वारा सम्पत्ति दान ‘रामायण मंजरी’ पर आधारित है। ‘लक्ष्मण रेखा का हिन्दी के ग्रन्थों सूर-सागर तथा ‘राम-चन्द्रिका में वर्णन है।
लेखक ने फारसी की रामायण मुल्ला मसीह से भी कुछ विचार ग्रहण किए हैं। रामावतार में सीता के द्वारा रावण का चित्र बनाना भी इसी रामायण से लिया गया है। रामायण मसीह में राम की बहिन के कहने पर सीता रावण का चित्र बनाती है, परन्तु रामावतार में सखी के कहने पर वाल्मीकि ऋषि द्वारा सीता के दूसरे पुत्र की रचना तथा लवकुश द्वारा पराजित हो कर राम आदि का अचेत हो जाना आदि । परन्तु उनके सचेती करण में थोड़ा भेद है। रामायण मसीह में ऋषि वाल्मीकि जल छिड़क कर उन्हे चेतनावस्था में लाते है परन्तु रामावतार में सीता । गोसाई गुरवाणी से भी रामावतार का लेखक प्रभावित है। विश्वामित्र द्वारा राम लक्ष्मण को दो मार्ग दिखाने, एक छोटा परन्तु डरावना, दूसरा लम्बा तथा वाल्मीकि द्वाराकुश की रचना ।
हृदय राम भल्ला द्वारा रचित ‘हनुमान नाटक’ से भी रामावतार का रचयिता प्रभावित है। लेखक ने इस का उल्लेख भी किया है। रामावतार वीर काव्य है। युद्ध वर्णन में लेखक का मन अधिक रमा है। राम के शौर्य गुणों का बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया है। राजा दशरथ श्री राम को युवराज पद देने से पूर्व उन के वीर रूप को प्रतिष्ठित करते हैं। राजा दशरथ अश्वमेघ यज्ञ करवातें हैं और श्री राम दिग्विजय को प्रस्थान करते हैं। और अनेक राजाओं को दास बनाकर लोटतें है। राम परम पवित्र हैं रघुवंश का अवतार । दुष्ट देतन को संहारक सन्त प्रानाधार ॥ देस देस नरेस जीत, अनेक कीन्ह गुलाम ।
रामावतार के राम विष्णु के अवतार हैं उनके जन्म का उद्देश्य धरती को असुरों से मुक्त कराना है, देवताओं के कार्य सिद्धि के लिए अकाल पुरूष ने राम को अवतार धारण करने के लिए कहा है। रणबीर प्रगट भए । जग अटल राम अवतार ।। अवतार धरो रघुनाथ हर । चिर राज करो सुख से अवध ।। गुरू गोविन्द सिंह हिन्दी – पंजाबी भाषाओं के अतिरिक्त उर्दू व फारसी के भी ज्ञाता थे। रामावतार ब्रज भाषा (हिन्दी) में लिखा है, उस की लिपि गुरूमुखी है, परन्तु उर्दू फारसी के शब्द भी कहीं-कहीं दिखाई देते है, यथा-जालिम, कमाल, जुल्फ, गुलाम, हराम। ये शब्द समाज में बोलचाल में भी उपयुक्त होते थे। और साहित्य में भी इन का उपयोग होता था।
वीर काव्य होने के कारण इस ग्रन्थ में युद्ध वर्णन अधिक हैं। लेखक का उद्देश्य वीर रस का निष्पादन है। पंजाबी छंद शिखण्डी का उदाहरण है।
जुट्टे वीर जुझारें धग्गां वज्जियां ।।
रामावातार में मार्मिक स्थलों का अभाव है। रामावतार के अतिरिक्त गुरू गोविन्द सिंह के दरबारी कवियों द्वारा संस्कृत के ग्रन्थों, वाल्मीकि रामायण, महाभारत आदि का अनुवाद हिन्दी पंजाबी भाषा में किया गया ।
मुस्लिम शासन में उर्दू भाषा सरकारी भाषा बना दी गई थी। स्कूलों में लड़कों को आरम्भ से ही उर्दू पढ़ाया जाता था। अंग्रेज राज्य में भी यही सिलसिला रहा, परन्तु अंग्रजी भाषा छठी कक्षा से आरम्भ की गई थी। समस्त पंजाब में पुरुष वर्ग हिन्दु-मुस्लिम सभी उर्दू पढ़ते व लिखते थे । कतिपय उर्दू लेखकों ने राम कथा का उर्दू भाषा में अनुवाद भी किया और अपनी रुचि अनुसार राम कथा लिखी। मुझे खेद है कि मैं उनका विवरण नही जुटा पाई। उन लेखकों में धनी राम चात्रक का नाम उल्लेखनीय है । बचपन में उर्दू में लिखी रामायण व अन्य धर्मिक ग्रन्थ पढ़ती रही हूँ ।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार सन् 1643 ई० से 1843 ई० तक का समय साहित्य का रीति काल माना जाता है। इस काल में रचित काव्य की मुख्य प्रवृतियां श्रृंगारिकता, आलंकारिकता और लक्षण गन्थों का निर्माण थी । विलासमय वातावरण में रचित इस काव्य की श्रृंगारिकता अश्लीलता के अति निकट है। हिन्दी भाषी प्रान्तों में सगुण धारा के अन्तर्गत रसिक संप्रदाय चल पड़ा था। इस मत के अनुयायियों ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का चरित्र-चित्रण भी श्रृंगारिक धरातल पर करना आरम्भ कर दिया था। परन्तु यह साहित्य लोकप्रिय नहीं हुआ। परन्तु पंजाब में सगुण धारा के प्रवर्त्तक पण्डोरी धाम के वैष्णव श्री भगवान और नारायण बद्दो की (गुजरां वाला, अब पाकिस्तान) के गोसाई, गुरु ध्यानपुर ( गुरदासपुर) के बाबा लाल तथा गुरुनानक देव के पुत्र श्री चन्द द्वारा स्थापित सम्प्रदायों के अनुयायियों ने श्री राम व श्री कृष्ण के मर्यादापूर्ण आदर्श ही अपनाए रखें

रसिक सम्प्रदाय

तुलसी दास के पश्चात् हिन्दी भाषी प्रान्तों में राम साहित्य एक नई दिशा की और मुडा । इस साहित्य की विभिन्न शाखाओं के नाम जानकी सम्प्रदाय, जानकी बल्लभ सम्प्रदाय और रहस्य- सम्प्रदाय आदि हैं। इन सम्प्रदायों में राम-सीता की युगल रूप में उपासना की जाती है। रसिक सम्प्रदाय के भक्त उन ग्रन्थों से प्रभावित प्रतीत होते हैं, जिन में श्री राम के श्रृंगारी रूप को अपनाया गया है। यथा तमिल भाषा में रचित कंवन रामायण (10वीं शताब्दी) संस्कृत भाषा में रचित आनन्द रामायण (15वीं शताब्दी) राम-लिंगामृत तथा भुशुण्डि रामायण आदि ।इस सम्प्रदाय के इषृदेव श्री राम परात्पर ब्रह्म है। कारण रूप में निर्गुण है और कार्य रूप में सगुण सीता उन की पराशक्ति है। इस साहित्य में पूरी राम कथा के दर्शन नही होते । कवियों का मुख्य उद्देश्य अपने ईष्ट देव की रसिक मनोवृतियों का चित्रण करना है। अतः उन की रचनाओं का विषय पुष्प वाटिका, राम-सीता मिलन ही रहे। यह साहित्य ब्रज व अवधी भाषाओं में रचा गया है। रसिक सम्प्रदाय के प्रमुख भक्त कवि व उनकी रचनाएं इस प्रकार हैं। अग्रदास : ये तुलसी दास के समकालीन थे। सोलहवीं शताब्दी के उतरार्द्ध में इन का जन्म राजस्थान में हुआ । इन की रचनाएं यान-मंजरी, श्रृंगार रस, व अग्रसागर हैं।नाभादास : ये अग्रदास के भक्तों में थे। उनकी रचनाएं भक्तमाल और राम-अष्टयाम हैं। भक्तमाल में दो सौ भक्तों का परिचय दिया गया है। राम अष्टयाम में श्री राम की विभिन्न लीलाओं का वर्णन है।बाल कृष्ण अली के नेह प्रकाश नाम के अनेक ग्रन्थ हैं। सीतायन: राम प्रिय शरण द्वारा रचित सीतायन में सात काण्ड हैं। सीता के बालपन और यौवन काल की लीलाओं का वर्णन है। उज्जवल, उत्साह, विलास उन के अन्य ग्रन्थ है। रामचरण दास : ये अयोध्यावासी थे। गणपति चन्द्र गुप्त के अनुसार इन के 25 ग्रन्थ हैं। इन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य राम चरित मानस की टीका है। इन का जन्म 1817 ई० में तथा प्राणन्त सन् 1888 में हुआ।महाराज विश्वनाथ सिंह का जन्म 1846 वि में हुआ तथा मृत्यु 1911 विं० में हुई। इन के ग्रन्थों की संख्या 38 है। काठ जिह्वा स्वामी : इन की 15 रचनाऐं उपलब्ध हैं। इन्होनें श्री राम के दोनों रूपों निर्गुण व सगुण को माना है। वे भगवान् राम को सत्य स्वरूप, लक्षमण को ज्ञान स्वरूप और सीता को शक्ति मानते हैं। इन का गुरू के साथ विवाद हो गया। अतः उन्होनें पश्चाताप के कारण जीभ पर काठ का खोल चढा लिया था । उमापति त्रिपाठी कोविद : ये संस्कृत व हिन्दी के विद्वान थे। इन्होने वात्सल्य भाव से राम की भक्ति की है। स्वयं को गुरू और श्री राम को राजकुमार मानते थे। इन के 42 ग्रन्थ थे । बाबा रघुनाथ राम स्नेही : इन का महत्व पूर्ण ग्रन्थ विश्राम सागर है। इसके रामायण खण्ड में राम कथा है। यह ग्रन्थ राम चरित मानस से प्रभावित है।बाबा बनादास : इन का जन्म सं० 1890 विं० को हुआ था । गोंडा जिले के निवासी थे। ये राम निर्गुण और सगुण दोनों रूपों को मानते थे। गुरु खण्ड में उन्होनें तुलसी को कवि सम्राट की उपाधि दी थी, तथा उन्हें अपना गुरु माना था। युगल नारायण हेमलता : इन के 84 ग्रन्थों में 75 उपलब्ध हैं। अयोध्या में लक्ष्मण किला इन का निवास स्थान था। इन का समय 1818 वि० से 1876 विक्रमी तक है। ये अपने समय के प्रसिद्ध भक्त व सिद्ध थे। जानकी प्रसाद रसिक बिहारी : इनका जन्म काल सं० 1901 है। कनक भवन (अयोध्या) में निवास करते थे। ये भी तुलसी से प्रभावित थे। इनके द्वारा रचित राम रसायण राम-भक्ति शाखा का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। महाराज रघुनाथ सिंह, ये विश्व नाथ सिंह जी के पुत्र थे । इन का समय सं० 1890 वि० है । इन की भक्ति दास्य भाव की थी। इस काव्य में उस समय की राजसी वैभव दिखाई देता है। उपरोक्त भक्त कवियों के अतिरिक्त कई अन्य हैं। जिन में कुछेक निम्न हैं। सूर किशोर, राम सखे, कृपा निवास, शिव लाल पाठक, राम गुलाम द्विवेदी, जीवा राम युगल प्रिय, जनक राज .किशोरी, शरण अली, प्रताप कुंवरि बाई, पतित दास रघुनाथ दास आदि । भाषा प्रान्तों का अन्य साहित्य यह साहित्य रसिक समप्रदाय से भिन्न है। 18-19 वीं शताब्दी में “अद्भुत रामायण” नामक रचनाएं लिखी गई थी। उन लेखकों में शिव प्रसाद, भवानी लाल, नवल सिंह के नाम उल्लेखनीय है । इन कथाओं में रावण का वध सीता के हाथों करवाया गया है।रामायण सूचनिका 33 दोहों में है इसमें अक्षरों के क्रम से राम कथा दी गई है। यह 1857 वि० से पहले की रचना है। अनेक काव्य रामायण के रामेत्तर पात्रों को नायक बना कर लिखे गये हैं।

Ram Sahitya

Written by Alok Mohan on March 26, 2023. Posted in Uncategorized

राम चरित से सम्बधिंत अन्य साहित्य
1. भरत मिलाप : “भरत मिलाप ” प्रथम प्रबंध काव्य माना जाता है। यह 16 वी० शताब्दी के आरम्भ में लिखा गया था। इसकी विभिन्न प्रतियों में पाठ भेद है। कहीं तुलसी दास कहीं सूरज दास और ईश्वर दास लेखक माने गए हैं। इस की भाषा शैली को देखते हुए इसे गोस्वामी तुलसी दास की रचना मानने का कोई भी विद्वान तैयार नहीं हुआ।
व्याकुल भए भरथ विशेषा। नंहि सभारहिं सिर के केशा ।। घर घर रोवे पुरूष और नारी । बार जात रोवे पनिहारी ।।
2. सूर-सागर : सूर दास रचित सूर सागर के नवम स्कंद में लगभग 150 पद श्री राम सम्बन्धी हैं। सूर दास के राम काव्य का उद्देश्य असत्य पर सत्य की विजय है।
3. राम चन्द्रिका : इस के लेखक प्रसिद्ध कवि केशव दास हैं। इन का जन्म सं० 1612 और मृत्यु सं० 1678 के लगभग हुई। राम-चन्द्रिका का रचना काल सं० 1658 वि० है । लेखक गणेश सरस्वती और श्री राम की वंदना से ग्रन्थ को आरम्भ करता है। केशव दास दरबारी कवि थे। उन का मन राजसी ठाठ, नगरों की चहल पहल आदि के वर्णन में अधिक लगा। केशव भक्त नहीं थे। अंतः राम चन्द्रिका भक्ति काव्य नहीं है। कवि को संवाद योजना में सफलता मिली है। रावण हनुमान संवाद अच्छा उदाहरण है। रे कपि कौन तू ?
अक्ष को घातक, दूत बलि रघुनन्दन जी को ।
को रघुनन्दन रे ? त्रिशिरा-खर-दूषण दूषण भूषण भू को ।
सागर कैसे तरयो ?
जंस गो पद ।
काज कहां ?
सिय चोरहि देखन।

4. रामायण महानाटक: इस रचना के लेखक प्राणचन्द चौहान हैं । रचना काल सं० 1667 विं० है। ग्रंथ आरम्भ में कवि ने राम के दोनो रूपों निगुर्ण और सगुण का वर्णन किया है। यह पद्यबद्ध संवादों में प्रबंध काव्य है, नाटक नहीं। कवि गोस्वामी तुलसी दास से प्रभावित है।

5. हनुमान नाटक : इस के लेखक हृदय राम भल्ला हैं। रचनाकाल सं० 1680 है। हृदय राम ने इस रचना को राम गीत या राम चन्द्र गीत नाम दिया था। परन्तु संस्कृत के हनुमन्नाटक पर आधारित होने के कारण कालान्तर में इस का नाम हनुमान नाटक पड़ गया। हृदय राम भल्ला का सम्बन्ध सिक्ख परिवार से था। भाई गुरूदास भल्ला जिन्हें सिक्ख पंथ का वेद व्यास कहा जाता है, तृतीय गुरु अमर दास के भतीजे थे। ह्यदय राम भल्ला भी गुरूदास के समय ही हुए थे। गुरू गोविन्द सिंह इस ग्रंथ की प्रति सदैव अपने पास रखते थे। पंजाब में यह अत्यन्त लोकप्रिय रहा है। पंजाब के सभी बड़े पुस्तकालयों में इस की हस्तलिखित प्रतिया उनलब्ध हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ 14 अंकों में बंटा है। कथा योजना, घटनाओं का क्रम आदि संस्कृत के हनुमन्नाटक पर आधारित है तथापि यह अनुवाद नहीं है। कवि ने भक्तिभावना व जन रूचि के अनुसार कथा में परिवर्तन कर दिया। संस्कृत नाटक के द्वितीय अंक में वर्णित श्रीराम व सीता की श्रृंगारिक लीलाओं को कवि ने अपनी रचना में स्थान नहीं दिया। इस की भाषा ब्रज है परन्तु कहीं-कहीं पंजाबी पन है, यथा भाज गई रानी सब रावण के पास से।
ध्यानपुर गद्दी के संस्थापक बाबा लाल जी दारा शिकोह के उपदेशक थे। सात दिन तक बाबा लाल जी का दारा के साथ प्रश्नोत्तर होता रहा, उनकी वाणी का निम्न उदाहरण है।
राम का नाम बिन जीव के ठवर जु कतहुं नाहि । राम नाम अति कठिन है, सभ को दुर्लभ होई ।।
उन के शिष्य बलराम का कथन है
जय जय रघुनायक कर धृत सायक। तनु निर्णायक सुखकारी ।। रावण नाशक सुखद विभीषण द्वैत विभजन पद चारी
भुज आदि रामायण: यह ग्रथं गुरु अर्जुन देव के भतीजे सोढी मेहर वान द्वारा रचित है। मेहरबान हृदय राम के समयकालीन थे। इन की रचनाएं कच्ची वाणी के अन्तर्गत आती हैं। यह 18 कथाओं में विभाजित है। प्रत्येक कथा से पूर्व महेरबान कृत एक श्लोक है। श्लोक की व्याख्या हरि जी द्वारा गद्य में की गई है। इस ग्रंथ की हस्त लिखित प्रतिया भाषा विभाग पंजाब, पटियाला, सैन्ट्रल पब्लिक लायब्रेरी पटियाला तथा सिक्ख रैफरेंस लायब्ररी अमृतसर में सुरक्षित थी, परन्तु अब ये अमूल्य प्रतियां हैं कि नहीं, सन्देह है।

7. गोसाई गुरवाणी: गोसाई मत का धार्मिक ग्रन्थ है। देश विभाजन के समय “बद्दोकी गोसांई आश्रम” विधर्मियों द्वारा नष्ट कर दिया गया था। ग्रन्थ के पृष्ट आंधी तुफान में बिखर रहे थे। एक भक्त ने अपनी जान हथेली पर रखकर उन पन्नों को इक्ट्ठा किया और भारत लाने में सफल हो गया। सन् 1964 ई० में यह ग्रन्थ प्रकाशित हुआ।
8. रामावतार : ( गुसाई गुरूवाणी के अन्तर्गत) इसके अन्तर्गत दशावतार में श्री राम की पूरी कथा 242 पद्यों में दी गई है। गोसाई पंथ के गुरू स्वयं को आचार्य रामानंद की परम्परा में मानते हैं।
भाई गुरूदास का काव्य सिक्ख धर्म के प्रचारक तथा संस्कृत व हिन्दी के विद्वान भाई गुरूदास ने अपनी पंजाबी वारों तथा ब्रज भाषा रचित कवित सवैयों में श्री राम का यशोगान किया है। निर्गुण भक्ति को अपनाते हुए भी उन्होनें अवतारवाद में आस्था दिखाई है।
पंडोरी धाम (गुरदास पुर, पंजाब) के गुरू भी स्वयं को आचार्य रामानन्द की परम्परा में मानते हैं। उन्होने श्री राम के सगुण रूप को अपनाया तथा राम भक्ति का प्रचार प्रसार किया । तथा

भगवन् नारायण गुरूओं की वाणी का उदाहरण निम्न है। रिधि-सिद्धि मेरे नाहिं काम ।
भक्ति का दान दीजो मेरे राम ।।

अति राम अगाध गति ।
कहा कहो को ध्याई ।।
बिशन पदे : राम चरित मानस के आधार पर लिखे ये बिशन पदे पंजाबी कवि तुलसी दास कृत हैं। यह 125 पृष्ठों का हस्तलिखित ग्रंथ है। इस की भाषा ब्रज है। शैली सरल व सहज है।

9. घट रामायण : सन्त तुलसी दास हाथ रस द्वारा रचित है। वे स्वयं को गो० तुलसी दास का अवतार मानते थे।
16 वीं शताब्दी में पंजाब में स्थान -२ पर गुरू गद्दियां स्थापित हो गई थी। गुजरांवाला के तलवंडी ग्राम में सिक्ख पंथ के प्रवर्त्तक गुरू नानक देव का उदय हो चुका था। गुरदास पुरके पण्डोरी धाम व ध्यान पुर तथा बद्दोकी गोसाइंया (गुजंरावाला) हिन्दुओं के धार्मिक केन्द्र बन चुके थे। इन सभी गुरुओं का उद्देश्य भगवत भजन व जन साधारण को उपदेश देना था। उनके उपदेशों का विषय संसार की असारता, प्रभु-भक्ति, मानवता अंध विश्वास का खंडन आदि था। जन साधारण इन उपदेशों द्वारा अपने संतप्त हृदय शीतलकर लेते थे। शासकों के क्रूर कर्मों द्वारा हुई धन जन की हानि भी वे भूल जाते थे। ये केन्द्र एक ओर अपनी सभ्यता, संस्कृति व धर्म के प्रति जनता को जागरूक रखने का कार्य कर रहें थे। दूसरी ओर हिन्दुओं को संगठित करने में भी सहायक हो रहे थे। गुरूओं ने परमात्मा का निराकार रूप प्रस्तुत करके अपनी संस्कृति की व्यापक परम्परा से जनता को अवगत कराया।

इन गुरूओं के उपदेशों से जनता की आस्था हिन्दु धर्म दृढ़ हो रही थी, और लोग धर्म के मंच पर संगठित हो रहे थे। इस प्रकार की गतिविधियां मुस्लिम शासकों को खटकनी स्वभाविक थी। अतः शासन की और से गुरूओं पर अत्याचार आरम्भ हो गए।
जहांगीर के शासन काल में सिक्ख पंथ के पांचवे गुरू श्री गुरू अर्जुन देव जी को असहनीय यातनाएं दी गई जो उन के देहान्त का कारण बनी। पण्डोरी धाम के भगवन नारायण को जंहागीर के दरबार में विष के प्याले पिलाये गए। बद्दोकी गोसाइंया के गुरू कांशी राम को जेल में बंद किया गया । वृद्ध कवि तुलसी दास को भी जहांगीर ने कारावास में कई दिन रखा।
आज दूरदर्शन के द्वारा जनता को जहांगीर की न्यायप्रियता के विषय में कथांए सुनाई जाती हैं तो आश्चर्य होता है। इतिहास को कैसे तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है।
जहांगीर के शासन काल में मुरतजा खान, इत्याद उद्दौला कासिम खां, शहजहाँ के समय अली मरदान खां, ओरंगजैब के समय वजीर खां पंजाब के सूबेदार थे । हिन्दु जनता पर जो भी अत्याचार हो रहे थे, इसके जिम्मेदार पंजाब के शासक व केन्द्रीय सरकार दोनों थे।

10. गुरू गोविन्द सिंह जी

नवम गुरू तेग बहादुर, भाई मतिदास, भाई सतिदास, भाई दयाल आदि के बलिदान के बाद सिक्ख पंथ पूरी तरह जंगी सेना में बदलगया था। भारतीय जनता के धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक अधिकारों पर कई सदियों से मुस्लिम शक्तियों के आक्रमण हो रहे थे। सम्पूर्ण देश को गुलाम बनाया जा रहा था और जन साधारण को बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया जा रहा था। गुरु गोविन्द सिंह न केवल उच्च कोटि के कवि व साहित्य स्रष्टा थे अपितु अनेक साहित्यकारों के आश्रय दाता व संरक्षक थे। आनन्द पुर उनका साहित्यिक केन्द्र था। गुरु जी के दरबार बावन कवि थे। इन कवियों की काव्य साधना हिन्दी भाषी प्रान्तों के रीति-कालीन कवियों की काव्य साधना से नितान्त भिन्न थी। जहाँ अन्य दरबारी कवि आश्रय दाता की प्रशंसा करना व पाण्डित्य प्रदर्शन करना अपना उद्देश्य समझते थे। वहाँ गुरु जी के दरबारी उन के द्वारा संचालित सांस्कृतिक आंदोलन को बल प्रदानकरना अपना कर्त्तव्य समझते थे। गुरु जी ने इन कवियों से महाभारत आदि प्राचीन ग्रन्थों का भाषानुवाद करवाया। और उन्हे स्वतन्त्र काव्य रचने के लिए प्रोत्साहन दिया।
गुरु जी व उन के कवियो द्वारा रचित “विद्याधर” ग्रन्थ निरन्तर युद्धों के कारण नष्ट हो गया। जो कुछ बिखरी हुई रचनायें प्राप्त हुई उनका भाई मणि सिंह ने सम्पादन कर के “दशम ग्रन्थ साहिब” का नाम दिया। दशम ग्रन्थ की भाषा ब्रज है, तथा विचारधारा भारत वर्ष की शायवत धर्मिक चिन्तनधारा के अनुरूप है।
आधुनिक पंजाबी लेखक दशम ग्रन्थ साहिब में संग्रहीत सम्पूर्ण काव्य को गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा रचित नहीं मानते। इनके अनुसार निर्गुण धारा का प्रतिनिधित्व करने वाला काव्य यथा जपु जी, अकाल उसतुति, तेत्तीस सवैये, शब्द हजारे गुरु जी द्वारा रचित हैं। अन्य काव्य उन के दरबारी कवियों का है।

Tulsi Dass

Written by Alok Mohan on March 26, 2023. Posted in Uncategorized

गोस्वामी तुलसी दास
गोस्वामी तुलसीदास संत थे। उन्होंने राम चरित मानस की रचना की थी। वे हिंदी साहित्य के एक महान कवि थे। उन्हें आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। गो० तुलसी दास के समय भारत पर मुगलों का राज्य था। पंजाब के सूबेदार दौलत खां द्वारा आमंत्रित बाबर ने सन् 1518 ई० से लेकर 1525 ई० तक भारत पर कई आक्रमण किये व पंजाब के कई स्थान अपने अधिकार में कर लिए। 1526 ई० में पानीपत के स्थान पर इब्राहीम लोधी व बाबर के मध्य भीषण युद्ध हुआ। लोधी मारा गया, बाबर की विजय हुई। 1527 ई० में बाबर ने राणा संग्राम सिंह पर आक्रमण कर दिया। बाबर ने इस जीत को अल्लाह की देन समझा और राजपूतों के शिरों का स्तूप बनाकर अपनी जीत का स्मारक खड़ा किया। उसने हिन्दुओं के मन्दिर तोड़ कर मस्जिदें बनाई, अयोध्या का वर्णन करते हुए लाला सीता राम लिखते हैं। “बहुत ही थोड़ी तोड़ फोड़ से मन्दिर की मस्जिद बन गई” मूसा आशिकान ने मरते समय कहा “जन्म स्थान का मन्दिर हमारे ही कहने से तोड़ा गया है। इस के दो खम्बे बिछाकर हमारी लाश रखी जाए और दो हमारे सिरहाने गाढ दियें जाए।” मुस्लिम राम भक्त अमीर खुसरो का जन्म एटा (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उन्होने राम नाम की महिमा गाई है। मुस्लिम राम भक्तों को उन से प्रेरणा मिली है।
रहीम अपने बुरे दिनों में गो० तुलसी दास के साथ चित्रकूट में रहे, उन्होंने श्री राम के प्रति अपने भाव इस प्रकार प्रकट किये है। चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध नरेश। जा पर विपदा परत है, वह आवत यही देश ।। भज मन राम सिया पति रघुपति ईश। दीन बन्धु दुखः हारन कौशलाधीश ।। उन की वाणी का अन्य उदाहरण है।
राम नाम जान्यो नहीं, जान्यो सदा उत्पादि। कहि रहीम तिहि आपुनो जनम गंवायो वादि ।।
दरिया का कथन :
सुमरिन राम का कर लीजे दिन रात । हाथ काम मुख राम है, हिरदे सांची प्रीत । दरिया ग्रेहीं साध की, याही उत्तम रीत ।। रज्जब कहते हैं।
राम रसायन पीजिए, पी ए ही सुख होय ।।
गोस्वामी तुलसी दास रचित 40 कृतियों में से केवल 12 ही प्रमाणिक मानी जाती है। अन्य भाव, भाषा शैली भिन्न होने के कारण विद्वान किसी अन्य लेखक द्वारा रचित मानते है। राम साहित्य के अन्तर्गत वे रचनाएं हैं। राम चरित मानस के अतिरिक्त बजरंग बाण, बजरंग साठिका, छंदावली रामायण, छप्पय रामायण, हनुमान स्तोत्र, हनुमान चालीसा, हनुमान पंचक, पद-बंध रामायण, राम मुक्तावली, संकट मोचन आदि ।
तुलसी दास के प्रमाणिक ग्रन्थों में राम साहित्य के अन्तर्गत निम्न ग्रन्थ हैं। राम चरित मानस, जानकी मंगल, गीतावली, राम लला नहछु, बरवै रामायण, हनुमान बाहुक, रामाज्ञा प्रश्न आदि। राम चरित मानस भक्ति काव्य है। यह तुलसी दास का सर्वोतम ग्रंथ है। इस में सात काण्ड हैं। इस ग्रन्थ में राम जन्म से लेकर अयोध्या लोटने तथा राम राज्य का वर्णन है। अन्तः साक्ष्य के आधार पर इस का आरम्भ मंगलवार, चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि, स० 1631 वि० है। दोहा, चौपाई, सोरठा, छंद आदि वृत में रचित है। ग्रन्थ-रचना का मुख्य उद्देश्य राम भक्ति का प्रचार है। तुलसी दास ईष्ट देव राम हैं। वे ही मानस कथा के प्रतिपाद्य हैं । जेहि मंहु आदि मध्य अवसाना । प्रभु प्रति पाद्य राम भगवान।। राम चरित मानस के प्रेरणा स्रोत :
तुलसी दास के कथन के अनुसार “उन की रचना” नाना पुराण निगमागम सम्मत है। अध्यात्म रामायण से अधिक प्रभावित है। इस के अतिरिक्त तुलसी दास महाभारत, अनर्ध राघव, प्रसन्न राघव, आनन्द रामायण, अद्भुत रामायण, रघुवंश, नृसिंह, भागवत पुराण, योग वसिष्ठ सत्योपाखान आदि से भी प्रभावित है।
सर्व प्रथम योग वसिष्ठ में काकभुशुणिड की कथा मिलती है, परन्तु उसमें राम भक्ति या पूर्व जन्म की कथाएं उपलब्ध नहीं है। सत्योपाख्यान में काकभुशुणिड की कथा कुछ अन्तर के साथ है।
वास्तव में मानस की कथा वस्तु का मूल आधार वाल्मीकि रामायण है। परन्तु इस में प्रकाशित धर्म-भावना मध्यकालीन सहित्य की है।
तुलसी की भक्ति भावना मानस के छंद योजना से भी दिखाई देती है। मानस का आरम्भ वैदिक अनुष्टुप से तथा प्रत्येक काण्ड के आरम्भ में संस्कृत वृतों में मंगला चरण उन की शास्त्र निष्ठा व संस्कृत प्रेम और धार्मिक रुचि के प्रमाण है। संस्कृत के सरस और मधुर छंदो के प्रयोग ने ग्रन्थ के समस्त वातावरण को दिव्यता प्रदान कर दी है।
संगीत की दृष्टि से भी राम चरित मानस के छंद अत्यधिक मनमोहक है। इस ग्रन्थ का सस्वर पाठ एक अनुयम आहलाद प्रदान करता है। समाज के सभी वर्गों में इस का पाठ अति लोकप्रिय है। सुन्दर काण्ड में राम भक्त हनुमान का यशोगान है। विघ्न निवारण हेतु लोग मंगलवार व शनिवार को सुन्दर काण्ड का पाठ करते है। गोस्वामी तुलसी दास के हृदय की सब से बड़ी बलवती भावना भक्ति थी। कई स्थलों पर उनका भक्ति काव्य मधुर हो उठा है। यथा भय प्रगट कृपाला, दीन दयाला कौसल्या हितकारी । हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भूत रूप विचारी ।तथा एहि मंह रघुपति नाम उदारा । अति पावन पुराण श्रुति सारा ।। मंगल भवन अमंगल हरि । उमा सहित जेहि जपत पुरारी ।। धन्य भूमि वन पंथ पहारा। जहं जहं नाथ पाउ तुम धारा ।। धन्य विहग मृग कानन चारी । सफल जनम भए तुम्हहिं निहारी ब्रह्म का स्वरूप : सगुण उपासक होते हुए भी तुलसी दास के काव्य में ब्रह्म के दोनों रूपों के दर्शन होते हैं ब्रह्म निरंकार रूप में भक्ति का आलम्बन नही बन सकता भक्ति के आलम्बन के लिए उसे सगुण रूप धारण करना होगा। तुलसी दास के अनुसार निर्गुण ब्रह्म भक्तों के प्रेम वश सगुण रूप धारण कर लेता है। अगुन अरूप अलख अज जोई। भगत प्रेम बस सगुन सो होई ।।
सैद्धान्तिक रूप में ब्रह्म निराकार ही माना गया है। तुलसी दास के सगुण राम भी वस्तुतः निर्गुण हैं। उन्होने निर्गुण और सगुण में भेद नही माना। भवबन्धनों से मुक्ति पाने के लिए दोनों रूपों को अपनाया जा सकता है। सगुनहिं अगुनहिं नहिं कुछ भेदा । उभय हरे भव संभव खेदा ।।
उन का कथन है :
हिय निर्गुण नयनहिं सगुन रसना राम सुनाम
तुलसी दास ने ज्ञान मार्ग की निन्दा नहीं की अपितु मुक्ति निरूपण करते समय ज्ञान की महता को स्वीकार किया। उन्होनें अपने काव्य में दोनों का परस्पर सम्बन्ध दिखलाया है।

जानकी मंगल : इस में विश्वा मित्र के साथ राम लक्षमण का मिथिला गमन से लेकर राम सीता के विवाह का वर्णन है भाषा ब्रज व अवधी मिली हुई है।
गीतावली – इस कृति में राम का जीवन चरित्र गेय छंदों में है। भाषा ब्रज है रचना काल 1643 वि० है ।

राम लला नहछु – यह रचना शुभ अवसरों पर महिलाओं के गाने के लिए लिखी गई लगती है। रचना काल 1665 वि० है ।
बरवै रामायण – इस में श्री राम से सम्बन्धित प्रमुख घटनाओं का उल्लेख है । यह बरवै छंदों मे रचित है कुल छंद 69 हैं।
हनुमान बाहुक – सं०1664 विं के लगभग तुलसी दास वात – व्याधि से पीड़ित हो गए थे। इस कष्ट से मुक्ति पाने के लिए उन्होनें हनुमान बाहुक की रचना की यह 44 पदों में रचित हनुमान स्तोत्र कवितावली में परिशिष्ट रूप में जोड़ा गया है।
रामाज्ञा प्रशन रचनाकाल सं० 1621 के लगभग है। इस में सात सर्ग है । सम्पूर्ण ग्रन्थ दोहों में है। इन दोहों द्वारा व्यक्ति का भाग्य बताया जा सकता है। पार्वती मंगल, दोहावली आदि तुलसी दास की अन्य रचनाएं हैं।
ग्रिमर्सन और कार्पेण्टर आदि विदेशी लेखकों ने तुलसी दास पर इसाई धर्म का प्रभाव माना है। यह हास्यप्रद मत अज्ञान पर आध रित है और गम्भीर विचार के योग्य नहीं ।
तुलसी दास का उल्लेख उस समय के इतिहास आइने अकबारी और अकबर नामा में नहीं है। शायद वे कभी मुगल दरबार में नही गए । इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद का कथन है “अकबर का साम्राज्य समाप्त हो गया परन्तु तुलसी दास का साम्राज्य भारतीयों के हृदयों और मनों मे अभी भी स्थापित हैं। ”
मुल्ला मसीह रामायण: यह फारसी की रचना है। बादशाह जहांगीर के समय रची गई थी। 1898 ई० में नवल किशोर प्रैस लखनऊ ने इसे प्रकाशित किया।

Ram Katha Natak

Written by Alok Mohan on March 25, 2023. Posted in Uncategorized

राम कथा नाटक मंच से
हिन्दी साहित्य के आदि काल में हिन्दी कवियों ने राम कथा पर विशेष रचनात्मक कार्य नहीं किया। सम्भवतः संस्कृत विद्वान इस दैवी कथा को लोक भाषा में लिखना अनुचित समझते थे। संस्कृत में उस समय भी कई ग्रन्थ लिखे जा रहे थे। अदिकाल के विद्वानो ने राम कथा को नाटक के रूप में प्रस्तुत किया
भारत में राम के व्यापक रूप का प्रचार करने का श्रेय आचार्य रामानन्द को है। उन्होने राम के दोनो रूपों निर्गुण और सगुण की भक्ति का प्रतिपादन किया। युग की मांग के अनुसार उन्होने जाति-पाति के बन्धन ढीले किए। इनके बारह शिष्यों में कबीर, रेदास आदि ने निर्गुण राम को अपना अराध्य देव मान कर उपासना की। नरहरि दास व उनके शिष्य तुलसी दास ने राम के सगुण रूप को अपनाया। निराकार राम के उपासकों द्वारा एक भिन्न सन्त मत स्थापित कर दिया गया। सगुण राम उपासकों में से तुलसी दास की प्रतिभा और काव्यकला इतनी उत्कृष्ट सिद्ध हुई है कि उन के बाद का कोई भी राम काव्य उन के राम चरित मानस के समान विख्यात नहीं हुआ। तुलसी दास से पहले का राम साहित्य भी भाव भाषा और शैली की दृष्टि से उत्तम नहीं है।
हिन्दी साहित्य के इतिहास की राम-भक्ति धारा हिन्दी भाषी क्षेत्रों की राम सम्बन्धी रचनाओं तक ही सीमित नहीं रही, ब्रजभाषा के माध्यम से पंजाब के कवियों ने भी इस साहित्य को समृद्ध किया है। इस साहित्य की विशेषता यह है कि इस में राम के मर्यादा पुरुषोतम दुष्ट संहारक रूप को ही कायम रखा है। पंजाबी के हिन्दी राम काव्य के उपजीव्य ग्रन्थ वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण ही रहे। यह काव्य अधिकतर गुरूमुखी लिपि में होने के कारण हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों द्वारा उपेक्षित ही रहा, परन्तु गोसाई गुरुवाणी आदि देवनागरी में लिपि बद्ध रचनाएं भी आलोचकों की दृष्टि से छूट गई हैं।
समय समय पर राम कथा को नाटक मंच से प्रस्तुत किया गया
1. प्रतिमा नाटक : यह नाटक भास कवि द्वारा रचित है। सात अंक है। इस के नाम करण का आधार प्रतिमा-गृह है, जिसमें अयोध् या के मृत राजाओं की मूर्तिया स्थापित हैं। ननिहाल से लौटते समय प्रतिमा- गृह में दशरथ की मूर्ति को देखकर भरत उन की मृत्यु के विषय में जानना चाहता है। अभिषेक नाटक भी भास द्वारा रचित है।
प्रतिमा नाटक में श्री राम मानव रूप में प्रस्तुत किए गए हैं, परन्तु अभिषेक में विष्णुत्व का कई बार उल्लेख है। महावीर चरित : भवभूति द्वारा रचित यह नाटक 7 अकों में है। यह कृति 8 वीं शती की मानी जाती है। विश्वामित्र के साथ श्री राम के वन गमन से लेकर राम अभिषेक तक की कथा है।

2. उत्तर राम-चरित : यह नाटक भी भवभूति द्वारा रचित है। इस में सात अंक है। वाल्मीकि रामयण के उत्तरकाण्ड की सामग्री वर्णित है। इस ग्रन्थ में भावुकता अत्यधिक है। करूण रस की प्रमुखता है। राम प्रजा हितकारी आदर्श राजा है। प्रजा के लिए उन्हें सीता को त्यागने में भी पीड़ा नही : स्नेह दया च सौख्यं यदि वा जानकीमपि । आराधनाय लोकस्य मुंचतो नास्ति में व्यथा ।। उदात राघव : इसका रचनाकाल आठवीं शताब्दी है। इस का लेखक अनंग हर्ष मात्र राज है। छः अंक है। राम बनवास से लेकर राम आदि के अयोध्या लौटने की कथा है।
3. कुंद माला : इस के लेखक दिड नाग हैं। यह उत्तर राम चरित से प्रभावित है। सीता बनवास से लेकर राम सीता मिलन तक की कथा है। यह नाटक सुखान्त है। इस नाटक में भी करूण रस प्रमुख है।
अनर्ध राघव: इस के रचयिता मुरारी कवि हैं। यह नवीं शती की रचना है। विश्वामित्र आगमन से लेकर राम राज्य अभिषेक तक की कथा वर्णित है।
4. बाल रामायण : लेखक महाकवि शेखर हैं। रचना काल 10 वीं शताब्दी है। सीता स्वयंवर से लेकर राम अभिषेक तक की कथा दस अंको में प्रस्तुत की गई है।
5. आश्चर्य चूड़ामणि: इस नाटक के रचयिता कवि शक्ति भद्र हैं। रचना काल नवीं शताब्दी है। इस के सात अकों में शूर्पनखा आगमन से लेकर सीता की अग्नि परीक्षा तक की कथा है। इस कथा में राम व सीता के पास मुनियों के द्वारा दी गई अद्भुत मुद्रिका तथा चूड़ामणि है, जिसके स्पर्श से छद्मवेशी राक्षसों की माया नष्ट हो कर उनका वास्तविक रूप प्रकट हो जाता है महानाटक अथवा हनुमन्नाटक: इस रचना के दो पाठ भेद हैं। एक दामोदर मिश्र का दुसरा मधुसूदन का। इस में चौदह अंक है। प्राचीन कवियों भवभूति मुरारि जयदेव आदि के कुछ श्लोक भी इस में रखे गए हैं।
6. प्रसन्न राघव : इस के रचयिता जयदेव हैं। रचनाकाल 13 वीं शताब्दी के लगभग है। सीता स्वयंवर से अयोध्या लोटने तक की कथा है।
अद्भुत दर्पण: इस के लेखक महाकवि हैं। दस अंकों में अंगद-दौत्य से राम अभिषेक तक की कथा है। इस में एक अद्भुत दर्पण द्वारा तीन योजन अथवा 24 मील तक की सभी वस्तुएं व गतिविधियां दिखाई पड़ती है।
7. उल्लास राघव: इस नाटक के रचयिता सोमेश्वर है। रचनाकाल 13 वीं शताब्दी है। बाल काण्ड के अन्त से आरम्भ हो कर युद्ध काण्ड के अन्त तक की कथा है। आठ अंक है।
8. मैथिली कल्याण : इस नाटक की रचना 1292 ई० में कवि हस्ति मल्ल द्वारा की गई। पांच अंक है। राम सीता के पूर्व अनुराग धनुर्भग तथा सीता- विवाह का वर्णन है।
दूतांगद यह नाटक सुभट्ट कवि द्वारा रचित है। रचना काल 13 वीं शताब्दी है। इसमें अंगद का दूतत्व, रावण की पराजय, राम की विजय का वर्णन है।
उन्मत राघव : सीता हरण के पश्चात लक्ष्मण वानरों की सहायता से रावण का संहार कर सीता को लाते है। यह नाटक विरूपाक्ष देव द्वारा रचित 15 वीं शताब्दी की रचना है।
9. उन्मत राघव : भास्कर भट्ट द्वारा 14 वीं शताब्दी की रचना है। दुर्बासा द्वारा शापित सीता का मृगी के रूप में बदलना और मुनि अगस्त की सहायता से श्री राम द्वारा उसे पुनः प्राप्त करना, इस का कथानक है।
10.रामाभ्युदय : इस के रचयिता व्यास देव मिश्र हैं। लंका युद्ध से लेकर राम के राज्य अभिषेक तक की कथा दो अंको में है।

11. कुश लव उदय : यह नाटक छवि लाल सूरी द्वारा रचित और संशोधित है। इसमें श्री राम के अभिषेक के बाद का वर्णन 6 अंको में है।
उपरोक्त राम साहित्य के अतिरिक्त राम कथा को लेकर रचे गये अनेक विलोम काव्य शिलष्ट काव्य, खण्ड काव्य व चम्पू काव्य, संदेश काव्य, गीति काव्य आदि हैं।
12. कथा साहित्य – इस के अंतर्गत सोमदेव कृत कथा सरित सागर में राम कथा अत्यन्त संक्षिप्त दी गई है। वृहत मंजरी क्षेमेन्द्र की इस रचना में संक्षिप्त राम कथा है।
13. वासुदेव हिण्डि – यह जैन सहित्य के अन्तर्गत है। इस में संक्षिप्त राम कथा है।

Ram Katha

Written by Alok Mohan on March 25, 2023. Posted in Uncategorized

राम कथा की विकास यात्रा

प्राचीन काल से लेकर अब तक राम कथा हमारे जन जीवन को प्रभावित करती आ रही है। यह कथा विभिन्न युगों एवं परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित तथा परिवद्धिंत होती रही है। यह संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रशं से होती हुई भारत की आधुनिक भाषाओं के साहित्य को परिपूर्ण कर रही है, “मानव हृदय को आकर्षित करने की जो शक्ति राम कथा में है। वह अन्यत्र दुलर्भ है ।”
राम कथा की विकास यात्रा का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है ।

1. वैदिक साहित्य
राम कथा के पात्रों के अतिरिक्त वैदिक साहित्य में इक्ष्वाकु वंशीय अन्य राजाओं का भी उल्लेख हैं। ऋगवेद में इक्ष्वाकु को धनी और तेजस्वी राजा कहा गया है। अथर्व वेद में लिखा है “हे कुष्ठ (औषधि) तुम्हे प्राचीन इक्ष्वाकु राजा जानता था।”
इक्ष्वाकु वंश के पच्चीसवें राजा मंधाता का ॠग्वेद में कई बार उल्लेख हुआ है। उसे अंगिरा ऋषि जैसा पवित्र कहा गया है। वैदिक साहित्य में भगेरथ राजा का उल्लेख है। समझा जाता है कि भगेरथ और भगीरथ एक ही थे।
ऋगवेद में रघु का वर्णन भी है। रघु का अन्य अर्थ तीव्र गति भी है। इसी वेद में दशरथ का भी नाम है। “दशरथ के चालीस भूरे रंग वाले घोड़े एक हजार घोड़ों वाले दल का नेतृत्व कर रहें है।”
ऋगवेद में राम का उल्लेख यजमान राजा के रूप में आया है। “मैनें दुशीम, पृथवान, वैन और बलवान राम इन यजमानों के लिए यह सूक्त गाया है।” वैदिक साहित्य में राजा जनक का नाम कई बार आया है शतपथ ब्राह्मण में जनक को इतना महान तत्वज्ञ और विद्वान कहा है कि वे ऋषि याज्ञवल्क्य को भी शिक्षा देते थे। ऋगवेद में सीता कृषि की अधिष्ठात्री देवी है। सीता का अर्थ “लांगल पद्धति भी है। अन्य कृषि सम्बन्धी देवों के साथ सीता के प्रति भी प्रार्थना की गई है। (हल चलाते हुए जो पंक्ति बनती है उसे लांगल पद्धति कहते है।) पंजाबी भाषा में यह “सियाड़” कहलाती है।
वैदिक साहित्य धार्मिक था, इतिहास नही। इसलिए इस साहित्य में राम कथा का अभाव है, परन्तु राम कथा के पात्रों का यत्र तत्र उल्लेख है।
2. वाल्मीकि रामायण
विद्वानों का विचार है कि वाल्मीकि रामायण से पूर्व राम सम्बंधी स्फुट आख्यान प्रसिद्ध थे। इनमें अयोध्या काण्ड से लेकर युद्ध काण्ड तक की कथा विद्यमान थी । यह अख्यान केवल कौशल में ही नही, अपितु दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गये थे। वाल्मीकि ऋषि ने इन अख्यानों को प्रबंध काव्य में संकलित कर के रामायण की रचना की। आज कल वाल्मीकि रामायण के तीन पाठ पश्चिमोत्तसरीय, गौड़ीय और दक्षिणात्य प्रचलित है। इन पाठों की तुलना करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि वाल काण्ड और उत्तर काण्ड बाद के लिखें है। ये विचार आधुनिक इतिहासकारों और विदेशी लेखकों के है। भारत के प्राचीन इतिहास के अनुसार वाल्मीकि ऋषि राजा दशरथ के समकालीन व उन के मित्र थे। वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में सीता के बच्चों का पालन पोषण व शिक्षा दीक्षा हुई थी। इसी ऋषि ने आदि रामायण की रचना की थी। सम्भवतः इस गद्दी पर प्रतिष्ठित अन्य वाल्मीकि ऋषि ने इस कथा में संशोधन किया हो । और सीता बनवास बाद में शामिल किया हो । वाल्मीकि रामायण में सात काण्ड हैं। बाल कांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड, सुन्दर कांड, युद्ध कांड व उत्तर कांड।
वाल्मीकि रामायण जिसे आदि रामायण भी कहते हैं। संस्कृत भाषा में अनुष्टप छन्द में लिखी गई है। इस छंद में चार पाद होते एक पाद में आठ अक्षर होते हैं। यह चौबीस हजार श्लोंकों में रचित काव्य है। रामायण सम्बन्धी विशेष स्थान निम्न है। : सिद्ध आश्रम : महर्षि विश्वामित्र का तपस्या स्थल है। श्रृंगवेर पुर : अयोध्या की सीमा समाप्त होते ही प्रयाग के पास एक राज्य निषाद राज गुह जहां का अधिपति था। मंदाकिनी : चित्रकूट में प्रवाहित नंदी, मंद गति में बहने के कारण इस का नाम मंदाकिनी पड़ा।
नंदि ग्राम : अयोध्या के पास एक गांव, भरत इसी स्थान राज्य संचालन करता था ।
दण्डकारण्य : विंध्याचल पर्वत, पार कर एक घना जंगल है। पंचवटी : गोदावरी नदी के तट पर पांच वट वृक्षों से घिरा नासिक के पास सुन्दर स्थान है।
पंपा सरोवर दण्डक अरण्य में स्थित सरोवर।
प्रस्रवण, दण्डक में एक पर्वत सीता की खोज के समय राम, लक्ष्मण आदि ने इस पर्वत पर निवास किया।
ऋष्य मूक पर्वत, भारत के दक्षिण पश्चिम में एक पर्वत सुग्रीव का वानर सेना सहित निवास स्थल ।
मधुवन: सुग्रीव का बाग, इस की रखवाली सुग्रीव का मामा दधिमुख करता था ।
मैनाक : हिन्द महासागर स्थित पर्वत, हनुमान जी ने लंका जाते समय इस की चोटी नष्ट कर दी थी। अरिष्ट पर्वत : लंका के निकट एक पर्वत है।
राम सेतु अथवा रामेश्वर सेतु : रामेश्वर से लेकर लंका जाने के लिए हिन्द महासागर में नील, नल द्वारा वानरों की सहायता से निर्मित सेतु ।
नैमिष- अरण्य : लखनऊ के पास एक तीर्थ स्थल । इस स्थान पर श्री राम जी ने अश्वमेघ यज्ञ किया था ।
समस्त राम काव्य का मूल स्रोत परोक्ष या अपरोक्ष रूप में आदि काव्य वाल्मीकि रामायण है। प्राचीन काल से लेकर अब तक असंख्य ही कवि हुए जिन्होने अपनी रूचि व समय की मांग के अनुसार राम कथा को अपने काव्य का आधार बनाया।
3. महाभारत
महाभारत में राम कथा का तीन स्थलों में उल्लेख हुआ है। परन्तु राम कथा के पात्रों का कई स्थलों पर वर्णन है।
वन पर्व : में राम कथा तीन प्रसंगो में वर्णित है। तीर्थ यात्रा-प्रसंग में, भृंगु तीर्थ में परशुराम की तपस्या और श्री राम से विवाद आदि पर प्रकाश डाला है। हनुमान भीम संवाद में हनुमान ग्यारह श्लोकों में राम सुग्रीव मिलन से लेकर अयोध्या लौटने तक राम अभिषेक तक की कथा संक्षेप में कहते है। तृतीय प्रसंग राम उपाख्यान है। राम जन्म से लेकर श्री राम के राज्य अभिषेक तक का समस्त कथानक अठारह अध्यायों में बड़े विस्तार से लिखा है।
द्रोण पर्व : पुत्र मृत्यु से दुखी संजय को नारद ने 16 राजाओं की कथाएं सांत्वना देते हुए सुनाई थी। सभी राजा महान होते हुए भी काल के सामने असमर्थ रहे। उन्हीं राजाओं में एक राजा श्री राम चन्द्र थे। राम जन्म से लेकर स्वर्ग आरोहण तक का समस्त कथानक अति सक्षेप में दिया गया है। इसमें राम राज्य की समृद्धि व राम महिमा को अधिक महत्व दिया है।
शान्ति पर्व : इस पर्व में श्री राम द्वारा अश्वमेघ यज्ञ तथा उनका लम्बी अवधि तक शासन करने का उल्लेख है। राम राज्य तथा राम महिमा का उल्लेख करते हुए श्री कृष्ण श्री राम के परमध् म पहुचने की कथा कहते है।
5. बौद्ध साहित्य
महात्मा को बौद्ध श्री राम का अवतार मानते हैं। गौतम बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं जातकों में संग्रहीत है। राम कथा सम्बन्धी तीन जातक पाली भाषा में वर्णित है। यह ई० पांचवीं शताब्दी की एक सिहली पुस्तक का पाली अनुवाद है। महात्मा बुद्ध ने यह जातक जैतवन में किसी गृहस्थ को उस के पिता की मृत्यु पर सुनाया था। राजा दशरथ की मृत्यु पर महान राम के धैर्य का उदाहरण इसमें प्रस्तुत किया गया है। पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर लक्षमण और सीता शोक से व्याकुल हो गए। परन्तु राम
पण्डित दुखी नही हुए। उन्होनें सीता और लक्षमण को जीव की अनित्यता का उपदेश दिया। अन्त में महात्मा बुद्ध जातक का सांमजस्य इस प्रकार बैठाते है। महाराजा शुद्धोदन दशरथ थे। महामाया राम की माता थी, यशेधरा सीता, आनन्द भरत और बुद्ध स्वंय राम पंडित थे। इस जातक में राजा दशरथ की दो पत्नियां बताई है। महारानी के दो पुत्र राम और लक्ष्मण तथा पुत्री सीता बताई है। कई अन्य ग्रन्थों के अनुसार राजा दशरथ की एक पुत्री शांता थी। ऐसा लगता है कि बोद्ध साहित्य पाली भाषा में रचा गया था। लेखकों को संस्कृत का ज्ञान न होने के कारण उन्होनें शांता या सीता का अन्तर नही जाना।
अनामक जातक में राम सीता बनवास, सीता हरण, जटायु प्रसंग, बाली सुग्रीव युद्ध, सेतु बंध, सीता की अग्नि परीक्षा आदि प्रसंगों के संकेत मिलते है।
दशरथ कथानक में राजा दशरथ की चार रानियों का उल्लेख है। शेष कथा अन्य राम कथा जैसी है। बनवास से लौट कर श्री राम ने भरत के आग्रह पर राज्य का कार्यभार संभाला। उन का राज्य सुख शान्ति से परिपूर्ण था।
महात्मा बुद्ध सभी के श्रद्धेय हैं। वे विष्णु के अवतार माने जाते है। बौद्ध मत के विद्वानों को चाहिए कि इस साहित्य की समीक्षा करें, और यथोचित संशोधन करें। शान्ता और सीता को लेकर जो भ्रम है, उसे दूर करना चाहिए ।
6. जैन साहित्य
संस्कृत में उपलब्ध जैन साहित्य निम्नलिखित है।
‘पद्म चरित’ संस्कृत का प्राचीनतम जैन ग्रन्थ है। 676 ई० में रविषेण ने इस का संस्कृत रुपान्तर किया है।
उत्तर पुराण के रचयिता गुण भद्र हैं। यह नवीं शती की रचना है। “जैन रामायण” के लेखक हेम चन्द्र है। इस का रचना काल 12 वीं शताब्दी है। यह रामायण “त्रिषष्टि शालाका पुरूष चरित” के अन्तर्गत है। हेमचन्द्र की अन्य रचना सीता-रावण-कथानक है। “राम वेद पुराण” जिन दास कृत यह 15 वीं शती की रचना है। राम चरित के रचयिता पद्म देव विजय गणि है। यह 16 वीं शती की रचना है। इन के अतिरिक्त कई अन्य लेखकों ने राम कथाओं की रचना की है।

7. प्राकृत जैन साहित्य
विमल सूरि का ‘पउम चरित्र’ शील आचार्य कृत ‘राम-लक्खन चरियम् (नवीं शताबदी) पुष्प दंत कृत तिसट्ठी महापुरिस गुणालकार (दसवीं शताब्दी) के अन्तर्गत “रामायणम्” और भुवन तुंग रचित ‘सिय चरिय’ तथा ‘राम लक्खन चरिय’ प्राकृत भाषा में राम कथा सम्बधी जैन ग्रन्थ है।

8. अपभ्रंश साहित्य
स्वयं भूदेव रचित ‘पउम चरिय’ या रामायण पुराण का समय 7-8 वीं शताब्दी के मध्य में है। रइघुकृत पदम पुराण 15 वीं शती का है। जैन साहित्य के अन्तर्गत कन्नड़ भाषा में भी श्री राम कथा उपलब्ध है।
9. पुराण साहित्य: पुराणों के अन्तर्गत मार्कण्डेय, भविष्य, लिंग वराह, वामन, मत्स्य और ब्रह्माण्ड पुराणों में राम कथा का विशेष उल्लेख नहीं। अवतार चर्चा के साथ-साथ राम चरित का वर्णन कहीं-कहीं मिलता है। अन्य पुराणों में राम कथा का उल्लेख निम्नलिखित है।
10. विष्णु पुराण: इस पुराण में इक्ष्वाकु वंश का इतिहास वर्णन करते हुए, राम जन्म से लेकर उनके परम धाम तक पहुचने का संक्षेप में वर्णन है। श्री राम के भाईयों के पुत्रों का भी इसमें उल्लेख है।
हरिवंश पुराण : इस पुराण का रचना काल लगभग चार सौ ई० है। रामावतार से लेकर रावण वध तक राम कथा का संक्षिप्त परिचय इस ग्रन्थ में मिलता है।
11. वायु पुराण: इस ग्रन्थ में इक्ष्वाकु वंश के समस्त राजाओं का उल्लेख है।
12. ब्रह्म पुराण: इस में अनेक स्थलों पर राम कथा के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख है।
13. ब्रह्मवैवर्त पुराण : इस पुराण का रचना काल सातवीं शताब्दी के लगभग है। वेद वती चरित्र प्रसंग में सीता जन्म से लेकर श्री राम के स्वर्गारोहण तक की कथा है।
14. अग्नि : यह पुराण आठवीं शती का माना जाता है। इस ग्रन्थ में सभी अवतारों का वर्णन है। रामवतार के अन्तर्गत राम जन्म से लेकर राम राज्य तक का कथानक सात अध्यायों में दिया गया है। इसका लेखक वाल्मीकि रामायण से प्रभावित हैं।
15. नृसिंह पुराण: इस का रचना काल चार सौ से पांच सौ ई० के मध्य में है। इस ग्रन्थ में अवतार वाद को अधिक महत्व दिया गया है। सीता-त्याग का उल्लेख नहीं। श्री राम को नारायण और लक्ष्मण को शेष के अवतार माना गया है ।

16. भागवत पुराण: इस का रचना काल छठी सातवीं शताब्दी के लगभग है। इस में राम जन्म से लेकर निर्वाण तक की कथा है। सीता को लक्ष्मी का अवतार माना गया है। धोबी प्रसंग भी है।

17. स्कन्द पुराण: इस ग्रन्थ का रचना काल आठवीं शताब्दी के बाद है। इस के सभी खण्डों में राम कथा का कुछ ना कुछ भाग प्राप्त हो जाता है। प्रभास खण्ड में राम, लक्ष्मण, दशरथ तथा रावण द्वारा अनेक पुण्य क्षेत्रों में शिव लिंगों की स्थापना का विस्तृत उल्लेख है।
18. श्रीमद् देवी भागवत पुराण: इस पुराण में 12 स्कंद है। सीता हरण के बाद रावण पर विजय पाने हेतु श्री राम नवरात्रों का व्रत रखते हैं। देवी भगवती श्री राम को दर्शन देती है। इस ग्रंथ के नवम स्कन्ध में वेदवती व छाया सीता का भी उल्लेख है। इस का रचना काल 950 ई के लगभग है।
19. महाभागवत पुराण : इस का रचना काल 11वीं शताब्दी के लगभग है। शिव हनुमान का रूप धारण कर श्री राम की सहायता करते हैं। श्री राम को देवी अमोध शस्त्र प्रदान करती है। जिससे वे रावण पर विजय पाते है। इस पुराण में नारद शाप व सीता हरण का उल्लेख है।
20. कालिका पुराण : इस पुराण का रचना काल 10-11वीं शताब्दी माना गया है। श्री राम की विजय के लिए ब्रह्मा देवी की पूजा करते हैं। जनक हल जोतते है और पृथ्वी से सीता व दो पुत्र प्राप्त करते हैं। आर. सी. हाजरा इस पुराण की रचना का मूल स्थान बंगाल मानते है। उन का कथन है कि बंगाल में देवी पूजा अष्टमी और नवम को की जाती थी और बली प्रथा भी थी। यह तर्क ठीक नही जचता। उत्तरी भारत में देवी पूजा की जाती है और हिमाचल में देवी को बलि देने की भी प्रथा थी ।
21. शिव पुराण : राम जन्म की हेतु कथाओं और शिव चरित्र के लिए राम चरित मानस शिव पुराण का आभारी है। सती राम की परीक्षा लेती है। धर्म संहिता के अन्तर्गत बनवास के समय सीता द्वारा दशरथ के लिए पिण्ड दान का उल्लेख है। सागर पार करने के लिए राम द्वारा शिव से सहायता की प्रार्थना की गई है।
22. कल्कि पुराण: इस ग्रन्थ में संक्षिप्त राम कथा है। हाजरा के अनुसार इस का रचना काल 18वीं शती हैं। और यह पुराण बंगाल में रचा गया है। क्योंकि इस पुराण के सभी हस्त लिखित ग्रंथ जो अब तक मिले हैं, बंगला लिपि में है।
23. बहि पुराण: इस रचना में बाल काण्ड से युद्ध काण्ड तक राम कथा का विस्तृत वर्णन है। रामावतार और सीता हरण का कारण भृगु और पृथ्वी का शाप बताया गया है। रावण और कुम्भकरण की जन्म कथाओं का भी वर्णन है।
पद्म पुराण : इस पुराण में अवतार वाद अधिक दिखाई देता है। राम को विष्णु व सीता को लक्ष्मी का रूप कहा है। लक्ष्मण भरत व शत्रुघ्न को क्रमशः अनन्त, सुर्दशन व पांच जन्य का अंश माना गया है। इस पुराण के खण्डों का रचना काल अलग-अलग माना जाता है।
24. पुराणेतर धर्मिक साहित्य
योग वसिष्ठ – आधुनिक अलोचक यथा एस. एन. दास गुप्ता और एम. विंटर नित्स इस ग्रंथ को आठवीं शताब्दी का मानते है। डा० वी. राघवन के अनुसार इस ग्रंथ का रचना काल 1100 ई० और 1250 ई० के बीच का है, विश्वा मित्र के कहने पर वसिष्ठ श्री राम को मोक्ष प्राप्ति पर उपदेश देते हैं।
अध्यात्म रामायण यह रचना पार्वती शंकर संवाद रूप में है। यह संवाद नारद ने ब्रह्मा से सुना था। इसमें अवतार वाद अत्याधिक है। श्री राम पर ब्रह्म, सीता मूल प्रकृति (योग माया) लक्ष्मण शेष के अवतार माने गए है। गुरु वसिष्ठ कौशल्या जनक व रावण आदि इस रहस्य को जानते हैं। रामचरित मानस इस रामायण से अत्यधिक प्रभावित है। इस ग्रन्थ का मुख्य विषय राम भक्ति का प्रतिपादन करना है।

25. अद्भुत रामायण : इस ग्रन्थ की सम्पूर्ण कथा वाल्मीकि भरद्वाज संवाद में है। इस में नारद और पर्वत द्वारा विष्णु को शाप देना रामावतार का कारण माना गया है। सीता शाप के कारण राक्षस के द्वारा चुराई गई है। रावण का वध सीता द्वारा होता है। वह देवी का रूप धारण करके आती है।

26. आनन्द रामायण : सम्भवतः यह रचना 15वीं शताब्दी की है। इसमें 12252 शलोक है। इस राम कथा में कई अद्भुत कथाओं का समावेश है। यथा सुलोचना की कथा, राम व लक्ष्मण के आठ पुत्रों का उल्लेख आदि । अन्तिम सर्गों में राम-उपासना की विधि, राम नाम का महात्म्य, चैत्र महिमा तथा राम आदि के बैकुंठवास का वर्णन है। तत्व संग्रह रामायण : इस ग्रंथ की भूमिका में श्री राम को शिव, ब्रह्मा, हरिहर त्रिमूर्ति व परब्रह्म का अवतार माना गया है। इस का राम मन्त्र “रामोऽहम” है अर्थात अद्वैत राम-उपासना का सिद्धान्त भी अपनाया गया है। कई तीर्थों का सम्बंध श्री राम से जोड़ कर उन की महानता दिखाई गई है।
27. जैमनीय भारत : इस में कुश-लव की कथा भी है। मेघनाथ के संहार के बाद अहिरावण श्री राम और लक्ष्मण को पाताल ले जाता है। हनुमान अपने पुत्र की सहायता से अहिरावण का वध करके उन्हे छुड़ा लाते है। इस में रावण का वध सीता द्वारा होता है।
28. मंत्र रामायण: इस में व्यक्त किया गया है कि वेद भी श्री. राम के साथ रामायण के रूप में प्रकट हुए।
वेदान्त रामायण: इस का विषय परशु राम चरित है जो श्री राम द्वारा जिज्ञासा करने पर वाल्मीकि ने उन्हें सुनाया।
29. सत्योपाख्यान: यह रामायण वाल्मीकि मार्कण्डेय संवाद में है। हनुमत् सहिता : यह राम कथा हनुमान अगस्त संवाद में वर्णित है। इस का प्रतिपाद्य सरयु तट पर श्री राम की राम लीला तथा जल विहार है। इस कृति पर कृष्ण काव्य की श्रृंगारिता का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
उपरोक्त रचनाओं के अतिरिक्त वृहत कौशल खण्ड आदि कई अन्य कृतियां है।
30. महाकाव्य
धार्मिक साहित्य के अतिरिक्त राम कथा सम्बन्धी कुछ महाकाव्य ऐसे हैं जिनमें आद्यान्त राम चरित्र का वर्णन है, और कुछ में अन्य चरित्रों के साथ राम चरित का समावेश कर लिया गया है। संस्कृत में प्रमुख राम-काव्य निम्न है :
रघुवंश : कालिदास कृत इस ग्रन्थ का रचनाकाल 400 ई० के लगभग है। इस के 19 सर्गों में राजा दिलीप से लेकर अग्निवर्ण तक 29 राजाओ का वर्णन है। प्रजा प्रसन्न हो तो राजा की समृद्धि होती है। प्रजा के दुखी होने पर राजा का नाश होता है। इस रचना का यही उद्देश्य है। राम चरित 6 सर्गों में वर्णित है। इस काव्य का मुख्य रस वीर है। रावण वध इस के लेखक भट्टि हैं। रचना काल सातवीं शताब्दी है। राम जन्म से लेकर राज्य अभिषेक तक की कथा व्याकरण के नियमों के निरूपण के साथ वर्णित हैं। इसका प्रधान रस वीर है।
जानकी हरण: इस रचना अयोध्या वर्णन से लेकर जानकी हरण तक का कथानक है। इस की भूमिका में 25 सर्गों का उल्लेख है। परन्तु सभी सर्ग उपलब्ध नहीं है। इसका प्रमुख रस श्रृंगार है।
राम चरित : यह अभिनन्दन कृत नवीं शताब्दी की रचना है। इस में 36 सर्ग हैं।
रामायण मंजरी : क्षेमेन्द्र द्वारा रचित इस महाकाव्य में 36 सर्ग हैं। यह सम्पूर्ण राम कथा वाल्मीकि नारद संवाद में है। राजा दशरथ द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ से पूर्व अश्वमेध यज्ञ का भी इस में उल्लेख है।
दशावतार चरित : यह रचना भी क्षेमेन्द्र द्वारा रचित है। रचना काल 1066 ई० है। इस में दस अवतारों का सरस और सरल वर्णन है। अन्य रचनाएं निम्न हैं। उदार राघव, रघुवीर चरित, श्री राम विजय, राधवीयम्, जानकी परिचय, राम लिंगामृत, नारायणीयम्, राघव-उल्लास, राम रहस्य आदि ।

 

राम कथा की विकास यात्रा

Written by Alok Mohan on March 25, 2023. Posted in Uncategorized

राम कथा की विकास यात्रा

प्राचीन काल से लेकर अब तक राम कथा हमारे जन जीवन को प्रभावित करती आ रही है। यह कथा विभिन्न युगों एवं परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित तथा परिवद्धिंत होती रही है। यह संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रशं से होती हुई भारत की आधुनिक भाषाओं के साहित्य को परिपूर्ण कर रही है, “मानव हृदय को आकर्षित करने की जो शक्ति राम कथा में है। वह अन्यत्र दुलर्भ है ।”
राम कथा की विकास यात्रा का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है ।

1. वैदिक साहित्य
राम कथा के पात्रों के अतिरिक्त वैदिक साहित्य में इक्ष्वाकु वंशीय अन्य राजाओं का भी उल्लेख हैं। ऋगवेद में इक्ष्वाकु को धनी और तेजस्वी राजा कहा गया है। अथर्व वेद में लिखा है “हे कुष्ठ (औषधि) तुम्हे प्राचीन इक्ष्वाकु राजा जानता था।”
इक्ष्वाकु वंश के पच्चीसवें राजा मंधाता का ॠग्वेद में कई बार उल्लेख हुआ है। उसे अंगिरा ऋषि जैसा पवित्र कहा गया है। वैदिक साहित्य में भगेरथ राजा का उल्लेख है। समझा जाता है कि भगेरथ और भगीरथ एक ही थे।
ऋगवेद में रघु का वर्णन भी है। रघु का अन्य अर्थ तीव्र गति भी है। इसी वेद में दशरथ का भी नाम है। “दशरथ के चालीस भूरे रंग वाले घोड़े एक हजार घोड़ों वाले दल का नेतृत्व कर रहें है।”
ऋगवेद में राम का उल्लेख यजमान राजा के रूप में आया है। “मैनें दुशीम, पृथवान, वैन और बलवान राम इन यजमानों के लिए यह सूक्त गाया है।” वैदिक साहित्य में राजा जनक का नाम कई बार आया है शतपथ ब्राह्मण में जनक को इतना महान तत्वज्ञ और विद्वान कहा है कि वे ऋषि याज्ञवल्क्य को भी शिक्षा देते थे। ऋगवेद में सीता कृषि की अधिष्ठात्री देवी है। सीता का अर्थ “लांगल पद्धति भी है। अन्य कृषि सम्बन्धी देवों के साथ सीता के प्रति भी प्रार्थना की गई है। (हल चलाते हुए जो पंक्ति बनती है उसे लांगल पद्धति कहते है।) पंजाबी भाषा में यह “सियाड़” कहलाती है।
वैदिक साहित्य धार्मिक था, इतिहास नही। इसलिए इस साहित्य में राम कथा का अभाव है, परन्तु राम कथा के पात्रों का यत्र तत्र उल्लेख है।
2. वाल्मीकि रामायण
विद्वानों का विचार है कि वाल्मीकि रामायण से पूर्व राम सम्बंधी स्फुट आख्यान प्रसिद्ध थे। इनमें अयोध्या काण्ड से लेकर युद्ध काण्ड तक की कथा विद्यमान थी । यह अख्यान केवल कौशल में ही नही, अपितु दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गये थे। वाल्मीकि ऋषि ने इन अख्यानों को प्रबंध काव्य में संकलित कर के रामायण की रचना की। आज कल वाल्मीकि रामायण के तीन पाठ पश्चिमोत्तसरीय, गौड़ीय और दक्षिणात्य प्रचलित है। इन पाठों की तुलना करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि वाल काण्ड और उत्तर काण्ड बाद के लिखें है। ये विचार आधुनिक इतिहासकारों और विदेशी लेखकों के है। भारत के प्राचीन इतिहास के अनुसार वाल्मीकि ऋषि राजा दशरथ के समकालीन व उन के मित्र थे। वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में सीता के बच्चों का पालन पोषण व शिक्षा दीक्षा हुई थी। इसी ऋषि ने आदि रामायण की रचना की थी। सम्भवतः इस गद्दी पर प्रतिष्ठित अन्य वाल्मीकि ऋषि ने इस कथा में संशोधन किया हो । और सीता बनवास बाद में शामिल किया हो । वाल्मीकि रामायण में सात काण्ड हैं। बाल कांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड, सुन्दर कांड, युद्ध कांड व उत्तर कांड।
वाल्मीकि रामायण जिसे आदि रामायण भी कहते हैं। संस्कृत भाषा में अनुष्टप छन्द में लिखी गई है। इस छंद में चार पाद होते एक पाद में आठ अक्षर होते हैं। यह चौबीस हजार श्लोंकों में रचित काव्य है। रामायण सम्बन्धी विशेष स्थान निम्न है। : सिद्ध आश्रम : महर्षि विश्वामित्र का तपस्या स्थल है। श्रृंगवेर पुर : अयोध्या की सीमा समाप्त होते ही प्रयाग के पास एक राज्य निषाद राज गुह जहां का अधिपति था। मंदाकिनी : चित्रकूट में प्रवाहित नंदी, मंद गति में बहने के कारण इस का नाम मंदाकिनी पड़ा।
नंदि ग्राम : अयोध्या के पास एक गांव, भरत इसी स्थान राज्य संचालन करता था ।
दण्डकारण्य : विंध्याचल पर्वत, पार कर एक घना जंगल है। पंचवटी : गोदावरी नदी के तट पर पांच वट वृक्षों से घिरा नासिक के पास सुन्दर स्थान है।
पंपा सरोवर दण्डक अरण्य में स्थित सरोवर।
प्रस्रवण, दण्डक में एक पर्वत सीता की खोज के समय राम, लक्ष्मण आदि ने इस पर्वत पर निवास किया।
ऋष्य मूक पर्वत, भारत के दक्षिण पश्चिम में एक पर्वत सुग्रीव का वानर सेना सहित निवास स्थल ।
मधुवन: सुग्रीव का बाग, इस की रखवाली सुग्रीव का मामा दधिमुख करता था ।
मैनाक : हिन्द महासागर स्थित पर्वत, हनुमान जी ने लंका जाते समय इस की चोटी नष्ट कर दी थी। अरिष्ट पर्वत : लंका के निकट एक पर्वत है।
राम सेतु अथवा रामेश्वर सेतु : रामेश्वर से लेकर लंका जाने के लिए हिन्द महासागर में नील, नल द्वारा वानरों की सहायता से निर्मित सेतु ।
नैमिष- अरण्य : लखनऊ के पास एक तीर्थ स्थल । इस स्थान पर श्री राम जी ने अश्वमेघ यज्ञ किया था ।
समस्त राम काव्य का मूल स्रोत परोक्ष या अपरोक्ष रूप में आदि काव्य वाल्मीकि रामायण है। प्राचीन काल से लेकर अब तक असंख्य ही कवि हुए जिन्होने अपनी रूचि व समय की मांग के अनुसार राम कथा को अपने काव्य का आधार बनाया।
3. महाभारत
महाभारत में राम कथा का तीन स्थलों में उल्लेख हुआ है। परन्तु राम कथा के पात्रों का कई स्थलों पर वर्णन है।
वन पर्व : में राम कथा तीन प्रसंगो में वर्णित है। तीर्थ यात्रा-प्रसंग में, भृंगु तीर्थ में परशुराम की तपस्या और श्री राम से विवाद आदि पर प्रकाश डाला है। हनुमान भीम संवाद में हनुमान ग्यारह श्लोकों में राम सुग्रीव मिलन से लेकर अयोध्या लौटने तक राम अभिषेक तक की कथा संक्षेप में कहते है। तृतीय प्रसंग राम उपाख्यान है। राम जन्म से लेकर श्री राम के राज्य अभिषेक तक का समस्त कथानक अठारह अध्यायों में बड़े विस्तार से लिखा है।
द्रोण पर्व : पुत्र मृत्यु से दुखी संजय को नारद ने 16 राजाओं की कथाएं सांत्वना देते हुए सुनाई थी। सभी राजा महान होते हुए भी काल के सामने असमर्थ रहे। उन्हीं राजाओं में एक राजा श्री राम चन्द्र थे। राम जन्म से लेकर स्वर्ग आरोहण तक का समस्त कथानक अति सक्षेप में दिया गया है। इसमें राम राज्य की समृद्धि व राम महिमा को अधिक महत्व दिया है।
शान्ति पर्व : इस पर्व में श्री राम द्वारा अश्वमेघ यज्ञ तथा उनका लम्बी अवधि तक शासन करने का उल्लेख है। राम राज्य तथा राम महिमा का उल्लेख करते हुए श्री कृष्ण श्री राम के परमध् म पहुचने की कथा कहते है।
5. बौद्ध साहित्य
महात्मा को बौद्ध श्री राम का अवतार मानते हैं। गौतम बुद्ध के पूर्व जन्म की कथाएं जातकों में संग्रहीत है। राम कथा सम्बन्धी तीन जातक पाली भाषा में वर्णित है। यह ई० पांचवीं शताब्दी की एक सिहली पुस्तक का पाली अनुवाद है। महात्मा बुद्ध ने यह जातक जैतवन में किसी गृहस्थ को उस के पिता की मृत्यु पर सुनाया था। राजा दशरथ की मृत्यु पर महान राम के धैर्य का उदाहरण इसमें प्रस्तुत किया गया है। पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर लक्षमण और सीता शोक से व्याकुल हो गए। परन्तु राम
पण्डित दुखी नही हुए। उन्होनें सीता और लक्षमण को जीव की अनित्यता का उपदेश दिया। अन्त में महात्मा बुद्ध जातक का सांमजस्य इस प्रकार बैठाते है। महाराजा शुद्धोदन दशरथ थे। महामाया राम की माता थी, यशेधरा सीता, आनन्द भरत और बुद्ध स्वंय राम पंडित थे। इस जातक में राजा दशरथ की दो पत्नियां बताई है। महारानी के दो पुत्र राम और लक्ष्मण तथा पुत्री सीता बताई है। कई अन्य ग्रन्थों के अनुसार राजा दशरथ की एक पुत्री शांता थी। ऐसा लगता है कि बोद्ध साहित्य पाली भाषा में रचा गया था। लेखकों को संस्कृत का ज्ञान न होने के कारण उन्होनें शांता या सीता का अन्तर नही जाना।
अनामक जातक में राम सीता बनवास, सीता हरण, जटायु प्रसंग, बाली सुग्रीव युद्ध, सेतु बंध, सीता की अग्नि परीक्षा आदि प्रसंगों के संकेत मिलते है।
दशरथ कथानक में राजा दशरथ की चार रानियों का उल्लेख है। शेष कथा अन्य राम कथा जैसी है। बनवास से लौट कर श्री राम ने भरत के आग्रह पर राज्य का कार्यभार संभाला। उन का राज्य सुख शान्ति से परिपूर्ण था।
महात्मा बुद्ध सभी के श्रद्धेय हैं। वे विष्णु के अवतार माने जाते है। बौद्ध मत के विद्वानों को चाहिए कि इस साहित्य की समीक्षा करें, और यथोचित संशोधन करें। शान्ता और सीता को लेकर जो भ्रम है, उसे दूर करना चाहिए ।
6. जैन साहित्य
संस्कृत में उपलब्ध जैन साहित्य निम्नलिखित है।
‘पद्म चरित’ संस्कृत का प्राचीनतम जैन ग्रन्थ है। 676 ई० में रविषेण ने इस का संस्कृत रुपान्तर किया है।
उत्तर पुराण के रचयिता गुण भद्र हैं। यह नवीं शती की रचना है। “जैन रामायण” के लेखक हेम चन्द्र है। इस का रचना काल 12 वीं शताब्दी है। यह रामायण “त्रिषष्टि शालाका पुरूष चरित” के अन्तर्गत है। हेमचन्द्र की अन्य रचना सीता-रावण-कथानक है। “राम वेद पुराण” जिन दास कृत यह 15 वीं शती की रचना है। राम चरित के रचयिता पद्म देव विजय गणि है। यह 16 वीं शती की रचना है। इन के अतिरिक्त कई अन्य लेखकों ने राम कथाओं की रचना की है।

7. प्राकृत जैन साहित्य
विमल सूरि का ‘पउम चरित्र’ शील आचार्य कृत ‘राम-लक्खन चरियम् (नवीं शताबदी) पुष्प दंत कृत तिसट्ठी महापुरिस गुणालकार (दसवीं शताब्दी) के अन्तर्गत “रामायणम्” और भुवन तुंग रचित ‘सिय चरिय’ तथा ‘राम लक्खन चरिय’ प्राकृत भाषा में राम कथा सम्बधी जैन ग्रन्थ है।

8. अपभ्रंश साहित्य
स्वयं भूदेव रचित ‘पउम चरिय’ या रामायण पुराण का समय 7-8 वीं शताब्दी के मध्य में है। रइघुकृत पदम पुराण 15 वीं शती का है। जैन साहित्य के अन्तर्गत कन्नड़ भाषा में भी श्री राम कथा उपलब्ध है।
9. पुराण साहित्य: पुराणों के अन्तर्गत मार्कण्डेय, भविष्य, लिंग वराह, वामन, मत्स्य और ब्रह्माण्ड पुराणों में राम कथा का विशेष उल्लेख नहीं। अवतार चर्चा के साथ-साथ राम चरित का वर्णन कहीं-कहीं मिलता है। अन्य पुराणों में राम कथा का उल्लेख निम्नलिखित है।
10. विष्णु पुराण: इस पुराण में इक्ष्वाकु वंश का इतिहास वर्णन करते हुए, राम जन्म से लेकर उनके परम धाम तक पहुचने का संक्षेप में वर्णन है। श्री राम के भाईयों के पुत्रों का भी इसमें उल्लेख है।
हरिवंश पुराण : इस पुराण का रचना काल लगभग चार सौ ई० है। रामावतार से लेकर रावण वध तक राम कथा का संक्षिप्त परिचय इस ग्रन्थ में मिलता है।
11. वायु पुराण: इस ग्रन्थ में इक्ष्वाकु वंश के समस्त राजाओं का उल्लेख है।
12. ब्रह्म पुराण: इस में अनेक स्थलों पर राम कथा के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख है।
13. ब्रह्मवैवर्त पुराण : इस पुराण का रचना काल सातवीं शताब्दी के लगभग है। वेद वती चरित्र प्रसंग में सीता जन्म से लेकर श्री राम के स्वर्गारोहण तक की कथा है।
14. अग्नि : यह पुराण आठवीं शती का माना जाता है। इस ग्रन्थ में सभी अवतारों का वर्णन है। रामवतार के अन्तर्गत राम जन्म से लेकर राम राज्य तक का कथानक सात अध्यायों में दिया गया है। इसका लेखक वाल्मीकि रामायण से प्रभावित हैं।
15. नृसिंह पुराण: इस का रचना काल चार सौ से पांच सौ ई० के मध्य में है। इस ग्रन्थ में अवतार वाद को अधिक महत्व दिया गया है। सीता-त्याग का उल्लेख नहीं। श्री राम को नारायण और लक्ष्मण को शेष के अवतार माना गया है ।

16. भागवत पुराण: इस का रचना काल छठी सातवीं शताब्दी के लगभग है। इस में राम जन्म से लेकर निर्वाण तक की कथा है। सीता को लक्ष्मी का अवतार माना गया है। धोबी प्रसंग भी है।

17. स्कन्द पुराण: इस ग्रन्थ का रचना काल आठवीं शताब्दी के बाद है। इस के सभी खण्डों में राम कथा का कुछ ना कुछ भाग प्राप्त हो जाता है। प्रभास खण्ड में राम, लक्ष्मण, दशरथ तथा रावण द्वारा अनेक पुण्य क्षेत्रों में शिव लिंगों की स्थापना का विस्तृत उल्लेख है।
18. श्रीमद् देवी भागवत पुराण: इस पुराण में 12 स्कंद है। सीता हरण के बाद रावण पर विजय पाने हेतु श्री राम नवरात्रों का व्रत रखते हैं। देवी भगवती श्री राम को दर्शन देती है। इस ग्रंथ के नवम स्कन्ध में वेदवती व छाया सीता का भी उल्लेख है। इस का रचना काल 950 ई के लगभग है।
19. महाभागवत पुराण : इस का रचना काल 11वीं शताब्दी के लगभग है। शिव हनुमान का रूप धारण कर श्री राम की सहायता करते हैं। श्री राम को देवी अमोध शस्त्र प्रदान करती है। जिससे वे रावण पर विजय पाते है। इस पुराण में नारद शाप व सीता हरण का उल्लेख है।
20. कालिका पुराण : इस पुराण का रचना काल 10-11वीं शताब्दी माना गया है। श्री राम की विजय के लिए ब्रह्मा देवी की पूजा करते हैं। जनक हल जोतते है और पृथ्वी से सीता व दो पुत्र प्राप्त करते हैं। आर. सी. हाजरा इस पुराण की रचना का मूल स्थान बंगाल मानते है। उन का कथन है कि बंगाल में देवी पूजा अष्टमी और नवम को की जाती थी और बली प्रथा भी थी। यह तर्क ठीक नही जचता। उत्तरी भारत में देवी पूजा की जाती है और हिमाचल में देवी को बलि देने की भी प्रथा थी ।
21. शिव पुराण : राम जन्म की हेतु कथाओं और शिव चरित्र के लिए राम चरित मानस शिव पुराण का आभारी है। सती राम की परीक्षा लेती है। धर्म संहिता के अन्तर्गत बनवास के समय सीता द्वारा दशरथ के लिए पिण्ड दान का उल्लेख है। सागर पार करने के लिए राम द्वारा शिव से सहायता की प्रार्थना की गई है।
22. कल्कि पुराण: इस ग्रन्थ में संक्षिप्त राम कथा है। हाजरा के अनुसार इस का रचना काल 18वीं शती हैं। और यह पुराण बंगाल में रचा गया है। क्योंकि इस पुराण के सभी हस्त लिखित ग्रंथ जो अब तक मिले हैं, बंगला लिपि में है।
23. बहि पुराण: इस रचना में बाल काण्ड से युद्ध काण्ड तक राम कथा का विस्तृत वर्णन है। रामावतार और सीता हरण का कारण भृगु और पृथ्वी का शाप बताया गया है। रावण और कुम्भकरण की जन्म कथाओं का भी वर्णन है।
पद्म पुराण : इस पुराण में अवतार वाद अधिक दिखाई देता है। राम को विष्णु व सीता को लक्ष्मी का रूप कहा है। लक्ष्मण भरत व शत्रुघ्न को क्रमशः अनन्त, सुर्दशन व पांच जन्य का अंश माना गया है। इस पुराण के खण्डों का रचना काल अलग-अलग माना जाता है।
24. पुराणेतर धर्मिक साहित्य
योग वसिष्ठ – आधुनिक अलोचक यथा एस. एन. दास गुप्ता और एम. विंटर नित्स इस ग्रंथ को आठवीं शताब्दी का मानते है। डा० वी. राघवन के अनुसार इस ग्रंथ का रचना काल 1100 ई० और 1250 ई० के बीच का है, विश्वा मित्र के कहने पर वसिष्ठ श्री राम को मोक्ष प्राप्ति पर उपदेश देते हैं।
अध्यात्म रामायण यह रचना पार्वती शंकर संवाद रूप में है। यह संवाद नारद ने ब्रह्मा से सुना था। इसमें अवतार वाद अत्याधिक है। श्री राम पर ब्रह्म, सीता मूल प्रकृति (योग माया) लक्ष्मण शेष के अवतार माने गए है। गुरु वसिष्ठ कौशल्या जनक व रावण आदि इस रहस्य को जानते हैं। रामचरित मानस इस रामायण से अत्यधिक प्रभावित है। इस ग्रन्थ का मुख्य विषय राम भक्ति का प्रतिपादन करना है।

25. अद्भुत रामायण : इस ग्रन्थ की सम्पूर्ण कथा वाल्मीकि भरद्वाज संवाद में है। इस में नारद और पर्वत द्वारा विष्णु को शाप देना रामावतार का कारण माना गया है। सीता शाप के कारण राक्षस के द्वारा चुराई गई है। रावण का वध सीता द्वारा होता है। वह देवी का रूप धारण करके आती है।

26. आनन्द रामायण : सम्भवतः यह रचना 15वीं शताब्दी की है। इसमें 12252 शलोक है। इस राम कथा में कई अद्भुत कथाओं का समावेश है। यथा सुलोचना की कथा, राम व लक्ष्मण के आठ पुत्रों का उल्लेख आदि । अन्तिम सर्गों में राम-उपासना की विधि, राम नाम का महात्म्य, चैत्र महिमा तथा राम आदि के बैकुंठवास का वर्णन है। तत्व संग्रह रामायण : इस ग्रंथ की भूमिका में श्री राम को शिव, ब्रह्मा, हरिहर त्रिमूर्ति व परब्रह्म का अवतार माना गया है। इस का राम मन्त्र “रामोऽहम” है अर्थात अद्वैत राम-उपासना का सिद्धान्त भी अपनाया गया है। कई तीर्थों का सम्बंध श्री राम से जोड़ कर उन की महानता दिखाई गई है।
27. जैमनीय भारत : इस में कुश-लव की कथा भी है। मेघनाथ के संहार के बाद अहिरावण श्री राम और लक्ष्मण को पाताल ले जाता है। हनुमान अपने पुत्र की सहायता से अहिरावण का वध करके उन्हे छुड़ा लाते है। इस में रावण का वध सीता द्वारा होता है।
28. मंत्र रामायण: इस में व्यक्त किया गया है कि वेद भी श्री. राम के साथ रामायण के रूप में प्रकट हुए।
वेदान्त रामायण: इस का विषय परशु राम चरित है जो श्री राम द्वारा जिज्ञासा करने पर वाल्मीकि ने उन्हें सुनाया।
29. सत्योपाख्यान: यह रामायण वाल्मीकि मार्कण्डेय संवाद में है। हनुमत् सहिता : यह राम कथा हनुमान अगस्त संवाद में वर्णित है। इस का प्रतिपाद्य सरयु तट पर श्री राम की राम लीला तथा जल विहार है। इस कृति पर कृष्ण काव्य की श्रृंगारिता का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
उपरोक्त रचनाओं के अतिरिक्त वृहत कौशल खण्ड आदि कई अन्य कृतियां है।
30. महाकाव्य
धार्मिक साहित्य के अतिरिक्त राम कथा सम्बन्धी कुछ महाकाव्य ऐसे हैं जिनमें आद्यान्त राम चरित्र का वर्णन है, और कुछ में अन्य चरित्रों के साथ राम चरित का समावेश कर लिया गया है। संस्कृत में प्रमुख राम-काव्य निम्न है :
रघुवंश : कालिदास कृत इस ग्रन्थ का रचनाकाल 400 ई० के लगभग है। इस के 19 सर्गों में राजा दिलीप से लेकर अग्निवर्ण तक 29 राजाओ का वर्णन है। प्रजा प्रसन्न हो तो राजा की समृद्धि होती है। प्रजा के दुखी होने पर राजा का नाश होता है। इस रचना का यही उद्देश्य है। राम चरित 6 सर्गों में वर्णित है। इस काव्य का मुख्य रस वीर है। रावण वध इस के लेखक भट्टि हैं। रचना काल सातवीं शताब्दी है। राम जन्म से लेकर राज्य अभिषेक तक की कथा व्याकरण के नियमों के निरूपण के साथ वर्णित हैं। इसका प्रधान रस वीर है।
जानकी हरण: इस रचना अयोध्या वर्णन से लेकर जानकी हरण तक का कथानक है। इस की भूमिका में 25 सर्गों का उल्लेख है। परन्तु सभी सर्ग उपलब्ध नहीं है। इसका प्रमुख रस श्रृंगार है।
राम चरित : यह अभिनन्दन कृत नवीं शताब्दी की रचना है। इस में 36 सर्ग हैं।
रामायण मंजरी : क्षेमेन्द्र द्वारा रचित इस महाकाव्य में 36 सर्ग हैं। यह सम्पूर्ण राम कथा वाल्मीकि नारद संवाद में है। राजा दशरथ द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ से पूर्व अश्वमेध यज्ञ का भी इस में उल्लेख है।
दशावतार चरित : यह रचना भी क्षेमेन्द्र द्वारा रचित है। रचना काल 1066 ई० है। इस में दस अवतारों का सरस और सरल वर्णन है। अन्य रचनाएं निम्न हैं। उदार राघव, रघुवीर चरित, श्री राम विजय, राधवीयम्, जानकी परिचय, राम लिंगामृत, नारायणीयम्, राघव-उल्लास, राम रहस्य आदि ।

 

Ram kavya

Written by Alok Mohan on March 24, 2023. Posted in Uncategorized

  • राम काव्य
    भारतीय संस्कृति का श्री गणेश वैदिक काल से पूर्व हो चुका था। भारत में सूर्य वंश व सोम वंश के राज्यों की स्थापना हो चंकी थी। वे राज्य थे अयोध्या, वैशाली, काशी, पांचाल, कान्यकुब्ज, महिष्मती, तुर्वसु, हस्तिनापुर कधार, तितक्षु (पूर्वी भारत ) तथा कलिंग आदि। उस समय भी राजनैतिक दृष्टि से बटा हुआ भारत सांस्कृतिक दृष्टि से एक था। स्थान-स्थान पर ऋषि मुनियों के आश्रम थे। उनमें वेद वेदांग, उपनिषद, आयुर्वेद, ज्योतिष आदि का अध्ययन तथा अस्त्र-शस्त्रों का प्रशिक्षण दिया जाता था। चार आश्रमों ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास तथा सामाजिक व्यवस्था के लिए चार वर्णों को गठित किया गया था। वेद ऋषि मुनियों द्वारा रचे गये, हजारों वर्षों पश्चात् भी उनमें लेशमात्र परिवर्तन नहीं हुआ। परन्तु राजाओं का इतिहास आरम्भ में लिखित नहीं था। कथा वाचक मौखिक रूप से ही जन साधारण को कथायें सुनाते थे वे अपनी रूचि व सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार कथाओं में परिवर्तन व परिवर्द्धन करते रहे।
    भारत लगभग 12 सौ वर्ष दासता की जंजीरो में जकड़ा रहा, परन्तु हिन्दू जाति का मनोबल व नैतिक साहस कायम रहा। इस काल में भी राम कथा पर आधारित साहित्य की निरन्तर रचना होती रही हैं। इस साहित्य से पता चलता है कि पराधीन हिन्दू जाति का मनोबल बढ़ाने में इसका कितना योगदान रहा है। धर्म संस्कृति व साहित्य के क्षेत्र में ऐसे महापुरूषों का उदय हुआ जिन्होंने अपने धर्म, संस्कृति की रक्षा हेतु शक्तिशाली आंदोलनों का नेतृत्व किया, बलिदान दिए परन्तु अपनी संस्कृति पर आंच नहीं आने दी। आज स्वतन्त्र भारत में यदि कोई हिन्दू धर्म रक्षा के लिए आवाज उठाता है तो उसे कट्टरपंथी कहकर चुप ही नही करा दिया जाता बल्कि उसे इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वह अपनी आवाज बुलंद कर ही नहीं सकता। क्या विश्व में अन्य कोई ऐसा देश है जिसके बहुसंख्यक लोगों को पग पग पर अपमानित होना पड़े। स्वामी विवेकानन्द ने भारत की खोई हुई प्रतिष्ठा को विश्व में पुनः उजागर किया। परिणामतः कई विदेशी विद्वानों की रुचि हमारे प्राचीन साहित्य के अध्ययन की ओर बढ़ी। एफ० ई० पार्जीटर आई० सी० एस० उच्च अधिकारी ने संस्कृत भाषा सीखी और पुराण साहित्य पर गहन शोध करने के पश्चात अमूल्य ग्रन्थों की रचना की। फा० कामिल बुल्के इसाई धर्म के प्रचार हेतु भारत में आया था, परन्तु हिन्दु धर्म संस्कृति से इतना प्रभावित हुआ कि उस ने हमारे धर्म और प्राचीन ग्रन्थों का अवलोकल किया और राम कथा उत्पति और विकास ग्रन्थ लिख कर पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की। परन्तु अफसोस है उन अधर्मी हिन्दुओ पर जिन की भ्रष्ट बुद्धि अपने पूर्वजो का अपमान करने पर तुली है। वे अपने और अपनी सन्तानों के नाम तो श्री राम, सीता व श्री कृष्ण रखते हैं परन्तु कहते हैं ये सभी मिथ हैं स्वतन्त्रता के बाद भारतीय रामायण के आदर्शों को भूल गए। परिणामतः लूट खसूट, हत्याएं, भ्रष्टाचार, गुण्डागर्दी आदि का बोल बाला हो गया। ‘पब’ संस्कृति भी राक्षस वृति की देन है जो लोग पब संस्कृति का समर्थन करते हैं वे भी अपनी बहु बेटियों को पब में मन्दिरा पान करने व उन्मुक्त प्रेम की अनुमति नहीं देगें, परन्तु दूसरों की बहू बेटियों की मस्ती पर आनन्द लेना चाहेंगे।
    वाल्मीकि ऋषि के अनुसार रामायण काल भारत का स्वर्ण युग था। रामायण विश्व के समस्त साहित्य में सर्वोत्तम ग्रन्थ है । इस का प्रभाव भारतीय जन-जीवन पर गहरा अंकित हुआ है माता पिता गुरू का आदर बंधुत्व, भावना, तप-त्याग, समाज संगठन, सर्वोत्तम शासन के आदर्श स्वरूप श्री राम चन्द्र माने जाते हैं। विवाह के समय मांगलिक गीतों में भी कन्या पिता से कहती है :
    सास होवे मात कौश्ल्या, ससुर हो दशरथ
    पति होवे राम जिहा, छोटा देवर लक्ष्मण होवे।। (पंजाबी गीत) पराधीन भारत में भी गावं की चौपालों में राम कथा सुनाई जाती थी। बच्चा-बच्चा रामायण के आदर्शों पर चलना चाहता था । सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रम में भी रामायण का स्थान था। राम-चरित मानस के दोहे सस्वर गाए जाते थे।
    स्वतन्त्रता के बाद धर्म निरपेक्ष सरकारों ने पाठ्यक्रम से ही राम-कथा को नहीं निकाला अपितु रामायण के आदर्श पात्रों पर कीचड़ उछालना शुरू कर दिया। यह असहनीय है। हमारे धर्म-संस्कृति को समाप्त करने का षडयन्त्र है। कोई भी स्वाभिमानी अपने पूजनीय महापुरूषों पर लांछन पंसद नही करेगा। अतः हिन्दु धर्म विरोधी विवरण स्कूलों के स्लेबस में से तत्काल निकाल देना चाहिए।
    यदि हम आदर्श समाज की स्थापना करना चाहते है तो रामायण के आदर्शों पर चलना होगा। घर-घर में रामायण का प्रतिदिन पाठ हो। अयोध्या से श्री लंका तक राम वन गमन मार्ग का विकास किया जाए। राम नवमी, सीता नवमी, दशहरा दिवाली आदि त्यौहारों पर यात्राएं सगठित की जाएं।
    हमारे महापुरूषों, अवतारों तथा हमारे धार्मिक ग्रन्थों को मिथ कहने वालों को हमने सबक सिखाना है। हम अधिक से अधिक राम कथा साहित्य रचें ।
    हिन्दुओं जागो, अपने पूर्वर्जों का अपमान सुनना घोर अपराध है। यदि तुम चुप रहे तो भगवान् तुम्हें माफ नही करेगा और आने वाली पीढ़िया तुम्हे धिक्कारेगीं। ‘मिथ व माईथौलोजी” के विषय में आदरणीय विद्वान पं० भगवत दत्त के निम्नलिखित विचार हैं ।
    मिथ : किसी प्राकृतिक अथवा ऐतिहासिक घटना के विषय में जन साधारण का विचार जो शुद्ध कल्पित कथानक हो और जिस में लोकोत्तर व्यक्तियों, कार्यों अथवा घटनाओं का समिश्रण हो ।
    माईथोलोजी : पश्चात्य शिक्षा प्राप्त वर्तमान लेखक हजारों पुरातन बातों को माईथोलौजी कह कर संतुष्ट हो जाते है। माईथोलौजी के इस मूलभूत ने जो यवन देश से योरुप में गया और वहां से भारत में आया । पुरातन इतिहास का अधिकांश नाश किया है। माईथोलोजी रुपी ज्वर के कारण त्रिकालज्ञ ऋषियों के लेख असत्य माने जा रहे हैं। इसी की रट लगा कर अनेक अल्प पठित अपने को पंडित मान रहे है। और भारत का उद्धार पश्चिम अनुकरण में मानते हैं।”
    स्वामी सत्यानन्द जी महाराज का वानर जाति के विषय में कथन : ‘‘रामायण पर एक ऐतिहासिक दृष्टि विंध्याचल से दक्षिण की भूमि विस्तृत और विशाल वन से घिरी थी। वह भूभाग सूर्यवंशियों का सुरक्षित भूभाग था। इस भूभाग में कहीं-कहीं ऋषियों के आश्रम बन गये थे। वहां एक पिछडा हुआ आर्य वंश भी बसता था। जो वानर नाम से प्रसिद्ध था । वे जन चतुर, चपल व सुवीर थे । ”
    “शाक्यमुनि के समय भी रामायण विद्यमान थी। अतः यह कहना झूठ है कि शाक्य मत के हास के पश्चात रामायण की काल्पनिक कथा का निर्माण हुआ।” “जैन मुनि महावीर के समय जैन मत से भिन्न अन्य धर्म के 24 ग्रन्थ विद्यमान थे, उन में रामायण और महाभारत भी गिने जाते थे।” वानर एक जाति थी। कई लोग कहते है कि क्या हनुमान वानर थे। मै कहती हूँ “नहीं” आज भी मध्यप्रदेश, उडीसा आदि प्रान्तों के आदिवासी लोगों की जातियां सिंह, मृग, रीछ, कछुआ भालु आदि हैं। जंगली जानवरों से अपनी रक्षा के लिए ये लोग वैसा ही अपना रूप बना लेते होगें।
    राक्षस पूजा
    नोएडा के पास विसरवा गांव में रावण का मन्दिर बन रहा है। यह गांव रावण के पिता विश्रवा की तपस्थली था। जयपुर में रावण की मूर्ति तैयार हो रही है। रामत्व के स्थान पर रावणत्व की पूजा अर्थात राक्षसवृति का बोलबाला ।
    रावण महाज्ञानी व शिव भक्त था । परन्तु उसके कुकृत्यों के कारण उसके दादा पुलस्त्य ऋषि व अन्य सभ्य समाज ने उस का बहिष्कार कर दिया। वह और उस के वंशज ब्रह्म राक्षस कहलाने लगे। 21 वीं सदी के हिन्दुओं पर राक्षस वृति इतनी हावी हो रही है कि प्राचीन संस्कृति को नष्ट कर नवीन संस्कृति का श्री गणेश किया जा रहा है। ( देखिए साप्ताहिक पत्रिका “प्रघात” 26 अप्रैल, 2009, अम्बिका पुर, उ० प्र०)
    प्रस्तुत पुस्तिका में मैने आदि कवि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण से लेकर 1962 ई० तक के भारत में लिखित या अनुवादित राम कथा संबंधित साहित्य का अति संक्षिप्त परिचय दिया है। राम कथा संबधी साहित्य का निमार्ण विश्व की प्रमुख भाषाओं में भी हुआ है। तथा भारत की प्रान्तीय भाषाओं व बोलियों में भी राम कथा पर अनेक ग्रन्थ लिखे गए है। उन सब का विवरण जुटाना मैरे लिए असभव है।
    वस्तुतः श्री राम कथा साहित्य इतना विशाल है कि उस की सूची तैयार करना सरल कार्य नहीं क्योंकि :
    राम अन्नत अन्नत गुन, अमित कथा विस्तार सुनि आसचरज न मानहहिं, जिन के विमल विचार ।। सकल सुमंगल दायक, रघुनायक गुणगान । सादर सुनहि ते तरहिं, भव सिंधु बिन जलयान ।।
    मैं उन अनेक विद्वान लेखकों की आभारी हूँ जिन की रचनाओं से मैंने सामग्री प्राप्त की है। मेघदूत प्रिंटिगं प्रेस के स्वामी श्री भीम सेन बतरा जी व उनके कर्मचारियों का भी धन्यवाद करती हूँ।
    लज्जा देवी मोहन
    राम कथा
    प्राचीन काल से लेकर अब तक राम कथा हमारे जन जीवन को प्रभावित करती आ रही है। यह कथा विभिन्न युगों एवं परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित तथा परिवद्धिंत होती रही है। यह संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रशं से होती हुई भारत की आधुनिक भाषाओं के साहित्य को परिपूर्ण कर रही है, “मानव हृदय को आकर्षित करने की जो शक्ति राम कथा में है। वह अन्यत्र दुलर्भ है ।”
    राम कथा की विकास यात्रा का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है । वैदिक साहित्य
    राम कथा के पात्रों के अतिरिक्त वैदिक साहित्य में इक्ष्वाकु वंशीय अन्य राजाओं का भी उल्लेख हैं। ऋगवेद में इक्ष्वाकु को धनी और तेजस्वी राजा कहा गया है। अथर्व वेद में लिखा है “हे कुष्ठ (औषधि) तुम्हे प्राचीन इक्ष्वाकु राजा जानता था।”
    इक्ष्वाकु वंश के पच्चीसवें राजा मंधाता का ॠग्वेद में कई बार उल्लेख हुआ है। उसे अंगिरा ऋषि जैसा पवित्र कहा गया है। वैदिक साहित्य में भगेरथ राजा का उल्लेख है। समझा जाता है कि भगेरथ और भगीरथ एक ही थे।
    ऋगवेद में रघु का वर्णन भी है। रघु का अन्य अर्थ तीव्र गति भी है। इसी वेद में दशरथ का भी नाम है। “दशरथ के चालीस भूरे रंग वाले घोड़े एक हजार घोड़ों वाले दल का नेतृत्व कर रहें है।” ऋगवेद में राम का उल्लेख यजमान राजा के रूप में आया है। “मैनें दुशीम, पृथवान, वैन और बलवान राम इन यजमानों के लिए यह सूक्त गाया है।” वैदिक साहित्य में राजा जनक का नाम कई बार आया है शतपथ ब्राह्मण में जनक को इतना महान तत्वज्ञ और विद्वान कहा है कि वे ऋषि याज्ञवल्क्य को भी शिक्षा देते थे। ऋगवेद में सीता कृषि की अधिष्ठात्री देवी है। सीता का अर्थ “लांगल पद्धति भी है। अन्य कृषि सम्बन्धी देवों के साथ सीता के प्रति भी प्रार्थना की गई है। (हल चलाते हुए जो पंक्ति बनती है उसे लांगल पद्धति कहते है।) पंजाबी भाषा में यह “सियाड़” कहलाती है।
    वैदिक साहित्य धार्मिक था, इतिहास नही। इसलिए इस साहित्य में राम कथा का अभाव है, परन्तु राम कथा के पात्रों का यत्र तत्र उल्लेख है।
    वाल्मीकि रामायण
    विद्वानों का विचार है कि वाल्मीकि रामायण से पूर्व राम सम्बंधी स्फुट आख्यान प्रसिद्ध थे। इनमें अयोध्या काण्ड से लेकर युद्ध काण्ड तक की कथा विद्यमान थी । यह अख्यान केवल कौशल में ही नही, अपितु दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गये थे। वाल्मीकि ऋषि ने इन अख्यानों को प्रबंध काव्य में संकलित कर के रामायण की रचना की। आज कल वाल्मीकि रामायण के तीन पाठ पश्चिमोत्तसरीय, गौड़ीय और दक्षिणात्य प्रचलित है। इन पाठों की तुलना करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि वाल काण्ड और उत्तर काण्ड बाद के लिखें है। ये विचार आधुनिक इतिहासकारों और विदेशी लेखकों के है। भारत के प्राचीन इतिहास के अनुसार वाल्मीकि ऋषि राजा दशरथ के समकालीन व उन के मित्र थे। वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में सीता के बच्चों का पालन पोषण व शिक्षा दीक्षा हुई थी। इसी ऋषि ने आदि रामायण की रचना की थी। सम्भवतः इस गद्दी पर प्रतिष्ठित अन्य वाल्मीकि ऋषि ने इस कथा में संशोधन किया हो । और सीता बनवास बाद में शामिल किया हो । वाल्मीकि रामायण में सात काण्ड हैं। बाल कांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड, सुन्दर कांड, युद्ध कांड व उत्तर कांड।
    वाल्मीकि रामायण को आदि रामायण भी कहते हैं।
    To be continued —

Rishi Pail

Written by Alok Mohan on March 24, 2023. Posted in Uncategorized

ऋषि पैल.
पैल ऋषि कई हुए हैं। एक भृगुकुल में और दूसरे अंगिरा कुल में ये ऋषि व्यास के प्रमुख ऋषियों में एक थे। व्यास ने इन्हें वेदों और महाभारत का अध्ययन तथा ब्रह्माण्ड पुराण सिखाया। युधिष्ठर के राजसूय यज्ञ में यह धौम्य ऋषि के साथ “होता” बने थे। शरशय्या पर पड़े भीष्म को मिलने ये भी गए थे एक पैल गर्ग ऋषि के पुत्र और एक अन्य वसु ऋषि के पुत्र थे।
सतयुग और त्रेतायुग के दौरान, प्राचीन भारत में केवल एक वेद, जिसमे कुछ भजन थे, जिन्हें “वेद-सूत्र” कहा जाता था।
वेद में यज्ञ विधि प्रक्रिया का पूरा विवरण निहित है। वेद में कई छंद थे। द्वापरयुग तक इस वेद का पालन होता रहा। महर्षि कृष्णद्वैपायन ने वेदों को चार भागों में विभाजित किया। इस कारण महर्षि कृष्णद्वैपायन को “वेदव्यास” यानी वेदों के व्यास के रूप में जाना जाने लगा। पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु महर्षि व्यास के चार शिष्य थे। महर्षि व्यास ने पैल को ऋग्वेद, वैशम्यपन को यजुर्वेद, जैमिनी को सामवेद और सुमन्तु को अथर्ववेद की शिक्षा दी।
English Translation.
Rishi Pail
There have been many Pail Rishis in ancient India. One in Bhrigukul and the other in Angira clan, this sage was one of the main sages of Vyasa. Vyas taught him the study of the Vedas and the Mahabharata and the Brahmanda Purana. In Yudhishthira’s Rajasuya Yajna, he became “Hota” along with Dhaumya Rishi. They also went to meet Bhishma lying on the bed.
Another Rishi Pail was the son of Garga Rishi and another was the son of Vasu Rishi.
During Satyug and Tretayug, there was only one Veda, few hymns, called “Veda-Sutras” in ancient India.
The Veda contained complete details of the Yagya Vidhi process. There were many philanthropic verses.
This veda was followed till Dwaparayuga.
Maharishi Krishna-dwaipayan divided the Vedas into four parts. For this reason Maharishi Krishnadvaipayan came to be known as “Vedvyas”i.e Vyas of the Vedas.
Pail, Vaishampayan, Jaimini and Sumantu were the four disciples of Maharishi Vyas. Maharishi Vyas taught Rigveda to Pail, Yajurveda to Vaishmyapan, Samaveda to Jaimini and Atharvaveda to Sumantu.

Rishi Kamad

Written by Alok Mohan on March 24, 2023. Posted in Uncategorized

ऋषि कामद
कामद ब्रह्म ऋषि थे। राजा अंगरिष्ट ने इनसे पूछा, “शुद्ध धर्म, अर्थ और काम क्या है। ऋषि ने उत्तर दिया, जिससे चित की शुद्धि हो वह धर्म, जिससे पुरूषार्थ साध्य हो वह अर्थ तथा केवल देह निर्वाह की इच्छा हो वह काम है।
सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार कामद ऋषि ने ब्रह्मा जी की छाया से जन्म लिया था। उनके जीवन का उद्देश्य सृष्टि की रचना और जनसंख्या वृद्धि था।
कामद ने एक बार भगवान विष्णु को अपनी तपस्या से प्रसन्न कर अपने लिए योग्य कन्या मांगी थी। विष्णु ने कहा कि उन्होंने इसकी व्यवस्था पहले ही कर ली है। भगवान विष्णु ने ऋषि कामद से कहा, “स्वयंभुव मनु तुम्हारी कुटिया पर पहुँचेंगे और तुम्हारे सामने अपनी पुत्री देवहूति को प्रस्तावित करेंगे, जिसे तुम स्वीकार कर सकते हो।” विष्णु ने बताया कि वह स्वयं उनकी पत्नी के गर्भ से जन्म लेंगे।
ब्रह्मा जी की आज्ञा का पालन करने के लिए ऋषि ने मनु की दूसरी पुत्री देवहूति से विवाह किया। मनु एक बार अपनी बेटी के साथ कर्दम की कुटिया में आए और विवाह का प्रस्ताव रखा। कर्दम ने खुशी-खुशी देवहूति से शादी कर ली। नारद के मुख से कामद की प्रशंसा सुनकर देवहूति कामद से विवाह करने के लिए आतुर हो उठी। कामद ने योग में स्थित होकर एक सर्वव्यापी विमान बनाया। कामद ने देवहूति को सरस्वती नदी में स्नान करने और विमान में प्रवेश करने को कहा। उसकी सहायता से स्नान करने के बाद वह कामद के साथ विमान में चढ़ गई। दोनों ने हवाई जहाज से बहुत यात्रा की। कामद और देवहुति ने नौ कन्याओं को जन्म दिया। कामद ने देवहुति को बताया कि पूर्व वरदान के फलस्वरूप निकट भविष्य में विष्णु उसके गर्भ में जन्म लेंगे, ब्रह्मा की प्रेरणा से उन्होंने अपनी सभी पुत्रियों का विवाह प्रजापतियों से करवा दिया।
देवहूति ने नौ पुत्रियों और एक पुत्र को जन्म दिया। लड़कियों के नाम थे कला, अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुंधति और शांति तथा पुत्र का नाम कपिल था। उनकी नौ पुत्रियों का विवाह क्रमशः प्रजापति, मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, रितु, भृगु, वसिष्ठ और अथर्व से हुआ था। देवहुति ने ‘कपिल’ को जन्म दिया, जो विष्णु के अवतार थे। कपिल अपनी माता देवहूति के पास रहे और देवहूति ने उन्हें भक्ति-त्याग आदि के मार्ग पर अग्रसर किया।
वास्तव में भगवान विष्णु ने स्वयं कपिल के रूप में देवहूति के गर्भ से अवतार लिया था।
English Translation.
Rishi Kamad.
Kamad was a brahmrishi. King Angrishta had once asked him, “What is pure Dharma, Artha and Kama.”
Rishi Kamad replied, “Dharma is that which purifies the mind, Artha is the purusharth, and Kama is the bodily desire i.e lust.
According to sanatna dharma beliefs, Kamad Rishi took birth from the shadow of Brahma Jee. The purpose of his life, was for the creation of universe and for increase of population.
Kamad had once pleased Lord Vishnu with his penance and asked for a suitable girl for himself. Vishnu said that he has already arranged for this. Lord Vishnu said to Rishi Kamad, “Swayambhuva Manu will reach your hut and propose his daughter Devahuti in front of you, which you may accept.” Vishnu told that he himself would take birth from the womb of his wife.
To obey Brahma jee’s order, the Rishi married Devhuti, the second daughter of Manu. Manu came to Kardam’s cottage, with his daughter once and proposed marriage. Kardam happily married Devhuti. Devhuti was eager to marry Kamad after hearing the praise of Kamad from the mouth of Narada. Kamad created an omnipresent aircraft by being situated in yoga. Kamad asked Devahuti to bathe in the river Saraswati and enter the plane. After taking bath with his help, she boarded the plane with Kamad. Both of them traveled a lot by plane. Kamad and Devahuti gave birth to nine daughters. Kamad told Devahuti that as a result of a previous boon, Vishnu would be born in her womb in the near future, under the inspiration of Brahma, he got all his daughters married to Prajapatis.
Devhuti gave birth to nine daughters and a son. The names of the girls were Kala, Anusuiya, Shraddha, Havirbhu, Gati, Kriya, Khyati, Arundhati and Shanti and the son’s name was Kapil. His nine daughters were married to the Prajapatis, Marichi, Atri, Angira, Pulastya, Pulah, Ritu, Bhrigu, Vasistha and Atharva respectively. Devahuti gave birth to ‘Kapil’, who was an incarnation of Vishnu. Kapil stayed with his mother Devhuti and Devhuti guided him on the path of devotion-renunciation etc.
In fact, Lord Vishnu himself incarnated from the womb of Devahuti in the form of Kapil.

Rishi Shakalya

Written by Alok Mohan on March 24, 2023. Posted in Uncategorized

ऋषि शाकल्य :
शाकल्य व्यास के वैदिक शिष्यों में प्रमुख थे। पौराणिक साहित्य में इसे वेद मित्र या देव मित्र शाकल्य कहा है। महाभारत में शाकल्य को ब्रह्म ऋषि कहा गया है। यह ऋषि शिव की उपासना करते थे। शिव ने इन्हें वरदान दिया, तुम बड़े ग्रन्थकार बनोगे।”
शाकल्य ऋषि ऋग्वेद के शाखा प्रवर्तक आचार्य थे ऋग्संहिता साहित्य के अतिरिक्त इनके दो ग्रन्थ ‘शाकल्य संहिता व शाकल्य मत उपलब्ध हैं।
शाकल्य या ऋषि विदग्ध
एक प्राचीन ऋषि थे। वे पहले ऋषि थे जिन्होंने ऋग्वेद के पाठ को शुद्ध किया था और वाक्यों की संधियों को तोड़कर छंदों को अलग-अलग याद करने की विधि शुरू की थी।
विदेह के राजा जनक ने शाकल्य को राज पंडित नियुक्त किया था। उनके प्रतिद्वंद्वी ऋषि याज्ञवल्क्य थे, जो राजऋषि भी थे।
पुराणकारों के अनुसार, देव माने जो दैवीय गुणों से शक्तिशाली हो गया हो। देव शक्तियाँ हमारे मस्तिष्क में निवास करती हैं। उन्हीं की प्रेरणा से मनुष्य कल्याण, दान और धार्मिक कार्यों में लग जाता है। यह जानना आसान नहीं है कि एक व्यक्ति में कितने व्यवहार गुण होते हैं। एक बार राजा जनक ने एक महान यज्ञ किया। यज्ञ के अंत में, उन्होंने घोषणा की कि उनके पास एक हजार कीमती गायें हैं और वह इन गायों को सबसे बड़े धार्मिक दार्शनिक को दान करना चाहते हैं। महाराज की यह घोषणा सुनकर ऋषि याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्यों को गायों को अपने आश्रम में ले जाने का आदेश दिया।
हालाँकि अन्य ऋषियों ने याज्ञवल्क्य से पूछा कि वे स्वयं को सबसे बड़ा दार्शनिक क्यों मानते हैं?
हालाँकि याज्ञवल्क्य ने कहा, “मैं सिर्फ एक गौ सेवक हूँ” ऐसा कहने पर भी अन्य ऋषियों को यह पसंद नहीं आया कि ऋषि याज्ञवल्क्य सभी गायों को अपने आश्रम में ले जाएं। लेकिन किसी में यह साबित करने की हिम्मत नहीं थी कि वह याज्ञवल्क्य से बड़े दार्शनिक थे। हालांकि वे प्रसिद्ध विद्वान शाकल्य को ऋषि याज्ञवल्क्य से वाद-विवाद करने के लिये , मनाने में सफल रहे
शाकल्य ने खड़े होकर ऋषि से कहा- हे याज्ञवल्क्य! आप गायों को इस तरह नहीं ले सकते। मैं आपसे सवाल करूंगा। याज्ञवल्क्य ने शान्त भाव से कहा- हे विद्वान् शाकल्य! जैसे अधजली लकड़ी आग से निकालने पर बुझ जाती है, वैसे ही ये मुनि तुम्हें भड़का रहे हैं। लेकिन विद्वान शाकल्य नहीं रुके। वह ऋषि याज्ञवल्क्य से जटिल प्रश्न पूछने लगे। वह जानना चाहते थे , “देवताओं के रूप में उनके कितने गुण हैं”
तब याज्ञवल्क्य ने पहले 33 सौ देवता, दूसरी बार 33, तीसरी बार तीन, चौथी बार दो, पांचवीं बार डेढ़ और अंत में केवल एक प्राण को देवता कहा। तब शाकल्य ने पूछा- हे याज्ञवल्क्य! बताओ कौन हैं 33 सौ देवता। तब याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, – हे विद्वान् शाकल्य! ईश्वरीय ज्ञान रूपी दैवीय शक्तियाँ अत्यंत सूक्ष्म हैं और सभी को ज्ञात नहीं हैं। वास्तव में, केवल 33 ज्ञात दैवीय लक्षण हैं। इन सभी दिव्य लक्षणों का स्रोत केवल एक महान ईश्वर है, जिसे “प्राण” कहा जाता है। जिस प्रकार भौतिक प्राण समस्त प्राणियों के शरीरों का पालन-पोषण करने वाला तथा चलाने वाला है, उसी प्रकार ज्ञानशक्ति रूपी समस्त देवताओं के कारण होने वाले प्रभु को वेदों में प्राण कहा गया है। याज्ञवल्क्य के दर्शन से समस्त ऋषि-मण्डल चकित रह गया। विद्वान शाकल्य का अभिमान टूट गया। याज्ञवल्क्य शांत स्वर में बोले- शाकल्य! कौतूहलवश तुमने बड़े गहरे प्रश्न पूछे हैं, जाओ, आने वाली तिथि में तुम प्राण त्याग दोगे। कोई तुम्हारी अस्थियां भी तुम्हारे घर नहीं ला पाएगा और सारे ऋषि-मुनियों ने देखा कि विद्वान शाकल्य पराजय की असह्य पीड़ा सहन नहीं कर सका और अगले दिन उसकी मृत्यु हो गई। शाकल्य के शिष्य उनकी अस्थियाँ ले जा रहे थे, अतः चोरों ने उन्हें धन समझकर चुरा लिया। ऋषि को आकाश से एक आवाज सुनाई दी।
“जो अचानक मन में आ जाये उसे कभी भी जिज्ञासा से नहीं पूछना चाहिए”

English Translation.
Rishi Shakalya
Shakalya was the chief among the Vedic disciples of Vyasa. In mythological literature he was called Veda Mitra or Dev Mitra Shaklya. In the Mahabharata, Shaklya is called Brahma Rishi. This sage worshiped Shiva. Shiva gave him the boon, that he will become a great granthakar.”
Rishi Shaklya was the initiator of the branch of the Rig Veda. Apart from the Rig Samhita literature, two of his works, Shakya Samhita and Shakya Mat, are available. Shakalya or Rishi Vidagdha
was an ancient sage. He was the first sage who had corrected the text of Rigveda and started the method of memorizing the verses separately by breaking the treaties of the sentences.
King Janaka of Videha had appointed Shakalya as Raj Pandit. His rival was Rishi Yajnavalkya, who was also Rajarishi. According to mythology,
Dev means one who has become powerful with divine traits. The dev powers reside in our brains.
It is by his inspiration that man gets into welfare, charity and religious activities. It is not easy to know how many behavioral traits, one possess.
Once the king Janak performed a great yagya. At the end of the Yagya, he announced that he has one thousand precious cows and he wants to donate these cows to the greatest religious philosopher. Hearing this announcement of Maharaj, Rishi Yajnavalkya ordered his disciples to drive the cows to his ashram.
However other sages asked Yajnavalkya that why he considered himself to be the biggest philosopher?
However Yajnavalkya said, “I am just a cow servant”
Even after saying this, the sages did not like that the sage Yajnavalkya should take all the cows to his hermitage. But no one had the guts to prove that he was a greater philosopher than Yajnavalkya.
However they were able to convince
the famous scholar Shakalya to debate with Rishi Yajnavalkya. Shakalya stood up and said – O Yajnavalkya! You cannot take cows like this. I will question you. Yajnavalkya said in a calm manner – O learned Shakalya! Just like half-burnt wood gets extinguished when taken out of the fire, in the same way these sages are provoking you. But the learned Shakalya did not stop. He started asking complicated questions from the sage Yajnavalkya. He wanted to know, “how many traits are their in the form of gods”
Then Yajnavalkya first told 33 hundred gods, the second time 33, the third time three, the fourth time two, the fifth time one and a half and finally only one Prana was called a god. Then Shakalya asked – O Yajnavalkya ! Tell me who are the 33 hundred gods. Then Yajnavalkya replied, – O learned Shakalya! Divine powers in the form of divine knowledge are very subtle and not known to all. In fact, there are only 33 known divine traits. The source of all these divine traits is only one great God, which is called “Prana” Just as the physical Prana is the supporter and driver of the bodies of all living beings, so is the Lord who is the cause of all the gods in the form of power of knowledge, He is called Prana in the Vedas. The entire Rishi-Mandal was amazed at Yajnavalkya’s philosophy. Vijigishabhaav of the learned Shakalya was broken. Yajnavalkya spoke in a calm voice – Shakalya! Out of curiosity, you have asked very deep questions, go, you will leave your life in the coming date. No one will be able to even bring your bones to your house and the entire sages saw that the scholar Shakalya could not bear the unbearable pain of defeat and the next day he died. Shakalya’s disciples were carrying his bones, so thieves mistaking them for wealth stole them too. The sage also heard a voice from sky.

“What comes out of one’s mouth suddenly, should never be asked with curiosity”