Somnath Temple

Written by Alok Mohan on May 8, 2023. Posted in Uncategorized

सोमनाथ मंन्दिर
यह मंन्दिर काठियावाड गुजरात में पत्थरों की शिलाओं पर खड़ा था. जिन्हें लकड़ी के 56 स्तम्भो ने सहारा दिया हुआ था। लिंग की ऊँचाई 7 फुट 6 इन्च थी मूर्तियां हीरे जवाहारत से जड़ित थी।। दो सौ मन सोने की जंजीर घण्टे के साथ लगी थी। लिंग मोतियों से जगमगाता था। दस हजार गांवों की आय मंदिर के नाम थी। तीन सौ पचास स्त्री-पुरुष प्रतिदिन मंदिर की सेवा करते थे। महमूद जनवरी, 1025 ई० में सोमनाथ पहुंचा। हिन्दुओं ने पूरी शक्ति से अपने आराध्य देव की रक्षा का प्रयत्न किया। पचास हजार हिन्दू लड़ते-2 शहीद हुए। लूटा हुआ माल व शिवलिंग के दुकडे ऊँटों पर लाद कर महमूद गजनवी अपने देश ले गया और उन्हें जामा मस्जिद के कदमों पर रखा ताकि आते-जाते लोग उन्हें रोंघे यह 15 दिन सोमनाथ रहा। अपार धन राशि के साथ वह सुरक्षित गजनी जाना चाहता था, क्योंकि उसे पता चल गया था कि मार्ग में लोग उसका रास्ता रोकेंगे। उसने सिंध पार करके एक पथ प्रदर्शक को साथ लिया। यह व्यक्ति शिव भक्त था। उसने मन ही मन निश्चय किया कि महमूद के सैनिकों को कुछ सजा मिलनी चाहिए। उसने सेना को ऐसे स्थान पर पहुंचाया, जहा मीलों तक पानी नहीं था। सैनिकों ने उसकी शरारत को भाप लिया और उसके टुकड़े-2 कर दिये। इस गुमनाम वीर जैसे असंख्य हिन्दू हुए हैं जिन्होंने मातृभूमि और धर्म-संस्कृति की रक्षा के लिए प्राणों की परवाह नहीं की और मृत्यु का आलिंगन किया। वापसी पर महमूद का विरोध जाटों ने भी किया। उसकी लम्बी और कष्टदायक यात्रा का अन्त 1026 ई0 में हुआ। 1027 ई० में जाटों को सबक सिखाने के लिए महमूद फिर भारत आया। जाटों ने उसका मुकाबला किया, परन्तु उनका भी वही हाल हुआ जो धर्म-योद्धाओं का होता है। 1030 ई0 में महमूद मर गया। मुस्लिम इतिहासकार उसे एक महान् सम्राट और इस्लामिक धर्म का योद्धा मानते हैं। परन्तु उसने हिन्दुओं के धार्मिक स्थल तोड़े। भारत के धन-जन की जो हानि उसके द्वारा हुई, ऐसा संसार में कोई उदाहरण नहीं है। भारत में अभी भी ऐसे मुस्लमान है जो उसकी प्रशंसा करते हैं। 1947 ई० में सोमनाथ मन्दिर के निर्माण की बात शुरू हो रही थी उसी समय आसाम के एक उर्दू पत्र में सम्पादक ने लिखा, सोमनाथ मन्दिर का फिर निर्माण होने लगा है। मुसलमानों को कोई महमूद गजनवी तैयार करना चाहिए। यह सुनकर महात्मा गांधी बहुत दुःखी हुए।
चोल साम्राज्य –
सन् 1012 ई० में राजा राज ने अपने पुत्र राजेन्द्र को उत्तराधिकारी बनाया। सन् 1014 ई0 में राजेन्द्र राजा बन गया। उसने 30 वर्ष तक शासन किया और उत्तर में गंगा तथा पूर्व में बंगाल तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया। गंगाजल से उसने “गंगा कुण्ड चोल पुरम्” नगर बसाया। सन् 1025 ई० में राजेन्द्र ने दक्षिण-पूर्व एशिया पर विजय पा ली। क्योंकि वहां के शासक चीन व भारत व्यापार के बीच में विघ्न डालते थे। जीते क्षेत्र में राजेन्द्र ने हिन्दू धर्म, साहित्य और कला का विस्तार किया।
चोल राजे कला प्रेमी व ऐश्वर्यशाली थे। उन्होंने अपने पूर्वजों के मंदिर बनाए और उनकी अर्चना-पूजा आरम्भ की। उनके राजगुरू को पुरोहित के रूप में दिखाया। चोला-साम्राज्य की शक्ति व्यापार के कारण अधिक थी। मन्दिरों के लिए धन भी व्यापारी देते थे। चिदम्बरम् 907 ई0 से सन् 1310 ई० तक चोल राजाओं के अधीन रहा। पाण्डिचेरी के आसपास के मन्दिर भी चोल राजाओं के समय बनाए गए। तेरहवीं शताब्दी के अन्त में ‘पाण्डेय’ शासकों ने चोल राजाओं को हरा दिया।
अलाऊद्दीन का अत्याचार और पद्मावती का जौहर :
अलाऊद्दीन अपने चाचा और ससुर जलालुद्दीन को मार कर धोखे से सन् 1296 ई० में बादशाह बना था। उसने गद्दी संभालते ही हिन्दुओं के विरूद्ध अभियान आरम्भ कर दिया और अपने जनरल नुसरत खां और उल्गा खां को गुजरात पर हमला करने के लिए भेजा। उन्होंने सोमनाथ मन्दिर को लूटा, मूर्तियाँ दिल्ली लाई गई और ऐसे स्थान पर रखी गई, जहाँ से मोमिन (अहिन्दू उनको रोंधते जाएं। ये मूर्तियाँ महमूद गजनी की लूट के पश्चात् मन्दिर में प्रतिष्ठित की गई थी। गुजरात जीतने के
पश्चात् दोनों जनरल दिल्ली की ओर चल पड़े। पीछे से लूट के माल को लेकर झगड़ा हो गया। नए बने मुसलमानों ने नुसरत के भाई को मार दिया। बदला लेने के लिए अलाऊद्दीन खिलजी के आदेश पर नुसरत ने विद्रोहियों को कत्ल कर दिया। उनकी पत्नियों के सामने, उनके बच्चों को निर्दयता से काट दिया गया। स्त्रियों को सफाई करने वालों अथवा निम्न जाति के सुपुर्द कर दिया।
29 जून, 1303 को अलाऊद्दीन ने चितोड़ पर आक्रमण कर दिया। राजा रत्न सिंह के नेतृत्व में राजपूत जी जान से लड़े। सात मास तक किले का घेरा पड़ा रहा। रानी पद्मनि ने अन्य स्त्रियों के साथ जौहर किया। | अलाऊद्दीन 26 अगस्त तक वहीं डटा रहा। इस अवधि में उसने कई मन्दिर तुड़वाए व उसके सैनिकों द्वारा हिन्दुओं को त्रस्त किया गया।
मंगोलों ने धर्मान्तरण के पश्चात् इस्लाम कबूल कर लिया था और अलाऊद्दीन खिलजी की सेना में भर्ती हो गए थे, परन्तु अलाऊद्दीन व पुराने मुसलमान उनके साथ दुर्व्यवहार करते थे। उनका भता, जगीर आदि वापिस ले ली गई थी। उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। वे गरीबों में पिस रहे थे। भूखा मरता क्या नहीं करता। उन्होंने अलाऊद्दीन को मारने का षडयन्त्र रचा परन्तु भेद खुल गया और वे पकड़ लिए गये। बादशाह ने उनके संहार की घोषणा कर दी। लगभग 25-30 हजार नव मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया गया। 5 जनवरी, 1316 को अलाउद्दीन मर गया। फरिश्ता के अनुसार बादशाह के रूप में वह अत्याचारी और मनुष्य के रूप में धोखेबाज व कृतघ्न था। हिन्दुओं की दयनीय दशा का बढ़ानी ने इन शब्दों में वर्णन किया है, “अलाऊद्दीन के शासन काल में हिन्दुओं की हालत इतनी हीन हो गई थी कि वे सिर उठा कर चल नहीं सकते थे। उनके घर में सोने चांदी के सिक्के का नाम भी नहीं रहा था।’
इलबतूत मुहम्मद तुगलक के समय हुआ है. वह लिखता है, मुस्लिम शासक हिन्दुओं की धार्मिक संस्थाओं को सहन नहीं करते थे। मन्दिरों को तोड़ना और उनके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण करना उनका नियम हो गया था। इस्लामिक कानून के अनुसार ब्राह्मणों को जिन्दा जलाया जाता था। ”
एक अपराधी हिन्दू औरत, के हाथ पैरों में पानी से भरे घड़े बांध कर उसे नदी में फेंक दिया गया वह डूबीं नहीं तो उसे काफिर घोषित किया गया और जीवित जला दिया गया।
तैमूर लंग द्वारा जहाद –
तैमूर लंग आत्मकथा ”तूजके-तीमूरी में लिखता है, मेरी मार्गदर्शक कुरान की वे पंक्तियाँ हैं जिनके अनुसार काफिरों को सख्त से सख्त सजा देना है। हिन्दूस्तान पर हमला करने का मेरा मुख्य उद्देश्य काफिरों के विरूद्ध धार्मिक युद्ध है।
मार्च-अप्रैल, 1398 में वह समरकंद से चला और अफगानिस्तान पहुंचा। वहां के कुछ लोगों (मुस्लिम) ने उसे, शिकायत लगाई कि कटोर के काफिर और ‘स्याहपोश” उन्हें तंग करते हैं उनसे हमारी रक्षा कीजिए। फटोर (काश्मीर और काबुल के बीच) के क्षेत्र में किले पर तैमूर की सेना ने चढ़ाई की और लोगों को कैदी बना लिया। उनके सामने भी दो रास्ते थे। मरो या इस्लाम स्वीकार करें। उन्होंने इस्लाम स्वीकार किया। परन्तु रात्रि को तैमूर की सेना पर हमला कर दिया। मुट्ठी भर सैनिक कैसे, सफल होते, कुछ पकड़े गए। उन्हें बुरी तरह से य़ातनाएं देकर खत्म किया गया। उनके घर लूट लिए गए। उनके शिरो का स्तूप बनाया गया। सितम्बर, 1398 में दीपालंपुट, समाना (जलन्धर, पटियाला के पास) में तैमूर की सेना पहुंची। वह स्वयं कुछ सेना को साथ लेकर भटनीर पहुंचा। वहां का हिन्दू शासक दलचन्द व उसके सैनिकों ने वीरता से युद्ध किया। परन्तु हार गए। नरसंहार हुआ औरतों और बच्चों को दास बना लिया गया। अफगानिस्तान से आरम्भ होकर दिल्ली तक बर्बता का यही सिलसिला चलता रहा। पानीपत पहुंचने से पूर्व तैमूर ने 2 हजार जाटों का संहार किया और फिर पानीपत होता हुआ लोनी पहुंचा लोनी के किले में अधिकतर हिन्दू थे। राजपूतों ने अपनी स्त्रियों और बच्चों को घरों के भीतर जला दिया। और कफन बांध कर युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए। किला जीतने के पश्चात् तैमूर ने आदेश निकाला। पकड़े हुए लोगों में से काफिरों को अलग करके उनको कत्ल कर दो। दिल्ली के सुल्तान महमूद ने तैमूर का सामना करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए, परन्तु जहानुमा महल के पास उसकी सेना नें 12 दिसम्बर, 1398 को तैमूर के सैनिकों के साथ युद्ध किया। सुल्तान हार गया और अपनी सेना के साथ भाग गया। विश्व के इतिहास में ऐसी दर्दनाक घटना नहीं घटीं होगी। तैमूर ने एक लाख हिन्दुओं का संहार कराया। “इस्लाम के शत्रुओं को खत्म करना है।” यह आदेश सुनकर ऐसे मुल्ला, काजी जिन्होंने कभी चिड़िया भी नहीं मारी थी उन्होंने भी हिन्दुओं के रक्त से अपने हाथ रंग कर पुण्य प्राप्त किया। हिन्दू लोगों के घर लूटे गए। लगभग पन्द्रह हजार तुर्कों ने इस नरसंहार और लूट मार में भाग लिया। दिल्ली की लूट के पश्चात् तैमूर ने कहा, “खुदा की इच्छा से सब कुछ ठीक हुआ।” दिल्ली की लूट के पश्चात् 1 जनवरी, 1399 को तैमूर उत्तर की ओर चल पड़ा। नगरकोट और जम्मू तक रास्ते में जो भी नगर आए, वही सिलसिला चला। नवयुवक हिन्दुओं का संहार. स्त्रियों-बच्चों को दास बनाया। तैमूर 3 मार्च, 1399 को सिंध पार कर अपने देश लौट गया। इस प्रकार लगभग एक वर्ष तक तैमूर ने हिन्दुओं पर कहर बरसाया। 

Alok Mohan

The admin, Alok Mohan, is a graduate mechanical engineer & possess following post graduate specializations:- M Tech Mechanical Engineering Production Engineering Marine engineering Aeronautical Engineering Computer Sciences Software Engineering Specialization He has authored several articles/papers, which are published in various websites & books. Studium Press India Ltd has published one of his latest contributions “Standardization of Education” as a senior author in a book along with many other famous writers of international repute. Alok Mohan has held important positions in both Govt & Private organisations as a Senior professional & as an Engineer & possess close to four decades accomplished experience. As an aeronautical engineer, he ensured accident incident free flying. As leader of indian team during early 1990s, he had successfully ensured smooth induction of Chukar III PTA with Indian navy as well as conduct of operational training. As an aeronautical engineer, he was instrumental in establishing major aircraft maintenance & repair facilities. He is a QMS, EMS & HSE consultant. He provides consultancy to business organisations for implimentation of the requirements of ISO 45001 OH & S, ISO 14001 EMS & ISO 9001 QMS, AS 9100, AS9120 Aero Space Standards. He is a qualified ISO 9001 QMS, ISO 14001 EMS, ISO 45001 OH & S Lead Auditor (CQI/IRCA recognised certification courses) & HSE Consultant. He is a qualified Zed Master Trainer & Zed Assessor. He has thorough knowledge of six sigma quality concepts & has also been awarded industry 4, certificate from the United Nations Industrial Development Organisation Knowledge Hub Training Platform  He is a Trainer, a Counselor, an Advisor and a Competent professional of cross functional exposures. He has successfully implimented requirements of various international management system standards in several organizations. He is a dedicated technocrat with expertise in Quality Assurance & Quality Control, Facility Management, General Administration, Marketing, Security, Training, Administration etc. He is a graduate mechanical engineer with specialization in aeronautical engineering. He is always eager to be involved in imparting training, implementing new ideas and improving existing processes by utilizing his vast experience.