ancient indian history

Guru Hari Krishan Ji

गुरू हरि कृष्ण
सिक्ख पंथ के आठवे गुरू हरि कृष्ण का जन्म जुलाई सन् 1656 ई० अथवा सावन 1713 वि० को कीरतपुर साहिब में हुआ था । पिता के स्वर्गवास होने के पश्चात उन्हे छोटी आयु में ही गुरू गद्दी संभालनी पड़ी। 5 वर्ष, 2 मास, 13 दिन की आयु में वे गुरु गद्दी पर विराजमान हुए लाल चन्द एक हिन्दू साहित्य का प्रखर विद्वान एव आध्यात्मिक पुरुष था। जो इस बात से विचलित था कि एक बालक को गुरुपद कैसे दिया जा सकता है। उनके सामर्थ्य पर शंका करते हुए लालचंद ने गुरू साहिब को गीता के श्लोकों का अर्थ करने की चुनौती दी। गुरू साहिब जी ने चुनौती सवीकार की। लालचंद अपने साथ एक गूँगे बहरे निशक्त व अनपढ़ व्यक्ति छज्जु झीवर (पानी लाने का काम करने वाला) को लाया। गुरु जी ने छज्जु को सरोवर में स्नान करवाकर बैठाया और उसके सिर पर अपनी छड़ी इंगित कर के उसके मुख से संपूर्ण गीता सार सुनाकर लाल चन्द को हतप्रभ कर दिया। इस स्थान पर आज के समय में एक भव्य गुरुद्वारा सुशोभित है जिसके बारे में लोकमान्यता है कि यहाँ स्नान करके शारीरिक व मानसिक व्याधियों से छुटकारा मिलता है। इसके पश्चात लाल चन्द ने सिख धर्म को अपनाया एवं गुरू साहिब को कुरूक्षेत्र तक छोड़ा। जब गुरू साहिब दिल्ली पहुंचे तो राजा जय सिंह एवं दिल्ली में रहने वाले सिखों ने उनका बड़े ही गर्मजोशी से स्वागत किया। गुरू साहिब को राजा जय सिंह के महल में ठहराया गया। सभी धर्म के लोगों का महल में गुरू साहिब के दर्शन के लिए तांता लग गया। वे गुरू हर राय साहिब जी एवं माता किशन कौर के दूसरे पुत्र थे। राम राय जी गुरू हरकिशन साहिब जी के बड़े भाई थे। गुरु हरि कृष्ण को भी औरंगजेब ने दिल्ली बुलाया था परन्तु वहां जाकर वे अस्वस्थ हो गए। वे यही कहते “मैं मलेच्छ के सामने नहीं जाना चाहता।” अन्त समय में अष्ठम गुरु हरिकृष्ण जी के मुख से निकले “बाबा बकाला” के अनुसार गुरू जी की पंचायत के सदस्य नवम् गुरु की तलाश करने लगे।
गुरू हरि कृष्ण 7 वर्ष, 8 मास, 18 दिन की आयु में चेत, 1721 वि० को स्वर्ग सिधार गए। अपने अन्त समय में गुरू साहिब सभी लोगों को निर्देश दिया कि कोई भी उनकी मृत्यू पर रोयेगा नहीं। बल्कि गुरूबाणी में लिखे शब्दों को गायेंगे।

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